अभी क्या करें
खाने-पीने की वस्तुओं में महंगाई पर काबू पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. इसके लिए तीन काम करने होंगे जिससे खुले बाजार में खाद्य सामग्री ज्यादा मात्रा में आ सके.
सरकारी गोदामों में बंद दो करोड़ टन अनाज को लागत की भरपाई के लिए अधिकतम समर्थन मूल्य से पांच फीसदी ज्यादा दाम पर बाजार में लाने का ऐलान किया जाए. अनाज भारतीय खाद्य निगम के सबसे नजदीकी गोदाम से उठाने की सुविधा हो. इसका दामों पर सीधा असर पड़ेगा.
चावल मिलों पर लेवी खत्म हो और यह घोषणा की जाए कि निजी कंपनियां सरकार के पास रजिस्ट्रेशन कराने के बाद अपने गोदाम बना सकती हैं और 50,000 टन तक स्टॉक रख सकती हैं. पैदावार कितनी भी घटे-बढ़े, यह नीति पांच साल तो रहनी ही चाहिए. निजी कंपनियों को आधुनिक गोदाम बनाने पर 25 फीसदी सब्सिडी देने की घोषणा की जाए. इससे भंडारण की उचित सुविधा न होने से हो रही बर्बादी को रोका जा सकेगा.
सभी कृषि वस्तुओं का आयात और निर्यात खोल दिया जाए. चावल और गेहूं सहित सभी अनाजों का आयात खुले सरकारी लाइसेंस के तहत पांच फीसदी शुल्क के साथ, फलों और सब्जियों का अधिकतम 10 फीसदी शुल्क के साथ और दूध, मांस, चिकन लेग्स का अधिकतम 15 फीसदी शुल्क के साथ करने की छूट दी जाए. खाने की किसी चीज पर 15 फीसदी से ज्यादा शुल्क न लें.
प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की आर्थिक कार्य समिति, खासकर खाद्य, कृषि, वाणिज्य और वित्त मंत्रियों से सलाह के बाद ये उपाय अपना सकते हैं.
100 दिन में करें
कृषि उत्पाद मंडी समिति कानून में संशोधन करें और फल-सब्जियों को उससे बाहर कर दें. किसान चाहे जिसे और एपीएमसी की मंडियों के बाहर अपनी फसल बेचने के लिए स्वतंत्र हो. सारे भारत में एक मंडी के लिए आवश्यक उपभोक्ता वस्तु कानून (ईसीए) में संशोधन करें.
निजी कंपनियों को सीधे किसान से खरीदारी करने के लिए छूट और प्रोत्साहन दें.
प्राइवेट सेक्टर को कारगर वैल्यू चेन बनाने के लिए प्रोत्साहन दें. फसल को गांव में ही छांटने, साफ करने, ग्रेडिंग, पैकिंग और बार कोड लगाने के लिए किसान-उत्पादक संगठनों तथा बैकएंड सुविधाओं के निर्माण के लिए 50 फीसदी सब्सिडी दी जाए. इससे गांवों में खेतों के पास ही लाखों सार्थक नौकरियां मिलेंगी और किसानों को प्रोसेसर तथा संगठित दुकानदारों से जोड़ा जा सकेगा. इस स्तर पर कुशलता से काम होने पर किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे.
ऐसा कैसे हो सकता है
सबसे पहले प्रधानमंत्री को सभी मुख्यमंत्रियों को समझना होगा कि एपीएमसी और ईसीए में सुधार कितना जरूरी है.
उन्हें मनरेगा में कांट-छांट करनी पड़ेगी जिससे गांवों में वैल्यू चेन के लिए पैसा मिल सके. इसे सार्थक निवेश का रूप देना होगा. राष्ट्रीय बागबानी मिशन की रकम का इस्तेमाल भी इस काम के लिए किया जा सकता है.
गांवों में वैल्यू चेन बनाने की योजना लागू करने और झटपट नतीजे देने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास और कृषि मंत्री को संयुक्त रूप से दे दें, जिससे भारत में खेती की तस्वीर बदलने में बहुत मदद मिलेगी.
