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जेहाद लौटा वादी के आंगन में

दोस्ती के लिए बढ़ता पाकिस्तानी हाथ एक बार फिर दिखावा साबित हो रहा है और सरहद पार से पहले से ज्यादा घातक इरादे और हथियारों के साथ फिदायीन भारत आ रहे हैं

अपडेटेड 21 अक्टूबर , 2013
एक आवाज आई,“अम्मी मैं कुर्बान होने जा रहा हूं. मुझे आपकी दुआ चाहिए.” पिछले महीने रॉ ने पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक सेलफोन पर की गई कॉल सुनी और उसके तुरंत बाद जम्मू और कश्मीर में सुरक्षा बल बेहद चौकस हो गए. फोन करने वाले का अभी तक पता नहीं चला था, लेकिन वह जो भी है, अपनी आखिरी जंग की तैयारी कर रहा था. सेना को मालूम था कि वह घाटी में कहीं-न-कहीं मौके के इंतजार में है, जैसे कोई क्रूज मिसाइल लक्ष्य की पहचान के निर्देशों का इंतजार करती है.

इस साल जम्मू-कश्मीर में बेहद जिद्दी आत्मघाती आतंकवादी तीन बार हमला कर चुके हैं. उन्हें जेहनी तौर पर आखिरी सांस तक लडऩा सिखा दिया गया है. 26 सितंबर को कठुआ में एक थाने और सांबा में एक सैनिक शिविर पर हमले में बख्तरबंद कोर रेजिमेंट के उप-कमांडर सहित 10 लोग मारे गए थे. इससे पहले 24 जून को सेना के काफिले पर हुए हमले में आठ सैनिक शहीद हुए थे. 13 मार्च को श्रीनगर में बेमिना में हुए हमले में सीआरपीएफ के पांच जवान शहीद हुए थे. तीन साल से घाटी में फिदायीन हमले नहीं हो रहे थे. उनके अचानक दोबारा शुरू हो जाने से पाकिस्तानी फौज के जानलेवा नए खेल की खबरों की पुष्टि होती है. इस साल जनवरी में एक भारतीय सैनिक का सिर काटे जाने की घटना से शुरू हुआ सिलसिला अब तेज हो रहा है. घाटी में चिनार के पेड़ों पर चढ़ता सुनहरा रंग शरद के आगमन का संकेत दे रहा है.

पाकिस्तानी फौज के नए मिशन कश्मीर की रणनीति का सारा दारोमदार नए जेहादियों पर है. यह नए किस्म का लड़ाका बेहतर ढंग से प्रशिक्षित है और तकनीक को अपनाने में माहिर है. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में फौजी तरीके के 42 शिविरों में तीन महीने की ट्रेनिंग लेने के साथ ही उस पर जेहाद का रंग चढ़ चुका है और वह नियंत्रण रेखा के इस ओर के निशानों पर वार करने के लिए तैयार है. उसके पास न सिर्फ  सैटेलाइट फोन और एके-47 राइफलें और अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर हैं, बल्कि उससे लडऩे वाले भारतीय सैनिकों से कहीं ज्यादा बेहतर उपकरण हैं. उसकी रणनीति ज्यादा बेरहम है. जम्मू से 40 किमी दूर सांबा में तीन फिदायीन हमलावर फौजी वर्दी में थे. उन्होंने सेना के शिविर तक जाने के लिए एक ऑटो रिक्शा अगवा किया और शिविर के बिना संतरी वाले हिस्से से घुसकर अफसरों वाले हिस्से की तरफ बढ़ गए. 20 मैग्जीन और 300 से ज्यादा अतिरिक्त कारतूस के साथ वे तबाही मचाने के लिए पूरी तरह तैयार थे. ऐसी खबरें हैं कि उनका असली इरादा एक स्कूल पर धावा बोलने का था. उनके पास पानी के लिए तीन लीटर की कैमलबैक बोतलें और एनर्जी बार थीं, जिससे पता चलता है कि वे काफी लंबे समय तक लड़ाई के लिए तैयार होकर आए थे.

