यह आंकड़ा चाहे कितना भी चौंकाने वाला क्यों न लगे, लेकिन हकीकत यही है कि उत्तर प्रदेश के तकरीबन एक लाख गांवों में से लगभग 60 फीसदी गांवों ने अब तक सरकारी बिजली का मुंह नहीं देखा था. गांवों में बिजली नहीं थी, लेकिन मोबाइल पहुंच गए थे. अखिलेश यादव सरकार ने बारहवीं के मेधावी छात्रों को लैपटॉप भी बांट दिए.
लेकिन ये मोबाइल और लैपटॉप चलें कैसे? ऐसे में आगे आईं कुछ निजी कंपनियां. दूर-दराज के गांवों में सोलर पैनल लगाए और देखते-ही-देखते गांव सौर ऊर्जा से जगमगा उठे. अब तो आलम यह है कि उत्तर प्रदेश के कुल 95,941 आबाद गांवों में से 15,000 सौर ऊर्जा से रोशन हैं.
ये वे गांव हैं, जहां आज भी सरकारी बिजली के खंभे खड़े-खड़े जंग खा रहे हैं और ट्रांसफॉर्मर पर झाड़-झंखाड़ उग आए हैं. अब गांव वाले इन खंभों को इस हसरत और उम्मीद में नहीं तकते कि एक दिन बिजली आएगी. उनके गांवों में बिजली आ चुकी है.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ब्लॉक सकरन में स्थित विश्वेश्वर दयाल महाविद्यालय से पिछले साल इंटर पास करने वाले 19 वर्षीय राजीव को सरकार ने लैपटॉप देने की घोषणा की, लेकिन राजीव खुश होने की बजाय उदास हो गए क्योंकि तब उनके गांव में बिजली नहीं थी.
दोस्त राजीव को यह कहकर चिढ़ा रहे थे कि लैपटॉप चार्ज कैसे करोगे? लेकिन सितंबर के पहले हफ्ते में जब उन्हें लैपटॉप मिला तो सकरन ब्लॉक में स्थित राजीव का गांव डिगिहा 24 घंटे सौर ऊर्जा की बिजली से जगमग था. अब राजीव का लैपटॉप परंपरागत बिजली का मोहताज नहीं है.
सीतापुर से 250 किलोमीटर दूर उन्नाव की सफीपुर तहसील के एक गांव चिरंजीवपुरवा में अक्तूबर, 2007 में बिजली के खंभे लगे, तार बिछे और ट्रांसफॉर्मर लगे, लेकिन बिजली नहीं आई. दिन और महीनों का इंतजार साल में बदल गया, लेकिन बिजली के तारों में करंट नहीं दौड़ा. फिर गांव वालों ने सौर ऊर्जा का सहारा लिया. मई, 2011 में सोलर प्लांट लगाकर घर-घर बिजली पहुंचाई गई. गांव के प्रधान राम खिलावन कहते हैं, ''हम अब सरकारी बिजली के आसरे नहीं हैं.”

गांवों में बिजली का संकट
उत्तर प्रदेश में बढ़ते बिजली संकट और गांवों में परंपरागत बिजली पहुंचाने में सरकारी विफलता ने यहां सौर ऊर्जा को अपने पांव जमाने का भरपूर अवसर दिया है. अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग के मुताबिक, यूपी के कुल 95,941 आबाद गांवों में से 15,000 में सौर ऊर्जा पहुंच चुकी है. तीन साल पहले यह आंकड़ा 5,000 था.
खास बात यह है कि सौर ऊर्जा से रोशन 60 फीसदी से ज्यादा गांव निजी कंपनियों पर निर्भर हैं. करीब चार दर्जन निजी कंपनियां गांवों में सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर बिजली दे रही हैं. टिहरी समेत देश की कई बिजली परियोजनाओं की स्थापना में भूमिका निभाने वाले हाइड्रोलिक इंजीनियर आर.के. मिश्र कहते हैं, ''अभी भी यूपी के 60 फीसदी से ज्यादा गांवों में बिजली नहीं पहुंची है, लेकिन मोबाइल पहुंच चुके हैं.”
सीतापुर जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर उत्तर सकरन ब्लॉक का डिगिहा गांव प्रदेश का इकलौता गांव है, जहां सोलर बिजली के तार जमीन के अंदर बिछे हुए हैं. गांव में कहीं भी बिजली का खंभा नहीं है. हर घर के दरवाजे पर कंप्यूटराइज्ड मीटर लगे हैं, जिसमें स्मार्ट प्रीपेड कार्ड से बिजली खरीदकर प्रयोग की जा रही है.

