राष्ट्रीय चंबल घडिय़ाल अभयारण्य क्षेत्र में हो रहे रेत के अवैध खनन को लेकर हाइकोर्ट से कड़ी फटकार लगने के बाद राज्य सरकार और मुरैना प्रशासन सक्रिय हो गया है. प्रशासन ने अवैध रेत खनन में लिप्त रहे लोगों के बंदूक के लाइसेंस निरस्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
मध्य प्रदेश सरकार ने अभयारण्य को जोडऩे वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-3 पर प्रदेश सशस्त्र पुलिस बल (एसएएफ) की 26वीं बटालियन की एक कंपनी को भी बीते 21 दिसंबर को तैनात कर दी है. अवैध खनन की रेत का इस्तेमाल इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है कि वन विभाग को एडवाइजरी जारी करनी पड़ी है कि निर्माण से जुड़े सरकारी विभाग वैध खनन वाली रेत का ही इस्तेमाल करें.
बीती 3 जनवरी को हाइकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने राज्य सरकार को अभयारण्य क्षेत्र में एसएएफ की तैनाती के निर्देश दिए थे ताकि रेत माफिया को रोका जा सके. लेकिन जवानों की तैनाती के महीनेभर के भीतर ही अभयारण्य क्षेत्र में अवैध खनन माफियाओं के साथ मुठभेड़ की दो बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं.
8 जनवरी को अवैध खनन कर रेत ले जा रहे तीन ट्रैक्टरों को वन विभाग के अमले और एसएएफ जवानों ने जब्त किया था लेकिन अवैध खनन में लिप्त लोगों ने अमले पर पथराव कर दिया और ट्रैक्टर लेकर भाग निकले. दूसरी घटना 14 जनवरी की है, जब एसएएफ जवानों पर फायरिंग कर रेत माफिया रेत लेकर भागने में कामयाब रहे. पिछले एक माह में खनन माफिया वन विभाग के उडऩदस्ते पर भी चार बार जानलेवा हमले कर चुके हैं.
खनिज विभाग ने चंबल नदी में खनन करने का लाइसेंस कभी जारी ही नहीं किया है लेकिन यहां रेत खनन लंबे समय से होता आया है. खनन के कारण चंबल अभयारण्य के जलीय जीवों, घडिय़ाल, डॉल्फिन और परिंदों की बसाहट को नुकसान पहुंच रहा है.
अवैध खनन पर रोक लगाने की मांग करते हुए हाइकोर्ट में याचिका दायर करने वाले वकील राजीव शर्मा कहते हैं, ''अभयारण्य इलाके के जलीय जीवों के कारण यहां के पानी की गुणवत्ता बनी हुई है. अवैध खनन जारी रहा तो इन जीवों का अस्तित्व तो खतरे में पड़ेगा ही, इससे इनसानों को भी नुकसान पहुंचेगा. एसएएफ जवानों की तैनाती के बाद से अवैध खनन पर कुछ हद तक अंकुश लगा है. पहले यहां हर दिन 500 ट्राली रेत निकाली जा रही थी. ''
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के लिए तमाम कड़े कदमों के बावजूद अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगाना आसान नहीं है. दरअसल चंबल अभयारण्य मध्य प्रदेश की सीमा में 435 वर्ग किमी में फैला है. इसके किनारे करीब 170 गांव बसे हुए हैं. इतने बड़े क्षेत्र की रखवाली के लिए वन विभाग के पास 52 सुरक्षा गार्ड और अधिकारी ही हैं. वन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, ''रेत माफियाओं ने नदी किनारे तक पहुंचने के लिए इन गांवों के बीच से रास्ते निकाल रखे हैं.
ये लोग इन्हीं रास्तों से ट्रैक्टर-ट्रालियों के जरिए रेत ले जाते हैं. जवानों की तैनाती के बावजूद चंबल अभयारण्य के इर्द-गिर्द आधा दर्जन गांव ऐसे हैं जहां अवैध खनन से निकली रेत जमा कर ली जाती है. रात के वक्त इसे बाहर भेज दिया जाता है. '' सबसे अधिक खनन राजघाट पुल के आसपास ही होता है.

