वन और कृषि से जुड़े लोगों के लिए पर्यावरण की सुरक्षा उनकी आजीविका, पोषण और स्वास्थ्य की सुरक्षा से जुड़ी है. पर्यावरण पर निर्भर इस तरह के लोगों की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या की करीब दो-तिहाई है. बाजार व्यवस्था के माध्यम से करीब छठवें हिस्से की आबादी के पास देश के सभी संसाधन उपलब्ध हैं. ये लोग अपने सुविधासंपन्न घरों और कार्यालयों में पानी, ऊर्जा और खाद्य आपूर्ति के साथ-साथ अच्छी स्वास्थ्य सेवा का पूरा उपभोग कर सकते हैं.
परिणामस्वरूप, उन्हें उन जगहों के पर्यावरण की बिगड़ती दशा की कोई फिक्र नहीं होती है, जो पर्यावरण पर निर्भर लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. ये लोग पर्यावरण को बचाने वाले और लोकतांत्रिक ताकत को निचले स्तर तक पहुंचाने वाले महत्वपूर्ण कानूनों को दरकिनार करना चाहते हैं.
हमारे कानूनों और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी को रोकने के लिए एक समावेशी राष्ट्रीय एजेंडा बनाना होगा और कानून का पालन करने वाले समाज का निर्माण करना होगा, एक ऐसा समाज जो लोकतंत्र का सम्मान करता हो.
इससे विकास की नीतियों के निर्माण में देश में पर्यावरण पर निर्भर रहने वाले लोगों की भूमिका सुनिश्चित हो सकेगी. इसलिए प्रस्तावित एजेंडे का जोर जमीनी स्तर पर रहने वाले लोगों को सशक्त बनाने पर होगा ताकि वे देश के संविधान के तहत अपने लिए एक एजेंडा बना सकें और उसे लागू कर सकें.
यह सही है कि भारत को तकनीकी आधारित एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में आगे बढऩा चाहिए, लेकिन इससे एक छोटी आबादी को ही रोजगार मिलेगा. इसलिए इस आधुनिक अर्थव्यवस्था को प्राकृतिक संसाधन आधारित और श्रम-प्रधान क्षेत्र के प्रति भक्षक वाली नहीं, बल्कि सहजीवी भूमिका अपनानी चाहिए. इस प्रकार सद्भावपूर्ण या पर्यावरण के अनुकूल आर्थिक विकास की दिशा में यही एकमात्र रास्ता है.
अभी क्या करें
सूचना के अधिकार कानून के खुद ब खुद खुलासा करने के प्रावधानों के तहत विभिन्न सरकारी एजेंसियों के हाथों में निहित पर्यावरण विकास के मुद्दों से संबंधित सभी जानकारियां पूरी तरह उपलब्ध कराएं.
देशभर में पर्यावरण की सुरक्षा और लोकतांत्रिक शक्ति के हस्तांतरण से संबंधित कानूनों के क्रियान्वयन की स्थिति पर एक श्वेत पत्र निकालने की शुरुआत करने की कोशिश करें.
पर्यावरण वाहिनी की पुरानी योजना पर काम करते हुए पर्यावरण संबंधी कानूनों के प्रावधानों के क्रियान्वयन पर तुरंत एक सामाजिक लेखा व्यवस्था बनायी जानी चाहिए.
100 दिन में क्या करें
प्रदूषण रोकने के लिए वायु और जल जैसे पर्यावरण कानूनों को सख्ती से लागू करें.
पर्यावरण को अस्वीकार्य स्तर तक नुकसान पहुंचाने के विरोध में लोगों के एकत्र होने और अपनी आवाज उठाने की कोशिशों को दबाएं नहीं, बल्कि प्रोत्साहित करें. इसके लिए इसे सालभर के पर्यावरण संबंधी जागरूकता अभियान का हिस्सा बनाएं.
पर्यावरण के नुकसान से लोगों की आजीविका पर पडऩे वाले असर पर एक श्वेत पत्र निकालने की तैयारी करें.
सभी केंद्रशासित राज्यों में इन मुद्दों पर तुरंत कार्रवाई करें. केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन की राज्य सरकारों को भी इन योजनाओं को लागू करने के लिए तुरंत अनुरोध करें. दूसरे राज्यों के साथ भी बातचीत करें.
एक साल में क्या करें
स्थानीय निकायों जैसे ग्राम, तालुका, जिला पंचायतों, नगरपालिकाओं और महानगरपालिकाओं को पर्यावरण मसलों पर निर्णय लेने का अधिकार दें. यह संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के प्रकाश में ही होगा और केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर कोशिश करनी होगी कि इन संशोधनों के शब्दों और भावनाओं के अनुरूप उपयुक्त नियम बनाए जाएं और उन्हें लागू किया जाए.
