मध्य प्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा नदी मालवा क्षेत्र को हरा-भरा बनाने निकल पड़ी है. नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना के तहत नर्मदा और क्षिप्रा का मेल इंदौर के नजदीक स्थित क्षिप्रा के उद्गम स्थल उज्जैनी गांव में हुआ है. अब पानी देवास होते हुए उज्जैन शहर तक पहुंचेगा. नदी की राह में पडऩे वाले हर गांव के लोग तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित कर नर्मदा का स्वागत कर रहे हैं लेकिन बेहद खर्चीली इस योजना की शुरुआती लागत ही लगभग 432 करोड़ रु. है.
प्रदेश सरकार का दावा है कि इस योजना से जहां तिल-तिल करके मर रही क्षिप्रा को नई जिंदगी मिलेगी, वहीं हर साल पानी के गंभीर संकट से जूझने के आदी हो चुके मालवा क्षेत्र को भरपूर पानी मिलने लगेगा. नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना की शुरुआत 29 नवंबर, 2012 को हुर्ई थी. इस साल, फरवरी माह में ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना से नर्मदा का पानी लाकर क्षिप्रा में छोड़ा गया है. यह पानी करीब 115 किलोमीटर की दूरी तय करके उज्जैन शहर पहुंचेगा. इसके लिए चार स्थानों पर पंपिंग स्टेशन भी बनाए गए हैं. प्रदेश सरकार का दावा है कि योजना पूरी होने पर मालवा क्षेत्र के तकरीबन 3,000 गांव और 70 कस्बों में पेयजल की किल्लत दूर हो जाएगी. यही नहीं, नर्मदा के पानी की मदद से लगभग 17 लाख एकड़ जमीन में सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध कराई जा सकेगी. इसीलिए मालवा के लोग नर्मदा के पानी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.
लेकिन इस परियोजना के विरोध में भी स्वर उठ रहे हैं. पानी-ऊर्जा के क्षेत्र में शोध से जुड़ी संस्था मंथन अध्ययन केंद्र से जुड़े रहमत कहते हैं, ''योजना के लिए पानी नर्मदा पर निर्माणाधीन ओंकारेश्वर परियोजना की नहरों से लिया जाना है. इस पानी के लिए निमाड़ के किसानों को दशकों से सपने दिखाए जा रहे हैं. लेकिन यह पानी निमाड़ के खेतों में पहुंच पाता, इससे पहले ही मालवा की नदियों को जिंदा करने और इलाके का जल संकट खत्म करने के सपने दिखाए जाने लगे हैं. '' वे इसके पीछे हिडन एजेंडा देख रहे हैं, ''इस पाइपलाइन को पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र की ओर मोड़ा गया है. वास्तव में सरकार का छिपा एजेंडा यही है. उद्योगों की खातिर प्रदेश सरकार ने पहले निमाड़ को छला, अब मालवा को छल रही है.''
लेकिन मालवा के लोगों को विश्वास है कि नर्मदा की धारा उनके संघर्षों को निश्चित ही कम करेगी. इसलिए तो इंदौर के भौंडवास में बहते नर्मदा के पानी को देखकर क्षेत्र की महिलाओं की आंखों में चमक साफ देखी जा सकती है. नर्मदा की पूजा कर रहीं 65 वर्षीया भंवर बाई कहती हैं, ''मैं नर्मदा मैया के दर्शन के लिए यहां आई हूं. क्षिप्रा में साल भर पानी नहीं रहता है. अब नर्मदा मैया आ गई है. हमें पूरा विश्वास है कि फसल की सिंचाई में परेशानी नहीं होगी. हमें साल भर पानी मिलेगा. '' लोगों में यह आशा भी जागी है कि सूखी क्षिप्रा में पानी आने से इससे जुड़े इलाके का भूजल स्तर भी बढ़ जाएगा और उनके बोरिंग भरी गर्मी में भी नहीं सूखेंगे. 62 वर्षीया राधा बाई कहती हैं, ''कभी सोचा भी नहीं था कि नर्मदा का पवित्र जल हमारे गांव के इतने करीब आएगा, अब अच्छे दिन आ गए हैं. ''
देवास से 26 किलोमीटर दूर स्थित मंडलावदा गांव में भी खुशी का माहौल है. लगभग 1,800 की आबादी वाले इस गांव के लोगों को आने वाले गर्मी के मौसम की चिंता अब नहीं सता रही है. गांव के बुजुर्गों की मानें तो यहां के लोगों ने गॢमयों में केवल सूखी क्षिप्रा ही देखी है. 87 वर्षीय कमल सिंह चौहान 25 बीघा जमीन के मालिक हैं. वे कहते हैं, ''यह हमारे लिए बड़ी सौगात है. गर्मी के मौसम में क्षिप्रा का पूरा पानी सूख जाता था, सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलता था. लेकिन अब कोई दिक्कत नहीं होगी. अब हमें पूरी गर्मी पानी मिलेगा.'' इस क्षेत्र में सोयाबीन, लहसुन, आलू, गेंहू, चना और प्याज बड़े पैमाने पर उगाई जाती है.
