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मानसिक भूगोल में देश का हिस्सा नहीं है पूर्वोत्तर

देश एक बार फिर सोचने पर मजबूर है कि वह वर्षों से हाशिए पर पड़े पूर्वोत्तर के बारे में आखिर क्या सोचता है. क्या नीडो तानिया की मौत हमें कुछ सिखाएगी?

अपडेटेड 17 फ़रवरी , 2014
अरुणाचल प्रदेश के छात्र नीडो तानिया की मौत का मामला खामोशी से दफन हो जाने वाला नहीं है. 29 जनवरी को नीडो को दिल्ली के लाजपत नगर में सिर्फ इसलिए बेरहमी से पीटा गया क्योंकि उसने अपने बालों में पीली धारियां बनवा रखी थीं.

अरुणाचल के विधायक नीडो पवित्रा के बेटे नीडो को अगले दिन ग्रीन पार्क एक्सटेंशन में उसकी बहन के घर में अंदरूनी चोटों की वजह से मृत पाया गया. दिल्ली के लोगों को इस घटना की जानकारी अभी मिल भी नहीं पाई थी कि लाजपत नगर में राजस्थान पनीर भंडार के आगे पूर्वोत्तर के लोगों ने प्रदर्शन शुरू कर दिया. जल्द ही स्थानीय सिख लोग भी उनसे जुड़ गए.

इस दबाव की वजह से नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को नीडो की दुखद मौत की घटना पर ध्यान देना पड़ा. दिल्ली हाइकोर्ट ने भी मीडिया रिपोर्टों के आधार पर इस घटना का संज्ञान लिया.

इस घटना ने ऐसे देश में पूर्वोत्तर के अधिकारों के लिए ज्वलंत सवाल खड़ा कर दिया है, जहां हमेशा सेवन सिस्टर्स (पूर्वोत्तर के सात राज्य) के लोगों की उपेक्षा होती रही है और लंबे समय से उनके साथ भेदभाव बरता जाता रहा है.

नीडो की मौत से तीन महीने पहले इसी लाजपत नगर इलाके में बाइक सवार ने अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सांसद ओमाक अपांग पर हमला किया था. अपांग कहते हैं, ‘‘उसने मुझे चिंकी कहा, मुझे कॉलर से पकड़कर खींचा और मेरी कार की चाभी छीन ली. सिर्फ इसलिए कि मैंने अपनी कार उसकी बाइक से आगे निकाल ली थी.’’

उसी दिन मुंबई में कोई अपने साथ कुछ इसी तरह की आपबीतियां सुना रहा था. त्रिपुरा के 27 वर्षीय रैपर बोरकुंग रांगखाल ने काला घोड़ा साहित्य उत्सव में पूर्वोत्तर के लेखकों के पैनल में कहा कि किस तरह उन पर नियमित  रूप से हमला होता रहा है.

उनके शब्दों में, ‘‘मेरे सीने में एक छोटा-सा छेद हो गया था, जिसे मैं अपनी लाल रंग की शर्ट की वजह से देख नहीं पा रहा था. और फिर मेरे ऊपर हमला करने वाले मेरे लिए एक बैंड-एड लेकर आए.’’ वहां मौजूद श्रोता गुस्से से भर गए.

वी.वी. गिरि नेशनल लेबर इंस्टीट्यूट में 2012 में बाबू रमेश ने अपने अध्ययन में पाया कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में पिछले दशक भर में पूर्वोत्तर के राज्यों के लोगों की संख्या दोगुनी होकर 90,000 से 100,000 तक पहुंच गई है. इसके बाद बंगलुरू, मुंबई, कोलकाता, चेन्नै, चंडीगढ़, पुणे और हैदराबाद का नंबर आता है, जहां पूर्वोत्तर के लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है.

सोशल मीडिया भी पूर्वोत्तर के लोगों को देश के बड़े शहरों की ओर खींचने में मददगार रहा है. पहले ये लोग इन शहरों में बहुत कम नजर आते थे. नीडो की मौत के बाद फेसबुक पर बनाए गए भेदभाव विरोधी पेज को अब तक 52,000 लोगों ने लाइक किया है.

मणिपुर के 28 वर्षीय फुटबॉल खिलाड़ी और राष्ट्रीय टीम के सदस्य गौरमांगी सिंह का मानना है कि पूर्वोत्तर और देश के बाकी हिस्सों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में दूरियां खत्म होने के साथ ही इस स्थिति में परिवर्तन आएगा. आज फैशन, साहित्य, कला, खेल और मीडिया जैसे विविध क्षेत्रों में यह दूरी मिट रही है. इनमें से कुछ ने इंडिया टुडे  के लिए खास तौर पर कुछ कलाकृतियां रची हैं, जो आगे दिखेंगी.