एक साल में करें
खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को तर्कसंगत बनाएं और उन्हें निवेश में बदल दें. खाद्य और उर्वरक सब्सिडी केंर्द्र के विषय हैं और उनमें दो लाख करोड़ रु. से ज्यादा की रकम खर्च होती है इसलिए तुरंत इसे तर्कसंगत बनाना जरूरी है. इससे हर साल कम से कम 60,000 करोड़ रु. की बचत होगी जिसे सिंचाई और जलप्रबंध में लगाया जा सकता है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 के तहत अनाज के बदले नकद राशि देने की अनुमति है. उसके तहत रियायती दर पर अनाज पाने के पात्र सभी किसान परिवारों को अनाज के बदले यूआइडी के जरिए हर महीने सौ रु. प्रति व्यक्ति नकद की व्यवस्था करें. पांच सदस्यों के परिवार को इस तरह महीने में पांच सौ रु. और साल में छह हजार रु. मिलेंगे.
इतना ही नहीं अच्छी वित्तीय बुनियादी सुविधाओं वाले दस लाख से अधिक आबादी के 53 शहरों के सभी निवासियों को भी नकद रकम मिलनी चाहिए. बाकी लोगों को नकद या अनाज के बीच चुनने का विकल्प दिया जाए लेकिन यह सब यूआइडी के जरिए होना चाहिए. इससे पीडीएस में हो रही जबरदस्त लीकेज खत्म होगी और लागत में बचत होगी.
किसानों को यूआइडी के जरिए प्रति हेक्टेयर के आधार पर उर्वरक सब्सिडी सीधे देने की घोषणा की जाए. इसमें चार हेक्टेयर से छोटे खेत के लिए सभी किसानों को 5,000 रु. प्रति हेक्टेयर और चार हेक्टेयर से बड़े खेत वाले किसानों को 4,000 रु. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से नकद सब्सिडी दी जाए. इससे पूरे उर्वरक क्षेत्र को मूल्य नियंत्रण से छुटकारा मिल सकता है. निजी क्षेत्र को शून्य आयात शुल्क पर हर तरह के उर्वरक आयात करने की छूट दी जाए.
तीन साल में करें
केंद्र के स्तर पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की तरह नया जल विकास तथा प्रबंधन प्राधिकरण (डब्ल्यूडीएमए) बनाएं, जो कुछ नदियों को जोड़े और अधूरे सिंचाई प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करे. भारत को अगले 5-10 साल में जल विकास और संसाधनों के कुशल प्रबंधन पर हर साल कम से कम एक लाख करोड़ रु. निवेश करने होंगे.
(इस समय यह निवेश 15,000 करोड़ रु. से कम है.) राष्ट्रीय जल विकास तथा प्रबंधन प्राधिकरण को केंर्द्रीय प्रोजेक्ट में पानी का मूल्य तय करने, पूंजी बाजार से बॉन्ड और दूसरे वित्तीय साधनों से धन जुटाने तथा बड़े जल क्षेत्रों की रचना, संचालन और रख-रखाव में निजी क्षेत्र को शामिल करने का अधिकार होना चाहिए. निजी क्षेत्र की भागीदारी पूरी तरह पारदर्शी वैश्विक निविदा प्रक्रिया के जरिए होनी चाहिए.
कृषि संबंधी रिसर्च के लिए धन की मात्रा कृषि जीडीपी की कम से कम एक फीसदी तक की जानी चाहिए, जो इस समय 0.7 प्रतिशत है. खेती में रिसर्च और विकास का बहुत फायदा होता है. इससे पैदावार और पौष्टिकता बढ़ती है और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के सामने खेती टिकाऊ रह पाती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को अपनी टेक्नोलॉजी बेचने के लिए जवाबदेह होना चाहिए. रिसर्च को प्रयोगशाला से निकालकर जमीन तक लाने के लिए उसकी एक अलग शाखा बनाई जानी चाहिए जो बहुत बड़े स्तर पर निजी क्षेत्र से जुड़ सके. कृषि वैज्ञानिकों को खेती से जुड़े कारोबारों में प्रतिनियुक्ति पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिससे उनकी रिसर्च के नतीजों को जल्द से जल्द वाणिज्यिक प्रयोग में लाया जा सके, इसके लिए लागत में हिस्सेदारी और अतिरिक्त प्रोत्साहन जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं.