यहां के किसान लंबे समय से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. गर्मियों में भूजल स्तर के नीचे चले जाने से जल संकट और गहरा जाता है. 65 साल के किसान विक्रम सिंह कहते हैं, ''अब तक हम साल में दो फसल लेते आए हैं. नर्मदा का पानी मिल जाने पर हम एक और फसल ले सकते हैं. '' गांव के हुकुम सिंह का भी ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, '' साल भर पानी उपलब्ध रहना हमारे लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है. '' गांव के ही सुरेश चौधरी बताते हैं, ''आम तौर पर जनवरी के बाद क्षिप्रा नदी में पानी नहीं बचता. इस साल बारिश अच्छी हुई है इसलिए थोड़ा-बहुत पानी बचा हुआ है. यह भी गर्मी शुरू होते ही सूख जाता और हमें जल संकट का सामना करना ही पड़ता. अब ऐसा नहीं होगा, नर्मदा जो आ गई है. ''
इस परियोजना के लिए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के इंजीनियरों ने करीब 14 माह के भीतर काम पूरा कर दिया है. इसके लिए, नर्मदा नदी के पानी को पंपों के जरिए 50 किलोमीटर की दूरी तक बहाकर लाया गया और फिर 350 मीटर की ऊंचाई पर लिफ्ट करके क्षिप्रा के उद्गम स्थल उज्जैनी गांव तक पहुंचाया गया. इससे पहले तक, उज्जैनी गांव में क्षिप्रा नाम मात्र को ही नजर आती थी.
2016 में उज्जैन शहर में सिंहस्थ का महा-आयोजन होने जा रहा है. इस दौरान क्षिप्रा में लाखों की संख्या में श्रद्घालु स्नान करने आते हैं. सरकार इस आयोजन में पानी की किल्लत के कारण किसी भी तरह की परेशानी पैदा नहीं होने देना चाहती. इस परियोजना को लेकर खासे उत्साहित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कहते हैं, ''नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना के सफल परीक्षण से हमारा बरसों पुराना सपना सच हो गया है. मात्र 14 माह के भीतर नर्मदा से क्षिप्रा को जोड़कर हमने वह कर दिखाया है जिसे पहले असंभव बताया जा रहा था. ''
उधर मंथन के रहमत परियोजना के अलग ही पहलू की ओर ध्यान दिलाते हैं. वे कहते हैं, ''इस योजना की क्षमता 362 एमएलडी (मिलियन लीटर) प्रति दिन है, जबकि इंदौर में नर्मदा के तीनों चरणों और यशवंत सागर के जरिए 325 एमएलडी पानी उपलब्ध होता है. समझ जा सकता है कि जो पानी एक शहर की जरूरत से मात्रा में बहुत अधिक नहीं है, उससे पूरे मालवा की जरूरत पूरी होने के साथ-साथ क्षिप्रा नदी को भी जिंदा करने के दावे पर कैसे विश्वास किया जा सकता है? यदि पाइप लाइनों के जरिए नदियां जिंदा हो सकतीं तो अब तक शायद देश की कोई नदी सूखी नहीं रहती. ''
रहमत इस योजना में आने वाले खर्च पर भी सवाल उठा रहे हैं. वे कहते हैं, ''एनवीडीए के दस्तावेजों से साफ है कि एक हजार लीटर पानी को पंप करने पर 9 रु. खर्च आएगा. ऐसे में प्रशासकीय खर्च और लीकेज को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 72 रु. प्रति हजार लीटर आता है. इस कीमत पर पानी लेना किसी के लिए भी संभव नहीं है. ''
परियोजना के पहले चरण के सफल परीक्षण के बाद शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि अब गंभीर नदी, काली सिंध और पार्वती नदी को भी नर्मदा नदी से जोड़ा जाएगा. सीएम ने नर्मदा और क्षिप्रा के संगम स्थल उज्जैनी गांव को पवित्र स्थल के तौर पर विकसित करने की घोषणा भी की है. अपनी पीठ थपथपाने में जुटी बीजेपी सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, ''सीएम शिवराज सिंह चौहान ने असंभव को संभव कर दिखाया है. अब मालवा क्षेत्र हरा-भरा होगा और तरक्की की नई इबारत लिखेगा. '' बशर्ते, सरकार पानी खींचने के लिए बिजली से निरंतर पंप चलाती रहे.