स्मार्ट सोलर ग्रिड
डिगिहा में खास तौर से डिजाइन किया हुआ 600 वॉट का 'एसी स्मार्ट सोलर ग्रिड’ लगाने वाले 35 वर्षीय इलेक्ट्रिकल इंजीनियर श्याम पात्रा ओडिसा के पुरी जिले के रहने वाले हैं. 10 साल तक देश की नामचीन पावर जेनरेटिंग कंपनियों के साथ काम करने के बाद पात्रा ने लखनऊ में खुद की एक छोटी-कंपनी बनाई.
वे कहते हैं, ''कोयले या पानी से चलने वाला कोई भी प्लांट कम-से-कम 10 से 12 साल में बनकर तैयार होता है. इसमें लगने वाले खर्च और समय की अधिकता ने ऐसे प्रोजेक्ट के प्रति मेरे मन में अरुचि पैदा की. इसकी तुलना में सौर ऊर्जा का प्लांट कुछ ही दिनों में तैयार हो जाता है.”
पात्रा ने जुलाई के पहले हफ्ते में ही जनरेटिंग यूनिट समेत 230 वोल्ट पर डीसी बिजली आपूर्ति करने की पूरी ग्रिड लगाकर काम शुरू कर दिया था. इस गांव के 60 घर दिन-रात सौर ऊर्जा से जगमग हैं. 150 रु. में 100 प्वाइंट बिजली मिलती है. एक छोटा टेबल फैन एक घंटे में 2 से 3 प्वाइंट बिजली खर्च करता है. प्रीपेड स्मार्ट कार्ड चार्ज कराकर जरूरत के हिसाब से बिजली खर्च कर सकते हैं.
बिजली ने डिगिहा की रंगत ही बदल दी है. तीन महीने के भीतर पूरे गांव में परचून की दो दर्जन दुकानें खुल गई हैं, जो रात 11 बजे तक खुली रहती हैं. यहां पर परचून की दुकान चलाने वाले नीरज यादव कहते हैं, ''पहले रोशनी के लिए किरासिन या डीजल का उपयोग करते थे, जो बहुत महंगा पड़ता था.”
पहले सकरन ब्लॉक में दो दर्जन ऐसी दुकानें थीं, जहां पांच रु. में एक मोबाइल चार्ज होता था. इसी ब्लॉक के रामपुर मथुरा गांव के प्रधान देवीदत्त वर्मा कहते हैं, ''पहले 150 रु. हर महीने एक मोबाइल चार्ज करने में खर्च होता था. अब इतने में घर भर के मोबाइल चार्ज होते हैं.”

निजी कंपनियों की पहल
सीतापुर के अलावा, बहराइच, बस्ती, सिद्घार्थनगर, देवरिया, बलिया, मिर्जापुर, आजमगढ़, मऊ, हरदोई और अलीगढ़ के कुल 100 गांव सौर ऊर्जा के एसी पावर प्लांट की बिजली से रोशन हो रहे हैं. ये सभी प्लांट पिछले दो साल में लगे हैं.
कई निजी कंपनियां भी इस व्यापार में उतर आई हैं. इस व्यापार का 99 प्रतिशत हिस्सा सोलर पैनल की जनरेटिंग यूनिट से पैदा हो रहे डायरेक्ट करंट (डीसी) पर बने ग्रिड पर आधारित है. 24 घंटे बिजली की मांग को देखते हुए एसी सोलर माइक्रो गिड का उपयोग भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है.
नवीन और नवीकरण ऊर्जा विकास अभिकरण (नेडा) के एक अधिकारी बताते हैं कि डीसी सोलर ग्रिड की तुलना में एसी सोलर ग्रिड लगाने में चार गुना खर्च आता है. यही वजह है कि अगर डीसी सोलर ग्रिड से सप्लाई लेने वाले उपभोक्ता को 400 रु. इंस्टालेशन चार्ज देना पड़ता है तो एसी ग्रिड की बिजली लेने पर 1,500 रु. देने पड़ेंगे.
लेकिन गांव अब डीसी ग्रिड से सिर्फ रात को बिजली लेने की बजाय ज्यादा पैसे खर्च कर एसी ग्रिड से 24 घंटे सौर ऊर्जा लेने के लिए तैयार हो रहे हैं. एक कंपनी के ऑपरेशन हेड संदीप पांडेय कहते हैं, ''सोलर बिजली की मांग सबसे ज्यादा उन गांवों में है, जो बेहद पिछड़े हुए हैं.”
