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गरीबों को छोड़कर बाकी सबकी सब्सिडी घटाएं

भारत को बदलने के लिए ये बातें जरूरी हैं. व्यापक उदारीकरण की ओर लौटें. खर्च बढ़ाने के लिए कर का दायरा बढ़ाए. भूमि और श्रम सुधार करें.

अपडेटेड 26 मई , 2014
वित्त वर्ष 2014-15 जारी है और अंतरिम बजट भी आ चुका है. पहले साल में कर-व्यय में बड़े बदलाव होने की गुंजाइश भी काफी सीमित है. इसलिए नई सरकार का मुख्य ध्यान बजट में मामूली हेरफेर करने पर होना चाहिए, जिससे भविष्य के वित्तीय कदमों की दिशा तय हो और जहां तक संभव हो सके, उस नई दिशा की ओर बढ़ा जाए.

कर के मोर्चे पर संशोधित बजट को मुख्य रूप से 31 मार्च, 2016 तक सामान और सेवा कर (जीएसटी) में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. साथ ही राज्यों का विश्वास हासिल करने के लिए केंद्रीय बिक्री कर की मद में उनके बकाए को चुकता करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. संशोधित बजट में अगले वित्त वर्ष से प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) लागू करने की प्रतिबद्धता भी दिखाई देनी चाहिए. जहां तक मौजूदा वर्ष का सवाल है तो इस वर्ष में उसके मजमून में फेरबदल करके उस पर सहमति बनाने की कोशिश होनी चाहिए.

बजट में निवेशकों को यह भरोसा भी दिया जाना चाहिए कि सरकार पिछली तारीखों से कर वसूल करने का कदम नहीं उठाएगी. ऐसा किए जाने से वे निवेश अब लाभदायक नहीं रह जाएंगे, जो शुरुआत में मुनाफा देते प्रतीत हो रहे थे. सरकार को इसी के साथ-साथ लोगों को यह साफ चेतावनी भी देनी चाहिए कि कर चोरी को बिलकुल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. साथ ही सरकार को यह भी स्पष्ट कर देना चाहिए कि कर चोरी की जांच-पड़ताल बहुत कड़ाई के साथ और तेज गति से की जाएगी.

एक उद्योग अर्थशास्त्री होने के नाते फौरी आर्थिक सुधारों के मामले में मैं सरकार को व्यापार-उद्योग सुधारों की दिशा में लौटने की सलाह दूंगा. ये सुधार कार्य 2007-08 से लटके हुए हैं. हम उच्च औद्योगिक कर दर को 10 प्रतिशत से 7 प्रतिशत तक घटाने से शुरुआत कर सकते हैं.

खर्च के मोर्चे पर अंतरिम बजट में पूंजीगत खर्च को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.76 प्रतिशत से बढ़ाकर 2 प्रतिशत जरूर करना चाहिए. बजट में राज्यों द्वारा संविधान की समवर्ती सूची के विषयों से संबंधित केंद्रीय कानूनों में संशोधन के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी की अपील पर भी सरकार को तय समय के भीतर फैसला लेने की प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए. इससे पहले साल में ही भूमि, श्रम और सामाजिक कानूनों में सुधार की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.

काबू पाएं राजकोषीय घाटे पर
पांच साल में सरकार को पर्याप्त राजकोषीय मजबूती हासिल कर लेनी चाहिए. सरकार को यह जरूर सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी स्थिति में केंद्रीय बजट में राजकोषीय घाटा हर साल 4.5 प्रतिशत से कम हो. इसका नतीजा यह होगा कि वृद्धि तेज होने पर कर्ज और जीडीपी का अनुपात घट जाएगा.

कर के मोर्चे पर, जीएसटी और डीटीसी की स्थापना के बाद मुख्य मसला कर और जीडीपी का अनुपात बढ़ाना ही रह जाएगा, जो भारत में काफी कम बना हुआ है. इसके लिए कर का दायरा बढ़ाने और सूचना-प्रौद्योगिकी के रचनात्मक इस्तेमाल से कर प्रशासन को सुधारने जैसे उपायों की दरकार है. मिसाल के तौर पर कृषि आय पर कर न लगाने से कराधान का दायरा सिकुड़कर कम हो जाता है और कर चोरी में भी बढ़ोतरी होती है.

कम-से-कम शहरी कृषि आय को कर के दायरे में लाने की कोशिश की जानी चाहिए. इसी तरह, परोह्न कर का आधार भी बढ़ाना चाहिए. कर विभागों को सूचना के आदान-प्रदान का ज्यादा लाभ लेने की जरूरत है. केंद्र तथा राज्य कर विभागों और केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड तथा केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क विभाग के बीच सूचनाओं के ज्यादा आदान-प्रदान की दरकार है.