प्रदेश सरकार का दावा है कि इस योजना से जहां तिल-तिल करके मर रही क्षिप्रा को नई जिंदगी मिलेगी, वहीं हर साल पानी के गंभीर संकट से जूझने के आदी हो चुके मालवा क्षेत्र को भरपूर पानी मिलने लगेगा. नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना की शुरुआत 29 नवंबर, 2012 को हुर्ई थी. इस साल, फरवरी माह में ओंकारेश्वर सिंचाई परियोजना से नर्मदा का पानी लाकर क्षिप्रा में छोड़ा गया है. यह पानी करीब 115 किलोमीटर की दूरी तय करके उज्जैन शहर पहुंचेगा. इसके लिए चार स्थानों पर पंपिंग स्टेशन भी बनाए गए हैं. प्रदेश सरकार का दावा है कि योजना पूरी होने पर मालवा क्षेत्र के तकरीबन 3,000 गांव और 70 कस्बों में पेयजल की किल्लत दूर हो जाएगी. यही नहीं, नर्मदा के पानी की मदद से लगभग 17 लाख एकड़ जमीन में सिंचाई की सुविधा भी उपलब्ध कराई जा सकेगी. इसीलिए मालवा के लोग नर्मदा के पानी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.

लेकिन मालवा के लोगों को विश्वास है कि नर्मदा की धारा उनके संघर्षों को निश्चित ही कम करेगी. इसलिए तो इंदौर के भौंडवास में बहते नर्मदा के पानी को देखकर क्षेत्र की महिलाओं की आंखों में चमक साफ देखी जा सकती है. नर्मदा की पूजा कर रहीं 65 वर्षीया भंवर बाई कहती हैं, ''मैं नर्मदा मैया के दर्शन के लिए यहां आई हूं. क्षिप्रा में साल भर पानी नहीं रहता है. अब नर्मदा मैया आ गई है. हमें पूरा विश्वास है कि फसल की सिंचाई में परेशानी नहीं होगी. हमें साल भर पानी मिलेगा. '' लोगों में यह आशा भी जागी है कि सूखी क्षिप्रा में पानी आने से इससे जुड़े इलाके का भूजल स्तर भी बढ़ जाएगा और उनके बोरिंग भरी गर्मी में भी नहीं सूखेंगे. 62 वर्षीया राधा बाई कहती हैं, ''कभी सोचा भी नहीं था कि नर्मदा का पवित्र जल हमारे गांव के इतने करीब आएगा, अब अच्छे दिन आ गए हैं. ''
देवास से 26 किलोमीटर दूर स्थित मंडलावदा गांव में भी खुशी का माहौल है. लगभग 1,800 की आबादी वाले इस गांव के लोगों को आने वाले गर्मी के मौसम की चिंता अब नहीं सता रही है. गांव के बुजुर्गों की मानें तो यहां के लोगों ने गॢमयों में केवल सूखी क्षिप्रा ही देखी है. 87 वर्षीय कमल सिंह चौहान 25 बीघा जमीन के मालिक हैं. वे कहते हैं, ''यह हमारे लिए बड़ी सौगात है. गर्मी के मौसम में क्षिप्रा का पूरा पानी सूख जाता था, सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलता था. लेकिन अब कोई दिक्कत नहीं होगी. अब हमें पूरी गर्मी पानी मिलेगा.'' इस क्षेत्र में सोयाबीन, लहसुन, आलू, गेंहू, चना और प्याज बड़े पैमाने पर उगाई जाती है.