निरुपम बरुआ की कलाकृति
(निरुपम बोरबरुआ की कलाकृति जख्मी रुहें)



‘‘बहुत से लोग पूर्वोत्तर के लोगों को अपने ही अंग के रूप में स्वीकार करते हैं, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे अनजान लोग भी हैं, जिन्हें यह तक नहीं पता कि पूर्वोत्तर भारत का ही हिस्सा है.’’
निरुपम बोरबरुआ, 38 वर्ष , आर्टिस्ट, असम






मोइरांगथेम गौरमांगी सिंह
‘‘पूर्वोत्तर के लोगों के नैन-नक्श काफी अलग होते हैं और अकसर लोगों को उनके क्षेत्र के बारे में बहुत कम जानकारी होती है, इसलिए वे उनके साथ अजीब किस्म का व्यवहार करते हैं.’’
मोइरांगथेम गौरमांगी सिंह, 28 वर्ष ,  फुटबॉल खिलाड़ी, मणिपुर


ईस्टरीन कीरे
पराए
मेरी जिंदगी जीकर देखो
एक हफ्ता, एक दिन, कुछ घंटे
बस इतना कि एक बार महसूस कर सको
मेरी देह पर जलती हुई
घूरती निगाहें
फब्तियां
व्यंग्य,
जैसे इस दुनिया का हिस्सा नहीं हम
धीरे-धीरे उतरता हुआ
स्याह अंधेरा
जैसे किसी अपशकुन की आहट.

कल उन्होंने मार डाला
एक नौजवान लड़के को
क्योंकि वह अलग दिखता था
वह मेरे जैसा दिखता था.
मेरी जिंदगी जीकर देखो और महसूस करो
कि क्या होता है
उसके जैसा दिखना, उसके जैसा होना
और उसकी आंखों से देखकर देखो
एक बार.

मेरी जिंदगी जीकर देखो
एक हफ्ता, एक दिन, कुछ घंटे
महसूस करो, महसूस करो
भय, घबराहट
यह शंका, यह डर
इसी तरह तुम पराए हो जाओगे.
ईस्टरीन कीरे, 54 वर्ष, लेखिका, नगालैंड

अविनुओ कीरे
अविनुओ कीरे, 27 वर्ष, लेखिका, नगालैंड
एक दुनिया, जो उसकी कभी थी नहीं
अपने घर से दूर रह रहे नीनगुली को फोन पर बातचीत खत्म होते ही घर की याद सताने लगती. हजारों किलोमीटर दूर बैठा अपने माता-पिता की आवाज सुनकर वह बेरंगी दीवारों वाले कमरे में खुद को एकदम अकेला महसूस करने लगता. उसके अंदर जाने-पहचाने रंगों वाले अपने घर को देखने की चाह अंगड़ाइयां लेने लगती. इस बेगाने शहर में सब कुछ अलग था.

यहां के घर, यहां के लोग, भाषा, खाना, पहनावा, यहां तक कि मौसम भी. यह सब देखकर वह खुद को पराया समझता. यहां की तेज गर्मी ने भी उसे परेशान कर रखा था. पहाड़ की सुखद हवा के एक झोंके के लिए वह तरस रहा था. यहां आकर अब शायद उसे इस बात का पछतावा हो रहा था कि वह अपने माता-पिता के सामने किस तरह गिड़गिड़ाया था कि वह उसे यहां आने की इजाजत दे दें.

एक दिन, दिल्ली के सरोजनी नगर के भीड़-भाड़ वाले बाजार में वह उस वक्त हैरत में पड़ गया, जब पीछे से बाइक सवार ने जोर-जोर से हॉर्न बजाना शुरू कर दिया. तभी किसी ने जोर से आवाज लगाई, ‘‘ओए चिंकी, हटो यार!’’ उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और तुरंत एक ओर हटकर उसे रास्ता दे दिया. इस जगह ने उसे दब्बू बना दिया है.

अब उसे फब्तियां सुनने की आदत पड़ चुकी थी. यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चे भी रास्ते में ‘‘चिंग चांग’’ कहकर बिला वजह ही उसे छेड़ते रहते थे. उसके लिए यह सब बिलकुल नया था. हालांकि इन सब बातों पर उसे हर बार गुस्सा तो बहुत आता था, लेकिन यहां की हर पराई चीज की तरह उसे यह भी झेलना पड़ रहा था.

अविनुओ कीरे की कहानी  नीगू्यज रेड टी शर्ट के अंश. पूरी कहानी अविनुओ के आने वाले कहानी संग्रह में होगी, जिसे जबान बुक्स प्रकाशित करने जा रहा है.

