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उत्तम खोबरागड़े ने कैसे बचाई अपनी बेटी देवयानी और देश की इज्जत

राजनैतिक तौर पर महत्वाकांक्षी देवयानी खोबरागड़े के पिता ने उत्तम खोबरागड़े अपनी बेटी के लिए सड़क से लेकर दिल्ली की सत्ता के गलियारों तक लड़ाई लड़ी.

अपडेटेड 28 जनवरी , 2014
अभी देवयानी खोबरागड़े को दिल्ली पहुंचने में दो दिन बाकी थे. इस मामले में अमेरिका से बातचीत में शामिल विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने नींद में अलसाए से उत्तम खोबरागड़े के सामने एक प्रस्ताव रखा. भारत में तब तड़के तीन बजे का समय था.

प्रस्ताव यह था कि अमेरिकी अभियोजक का दफ्तर वीजा धोखाधड़ी के गंभीर आरोपों को हटाकर इसके बदले जुर्माना लगा दे, जैसा भारतीय राजनयिकों की नौकरानियों से जुड़े पिछले दो मामलों में किया गया था.

खोबरागड़े ने अमेरिका के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर डाला. नाराजगी भरी आवाज में उन्होंने पूछा, ''हम उन्हें कोई भी पैसा क्यों दें? आखिर यह मामला दो भारतीयों के बीच का है.” आखिरकार, उत्तम खोबरागड़े की बात ही मानी गई और उनकी बेटी अगले 48 घंटे के भीतर लौट आई.

यह जानना दिलचस्प होगा कि अगर देवयानी के पिता अपनी बेटी को इंसाफ  दिलाने के लिए इतना संघर्ष नहीं करते तो हालात कैसे होते? या तो न्यूयॉर्क में भारत के पूर्व कॉन्सुल जनरल प्रभु दयाल की तरह देवयानी को समझौते के तौर पर 75,000 डॉलर की भारी-भरकम रकम चुकानी पड़ती या फि र इससे भी बुरा कि उन्हें अमेरिकी जेल जाना पड़ता.

उत्तम खोबरागड़े अपनी बेटी को वापस लाने के लिए दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित महाराष्ट्र सदन में एक माह तक डेरा डाल बैठे रहे. 1984 बैच के आइएएस अधिकारी उत्तम खोबरागड़े ने इस ठिकाने से दिल्ली में पक्ष-विपक्ष के सभी दलों के नेताओं से संपर्क बनाए रखा.

इसके साथ ही उन्होंने गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और कृषि मंत्री शरद पवार से मुलाकात भी की. वे यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर बीजेपी नेता नितिन गडकरी और राम विलास पासवान समेत कई सांसदों के लगातार संपर्क में रहे. इस वजह से देवयानी के मुद्दे पर संसद में सभी दल सरकार के पक्ष में खड़े हो गए.

उत्तम खोबरागड़े की राजनैतिक महत्वाकांक्षा कोई राज नहीं है. 2012 मंी अपनी रिटायरमेंट से पहले उन्होंने राज्यसभा का टिकट पाने के लिए कई दलों में लॉबिइंग की. लेकिन कामयाब नहीं हो सके. बेटी के प्रकरण ने उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को एक बार फिर हवा दे दी है. वे 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं.

किसी पार्टी का नाम लिए बिना वे कहते हैं, ''मेरे पास कई दलों के ऑफ र हैं, अभी विचार कर रहा हूं.” यह जरूर है कि विवादास्पद आदर्श हाउसिंग सोसाइटी का भूत उन्हें परेशान कर रहा है, जिसमें उनकी बेटी देवयानी के नाम एक फ्लैट है.

इस सोसाइटी के आवंटन की पड़ताल कर रहे न्यायिक आयोग ने पिछले दिसंबर में पाया कि देवयानी इस सोसाइटी में फ्लैट पाने के योग्य ही नहीं थीं. देवयानी को वापस लाने के अभियान में राजनैतिक संघर्ष के पूरे पेच मौजूद थे.

खोबरागड़े ने न्यूयॉर्क में देवयानी के वकील डेनियल आरशाक के साथ लंबी कॉन्फ्रेंस कॉल के जरिए की गई बातचीत, साउथ ब्लॉक में विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ हुए मशवरे को बड़े रणनीतिक अंदाज में बुना और इस मुश्किल दौर में अपनी बेटी के प्रवक्ता और उसकी वकालत करने की पुरजोर भूमिका निभाई.