यहां के किसान लंबे समय से पानी की समस्या से जूझ रहे हैं. गर्मियों में भूजल स्तर के नीचे चले जाने से जल संकट और गहरा जाता है. 65 साल के किसान विक्रम सिंह कहते हैं, ''अब तक हम साल में दो फसल लेते आए हैं. नर्मदा का पानी मिल जाने पर हम एक और फसल ले सकते हैं. '' गांव के हुकुम सिंह का भी ऐसा ही मानना है. वे कहते हैं, '' साल भर पानी उपलब्ध रहना हमारे लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है. '' गांव के ही सुरेश चौधरी बताते हैं, ''आम तौर पर जनवरी के बाद क्षिप्रा नदी में पानी नहीं बचता. इस साल बारिश अच्छी हुई है इसलिए थोड़ा-बहुत पानी बचा हुआ है. यह भी गर्मी शुरू होते ही सूख जाता और हमें जल संकट का सामना करना ही पड़ता. अब ऐसा नहीं होगा, नर्मदा जो आ गई है. ''
इस परियोजना के लिए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) के इंजीनियरों ने करीब 14 माह के भीतर काम पूरा कर दिया है. इसके लिए, नर्मदा नदी के पानी को पंपों के जरिए 50 किलोमीटर की दूरी तक बहाकर लाया गया और फिर 350 मीटर की ऊंचाई पर लिफ्ट करके क्षिप्रा के उद्गम स्थल उज्जैनी गांव तक पहुंचाया गया. इससे पहले तक, उज्जैनी गांव में क्षिप्रा नाम मात्र को ही नजर आती थी.
2016 में उज्जैन शहर में सिंहस्थ का महा-आयोजन होने जा रहा है. इस दौरान क्षिप्रा में लाखों की संख्या में श्रद्घालु स्नान करने आते हैं. सरकार इस आयोजन में पानी की किल्लत के कारण किसी भी तरह की परेशानी पैदा नहीं होने देना चाहती. इस परियोजना को लेकर खासे उत्साहित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कहते हैं, ''नर्मदा-क्षिप्रा सिंहस्थ लिंक परियोजना के सफल परीक्षण से हमारा बरसों पुराना सपना सच हो गया है. मात्र 14 माह के भीतर नर्मदा से क्षिप्रा को जोड़कर हमने वह कर दिखाया है जिसे पहले असंभव बताया जा रहा था. ''
उधर मंथन के रहमत परियोजना के अलग ही पहलू की ओर ध्यान दिलाते हैं. वे कहते हैं, ''इस योजना की क्षमता 362 एमएलडी (मिलियन लीटर) प्रति दिन है, जबकि इंदौर में नर्मदा के तीनों चरणों और यशवंत सागर के जरिए 325 एमएलडी पानी उपलब्ध होता है. समझ जा सकता है कि जो पानी एक शहर की जरूरत से मात्रा में बहुत अधिक नहीं है, उससे पूरे मालवा की जरूरत पूरी होने के साथ-साथ क्षिप्रा नदी को भी जिंदा करने के दावे पर कैसे विश्वास किया जा सकता है? यदि पाइप लाइनों के जरिए नदियां जिंदा हो सकतीं तो अब तक शायद देश की कोई नदी सूखी नहीं रहती. ''
रहमत इस योजना में आने वाले खर्च पर भी सवाल उठा रहे हैं. वे कहते हैं, ''एनवीडीए के दस्तावेजों से साफ है कि एक हजार लीटर पानी को पंप करने पर 9 रु. खर्च आएगा. ऐसे में प्रशासकीय खर्च और लीकेज को जोड़ा जाए तो यह आंकड़ा 72 रु. प्रति हजार लीटर आता है. इस कीमत पर पानी लेना किसी के लिए भी संभव नहीं है. ''
परियोजना के पहले चरण के सफल परीक्षण के बाद शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि अब गंभीर नदी, काली सिंध और पार्वती नदी को भी नर्मदा नदी से जोड़ा जाएगा. सीएम ने नर्मदा और क्षिप्रा के संगम स्थल उज्जैनी गांव को पवित्र स्थल के तौर पर विकसित करने की घोषणा भी की है. अपनी पीठ थपथपाने में जुटी बीजेपी सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कहते हैं, ''सीएम शिवराज सिंह चौहान ने असंभव को संभव कर दिखाया है. अब मालवा क्षेत्र हरा-भरा होगा और तरक्की की नई इबारत लिखेगा. '' बशर्ते, सरकार पानी खींचने के लिए बिजली से निरंतर पंप चलाती रहे.