जब मैं तकरीर करता था तो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में हवाएं थम जाती थीं. मैं भी रोता जाता था और सुनने वालों की आंख भी नम हो जाती थी. हम तो तब से आज तक यही करते आ रहे हैं.” अपने बारे में या यों कहें, अपनी तारीफ में इस बेबाकी से मोहम्मद आजम खान के अलावा शायद ही कोई नेता अपनी बात रख सके. शायद इसीलिए उत्तर प्रदेश में सरकार भले ही युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की हो, लेकिन जब बात सुर्खियां बनाने की हो तो रामपुरी टोपी पहने छह फुट का यह पठान ही आगे आता है.
उत्तर प्रदेश में सपा सरकार बनने के बाद के घटनाक्रम पर नजर डालें तो प्रदेश का असली विपक्ष बीएसपी की जगह आजम खान ही नजर आएंगे. कभी वे कैबिनेट बैठकों का बहिष्कार करने की झड़ी लगा देते हैं, तो कभी अपनी यूनिवर्सिटी का उद्घाटन करने में पूरी कैबिनेट को रामपुर के मंच पर घंटों बिठाए रखते हैं. किसी बात पर वे ऐसे खफा हो सकते हैं कि अपनी ही पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का बहिष्कार कर देंगे और पार्टी अध्यक्ष कहेगा कि उन्हें कोर्ई काम आ गया होगा. बाद में मुख्यमंत्री उनके घर जाकर उनकी मान-मनौव्वल करेंगे.
लेकिन इन सारे गिले-शिकवों के बावजूद न तो आजम खान पार्टी छोड़ते हैं और न पार्टी उन्हें छोड़ती है. आजम खुद कहते हैं, ''मेरा और नेताजी का रिश्ता नेतागीरी और सियासी मजबूरियों से कहीं गहरा है.” पिछले लोकसभा चुनाव में आजम पार्टी में नहीं थे और सपा की सीटें घटकर आधी रह गईं. खुद आजम का कद भी रामपुर तक सिमट कर रह गया. लेकिन जब दोनों साथ आ गए तो सपा को 2012 में वह जनादेश मिला जिसके लिए मुलायम सिंह जीवन भर तरसते रहे. 2009 के अंत में जब आजम ने सपा में वापसी की तो मुलायम सिंह से मुखातिब होकर आजम ने शेर पढ़ा, फिर खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा/तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा.
लेकिन यही रिश्ता अखिलेश के साथ नहीं है. जानकारों की मानें तो आजम इस बात से खफा रहते हैं कि अखिलेश उनका सम्मान तो बहुत करते हैं, लेकिन सरकार में उनकी सिफारिशों पर अमल बहुत सुस्ती से होता है. सपा भी यह जान गई है, इसलिए अब और ज्यादा सुर्खियां न बनें इसलिए अखिलेश की जगह खुद मुलायम सिंह अपने दोस्त से डील कर रहे हैं.

लेकिन इन सारे गिले-शिकवों के बावजूद न तो आजम खान पार्टी छोड़ते हैं और न पार्टी उन्हें छोड़ती है. आजम खुद कहते हैं, ''मेरा और नेताजी का रिश्ता नेतागीरी और सियासी मजबूरियों से कहीं गहरा है.” पिछले लोकसभा चुनाव में आजम पार्टी में नहीं थे और सपा की सीटें घटकर आधी रह गईं. खुद आजम का कद भी रामपुर तक सिमट कर रह गया. लेकिन जब दोनों साथ आ गए तो सपा को 2012 में वह जनादेश मिला जिसके लिए मुलायम सिंह जीवन भर तरसते रहे. 2009 के अंत में जब आजम ने सपा में वापसी की तो मुलायम सिंह से मुखातिब होकर आजम ने शेर पढ़ा, फिर खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा/तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा.
लेकिन यही रिश्ता अखिलेश के साथ नहीं है. जानकारों की मानें तो आजम इस बात से खफा रहते हैं कि अखिलेश उनका सम्मान तो बहुत करते हैं, लेकिन सरकार में उनकी सिफारिशों पर अमल बहुत सुस्ती से होता है. सपा भी यह जान गई है, इसलिए अब और ज्यादा सुर्खियां न बनें इसलिए अखिलेश की जगह खुद मुलायम सिंह अपने दोस्त से डील कर रहे हैं.