भारतीय सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, कश्मीर पर दबाव बढ़ाकर पाकिस्तानी फौज तीन मकसद हासिल करने की कोशिश कर रही है, “भारत को असली खतरा बताकर अपनी फौज को एकजुट करना, उग्रवादियों का हौसला बढ़ाना और अपनी निर्वाचित सरकार की शांति वार्ता की कोशिशों को नाकाम करना.” प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इस साल जून में शपथ लेने के फौरन बाद कश्मीर को पाकिस्तान की गर्दन बताया था. यह राज्य जंग का जाना-पहचाना मैदान है. घातक हथियारों और इरादों से लैस दुश्मन की मौजूदगी में कश्मीर घाटी में भय की लहर उतनी ही आसानी से पहचानी जाती है, जितनी शांत दमकती डल झील पर बहती हवा. चौकियों पर ग्रेनेड रोकने के जाल डाल दिए गए हैं और हर संदिग्ध रेडियो संदेश सुने जाने के बाद सुरक्षा बल पूरी ताकत से मोर्चे पर डट जाते हैं. 6 अक्तूबर को सैकड़ों सीआरपीएफ जवान राज्य की गर्मियों की राजधानी श्रीनगर की सड़कों पर निकल आए, जब खुफिया एजेंसियों ने एक ऐसा गुप्त संदेश सुना, जिसे उन्होंने श्रीनगर पर हमले की चेतावनी माना—आज हम लाल चौक पर होली खेलेंगे. हमला तो नहीं हुआ फिर भी श्रीनगर की जमीन पर डर का साया मंडरा रहा है.

सेना के अधिकारियों का कहना है कि 300 जेहादी उग्रवादी बर्फबारी से पहाड़ी दर्रे बंद होने से पहले सबसे ज्यादा निगरानी वाले इस राज्य में घुसने को तैयार हैं. पांच लाख से ज्यादा सुरक्षाकर्मी 1.20 करोड़ की आबादी वाले इस राज्य में पिछले दो दशक से भी पहले से बाहरी ताकतों के समर्थन से होने वाली घुसपैठ के बलबूते लड़ रहे हैं. अब उनका दुश्मन ज्यादा स्मार्ट और फुर्तीला हो गया है. सेना की चुनौती बढ़ती जा रही है. सही खुफिया संकेत पकड़ चाल नाकाम करना उनकी जिम्मेदारी है.



आतंक का नया चेहरा
अमेरिका के वेस्ट पॉइंट में अप्रैल, 2013 में अमेरिकी सैन्य अकादमी के कंबैटिंग टेरिज्म सेंटर ने 2007 से जम्मू और कश्मीर में मारे गए लश्कर-ए-तैयबा के 900 से अधिक लड़ाकुओं की जीवनी का अध्ययन किया. इस अध्ययन से नतीजा निकला कि 89 फीसदी लड़ाकू पाकिस्तान के सबसे ज्यादा आबादी वाले प्रांत पंजाब से, पांच फीसदी सिंध से और तीन फीसदी खैबर पख्तूनख्वा से थे. पंजाब के भीतर भी सबसे ज्यादा लड़ाकू गुजरांवाला, फैसलाबाद और लाहौर जैसे जिलों के बाशिंदे हैं, जो या तो भारत की सीमा पर हैं या उसके बहुत करीब हैं.

इस अध्ययन के मुताबिक, आम धारणा यह है कि लड़ाके मदरसों से आते हैं, लेकिन इसके विपरीत सच यह निकला कि 44 फीसदी लड़ाकू मैट्रिक पास थे और ज्यादातर पाकिस्तानियों के मुकाबले औसतन ज्यादा धर्मनिरपेक्ष स्कूलों में पढ़े थे. ये नए लड़ाके तकनीक के इस्तेमाल में माहिर हैं, वॉयस ओवर इंटरनेट प्रोटोकॉल (वीओआइपी) फोन इस्तेमाल करना जानते हैं. इन्हें खुफिया एजेंसियां बीच में नहीं सुन सकतीं, ये सैटेलाइट फोन इस्तेमाल करते हैं और अब पहले से ज्यादा संख्या में फौजी अंदाज की लड़ाई के बूट और वस्त्र पहनने लगे हैं. नया जेहादी शहरी माहौल में घुलमिल जाता है, अलग नहीं दिखता, नागरिकों में खो जाता है और सुरक्षा बलों पर चोरी छिपे वार करता है.