पांच साल में करें
किसानों के लिए मौसम बीमा बढ़ाएं, प्रीमियम की 50 फीसदी से अधिक रकम शासन दे.
किसान क्रेडिट कार्ड योजना का दायरा बढ़ाएं.
कृषि निर्यात क्षेत्रों की संपर्क की समस्याएं सुलझाकर उन्हें फिर सक्रिय करें.
फसलों में अधिक आयरन, जिंक, विटामिन-ए आदि तत्वों को शामिल करने का दायरा बढ़ाएं जिससे कुपोषण की भारी समस्या से निबटा जा सके. उनका उपयोग मिड-डे मील योजनाओं में करें.
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में एथेनॉल आधारित विशेष ऊर्जा केंर्द्र विकसित करें क्योंकि वहां पानी बहुत है और दशकों से गन्ने की पैदावार बहुत होती है. तेल कंपनियों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए कि वे 2017 तक 20 फीसदी एथेनॉल का मिश्रण करें.
भारतीय खाद्य निगम का आकार छोटा किया जाए. जहां तक हो सके खाद्य सब्सिडी के मामले में जरूरतमदों को नकदी देने की व्यवस्था अपनाई जाए. समूची पीडीएस व्यवस्था में काट-छांट की जाए. इसमें लीकेज और भ्रष्टाचार बहुत होता है. सरकार को सिर्फ 1.5-2 करोड़ टन का जरूरी भंडार रखना चाहिए.
गांवों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाया जाए. सौर पंप सेट, सौर बिजली, सौर डिहाइड्रेशन आदि का उपयोग किया जाए.
(लेखक इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आइसीआरआइईआर) में कृषि के चेयर प्रोफेसर हैं)
खाने-पीने की वस्तुओं में महंगाई पर काबू पहली प्राथमिकता होनी चाहिए. इसके लिए तीन काम करने होंगे जिससे खुले बाजार में खाद्य सामग्री ज्यादा मात्रा में आ सके.
सरकारी गोदामों में बंद दो करोड़ टन अनाज को लागत की भरपाई के लिए अधिकतम समर्थन मूल्य से पांच फीसदी ज्यादा दाम पर बाजार में लाने का ऐलान किया जाए. अनाज भारतीय खाद्य निगम के सबसे नजदीकी गोदाम से उठाने की सुविधा हो. इसका दामों पर सीधा असर पड़ेगा.
चावल मिलों पर लेवी खत्म हो और यह घोषणा की जाए कि निजी कंपनियां सरकार के पास रजिस्ट्रेशन कराने के बाद अपने गोदाम बना सकती हैं और 50,000 टन तक स्टॉक रख सकती हैं. पैदावार कितनी भी घटे-बढ़े, यह नीति पांच साल तो रहनी ही चाहिए. निजी कंपनियों को आधुनिक गोदाम बनाने पर 25 फीसदी सब्सिडी देने की घोषणा की जाए. इससे भंडारण की उचित सुविधा न होने से हो रही बर्बादी को रोका जा सकेगा.
सभी कृषि वस्तुओं का आयात और निर्यात खोल दिया जाए. चावल और गेहूं सहित सभी अनाजों का आयात खुले सरकारी लाइसेंस के तहत पांच फीसदी शुल्क के साथ, फलों और सब्जियों का अधिकतम 10 फीसदी शुल्क के साथ और दूध, मांस, चिकन लेग्स का अधिकतम 15 फीसदी शुल्क के साथ करने की छूट दी जाए. खाने की किसी चीज पर 15 फीसदी से ज्यादा शुल्क न लें.
प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल की आर्थिक कार्य समिति, खासकर खाद्य, कृषि, वाणिज्य और वित्त मंत्रियों से सलाह के बाद ये उपाय अपना सकते हैं.