जब उन्होंने सुना कि भारत ने अमेरिका से एक अरब डॉलर (6,200 करोड़ रु.) की कीमत के सैन्य विमान खरीदने के लिए समझौता किया है तो उन्होंने रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी से मिलने का समय मांगा. हमेशा फूंक-फूंककर कदम रखने वाले एंटनी ने मुलाकात से मना कर दिया और अमेरिका के मसले पर किसी भी विवाद में फंसने से बचते हुए कहा, ''हमने जितनी भी लड़ाई लड़ी है उसमें अमेरिका ने हमेशा दूसरे पक्ष को अपनी मदद दी है.”

उत्तम खोबरागड़े को अपनी बेटी की गिरफ्तारी से दो दिन पहले 10 दिसंबर को संगीता रिचर्ड के परिवार को भारत से अचानक अमेरिका बुलाए जाने पर ही साजिश की बू आने लगी थी. नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में ड्राइवर 41 वर्षीय फि लिप रिचर्ड 18 वर्ष के अपने बेटे जतिन और 20 वर्षीया बेटी जेनिफ र के साथ न्यूयॉर्क निकल गए थे.

उत्तम नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं, ''यह सुनियोजित साजिश का आखिरी कदम था जिसमें अमेरिकी सरकार उन्हें अमेरिका में नई जिंदगी थमाने के लिए प्ली बार्गेन (अपराध दंड सौदा) के जरिए हमसे ही रकम वसूलना चाह रही थी.”

वे चाहते हैं कि विदेश मंत्रालय अमेरिकी राजनयिकों पर संगीता के परिवार को राजनयिक श्रेणी के तहत हवाई टिकट दिलवाने और 2,320 रु. के एयरपोर्ट टैक्स का भुगतान नहीं करने पर धोखाधड़ी का मामला दायर करे.

 विदेश मंत्रालय ने जल्दी ही पता लगा लिया कि रिचर्ड परिवार को आनन-फानन अमेरिका पहुंचने में मदद करने वाला वेन मे दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास में ब्यूरो ऑफ  डिप्लोमैटिक सिक्योरिटी का विशेष एजेंट है. संगीता का पति रिचर्ड फिलिप वेन मे का ड्राइवर था.

जब अमेरिका ने देवयानी को अमेरिका छोड़कर जाने के लिए कहा तो भारत ने भी जैसे को तैसे के अंदाज में वेन को 48 घंटे में भारत छोडऩे का फरमान सुना दिया. भारत ने पिछली बार 1981 में ऐसा किया था जब उसने अमेरिकी राजनयिक जॉर्ज ग्रिफि न को निष्कासित किया था.

उसके बाद ऐसी कोई घटना नहीं हुई. यहां तक कि 2004 में रॉ अधिकारी और सीआइए के भेदिए रविंदर सिंह वाले सनसनीखेज मामले में भी किसी राजनयिक को नहीं निकाला गया जबकि दिल्ली में अमेरिकी दूतावास की मदद से ही वह भेदिया नेपाल के रास्ते अमेरिका भाग गया था.

इस्लामाबाद में उच्चायुक्त रहे जी. पार्थसारथी कहते हैं, ''उस प्रकरण के बाद हमें दूतावास में कम से कम एक सीआइए अधिकारी को तो अवांछित करार देना चाहिए था, पर हमने ऐसा नहीं किया. जाहिर है, इसी वजह से अमेरिका की देवयानी संग ऐसा बर्ताव करने की हिम्मत हुई.”

खोबरागड़े को अफसोस है कि उन्होंने नौकरानी को काम पर रखने से पहले उसके बारे में पूरी जानकारी नहीं ली. कम से कम उन्हें यह पता तो चल ही जाता कि फि लिप के मां-बाप एक वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक के घर में घरेलू नौकर के रूप में काम करते थे और रिचर्ड परिवार अमेरिका में जीवन बिताने के सपने पाल रहा था.

उत्तम कहते हैं कि उन्होंने फि लिप के दिल्ली के बैंक खाते में हर महीने 30,000 रु. ट्रांसफ र किए और न्यूयॉर्क में संगीता के खर्चे के लिए उतनी ही रकम अमेरिकी डॉलर में अदा की. ''हमने उसे अच्छे पैसे दिए. उसके पास एक आइ-फोन था जबकि मेरे पास नहीं है.

मुझे नहीं लगता नैंसी पॉवेल (नई दिल्ली में अमेरिकी राजदूत) हमारी तरह अपनी नौकरानी को अच्छे पैसे देती होंगी.”
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