भारत के सबसे लंबे, सबसे बड़े और सबसे गलीज चुनाव के दौरान शोर-शराबे में हम वह बुनियादी मकसद ही भूल गए जिसके लिए चुनाव यज्ञ की आहुति हुई है, वह मकसद हैः उम्मीद. पिछले कई साल से असरदार और मन को रास आने वाले प्रशासन की उम्मीद ही गायब है.
ऐसी रणनीति की उम्मीद जिससे भारत की हाशिये पर पड़ी अर्थव्यवस्था को नया जीवन मिल सके. ऐसे मंत्रियों की उम्मीद जो सीबीआइ, सीवीसी और सीएजी से सींग लड़ाने की बजाए कानून बनाएं और उसमें बदलाव करें.
ऐसे नेता की उम्मीद जिसमें स्पष्टता, साहस और दृढ़ निश्चय हो.
देश के सामने उम्मीदों का पहाड़ है, लेकिन इसके लिए थका देने वाला इंतजार करना पड़ा है. चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों की घोषणा भले ही मार्च 2014 में की हो, लेकिन देश इससे काफी पहले ही चुनावी रंग में आ गया था. केंद्र सरकार 2012 की शुरुआत में ही नीतिक शून्यता (पॉलिसी पैरालिसिस) के चंगुल में आ चुकी थी, जब 1.86 लाख करोड़ रु. का कोयला घोटाला उजागर हुआ था.
यह गंदे सौदों के खुलासों की शृंखला की शुरुआत थीः सेना के हेलिकॉप्टरों से लेकर टाट्रा ट्रक और आदर्श हाउसिंग घोटाले तक. इसका असर यह हुआ कि सरकारी विभाग और घबराए मंत्रियों ने काम करना बंद कर दिया. उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत करने से इनकार किया और सबसे चर्चित बात यह रही कि सरकारी दफ्तरों के लिए स्टेशनरी तक की खरीद बंद कर दी गई. वर्ष 2012 से यूपीए 2 सरकार ने सिर्फ एक निर्णय लियाः निर्णय लेने के लिए अगली सरकार का इंतजार करते रहो.

अब वह समय आ गया है. नई सरकार को महीनों के काहिल प्रशासन और लापरवाह नेतृत्व की भरपाई करनी होगी. उसे महंगाई पर अंकुश लगाना होगा, नौकरियां पैदा करनी होंगी, निवेश आकर्षित करना होगा, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास का काम तेज करना होगा, माओवादियों पर अंकुश लगाना होगा और भारत की छवि वैश्विक महाशक्ति के तौर पर गढऩी होगी.
आगे की ओर देखने का एक और ज्यादा आशावादी रास्ता है. निवेश, मनोदशा और अर्थव्यवस्था की तरक्की का पहिया कुछ महीनों पहले ही गड्ढे में फंस चुका है और अब इसके ऊपर की ओर बढऩे के लक्षण साफ दिख रहे हैं. नई सरकार को बस इस रफ्तार को बनाए रखना होगा.
अटके हुए कामों की लंबी फेहरिस्त से भी इस बात का इशारा मिलता है कि कुछ महत्वपूर्ण सुधारों और कार्रवाइयों के लिए कितना होमवर्क और तैयारी की जा चुकी है. नई सरकार को भी बस यही करना होगा. लेकिन उम्मीदों के बोझ और काम करने की जमीनी संभावनाओं के बीच जितनी बड़ी खाई है, उसमें सबसे अच्छा प्रशासन भी गच्चा खा सकता है.
यानी आगाज से ही सही प्राथमिकताएं तय करनी होंगी. इसलिए इंडिया टुडे ने 10 क्षेत्रों के एक्सपर्ट से संपर्क किया, न सिर्फ अगली सरकार के लिए एजेंडा सुझाने के लिए, बल्कि इसके साफ तौर पर निर्धारित समय-सीमा के ढांचे के भीतर पूरा करने के लिए भी.
शिक्षा से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर और न्यायिक सुधारों तक के विशेषज्ञों ने भारत की नई सरकार के लिए काम करने की सूची तैयार की है. 16 मई के जबरदस्त फाइनल को एक शुरुआत मानते हुए इन एक्सपर्ट ने बारीकी से यह खाका पेश किया है कि नई सरकार को अगले कुछ दिनों, पहले 100 दिनों, एक साल, तीन साल और पांच साल में क्या हासिल करना चाहिए. देश के 14वें प्रधानमंत्री आपको बधाई. अब आगे बढ़ें.