100 दिन में करें
कृषि उत्पाद मंडी समिति कानून में संशोधन करें और फल-सब्जियों को उससे बाहर कर दें. किसान चाहे जिसे और एपीएमसी की मंडियों के बाहर अपनी फसल बेचने के लिए स्वतंत्र हो. सारे भारत में एक मंडी के लिए आवश्यक उपभोक्ता वस्तु कानून (ईसीए) में संशोधन करें.
निजी कंपनियों को सीधे किसान से खरीदारी करने के लिए छूट और प्रोत्साहन दें.
प्राइवेट सेक्टर को कारगर वैल्यू चेन बनाने के लिए प्रोत्साहन दें. फसल को गांव में ही छांटने, साफ करने, ग्रेडिंग, पैकिंग और बार कोड लगाने के लिए किसान-उत्पादक संगठनों तथा बैकएंड सुविधाओं के निर्माण के लिए 50 फीसदी सब्सिडी दी जाए. इससे गांवों में खेतों के पास ही लाखों सार्थक नौकरियां मिलेंगी और किसानों को प्रोसेसर तथा संगठित दुकानदारों से जोड़ा जा सकेगा. इस स्तर पर कुशलता से काम होने पर किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे.
ऐसा कैसे हो सकता है
सबसे पहले प्रधानमंत्री को सभी मुख्यमंत्रियों को समझना होगा कि एपीएमसी और ईसीए में सुधार कितना जरूरी है.
उन्हें मनरेगा में कांट-छांट करनी पड़ेगी जिससे गांवों में वैल्यू चेन के लिए पैसा मिल सके. इसे सार्थक निवेश का रूप देना होगा. राष्ट्रीय बागबानी मिशन की रकम का इस्तेमाल भी इस काम के लिए किया जा सकता है.
गांवों में वैल्यू चेन बनाने की योजना लागू करने और झटपट नतीजे देने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास और कृषि मंत्री को संयुक्त रूप से दे दें, जिससे भारत में खेती की तस्वीर बदलने में बहुत मदद मिलेगी.
एक साल में करें
खाद्य और उर्वरक सब्सिडी को तर्कसंगत बनाएं और उन्हें निवेश में बदल दें. खाद्य और उर्वरक सब्सिडी केंर्द्र के विषय हैं और उनमें दो लाख करोड़ रु. से ज्यादा की रकम खर्च होती है इसलिए तुरंत इसे तर्कसंगत बनाना जरूरी है. इससे हर साल कम से कम 60,000 करोड़ रु. की बचत होगी जिसे सिंचाई और जलप्रबंध में लगाया जा सकता है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) 2013 के तहत अनाज के बदले नकद राशि देने की अनुमति है. उसके तहत रियायती दर पर अनाज पाने के पात्र सभी किसान परिवारों को अनाज के बदले यूआइडी के जरिए हर महीने सौ रु. प्रति व्यक्ति नकद की व्यवस्था करें. पांच सदस्यों के परिवार को इस तरह महीने में पांच सौ रु. और साल में छह हजार रु. मिलेंगे.
इतना ही नहीं अच्छी वित्तीय बुनियादी सुविधाओं वाले दस लाख से अधिक आबादी के 53 शहरों के सभी निवासियों को भी नकद रकम मिलनी चाहिए. बाकी लोगों को नकद या अनाज के बीच चुनने का विकल्प दिया जाए लेकिन यह सब यूआइडी के जरिए होना चाहिए. इससे पीडीएस में हो रही जबरदस्त लीकेज खत्म होगी और लागत में बचत होगी.
किसानों को यूआइडी के जरिए प्रति हेक्टेयर के आधार पर उर्वरक सब्सिडी सीधे देने की घोषणा की जाए. इसमें चार हेक्टेयर से छोटे खेत के लिए सभी किसानों को 5,000 रु. प्रति हेक्टेयर और चार हेक्टेयर से बड़े खेत वाले किसानों को 4,000 रु. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से नकद सब्सिडी दी जाए. इससे पूरे उर्वरक क्षेत्र को मूल्य नियंत्रण से छुटकारा मिल सकता है. निजी क्षेत्र को शून्य आयात शुल्क पर हर तरह के उर्वरक आयात करने की छूट दी जाए.
