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मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) : मुसलमानों के लिए सभी पार्टियां एक-सी हैं

मुर्शिदाबाद के मुसलमान वादे नहीं, नौकरियां चाहते हैं. यहां 70 फीसदी आबादी मुस्लिम है लेकिन प्रतिनिधित्व बहुत ही कम.

अपडेटेड 18 मार्च , 2014
बंगाल के नवाबों के प्रभाव वाली सीट मुर्शिदाबाद की पहचान आजकल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के घर के रूप में बन चुकी है. इस जिले की जनसंख्या 70 लाख है, जिसमें से 70 फीसदी आबादी मुस्लिम है.

संख्या में ज्यादा होने के बावजूद यहां के मुसलमानों में मुख्यधारा से अलग कर दिए जाने का गुस्सा और निराशा दोनों ही भाव बीते कुछ वर्षों में बुरी तरह से घर कर गए हैं. कापसडंगा गांव के व्यापारी 53 वर्षीय शरीफुल इस्लाम कहते हैं, “मुझे लगता है, जैसे अपने ही देश में मैं दोयम दर्जे का नागरिक हूं. जब मैं ट्रेन पर चढ़ता हूं तो दूसरे लोग मुझे देखकर चौकन्ने हो जाते हैं. यह मुझे समझ आता है. सिर्फ इसलिए मेरे साथ अलग तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए क्योंकि मैंने दाढ़ी रखी है.” वे पूछते हैं, “जिले में 70 फीसदी आबादी मुस्लिम है तो फिर सरकारी नौकरियों में इतने कम मुस्लिम क्यों हैं?”

डोमकल में रहने वाली 32 वर्षीया चिकित्सक चमेली सरकार बताती हैं कि बर्दवान मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के दौरान जब वे रहने के लिए नया ठिकाना तलाशती थीं तो हर मेस और लड़कियों के हर हॉस्टल से उन्हें इनकार मिलता था, सिर्फ इसलिए क्योंकि वे मुस्लिम हैं. वे कहती हैं, “आखिरकार मेरी एक दोस्त ने कहा कि मुझे अपने आप को हिंदू की तरह दिखाना चाहिए. यह सचाई है और मैंने इसके साथ जीना सीख लिया है.”

कांग्रेस के गढ़ मुर्शिदाबाद के तीन सांसद—अधीर रंजन चौधरी (बेरहमपुर), राष्ट्रपति के बेटे अभिजीत (जांगीपुर) और अब्दुल मन्नान हुसैन (मुर्शिदाबाद) में से दो सांसद हिंदू हैं जबकि एक मुस्लिम. मुस्लिम सांसद हुसैन गर्व से कहते हैं, “मुर्शिदाबाद के लोगों के लिए व्यक्ति का समुदाय महत्वपूर्ण नहीं है.”

जिले का कांग्रेस नेतृत्व बीजेपी और खास तौर से पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को “बंटवारा करने की नीयत वाला” बताने का एक भी मौका नहीं चूकता. 51 वर्षीय व्यवसायी गुलाम मोहम्मद अकबरी बीजेपी और मुस्लिम लीग को एक जैसा बताते हैं. वे कापसडंगा से कांग्रेस के ब्लॉक प्रेसिडेंट भी हैं. अकबरी कहते हैं, “ये दोनों ही पार्टियां कई मायनों में एक-सी हैं. उनका एकमात्र उद्देश्य अपने समुदाय के हितों को बढ़ावा देना है.”

इलाके के मुसलमान समझ रहे हैं कि बीजेपी को वोट देने का मतलब अपने समुदाय को धोखा देने के बराबर होगा. मुस्लिम समुदाय को बीजेपी का भय है. उन्हें लगता है कि बीजेपी के आने से उनके कारोबारी हित प्रभावित हो सकते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि बीजेपी को नहीं मिलने वाला हर एक वोट सीधे-सीधे कांग्रेस के वोट में बदल जाएगा. कांग्रेस के इस गढ़ में भी आम जनता का केंद्र सरकार से मोहभंग हो चुका है.

इस्लाम कहते हैं, “कई मायनों में तो कांग्रेस बीजेपी जितनी ही बदतर है. कम-से-कम बीजेपी की तरफ से यह तो साफ है कि वह मुसलमानों से नफरत करती है. लेकिन जब बाबरी मस्जिद गिराई जा रही थी तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव की निष्क्रियता तो और भी ज्यादा गई बीती थी.”

नरेंद्र मोदी के गुजरात में मुस्लिम लोगों को विकास से होने वाले फायदे में मिल रही बराबर हिस्सेदारी की खबरें जब बंगाल के पिछड़े इलाकों तक पहुंचती हैं तो यहां रहने वाले मुसलमानों के दिल और भी जल उठते हैं.

शिक्षा के क्षेत्र में नौकरी पाने की जुगत में लगे 22 साल के बीसीए स्नातक मोहम्मद आमिर सोहैल कहते हैं, “हमने सुना है कि बंगाल के मुकाबले नौकरी पाने वाले मुसलमानों की संख्या गुजरात में ज्यादा है. वह भी तब जबकि बंगाल में गुजरात के मुकाबले मुसलमानों की आबादी ज्यादा है.” इस लोकसभा चुनाव में सोहैल पहली बार मतदान करेंगे. वे कहते हैं, “हमसे बड़े-बड़े वादे किए गए थे. इसमें से ज्यादातर पूरे नहीं हुए. हमारी मुख्यमंत्री (तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी) सत्ता में इसी वादे के साथ आई थीं कि वे रोजगार मुहैया करवाएंगी. लेकिन नौकरियां कहीं नजर नहीं आ रहीं.”
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