बोरकुंग रांगखाल
क्या यह कोई वहशी तमाशा है?
पहली बात तो यह कि ये कोई कविता नहीं है, बल्कि कुछ शब्द हैं, जो मेरे जेहन में यूं ही कौंधे हैं.
यह कोई अभिशाप है या वरदान
या है कोई दुखदायी वरदान
कभी जैसे इस सोच में डूबा नम हूं
मानो किसी भीड़ में हुआ गुम हूं
कहीं ये विविधता का दंश तो नहीं?
कि मैं इस लोकतंत्र का ही अंश नहीं
जैसे मुझे खदेड़कर कर दिया बाहर
अगर संविधान सिखाता है हमें
समानता और भाईचारा
फिर क्यों कर रहे हैं हम
काम ये पाखंडी आवारा
बढ़ता जाता है पाखंड
और टूटता हर खंड
एक सदमा-सा हो जैसे.
एक हफ्ता होने को आया,
गुस्सा हमारा इतना गहराया.
अब वक्त है बोलने का,
सबके मुंह खोलने का.
भाइयो और बहनो,
यही कहना चाहता हूं,
दूरियां मिटाना चाहता हूं.
आओ हाथ बढ़ाएं, एक पुल बनाएं
अब भी बहुत देर नहीं ढली
और कभी नहीं से तो ही देर भली.
गर डाल दिए हथियार आज,
नहीं उठाई हमने आवाज,
तो आएगा कैसे यह सच सामने,
नस्ली भेदभाव का यह सच सामने,
जिसे हमने है देखा
जिसे हमने है भोगा.
आपके कानूनों में दम नहीं जनाब,
चलिए सुनाऊं आपको
कक्षा छह का वो पाठ
पढ़ा था जिसमें मैंने
भारत और उसकी संस्कृति के बारे में.
लेकिन आपके भारत से
पूर्वोत्तर गायब था.
बताएंगे जनाब कि गर नहीं नस्ली भेदभाव.
तो आखिर वह क्या था?
बनाते हैं देश को महान
न्याय, आजादी और भाईचारा
वह महानता,
जिसका है हमें इंतजार
ऐसा क्यों है कि अपने ही मुल्क में
हम यूं डरे, सहमे बेजार.
जब पढ़ता था कॉलेज में
तो तीन बार छुरे से हुए मुझ पर हमले.
उनके लिए था वो मजा,
लेकिन मेरे लिए थी सजा.
हालांकि हम दोस्त हो गए बाद में
लेकिन तब जो ये सोचा था मैंने
कि रात गई, बात गई
लेकिन गलत था मैं.
हमारे साथ यह भेदभाव सिर्फ इसलिए
कि हमारा खान-पान अलग
हमारे चेहरे की बनावट अलग.
हम मुट्ठी भर लोग बड़ी भीड़ से अलग.
मेरे ये शब्द रेडियो पर बजा डालिए,
दुनिया में गुंजा डालिए.
दोस्तो, मेरी बात सुनो,
क्यों मार रहे हो मुझे,
क्या नहीं है ये उसी हवा की बात
कि जिसमें हम लेते हैं सांस
साथ-साथ ?
मैं दिल की धड़कन सुन सकता हूं,
रोती है मेरी मां हजारों मील दूर घर पर
और देखते हो यहां सपने तुम दिन भर.
तुमने तो खुद को ज्ञानी कहा है
पर ये भी नहीं जानते
कि इस देश के नक्शे पर अरुणाचल
कहां है?
क्या इतना कमजोर भूगोल तुम्हारा
दूसरी ओर मैं इस बात को मानता हूं
कि भारत और उसकी संस्कृति के बारे में तुमसे ज्यादा जानता हूं
दोस्तो, यह मेरा देश है
लेकिन तुम हमारी उपेक्षा करते हो.
महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत करो.’’
फिर तुम हमें चोट पहुंचाना चाहते हो,
लगता है जैसे हम नीचे पड़े हैं
और तुम्हारी टनों मिट्टियों में गड़े हैं.
बताना चाहता हूं कि हम कौन हैं,
इस देश में आठ राज्य और भी हैं-
मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, नगालैंड, मणिपुर, असम, मेघालय और
अरुणाचल प्रदेश.
इन्हें मिलाकर बनता है पूर्वोत्तर
खत्म करने से पहले यह कहना चाहते हैं
रिचर्ड लोइतम, डान्ना संगमा, रीनगंभी अवुंगशी और नीडो तानिया
की मौत के लिए न्याय चाहते हैं
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे.

-स्पोकन वर्ड्स-द रिएलिटी, बोरकुंग रांगखाल, 27 वर्ष, रैपर, त्रिपुरा

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