तीन साल में करें
केंद्र के स्तर पर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की तरह नया जल विकास तथा प्रबंधन प्राधिकरण (डब्ल्यूडीएमए) बनाएं, जो कुछ नदियों को जोड़े और अधूरे सिंचाई प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करे. भारत को अगले 5-10 साल में जल विकास और संसाधनों के कुशल प्रबंधन पर हर साल कम से कम एक लाख करोड़ रु. निवेश करने होंगे.
(इस समय यह निवेश 15,000 करोड़ रु. से कम है.) राष्ट्रीय जल विकास तथा प्रबंधन प्राधिकरण को केंर्द्रीय प्रोजेक्ट में पानी का मूल्य तय करने, पूंजी बाजार से बॉन्ड और दूसरे वित्तीय साधनों से धन जुटाने तथा बड़े जल क्षेत्रों की रचना, संचालन और रख-रखाव में निजी क्षेत्र को शामिल करने का अधिकार होना चाहिए. निजी क्षेत्र की भागीदारी पूरी तरह पारदर्शी वैश्विक निविदा प्रक्रिया के जरिए होनी चाहिए.
कृषि संबंधी रिसर्च के लिए धन की मात्रा कृषि जीडीपी की कम से कम एक फीसदी तक की जानी चाहिए, जो इस समय 0.7 प्रतिशत है. खेती में रिसर्च और विकास का बहुत फायदा होता है. इससे पैदावार और पौष्टिकता बढ़ती है और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों के सामने खेती टिकाऊ रह पाती है.
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को अपनी टेक्नोलॉजी बेचने के लिए जवाबदेह होना चाहिए. रिसर्च को प्रयोगशाला से निकालकर जमीन तक लाने के लिए उसकी एक अलग शाखा बनाई जानी चाहिए जो बहुत बड़े स्तर पर निजी क्षेत्र से जुड़ सके. कृषि वैज्ञानिकों को खेती से जुड़े कारोबारों में प्रतिनियुक्ति पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिससे उनकी रिसर्च के नतीजों को जल्द से जल्द वाणिज्यिक प्रयोग में लाया जा सके, इसके लिए लागत में हिस्सेदारी और अतिरिक्त प्रोत्साहन जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं.
पांच साल में करें
किसानों के लिए मौसम बीमा बढ़ाएं, प्रीमियम की 50 फीसदी से अधिक रकम शासन दे.
किसान क्रेडिट कार्ड योजना का दायरा बढ़ाएं.
कृषि निर्यात क्षेत्रों की संपर्क की समस्याएं सुलझाकर उन्हें फिर सक्रिय करें.
फसलों में अधिक आयरन, जिंक, विटामिन-ए आदि तत्वों को शामिल करने का दायरा बढ़ाएं जिससे कुपोषण की भारी समस्या से निबटा जा सके. उनका उपयोग मिड-डे मील योजनाओं में करें.
पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में एथेनॉल आधारित विशेष ऊर्जा केंर्द्र विकसित करें क्योंकि वहां पानी बहुत है और दशकों से गन्ने की पैदावार बहुत होती है. तेल कंपनियों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए कि वे 2017 तक 20 फीसदी एथेनॉल का मिश्रण करें.
भारतीय खाद्य निगम का आकार छोटा किया जाए. जहां तक हो सके खाद्य सब्सिडी के मामले में जरूरतमदों को नकदी देने की व्यवस्था अपनाई जाए. समूची पीडीएस व्यवस्था में काट-छांट की जाए. इसमें लीकेज और भ्रष्टाचार बहुत होता है. सरकार को सिर्फ 1.5-2 करोड़ टन का जरूरी भंडार रखना चाहिए.
गांवों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाया जाए. सौर पंप सेट, सौर बिजली, सौर डिहाइड्रेशन आदि का उपयोग किया जाए.
(लेखक इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (आइसीआरआइईआर) में कृषि के चेयर प्रोफेसर हैं)