न किरासिन का झंझट, न करंट का डर
सीतापुर के रेऊसा ब्लॉक के कांतापुरवा गांव के 150 घर सौर ऊर्जा से जगमगा रहे हैं. यहां रहने वाली सुधरी देवी कहती हैं, ''दो साल पहले एक किरासिन लैंप छप्पर पर गिर जाने से 50 घर जलकर तबाह हो गए थे. उसके बाद सभी ने सौर ऊर्जा का प्लांट लगवाने का निर्णय लिया.” पांडेय कहते हैं, ''24 वोल्ट डीसी माइक्रो ग्रिड से सोलर बिजली पाने के लिए एक परिवार को हर हफ्ते 25 रु. देने पड़ते हैं. इसमें उन्हें दो सोलर बल्ब और एक मोबाइल चार्ज का प्वाइंट दिया जाता है.”
नेडा की असफलता
गोंडा जिले की करनैलगंज तहसील के सोहरनपुरवा गांव को तीन साल पहले जब आंबेडकर ग्राम घोषित किया गया तो यहां पर नेडा के माध्यम से आधा दर्जन सोलर स्ट्रीट लाइटें लगावाई गईं थीं, लेकिन आज सब खराब पड़ी हैं. पिछली बीएसपी सरकार में 200 करोड़ रु. खर्च करके लगाए गए कुल 23, 615 सोलर स्ट्रीट लाइट एलईडी संयंत्रों में से इस वक्त 70 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो चुके हैं.
पिछले तीन साल में नेडा के जरिए बेचे गए 1,156 डिश सोलर कुकर में से 400 खराब हो चुके हैं. 2010 से 2012 के बीच प्रदेश में 948 बायोगैस प्लांट लगाए गए हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ आधे ही ठीक से काम कर रहे हैं. नेडा में तैनात रहे एक जूनियर इंजीनियर नरेश दोहरे कहते हैं, ''बायोगैस और सोलर कुकर के ठीक से काम न करने की वजह उपभोक्ता को इनके उपयोग का सही प्रशिक्षण न दिया जाना है. प्रशिक्षण के लिए बजट नहीं है.”
सपा सरकार बनने के बाद ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में डॉ. राम मनोहर लोहिया समग्र ग्राम विकास योजना के तहत सौंदर्यीकरण किए जाने वाले 1,598 गांवों में सोलर ऊर्जा से विद्युतीकरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. इस योजना का हाल भी आंबेडकर ग्रामों जैसा न हो, इसके लिए नेडा ने पहली बार ब्लॉक-तहसील स्तर पर टेक्नीशियनों की तैनाती का खाका खींचा है.
प्रदेश के अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विजय कुमार मिश्र कहते हैं, ''प्रदेश सरकार इंडियन टेक्निकल इंस्टीट्यूट (आइटीआइ) से प्रशिक्षण पा रहे छात्रों को नेडा फोटोवोल्टाइक संयंत्रों की देखरेख और मरम्मत का प्रशिक्षण देगी.
प्रदेश में आने वाले दिनों में सौर ऊर्जा का दायरा बढ़ेगा. छह महीने के भीतर 500 से ज्यादा छात्रों को सोलर संयंत्रों की देखरेख में पारंगत कर दिया जाएगा.” आम जनता को सौर ऊर्जा के उपकरणों के प्रति जागरूक करने के लिए कन्नौज में नेडा का एक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया जा रहा है.

नई सोलर नीति
इस साल फरवरी में पहली बार प्रदेश सरकार ने सोलर नीति जारी की है. इसमें साल में 230 मेगावाट सोलर बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया गया है. प्रदेश में औसतन एक जिले को 130 मेगावाट बिजली की आपूर्ति होती है. सोलर बिजली उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने पर करीब दो जिलों की जरूरतें पूरी हो सकेंगी.
इसके लिए निजी-सरकारी भागीदारी के आधार पर सात कंपनियों के साथ सौर ऊर्जा प्लांट लगाने का अनुबंध किया गया है. इन कंपनियों से राज्य सरकार 8 से 9.33 रु. प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदेगी.
हकीकत है कि बिजली संकट से जूझ रही सरकार को इस समस्या से निजात पाने के लिए सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा. ऐसी नीति बनानी होगी जिसमें सौर ऊर्जा के संयत्रों की समय रहते देखरेख होती रहे क्योंकि यदि सौर ऊर्जा के संयंत्र भी लगने के बाद ठप्प हो गए तो बिजली की आस लगाए बैठी जनता का गुस्सा घटने की बजाए और बढ़ेगा.