सभी स्थानीय निकायों में जैव-विविधता प्रबंधन समिति बनानी चाहिए, जिसे जैव विविधता कानून 2002 के तहत स्थानीय जैव विविधता संसाधन को नियमित करने, उनके संग्रह पर शुल्क लगाने और प्रोत्साहन के लिए भुगतान हासिल करने का पूरा अधिकार हो. यह केंद्रीय कानून है और केंद्र सरकार इसको लागू करने पर जोर दे सकती है, साथ ही सीधे पंचायती राज संस्थाओं को यह अधिकार दे सकती है कि वे खुद ही कोई कार्रवाई कर सकें.
पंचायत कानून (अनुसूचित इलाकों तक विस्तार) 1996 को पूर्णतया लागू करें. केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर उपयुक्त नियम बनाना चाहिए और कानून को लागू करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए.
अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकारों को मान्यता) कानून, 2006 को पूरी तरह से लागू करें. केंद्र सरकार इसको लागू करने पर जोर दे सकती है.
विभिन्न प्रासंगिक पर्यावरण कानूनों के प्रावधानों को इस्तेमाल में लाएं ताकि व्यक्तियों और सामुदायिक स्तर पर सकारात्मक कार्रवाई के तहत पर्यावरण सेवा शुल्क की व्यवस्था अपनाई जा सके. इस बारे में उपयुक्त नियम बनाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ मिल कर काम करना चाहिए.
तीन साल में पूरा करें
पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में आमूल सुधार करें, इसके लिए किसी निष्पक्ष संस्था को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआइए) स्टेटमेंट तैयार करने का काम सौंपा जाना चाहिए जो प्रोजेक्ट के प्रस्तावकों से मिलने वाले भुगतान पर निर्भर न हो.
अनिवार्य बनाएं:
ईआइए तैयार करने की प्रक्रिया में स्थानीय जैव विविधिता प्रबंधन समिति की भागीदारी.
सभी जमा जानकारियों और जन सुनवाइयों के दौरान मिले सुझावों को सामने रखना.
नियमित रूप से पर्यावरण मंजूरी हासिल करने की जरूरत, इसे हर पांच साल में एक बार किया जा सकता है.
पर्यावरण मंजूरी देने में जो शर्तें लगाई गई थीं, उनके पालन की निगरानी और क्षेत्रीय संचयी पर्यावरण विश्लेषण तैयार करने में स्थानीय जैव विविधता समितियों की भागदारी तय की जाए.
क्षेत्रीय विकास योजनाओं में पर्यावरणी संबंध प्रमुख समस्याओं को शामिल करने की गुंजाइश बढ़ाएं और योजना बनाने की प्रक्रिया में शुरू से ही स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियों की भागीदारी को अनिवार्य बनाएं.
संरक्षित इलाकों के आस-पास पारिस्थितिक रूप से सभी संवेदनशील क्षेत्रों के सीमांकन को अंतिम रूप दें, जिसकी सिफारिश 2002 में राष्ट्रीय वन्य जीवन बोर्ड ने की थी.
सरकारी एजेंसियों के पास उपलब्ध जानकारी और सार्वजनिक फंडिंग वाले पर्यावरण रिसर्च ऐंड एजुकेशन प्रोजेक्ट्स की ओर से तैयार जानकारियों को मिला कर भारतीय पर्यावरण के बारे में एक जन सहभागिता वाला डेटाबेस तैयार करें.
पांच साल में लागू करें
फसल उगाने वाले किसानों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू करें और पौध किस्म तथा किसान अधिकार संरक्षण कानून 2001 के प्रावधानों के मुताबिक खेतों में पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्हें प्रोत्साहन दें.
टैक्स की उपयुक्त नीति के माध्यम से खनिज संसाधनों के सावधानीपूर्वक इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक खनिज विकास नीति तैयार करें.
प्रदूषकों के लागत को किसी और पर थोपने की सुविधा न दें-'प्रदूषक ही भुगतान करे’ इस सिद्धांत को पूरी तरह से लागू करें.
यह सुनिश्चित करें कि नदियों में पर्यावरण अनुकूल ही प्रवाह हो. बांध वाले सभी जलाशयों में फिश लैडर स्थापित करें.
कानूनी रूप से संरक्षित साझी चारागाह की व्यवस्था बनाएं.
यह सुनिश्चित करें कि हर घर अपनी न्यूनतम बिजली जरूरतों से कुछ अतिरिक्त बिजली अपने खर्च पर अपनी छत पर सोलर पैनल लगा कर उत्पादित करे.
प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग की व्यवस्था तैयार करें ताकि उसे ठोस कचरे के रूप में न फेंका जाए.