खर्च के मोर्चे पर सरकार को पांचवें साल तक जीडीपी मंक अपनी हिस्सेदारी मामूली से 4 प्रतिशत तक बढ़ाकर पूंजीगत खर्च की ओर बढ़ाने की जरूरत होगी, जो स्तर 2003-04 में था. यह बिजली समेत इन्फ्रास्ट्रक्चर के मोर्चे पर कमी को दूर करने के लिए पर्याप्त राजस्व जुटाने के लिए जरूरी होगा. इस तरह बिजली भी एक बहुत बड़ी आबादी को मुहैया हो पाएगी. सरकार को स्वास्थ्य के मद में खर्च को भी मौजूदा जीडीपी के 1.3 प्रतिशत से बढ़ाकर पांचवें साल तक जीडीपी के 2.5 प्रतिशत तक ले जाना होगा.

यह पाइपलाइन से पेयजल मुहैया कराने, शौचालयों की व्यवस्था करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार कर ज्यादा बड़ी आबादी तक पहुंच बनाने जैसे कदमों के लिए बहुत जरूरी होगा. खर्च में इस बढ़ोतरी के साथ-साथ राजकोषीय मजबूती का लक्ष्य भी रखा जाए तो कर-जीडीपी अनुपात बढ़ाने का उपाय ही पर्याप्त नहीं होगा.

सरकार को सब्सिडी में कटौती करनी होगी. देश में पेट्रोल, डीजल, मिट्टी के तेल, रसोई गैस, खाद, बिजली और पानी से संबंधित अनेक सब्सिडी के कारण आर्थिक कुशलता प्रभावित होती है, जबकि ये रियायतें मुख्य रूप से गरीबों से इतर तबके को लाभ पहुंचाती हैं.

न करें पैसा बर्बाद
पेट्रोल और डीजल की सब्सिडी खत्म करने के चरण शुरू हो चुके हैं और उन्हें तार्किक परिणति तक पहुंचने देना चाहिए. निश्चित ही खाद पर सब्सिडी भी धीरे-धीरे खत्म करनी चाहिए क्योंकि इससे खाद का इस्तेमाल काफी बढ़ रहा है. खाद का इस्तेमाल बढऩे से  मिट्टी तथा पर्यावरण नष्ट हो रहा है. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने यह प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन यूपीए सरकार ने उसे उलट दिया. बिजली और पानी दोनों पर सब्सिडी से नुकसान हुआ है.

खास तौर पर सिंचाई में पानी की बर्बादी बढ़ी है. इन रियायतों को खत्म करके टपक सिंचाई और पानी की बचत करने वाली दूसरी विधियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

हालांकि इन उपायों को अपनाने के बाद भी राजकोषीय मजबूती का लक्ष्य हासिल करना संभव नहीं होगा क्योंकि सामाजिक क्षेत्र और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर बढ़े हुए खर्च की भरपाई करनी होगी. इसलिए सरकार को बड़े पैमाने पर विनिवेश के उपायों की ओर लौटना होगा. इससे भी अर्थव्यवस्था की क्षमता में इजाफा होगा. इसके साथ-साथ सरकार को कुछ सार्वजनिक इकाइयों के सीधे निजीकरण की ओर बढऩा चाहिए, जिनके पुनर्जीवन की कोई उम्मीद नहीं है.


योजना और गैर-योजनागत खर्च का फर्क मिटना चाहिए. इसके लिए केंद्रीय बजट से राज्यों को अनुदान के रूप में रकम का हस्तांतरण होना चाहिए. केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत मदद के स्वरूप को बदलकर राज्यों के लिए मानक ज्यादा लचीले बनाए जाने चाहिए. कई तरह की योजनाओं को कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा और इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे बड़े मदों में बांट देना चाहिए और राज्यों को छूट दी जानी चाहिए कि किसी भी मद में कोई भी रकम खर्च करें. फिलहाल इस तरह की 66 योजनाएं हैं.

सरकार का अंतिम लक्ष्य यह होना चाहिए कि केंद्र योजनाओं की जगह पर अनुदान दे और केंद्र सरकार प्रदर्शन तथा निगरानी की व्यवस्था पर ध्यान दे.

देश में वित्तीय सुधारों को लागू करने का एजेंडा देखने में काफी कठिन और महत्वाकांक्षी लग सकता है, लेकिन दृढ़ संकल्प सरकार की हदों के बाहर नहीं है. वाकई पी.वी. नरसिंह राव और वाजपेयी सरकारों ने कमोबेश इसे करके दिखा दिया था. इसके अलावा आज के दौर में प्रति व्यक्ति आय ऊंची होने के कारण और बचत दर के कारण इस दिशा में बढऩे की गुंजाइश भी अधिक है. भारत उन देशों की श्रेणी में खड़े होने का मौका गंवा नहीं सकता, जो अहमियत रखते हैं.

(अरविंद पानगडिय़ा अर्थशास्त्री और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. गोविंद राव और जयदीप मुखर्जी ने भी अमूल्य सुझाव दिए हैं.)
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