लेकिन ये मोबाइल और लैपटॉप चलें कैसे? ऐसे में आगे आईं कुछ निजी कंपनियां. दूर-दराज के गांवों में सोलर पैनल लगाए और देखते-ही-देखते गांव सौर ऊर्जा से जगमगा उठे. अब तो आलम यह है कि उत्तर प्रदेश के कुल 95,941 आबाद गांवों में से 15,000 सौर ऊर्जा से रोशन हैं.
ये वे गांव हैं, जहां आज भी सरकारी बिजली के खंभे खड़े-खड़े जंग खा रहे हैं और ट्रांसफॉर्मर पर झाड़-झंखाड़ उग आए हैं. अब गांव वाले इन खंभों को इस हसरत और उम्मीद में नहीं तकते कि एक दिन बिजली आएगी. उनके गांवों में बिजली आ चुकी है.
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के ब्लॉक सकरन में स्थित विश्वेश्वर दयाल महाविद्यालय से पिछले साल इंटर पास करने वाले 19 वर्षीय राजीव को सरकार ने लैपटॉप देने की घोषणा की, लेकिन राजीव खुश होने की बजाय उदास हो गए क्योंकि तब उनके गांव में बिजली नहीं थी.
दोस्त राजीव को यह कहकर चिढ़ा रहे थे कि लैपटॉप चार्ज कैसे करोगे? लेकिन सितंबर के पहले हफ्ते में जब उन्हें लैपटॉप मिला तो सकरन ब्लॉक में स्थित राजीव का गांव डिगिहा 24 घंटे सौर ऊर्जा की बिजली से जगमग था. अब राजीव का लैपटॉप परंपरागत बिजली का मोहताज नहीं है.
सीतापुर से 250 किलोमीटर दूर उन्नाव की सफीपुर तहसील के एक गांव चिरंजीवपुरवा में अक्तूबर, 2007 में बिजली के खंभे लगे, तार बिछे और ट्रांसफॉर्मर लगे, लेकिन बिजली नहीं आई. दिन और महीनों का इंतजार साल में बदल गया, लेकिन बिजली के तारों में करंट नहीं दौड़ा. फिर गांव वालों ने सौर ऊर्जा का सहारा लिया. मई, 2011 में सोलर प्लांट लगाकर घर-घर बिजली पहुंचाई गई. गांव के प्रधान राम खिलावन कहते हैं, ''हम अब सरकारी बिजली के आसरे नहीं हैं.”

गांवों में बिजली का संकट
उत्तर प्रदेश में बढ़ते बिजली संकट और गांवों में परंपरागत बिजली पहुंचाने में सरकारी विफलता ने यहां सौर ऊर्जा को अपने पांव जमाने का भरपूर अवसर दिया है. अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग के मुताबिक, यूपी के कुल 95,941 आबाद गांवों में से 15,000 में सौर ऊर्जा पहुंच चुकी है. तीन साल पहले यह आंकड़ा 5,000 था.
खास बात यह है कि सौर ऊर्जा से रोशन 60 फीसदी से ज्यादा गांव निजी कंपनियों पर निर्भर हैं. करीब चार दर्जन निजी कंपनियां गांवों में सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर बिजली दे रही हैं. टिहरी समेत देश की कई बिजली परियोजनाओं की स्थापना में भूमिका निभाने वाले हाइड्रोलिक इंजीनियर आर.के. मिश्र कहते हैं, ''अभी भी यूपी के 60 फीसदी से ज्यादा गांवों में बिजली नहीं पहुंची है, लेकिन मोबाइल पहुंच चुके हैं.”
सीतापुर जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर उत्तर सकरन ब्लॉक का डिगिहा गांव प्रदेश का इकलौता गांव है, जहां सोलर बिजली के तार जमीन के अंदर बिछे हुए हैं. गांव में कहीं भी बिजली का खंभा नहीं है. हर घर के दरवाजे पर कंप्यूटराइज्ड मीटर लगे हैं, जिसमें स्मार्ट प्रीपेड कार्ड से बिजली खरीदकर प्रयोग की जा रही है.