सीमा पार से हमलों और घुसपैठ की लगातार कोशिशों को देखते हुए ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 3 अक्तूबर को हताश स्वर में कहा था कि सरकार के नियंत्रण से बाहर के ये हमलावर आसमान से नहीं टपकते. उन्होंने ब्रसेल्स यात्रा के दौरान यूरो न्यूज को बताया था कि ये आतंकवादी पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इलाकों से आ रहे हैं. पाकिस्तानी फौज एक खास मकसद के लिए इन जेहादियों को इस साल सही जगह तैनात कर देना चाहती है. उसका मकसद 2014 के लोकसभा चुनाव में और नवंबर, 2014 में जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान गड़बड़ी फैलाना है. वे इसी की तैयारी में लंबे समय से जुटे हैं. सेना ने श्रीनगर से 100 किमी दूर उत्तर-पश्चिम में 23 सितंबर को करीब 30-40 घुसपैठियों को घेरने और तलाश करने के लिए जबरदस्त कार्रवाई शुरू की. इसे 2013 का करगिल कहा जा रहा है. हालात में इससे ज्यादा समानता भला और क्या हो सकती थी? 28 सितंबर को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और मनमोहन सिंह ने न्यूयॉर्क में हाथ मिलाया. 1999 में इन्हीं प्रधानमंत्री ने लाहौर में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का स्वागत किया था.

तंगधार सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास मुस्तैद सेना के जवान

तीन महीने बाद भारत को उस इलाके पर फिर कब्जा करने के लिए जंग लडऩी पड़ी, जिसे पाकिस्तान ने हथिया लिया था. 15 दिन बाद सेना ने तो केरन सेक्टर में कार्रवाई खत्म होने का ऐलान कर दिया, लेकिन साफ जाहिर हो गया कि देश के बाहर से नियंत्रित की जा रही हिंसा की यह लहर ज्वार बनकर रहेगी. चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों और सरकारी अधिकारियों पर सबसे ज्यादा हमले होने का अंदेशा है. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के अनुसार, पाकिस्तान दोतरफा चाल चल रहा है. वह एक ओर घाटी के भीतर अपने कमांडरों पर हिंसा बढ़ाने के लिए दबाव डाल रहा है और दूसरी ओर अपने खत्म हो रहे प्यादों की जगह नए लड़ाकू भेजने की तैयारी कर रहा है. बाहर से संचालित हिंसा की इस लहर में एक नया खतरनाक अंग भी शामिल है. स्थानीय स्तर पर भर्ती इन नौजवानों का कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड नहीं होता. ये घाटी में घात लगाकर हमले कर सकते हैं. पुलिस का अनुमान है कि लश्कर-ए-तैयबा जैसे गुटों ने हिंसा का नया सिलसिला शुरू करने के लिए करीब 50 नौजवानों को भर्ती किया है, जिनमें से ज्यादातर ने अभी-अभी 20 साल की उम्र की दहलीज पार की है.

सैनिक अधिकारियों ने जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा की तरकीब, प्रक्रिया और तालमेल सहित सुरक्षा स्थिति की पूरी समीक्षा का ऐलान किया. सेना ने नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ रोकने के लिए लगाई गई साढ़े पांच सौ किलोमीटर लंबी बाड़ पर पहरेदारी के जरिए घुसपैठ रोकने और उग्रवादियों को ढूंढ़-ढूंढ़कर मारने की मौजूदा रणनीति को और पुख्ता करने का फैसला किया है. एक जनरल ने बताया कि सेना स्थानीय लोगों का हौसला बढ़ाने और सेना की कार्यप्रणाली को लेकर उनके मन में बसी दहशत को मिटाने में जुटी है. पूरे गांव को घेरकर छिपे हुए उग्रवादियों की तलाश में घर-घर की तलाशी लेने के तरीके को अब बढ़ावा नहीं दिया जा रहा. अब आप आधी रात को श्रीनगर से 30 किमी दूर मानसबल झील तक बेरोकटोक कार में जा सकते हैं, आप को किसी नाके पर एक बार भी नहीं रोका जाएगा.