रेत से भरे ट्रैक्टरों को राजमार्ग-3 से गुजरना ही पड़ता है. इसलिए एसएएफ जवानों को इसी रास्ते में देवरी के इको सेंटर पर तैनात किया गया है. अवैध रेत से भरी गाडिय़ां जैसे ही मुख्य राजमार्ग-3 पर आती हैं, इन्हें पुलिस या वन विभाग के अधिकारी रोकने की कोशिश करते हैं. ऐसे में खनन माफिया प्रशासनिक अमले पर हमला कर देते हैं.
रेत खनन का यह अवैध कारोबार चंबल इलाके संगठित अपराध का रूप ले चुका है. कई मामलों में तो पुलिस के भी माफियाओं से मिले होने के आरोप लगे हैं. यही वजह है कि अवैध खनन रोकने के लिए तैनात सशस्त्र बल में स्थानीय, यानी मुरैना और ग्वालियर के जवानों को तैनात नहीं किया गया है, ताकि पक्षपात से बचा जा सके.
कोर्ट के आदेश के बाद खनन रोकने के लिए टास्क फोर्स गठित की गई है जिसका नेतृत्व मुरैना के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) वीसेंट रहीम कर रहे हैं. टास्क फोर्स में वन विभाग के अलावा पुलिस, राजस्व और खनिज विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं. वीसेंट बताते हैं कि सरकारी महकमों से भी चंबल नदी की रेत का उपयोग न करने की अपील की गई है.
वे कहते हैं, ''स्थानीय निकाय अपने निर्माण कार्यों में जो ठेके दे रहे हैं उसमें ठेकेदार अवैध उत्खनन वाली रेत इस्तेमाल कर सकता है. इसके लिए टेंडर में ही यह शर्त डालने के लिए कहा गया है कि वे सिंध या बनास नदी की रेत का इस्तेमाल करें. इसके अलावा वैध खनन वाली रेत की रॉयल्टी रसीद व ट्रांजिट पास भी देखा जा सकता है.
इससे चंबल की रेत के इस्तेमाल पर लगाम लग सकेगी. '' डीएफओ रहीम के मुताबिक सशस्त्र पुलिस के तैनात होने से खास तौर से राजघाट पुल के पास निगरानी बढ़ी है और दिन में तो अवैध खनन पूरी तरह बंद हो गया है. यह आशंका जरूर है कि रात में कुछ क्षेत्रों में अवैध खनन हो सकता है.
केवल चंबल के अभयारण्य इलाके में रेत का अवैध खनन हो रहा है, ऐसा भी नहीं है. ग्वालियर के आसपास कई इलाकों में भी रेत का अवैध खनन जारी है. यहां से करीब 50 किमी दूर सिंध नदी के प्रतिबंधित इलाकों में भी जमकर रेत खनन हो रहा है. डंपरों में रेत भरकर भिंड और दतिया से ग्वालियर लाई जाती है जिससे सड़कों को भी नुकसान पहुंचा है.
ये सड़क नौ टन की क्षमता के लिए बनाई गई हैं जबकि डंपरों में 40 टन तक रेत ढोई जा रही है. भिंड और दतिया के कलेक्टरों की जांच में भी ओवरलोड डंपरों की शिकायत सही पाई गई था.
मुरैना में रेत माफियाओं पर अब शिकंजा कसना शुरू हो गया है. यहां रेत खनन के लिए एक भी लाइसेंस नहीं दिया गया है. अवैध खनन से जुड़े 208 लोगों के बंदूक के लाइसेंस निरस्त किए जा चुके हैं और इसके परिवहन में पाए गए 11 वाहन जब्त करके राजसात किए गए हैं. अभयारण्य क्षेत्र तक पहुंचने वाले रास्तों को बंद किया जा रहा है.