स्मार्ट सोलर ग्रिड
डिगिहा में खास तौर से डिजाइन किया हुआ 600 वॉट का 'एसी स्मार्ट सोलर ग्रिड’ लगाने वाले 35 वर्षीय इलेक्ट्रिकल इंजीनियर श्याम पात्रा ओडिसा के पुरी जिले के रहने वाले हैं. 10 साल तक देश की नामचीन पावर जेनरेटिंग कंपनियों के साथ काम करने के बाद पात्रा ने लखनऊ में खुद की एक छोटी-कंपनी बनाई.
वे कहते हैं, ''कोयले या पानी से चलने वाला कोई भी प्लांट कम-से-कम 10 से 12 साल में बनकर तैयार होता है. इसमें लगने वाले खर्च और समय की अधिकता ने ऐसे प्रोजेक्ट के प्रति मेरे मन में अरुचि पैदा की. इसकी तुलना में सौर ऊर्जा का प्लांट कुछ ही दिनों में तैयार हो जाता है.”
पात्रा ने जुलाई के पहले हफ्ते में ही जनरेटिंग यूनिट समेत 230 वोल्ट पर डीसी बिजली आपूर्ति करने की पूरी ग्रिड लगाकर काम शुरू कर दिया था. इस गांव के 60 घर दिन-रात सौर ऊर्जा से जगमग हैं. 150 रु. में 100 प्वाइंट बिजली मिलती है. एक छोटा टेबल फैन एक घंटे में 2 से 3 प्वाइंट बिजली खर्च करता है. प्रीपेड स्मार्ट कार्ड चार्ज कराकर जरूरत के हिसाब से बिजली खर्च कर सकते हैं.
बिजली ने डिगिहा की रंगत ही बदल दी है. तीन महीने के भीतर पूरे गांव में परचून की दो दर्जन दुकानें खुल गई हैं, जो रात 11 बजे तक खुली रहती हैं. यहां पर परचून की दुकान चलाने वाले नीरज यादव कहते हैं, ''पहले रोशनी के लिए किरासिन या डीजल का उपयोग करते थे, जो बहुत महंगा पड़ता था.”
पहले सकरन ब्लॉक में दो दर्जन ऐसी दुकानें थीं, जहां पांच रु. में एक मोबाइल चार्ज होता था. इसी ब्लॉक के रामपुर मथुरा गांव के प्रधान देवीदत्त वर्मा कहते हैं, ''पहले 150 रु. हर महीने एक मोबाइल चार्ज करने में खर्च होता था. अब इतने में घर भर के मोबाइल चार्ज होते हैं.”

निजी कंपनियों की पहल
सीतापुर के अलावा, बहराइच, बस्ती, सिद्घार्थनगर, देवरिया, बलिया, मिर्जापुर, आजमगढ़, मऊ, हरदोई और अलीगढ़ के कुल 100 गांव सौर ऊर्जा के एसी पावर प्लांट की बिजली से रोशन हो रहे हैं. ये सभी प्लांट पिछले दो साल में लगे हैं.
कई निजी कंपनियां भी इस व्यापार में उतर आई हैं. इस व्यापार का 99 प्रतिशत हिस्सा सोलर पैनल की जनरेटिंग यूनिट से पैदा हो रहे डायरेक्ट करंट (डीसी) पर बने ग्रिड पर आधारित है. 24 घंटे बिजली की मांग को देखते हुए एसी सोलर माइक्रो गिड का उपयोग भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है.
नवीन और नवीकरण ऊर्जा विकास अभिकरण (नेडा) के एक अधिकारी बताते हैं कि डीसी सोलर ग्रिड की तुलना में एसी सोलर ग्रिड लगाने में चार गुना खर्च आता है. यही वजह है कि अगर डीसी सोलर ग्रिड से सप्लाई लेने वाले उपभोक्ता को 400 रु. इंस्टालेशन चार्ज देना पड़ता है तो एसी ग्रिड की बिजली लेने पर 1,500 रु. देने पड़ेंगे.
लेकिन गांव अब डीसी ग्रिड से सिर्फ रात को बिजली लेने की बजाय ज्यादा पैसे खर्च कर एसी ग्रिड से 24 घंटे सौर ऊर्जा लेने के लिए तैयार हो रहे हैं. एक कंपनी के ऑपरेशन हेड संदीप पांडेय कहते हैं, ''सोलर बिजली की मांग सबसे ज्यादा उन गांवों में है, जो बेहद पिछड़े हुए हैं.”