देशभर में सीवेज प्रबंधन को विकेंद्रित करें.
(माधव गाडगिल प्रोफेशनल इकोलॉजिस्ट और शौकिया इतिहासकार हैं)
परिणामस्वरूप, उन्हें उन जगहों के पर्यावरण की बिगड़ती दशा की कोई फिक्र नहीं होती है, जो पर्यावरण पर निर्भर लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं. ये लोग पर्यावरण को बचाने वाले और लोकतांत्रिक ताकत को निचले स्तर तक पहुंचाने वाले महत्वपूर्ण कानूनों को दरकिनार करना चाहते हैं.
हमारे कानूनों और लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों की अनदेखी को रोकने के लिए एक समावेशी राष्ट्रीय एजेंडा बनाना होगा और कानून का पालन करने वाले समाज का निर्माण करना होगा, एक ऐसा समाज जो लोकतंत्र का सम्मान करता हो.
इससे विकास की नीतियों के निर्माण में देश में पर्यावरण पर निर्भर रहने वाले लोगों की भूमिका सुनिश्चित हो सकेगी. इसलिए प्रस्तावित एजेंडे का जोर जमीनी स्तर पर रहने वाले लोगों को सशक्त बनाने पर होगा ताकि वे देश के संविधान के तहत अपने लिए एक एजेंडा बना सकें और उसे लागू कर सकें.
यह सही है कि भारत को तकनीकी आधारित एक मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में आगे बढऩा चाहिए, लेकिन इससे एक छोटी आबादी को ही रोजगार मिलेगा. इसलिए इस आधुनिक अर्थव्यवस्था को प्राकृतिक संसाधन आधारित और श्रम-प्रधान क्षेत्र के प्रति भक्षक वाली नहीं, बल्कि सहजीवी भूमिका अपनानी चाहिए. इस प्रकार सद्भावपूर्ण या पर्यावरण के अनुकूल आर्थिक विकास की दिशा में यही एकमात्र रास्ता है.
अभी क्या करें
सूचना के अधिकार कानून के खुद ब खुद खुलासा करने के प्रावधानों के तहत विभिन्न सरकारी एजेंसियों के हाथों में निहित पर्यावरण विकास के मुद्दों से संबंधित सभी जानकारियां पूरी तरह उपलब्ध कराएं.
देशभर में पर्यावरण की सुरक्षा और लोकतांत्रिक शक्ति के हस्तांतरण से संबंधित कानूनों के क्रियान्वयन की स्थिति पर एक श्वेत पत्र निकालने की शुरुआत करने की कोशिश करें.
पर्यावरण वाहिनी की पुरानी योजना पर काम करते हुए पर्यावरण संबंधी कानूनों के प्रावधानों के क्रियान्वयन पर तुरंत एक सामाजिक लेखा व्यवस्था बनायी जानी चाहिए.
100 दिन में क्या करें
प्रदूषण रोकने के लिए वायु और जल जैसे पर्यावरण कानूनों को सख्ती से लागू करें.
पर्यावरण को अस्वीकार्य स्तर तक नुकसान पहुंचाने के विरोध में लोगों के एकत्र होने और अपनी आवाज उठाने की कोशिशों को दबाएं नहीं, बल्कि प्रोत्साहित करें. इसके लिए इसे सालभर के पर्यावरण संबंधी जागरूकता अभियान का हिस्सा बनाएं.
पर्यावरण के नुकसान से लोगों की आजीविका पर पडऩे वाले असर पर एक श्वेत पत्र निकालने की तैयारी करें.
सभी केंद्रशासित राज्यों में इन मुद्दों पर तुरंत कार्रवाई करें. केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन की राज्य सरकारों को भी इन योजनाओं को लागू करने के लिए तुरंत अनुरोध करें. दूसरे राज्यों के साथ भी बातचीत करें.
एक साल में क्या करें
स्थानीय निकायों जैसे ग्राम, तालुका, जिला पंचायतों, नगरपालिकाओं और महानगरपालिकाओं को पर्यावरण मसलों पर निर्णय लेने का अधिकार दें. यह संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के प्रकाश में ही होगा और केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर कोशिश करनी होगी कि इन संशोधनों के शब्दों और भावनाओं के अनुरूप उपयुक्त नियम बनाए जाएं और उन्हें लागू किया जाए.
सभी स्थानीय निकायों में जैव-विविधता प्रबंधन समिति बनानी चाहिए, जिसे जैव विविधता कानून 2002 के तहत स्थानीय जैव विविधता संसाधन को नियमित करने, उनके संग्रह पर शुल्क लगाने और प्रोत्साहन के लिए भुगतान हासिल करने का पूरा अधिकार हो. यह केंद्रीय कानून है और केंद्र सरकार इसको लागू करने पर जोर दे सकती है, साथ ही सीधे पंचायती राज संस्थाओं को यह अधिकार दे सकती है कि वे खुद ही कोई कार्रवाई कर सकें.