रेत जमा करने के ठिकानों पर टास्क फोर्स लगातार छापेमारी कर रेत जब्त कर रही है. संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की भी योजना है. हाईकोर्ट ने मुरैना प्रशासन से एक महीने के भीतर अवैध खनन पर रोक लगाने को कहा है. फिर भी आक्रामक हो चुके रेत माफिया को रोकना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.
मध्य प्रदेश सरकार ने अभयारण्य को जोडऩे वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-3 पर प्रदेश सशस्त्र पुलिस बल (एसएएफ) की 26वीं बटालियन की एक कंपनी को भी बीते 21 दिसंबर को तैनात कर दी है. अवैध खनन की रेत का इस्तेमाल इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है कि वन विभाग को एडवाइजरी जारी करनी पड़ी है कि निर्माण से जुड़े सरकारी विभाग वैध खनन वाली रेत का ही इस्तेमाल करें.
बीती 3 जनवरी को हाइकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने राज्य सरकार को अभयारण्य क्षेत्र में एसएएफ की तैनाती के निर्देश दिए थे ताकि रेत माफिया को रोका जा सके. लेकिन जवानों की तैनाती के महीनेभर के भीतर ही अभयारण्य क्षेत्र में अवैध खनन माफियाओं के साथ मुठभेड़ की दो बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं.
8 जनवरी को अवैध खनन कर रेत ले जा रहे तीन ट्रैक्टरों को वन विभाग के अमले और एसएएफ जवानों ने जब्त किया था लेकिन अवैध खनन में लिप्त लोगों ने अमले पर पथराव कर दिया और ट्रैक्टर लेकर भाग निकले. दूसरी घटना 14 जनवरी की है, जब एसएएफ जवानों पर फायरिंग कर रेत माफिया रेत लेकर भागने में कामयाब रहे. पिछले एक माह में खनन माफिया वन विभाग के उडऩदस्ते पर भी चार बार जानलेवा हमले कर चुके हैं.
खनिज विभाग ने चंबल नदी में खनन करने का लाइसेंस कभी जारी ही नहीं किया है लेकिन यहां रेत खनन लंबे समय से होता आया है. खनन के कारण चंबल अभयारण्य के जलीय जीवों, घडिय़ाल, डॉल्फिन और परिंदों की बसाहट को नुकसान पहुंच रहा है.
अवैध खनन पर रोक लगाने की मांग करते हुए हाइकोर्ट में याचिका दायर करने वाले वकील राजीव शर्मा कहते हैं, ''अभयारण्य इलाके के जलीय जीवों के कारण यहां के पानी की गुणवत्ता बनी हुई है. अवैध खनन जारी रहा तो इन जीवों का अस्तित्व तो खतरे में पड़ेगा ही, इससे इनसानों को भी नुकसान पहुंचेगा. एसएएफ जवानों की तैनाती के बाद से अवैध खनन पर कुछ हद तक अंकुश लगा है. पहले यहां हर दिन 500 ट्राली रेत निकाली जा रही थी. ''
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के लिए तमाम कड़े कदमों के बावजूद अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगाना आसान नहीं है. दरअसल चंबल अभयारण्य मध्य प्रदेश की सीमा में 435 वर्ग किमी में फैला है. इसके किनारे करीब 170 गांव बसे हुए हैं. इतने बड़े क्षेत्र की रखवाली के लिए वन विभाग के पास 52 सुरक्षा गार्ड और अधिकारी ही हैं. वन विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, ''रेत माफियाओं ने नदी किनारे तक पहुंचने के लिए इन गांवों के बीच से रास्ते निकाल रखे हैं.
ये लोग इन्हीं रास्तों से ट्रैक्टर-ट्रालियों के जरिए रेत ले जाते हैं. जवानों की तैनाती के बावजूद चंबल अभयारण्य के इर्द-गिर्द आधा दर्जन गांव ऐसे हैं जहां अवैध खनन से निकली रेत जमा कर ली जाती है. रात के वक्त इसे बाहर भेज दिया जाता है. '' सबसे अधिक खनन राजघाट पुल के आसपास ही होता है.