सुरक्षा बलों का कहना है कि वे उग्रवादियों की यह चाल भी समझ गए हैं कि वे मासूम लोगों की मौत का फायदा उठाते हैं. 2010 में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद पुलिस की गोली से 110 से ज्यादा प्रदर्शनकारी मारे गए थे. घुसपैठ रोकने की ड्यूटी पर तैनात सेना के एक कर्नल का कहना है कि ऊपर के अफसरों ने साफ आदेश दिया है कि अगर उग्रवादी आम नागरिकों के बीच हैं, तो उन पर गोली कतई न चलाई जाए. कर्नल का कहना है, “अगर उग्रवादी निहत्था है, तो मैं उसे गोली भी नहीं मार सकता.”

4 अक्तूबर को भारतीय सेना ने पश्चिमोत्तर कश्मीर के केरन सेक्टर में गुज्जर डर इलाके में हथियारों से लैस तीन घुसपैठियों को गोली से मार गिराया था. 15 किमी चौंड़े इस सेक्टर में 10,000 फुट ऊंचे पहाड़, गहरी खाइयां, नाले और झाडिय़ां हैं, जिनमें छिपने की खूब जगह है, इसलिए घुसपैठ करने वाले उग्रवादियों का यह मनपसंद इलाका है. मारे गए दो उग्रवादियों की लाशें बरामद हुईं. उनमें से एक के पास मिले पहचान पत्र के अनुसार उसका नाम फरीद मलिक और उम्र 37 साल थी. उसके पास से 645 मुजाहिद बटालियन के हवलदार मोहम्मद यूसुफ चौधरी का एक खत भी बरामद हुआ, जिसमें किसी मुनायत साहब से उसकी मदद करने की ताकीद की गई थी. भारतीय सेना का कहना है कि इसी पत्र की मदद से उसका भारत में प्रवेश आसान हो गया. भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह ने गुस्से से उफनते हुए कहा था कि पाकिस्तान की फौज की जानकारी के बिना नियंत्रण रेखा पर आतंकवादियों के लिए कोई भी हरकत कर पाना नामुमकिन है.



हथियारों की वापसी
भारतीय पुलिस और सुरक्षा बलों का कहना है कि घुसपैठियों को इसलिए धकेला जा रहा है, क्योंकि घाटी में उनकी तादाद कम हो रही है. एक दशक पहले तक यहां 2,000 से ज्यादा उग्रवादी सक्रिय थे, लेकिन अब सिर्फ 140 हैं. 1989 में घुसपैठ शुरू होने के बाद से यह सबसे कम तादाद है. बचे खुचे उग्रवादियों को ढूंढ़-ढूंढ़कर मारा जा रहा है. जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक अशोक प्रसाद का कहना है कि उग्रवादी गुट जानते हैं कि अगर मौजूदा रुख जारी रहा तो वे फिर उग्रवादी गतिविधियां शुरू नहीं कर पाएंगे.

सेना का कहना है कि 23 सितंबर को 30-40 आतंकवादियों ने केरन सेक्टर में खाली पड़े गांव शालाभाटा के पास घुसपैठ की कोशिश की. सेना ने उन्हें वापस धकेल दिया. सेना ने दर्जन भर उग्रवादियों को मारने का जो दावा किया था उसका कोई सबूत दो सप्ताह की घेराबंदी और तलाशी के बाद भी नहीं मिल पाया.