पंचायत कानून (अनुसूचित इलाकों तक विस्तार) 1996 को पूर्णतया लागू करें. केंद्र सरकार को सभी राज्य सरकारों के साथ मिलकर उपयुक्त नियम बनाना चाहिए और कानून को लागू करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करना चाहिए.
अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकारों को मान्यता) कानून, 2006 को पूरी तरह से लागू करें. केंद्र सरकार इसको लागू करने पर जोर दे सकती है.
विभिन्न प्रासंगिक पर्यावरण कानूनों के प्रावधानों को इस्तेमाल में लाएं ताकि व्यक्तियों और सामुदायिक स्तर पर सकारात्मक कार्रवाई के तहत पर्यावरण सेवा शुल्क की व्यवस्था अपनाई जा सके. इस बारे में उपयुक्त नियम बनाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ मिल कर काम करना चाहिए.
तीन साल में पूरा करें
पर्यावरण मंजूरी प्रक्रिया में आमूल सुधार करें, इसके लिए किसी निष्पक्ष संस्था को पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआइए) स्टेटमेंट तैयार करने का काम सौंपा जाना चाहिए जो प्रोजेक्ट के प्रस्तावकों से मिलने वाले भुगतान पर निर्भर न हो.
अनिवार्य बनाएं:
ईआइए तैयार करने की प्रक्रिया में स्थानीय जैव विविधिता प्रबंधन समिति की भागीदारी.
सभी जमा जानकारियों और जन सुनवाइयों के दौरान मिले सुझावों को सामने रखना.
नियमित रूप से पर्यावरण मंजूरी हासिल करने की जरूरत, इसे हर पांच साल में एक बार किया जा सकता है.
पर्यावरण मंजूरी देने में जो शर्तें लगाई गई थीं, उनके पालन की निगरानी और क्षेत्रीय संचयी पर्यावरण विश्लेषण तैयार करने में स्थानीय जैव विविधता समितियों की भागदारी तय की जाए.
क्षेत्रीय विकास योजनाओं में पर्यावरणी संबंध प्रमुख समस्याओं को शामिल करने की गुंजाइश बढ़ाएं और योजना बनाने की प्रक्रिया में शुरू से ही स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियों की भागीदारी को अनिवार्य बनाएं.
संरक्षित इलाकों के आस-पास पारिस्थितिक रूप से सभी संवेदनशील क्षेत्रों के सीमांकन को अंतिम रूप दें, जिसकी सिफारिश 2002 में राष्ट्रीय वन्य जीवन बोर्ड ने की थी.
सरकारी एजेंसियों के पास उपलब्ध जानकारी और सार्वजनिक फंडिंग वाले पर्यावरण रिसर्च ऐंड एजुकेशन प्रोजेक्ट्स की ओर से तैयार जानकारियों को मिला कर भारतीय पर्यावरण के बारे में एक जन सहभागिता वाला डेटाबेस तैयार करें.
पांच साल में लागू करें
फसल उगाने वाले किसानों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू करें और पौध किस्म तथा किसान अधिकार संरक्षण कानून 2001 के प्रावधानों के मुताबिक खेतों में पर्यावरण संरक्षण के लिए उन्हें प्रोत्साहन दें.
टैक्स की उपयुक्त नीति के माध्यम से खनिज संसाधनों के सावधानीपूर्वक इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक खनिज विकास नीति तैयार करें.
प्रदूषकों के लागत को किसी और पर थोपने की सुविधा न दें-'प्रदूषक ही भुगतान करे’ इस सिद्धांत को पूरी तरह से लागू करें.
यह सुनिश्चित करें कि नदियों में पर्यावरण अनुकूल ही प्रवाह हो. बांध वाले सभी जलाशयों में फिश लैडर स्थापित करें.
कानूनी रूप से संरक्षित साझी चारागाह की व्यवस्था बनाएं.
यह सुनिश्चित करें कि हर घर अपनी न्यूनतम बिजली जरूरतों से कुछ अतिरिक्त बिजली अपने खर्च पर अपनी छत पर सोलर पैनल लगा कर उत्पादित करे.
प्लास्टिक के रीसाइक्लिंग की व्यवस्था तैयार करें ताकि उसे ठोस कचरे के रूप में न फेंका जाए.
देशभर में सीवेज प्रबंधन को विकेंद्रित करें.
(माधव गाडगिल प्रोफेशनल इकोलॉजिस्ट और शौकिया इतिहासकार हैं)