ऐसी रणनीति की उम्मीद जिससे भारत की हाशिये पर पड़ी अर्थव्यवस्था को नया जीवन मिल सके. ऐसे मंत्रियों की उम्मीद जो सीबीआइ, सीवीसी और सीएजी से सींग लड़ाने की बजाए कानून बनाएं और उसमें बदलाव करें.
ऐसे नेता की उम्मीद जिसमें स्पष्टता, साहस और दृढ़ निश्चय हो.
देश के सामने उम्मीदों का पहाड़ है, लेकिन इसके लिए थका देने वाला इंतजार करना पड़ा है. चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीखों की घोषणा भले ही मार्च 2014 में की हो, लेकिन देश इससे काफी पहले ही चुनावी रंग में आ गया था. केंद्र सरकार 2012 की शुरुआत में ही नीतिक शून्यता (पॉलिसी पैरालिसिस) के चंगुल में आ चुकी थी, जब 1.86 लाख करोड़ रु. का कोयला घोटाला उजागर हुआ था.
यह गंदे सौदों के खुलासों की शृंखला की शुरुआत थीः सेना के हेलिकॉप्टरों से लेकर टाट्रा ट्रक और आदर्श हाउसिंग घोटाले तक. इसका असर यह हुआ कि सरकारी विभाग और घबराए मंत्रियों ने काम करना बंद कर दिया. उन्होंने कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत करने से इनकार किया और सबसे चर्चित बात यह रही कि सरकारी दफ्तरों के लिए स्टेशनरी तक की खरीद बंद कर दी गई. वर्ष 2012 से यूपीए 2 सरकार ने सिर्फ एक निर्णय लियाः निर्णय लेने के लिए अगली सरकार का इंतजार करते रहो.

अब वह समय आ गया है. नई सरकार को महीनों के काहिल प्रशासन और लापरवाह नेतृत्व की भरपाई करनी होगी. उसे महंगाई पर अंकुश लगाना होगा, नौकरियां पैदा करनी होंगी, निवेश आकर्षित करना होगा, इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास का काम तेज करना होगा, माओवादियों पर अंकुश लगाना होगा और भारत की छवि वैश्विक महाशक्ति के तौर पर गढऩी होगी.
आगे की ओर देखने का एक और ज्यादा आशावादी रास्ता है. निवेश, मनोदशा और अर्थव्यवस्था की तरक्की का पहिया कुछ महीनों पहले ही गड्ढे में फंस चुका है और अब इसके ऊपर की ओर बढऩे के लक्षण साफ दिख रहे हैं. नई सरकार को बस इस रफ्तार को बनाए रखना होगा.
अटके हुए कामों की लंबी फेहरिस्त से भी इस बात का इशारा मिलता है कि कुछ महत्वपूर्ण सुधारों और कार्रवाइयों के लिए कितना होमवर्क और तैयारी की जा चुकी है. नई सरकार को भी बस यही करना होगा. लेकिन उम्मीदों के बोझ और काम करने की जमीनी संभावनाओं के बीच जितनी बड़ी खाई है, उसमें सबसे अच्छा प्रशासन भी गच्चा खा सकता है.
यानी आगाज से ही सही प्राथमिकताएं तय करनी होंगी. इसलिए इंडिया टुडे ने 10 क्षेत्रों के एक्सपर्ट से संपर्क किया, न सिर्फ अगली सरकार के लिए एजेंडा सुझाने के लिए, बल्कि इसके साफ तौर पर निर्धारित समय-सीमा के ढांचे के भीतर पूरा करने के लिए भी.
शिक्षा से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर और न्यायिक सुधारों तक के विशेषज्ञों ने भारत की नई सरकार के लिए काम करने की सूची तैयार की है. 16 मई के जबरदस्त फाइनल को एक शुरुआत मानते हुए इन एक्सपर्ट ने बारीकी से यह खाका पेश किया है कि नई सरकार को अगले कुछ दिनों, पहले 100 दिनों, एक साल, तीन साल और पांच साल में क्या हासिल करना चाहिए. देश के 14वें प्रधानमंत्री आपको बधाई. अब आगे बढ़ें.