न किरासिन का झंझट, न करंट का डर
सीतापुर के रेऊसा ब्लॉक के कांतापुरवा गांव के 150 घर सौर ऊर्जा से जगमगा रहे हैं. यहां रहने वाली सुधरी देवी कहती हैं, ''दो साल पहले एक किरासिन लैंप छप्पर पर गिर जाने से 50 घर जलकर तबाह हो गए थे. उसके बाद सभी ने सौर ऊर्जा का प्लांट लगवाने का निर्णय लिया.” पांडेय कहते हैं, ''24 वोल्ट डीसी माइक्रो ग्रिड से सोलर बिजली पाने के लिए एक परिवार को हर हफ्ते 25 रु. देने पड़ते हैं. इसमें उन्हें दो सोलर बल्ब और एक मोबाइल चार्ज का प्वाइंट दिया जाता है.”
नेडा की असफलता
गोंडा जिले की करनैलगंज तहसील के सोहरनपुरवा गांव को तीन साल पहले जब आंबेडकर ग्राम घोषित किया गया तो यहां पर नेडा के माध्यम से आधा दर्जन सोलर स्ट्रीट लाइटें लगावाई गईं थीं, लेकिन आज सब खराब पड़ी हैं. पिछली बीएसपी सरकार में 200 करोड़ रु. खर्च करके लगाए गए कुल 23, 615 सोलर स्ट्रीट लाइट एलईडी संयंत्रों में से इस वक्त 70 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो चुके हैं.
पिछले तीन साल में नेडा के जरिए बेचे गए 1,156 डिश सोलर कुकर में से 400 खराब हो चुके हैं. 2010 से 2012 के बीच प्रदेश में 948 बायोगैस प्लांट लगाए गए हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ आधे ही ठीक से काम कर रहे हैं. नेडा में तैनात रहे एक जूनियर इंजीनियर नरेश दोहरे कहते हैं, ''बायोगैस और सोलर कुकर के ठीक से काम न करने की वजह उपभोक्ता को इनके उपयोग का सही प्रशिक्षण न दिया जाना है. प्रशिक्षण के लिए बजट नहीं है.”
सपा सरकार बनने के बाद ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में डॉ. राम मनोहर लोहिया समग्र ग्राम विकास योजना के तहत सौंदर्यीकरण किए जाने वाले 1,598 गांवों में सोलर ऊर्जा से विद्युतीकरण करने का लक्ष्य निर्धारित किया था. इस योजना का हाल भी आंबेडकर ग्रामों जैसा न हो, इसके लिए नेडा ने पहली बार ब्लॉक-तहसील स्तर पर टेक्नीशियनों की तैनाती का खाका खींचा है.
प्रदेश के अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विजय कुमार मिश्र कहते हैं, ''प्रदेश सरकार इंडियन टेक्निकल इंस्टीट्यूट (आइटीआइ) से प्रशिक्षण पा रहे छात्रों को नेडा फोटोवोल्टाइक संयंत्रों की देखरेख और मरम्मत का प्रशिक्षण देगी.
प्रदेश में आने वाले दिनों में सौर ऊर्जा का दायरा बढ़ेगा. छह महीने के भीतर 500 से ज्यादा छात्रों को सोलर संयंत्रों की देखरेख में पारंगत कर दिया जाएगा.” आम जनता को सौर ऊर्जा के उपकरणों के प्रति जागरूक करने के लिए कन्नौज में नेडा का एक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किया जा रहा है.

नई सोलर नीति
इस साल फरवरी में पहली बार प्रदेश सरकार ने सोलर नीति जारी की है. इसमें साल में 230 मेगावाट सोलर बिजली पैदा करने का लक्ष्य तय किया गया है. प्रदेश में औसतन एक जिले को 130 मेगावाट बिजली की आपूर्ति होती है. सोलर बिजली उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने पर करीब दो जिलों की जरूरतें पूरी हो सकेंगी.
इसके लिए निजी-सरकारी भागीदारी के आधार पर सात कंपनियों के साथ सौर ऊर्जा प्लांट लगाने का अनुबंध किया गया है. इन कंपनियों से राज्य सरकार 8 से 9.33 रु. प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदेगी.
हकीकत है कि बिजली संकट से जूझ रही सरकार को इस समस्या से निजात पाने के लिए सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना होगा. ऐसी नीति बनानी होगी जिसमें सौर ऊर्जा के संयत्रों की समय रहते देखरेख होती रहे क्योंकि यदि सौर ऊर्जा के संयंत्र भी लगने के बाद ठप्प हो गए तो बिजली की आस लगाए बैठी जनता का गुस्सा घटने की बजाए और बढ़ेगा.