रेत से भरे ट्रैक्टरों को राजमार्ग-3 से गुजरना ही पड़ता है. इसलिए एसएएफ जवानों को इसी रास्ते में देवरी के इको सेंटर पर तैनात किया गया है. अवैध रेत से भरी गाडिय़ां जैसे ही मुख्य राजमार्ग-3 पर आती हैं, इन्हें पुलिस या वन विभाग के अधिकारी रोकने की कोशिश करते हैं. ऐसे में खनन माफिया प्रशासनिक अमले पर हमला कर देते हैं.
रेत खनन का यह अवैध कारोबार चंबल इलाके संगठित अपराध का रूप ले चुका है. कई मामलों में तो पुलिस के भी माफियाओं से मिले होने के आरोप लगे हैं. यही वजह है कि अवैध खनन रोकने के लिए तैनात सशस्त्र बल में स्थानीय, यानी मुरैना और ग्वालियर के जवानों को तैनात नहीं किया गया है, ताकि पक्षपात से बचा जा सके.
कोर्ट के आदेश के बाद खनन रोकने के लिए टास्क फोर्स गठित की गई है जिसका नेतृत्व मुरैना के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) वीसेंट रहीम कर रहे हैं. टास्क फोर्स में वन विभाग के अलावा पुलिस, राजस्व और खनिज विभाग के अधिकारी भी शामिल हैं. वीसेंट बताते हैं कि सरकारी महकमों से भी चंबल नदी की रेत का उपयोग न करने की अपील की गई है.
वे कहते हैं, ''स्थानीय निकाय अपने निर्माण कार्यों में जो ठेके दे रहे हैं उसमें ठेकेदार अवैध उत्खनन वाली रेत इस्तेमाल कर सकता है. इसके लिए टेंडर में ही यह शर्त डालने के लिए कहा गया है कि वे सिंध या बनास नदी की रेत का इस्तेमाल करें. इसके अलावा वैध खनन वाली रेत की रॉयल्टी रसीद व ट्रांजिट पास भी देखा जा सकता है.

केवल चंबल के अभयारण्य इलाके में रेत का अवैध खनन हो रहा है, ऐसा भी नहीं है. ग्वालियर के आसपास कई इलाकों में भी रेत का अवैध खनन जारी है. यहां से करीब 50 किमी दूर सिंध नदी के प्रतिबंधित इलाकों में भी जमकर रेत खनन हो रहा है. डंपरों में रेत भरकर भिंड और दतिया से ग्वालियर लाई जाती है जिससे सड़कों को भी नुकसान पहुंचा है.
ये सड़क नौ टन की क्षमता के लिए बनाई गई हैं जबकि डंपरों में 40 टन तक रेत ढोई जा रही है. भिंड और दतिया के कलेक्टरों की जांच में भी ओवरलोड डंपरों की शिकायत सही पाई गई था.
मुरैना में रेत माफियाओं पर अब शिकंजा कसना शुरू हो गया है. यहां रेत खनन के लिए एक भी लाइसेंस नहीं दिया गया है. अवैध खनन से जुड़े 208 लोगों के बंदूक के लाइसेंस निरस्त किए जा चुके हैं और इसके परिवहन में पाए गए 11 वाहन जब्त करके राजसात किए गए हैं. अभयारण्य क्षेत्र तक पहुंचने वाले रास्तों को बंद किया जा रहा है.
रेत जमा करने के ठिकानों पर टास्क फोर्स लगातार छापेमारी कर रेत जब्त कर रही है. संवेदनशील इलाकों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की भी योजना है. हाईकोर्ट ने मुरैना प्रशासन से एक महीने के भीतर अवैध खनन पर रोक लगाने को कहा है. फिर भी आक्रामक हो चुके रेत माफिया को रोकना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है.