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 9 अक्तूबर को पत्रकारों से कहा, “घुसपैठ और संघर्ष विराम उल्लंघन के इन हालात में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि रिश्ते सामान्य हो जाएंगे.” राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री अली मोहम्मद सागर ने और साफ शब्दों में कहा कि जम्मू-कश्मीर में शांति और विकास का सीधा संबंध भारत और पाकिस्तान के बीच अमन से है. राज्य, उसकी जनता और उसकी अर्थव्यवस्था पर हिंसा का सीधा असर पड़ता है. पिछले साल 15 लाख सैलानी जम्मू-कश्मीर आए थे, जो 1989 के बाद से सबसे बड़ी तादाद है. फिर भी कश्मीरियों का कहना है कि वे अपनी अनदेखी से भी परेशान हैं. कश्मीर युनिवर्सिटी में राजनीतिशास्त्र विभाग के अध्यक्ष नूर मोहम्मद बाबा का कहना है कि शायद दिल्ली को ऐसा लगता है कि अगर कश्मीर में अमन हो गया है, तो हालात बिगडऩे देने में कोई हर्ज नहीं है. सुरक्षा बल और सेना अवाम का भरोसा खो चुके हैं, खासकर 2010 के जन आंदोलनों में 100 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत से अविश्वास बढ़ गया है.

पाकिस्तान में दोस्ती-दुश्मनी का खेल
गृह मंत्रालय का अनुमान है कि करीब 42 आतंकी शिविरों में ढाई हजार आतंकवादी हैं, इनमें से 25 शिविर पाकिस्तान में और 17 पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है. श्रीनगर में तैनात 15वीं कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह का कहना है कि सीमा के पार लॉन्च पैड, गाइड, आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर काम कर रहे हैं, मतलब आतंक का पूरा ढांचा मौजूद है. पाकिस्तान के साथ शांति वार्ता की सरकार की मौजूदा रणनीति नाकाम रही है. इस्लामाबाद में पूर्व भारतीय उच्चायुक्त जी. पार्थसारथी के शब्दों में कवायद तो खूब हुई, लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ. वे पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के मुद्दे को जोरशोर से उठाने की वकालत करते हैं, “हम बचाव की मुद्रा में हैं, जबकि पाकिस्तान कराची, बलूचिस्तान और अपनी पश्चिमी सीमाओं पर तीन तरफ गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है.”

28 सितंबर को जब सेना केरन सेक्टर में पहाड़ी ढलानों पर घुसपैठियों को तलाश रही थी और दो दिन पहले ही सांबा में 16वीं कैवलरी ने अपने शहीदों की गिनती की थी, तब मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था. उन्होंने 11 बार आतंकवादी और आतंकवाद शब्दों का उल्लेख करते हुए साफ तौर पर कहा था कि पाकिस्तान को भारत के खिलाफ चल रहे आतंकवाद को सहारा और शह देने के लिए अपने इलाके का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. वे साफ तौर पर नवाज शरीफ से मुखातिब थे, जिनके प्रधानमंत्री चुने जाने से बदलाव की नई उम्मीद जगी थी. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह उम्मीद अभी तक तो झूठी ही साबित हुई है.

पाकिस्तानी सेना भारत को चोट पहुंचाने की अपनी पुरानी नीति पर लौट गई है. एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी के मुताबिक, फौज को लगता है कि भारत कश्मीर पर बातचीत के बारे में गंभीर नहीं है. हम सियासी और फौजी तौर पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए वक्त काट रहे हैं. विडंबना यह है कि जब से जून में नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम की कुर्सी संभाली है, दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है.

इस साल युद्धविराम का 120 बार उल्लंघन हुआ. 2003 के संघर्ष विराम का इतनी बार उल्लंघन पहले कभी नहीं हुआ. इतना ही नहीं, भारत को अब तो यह भी भरोसा नहीं है कि शरीफ सरकार के नियंत्रण से बाहर के लोगों और संगठनों पर काबू कर पाएंगे. इतना ही नहीं, शरीफ  के गढ़ पंजाब में सक्रिय भारत विरोधी गुटों के साथ चोरी छिपे हाथ मिलाए जाने की खबरें भी आ रही हैं. भारतीय अधिकारियों को इस साल जून में इस खबर से करारा झटका लगा कि शरीफ के भाई शाहबाज की पंजाब सूबे की हुकूमत ने जमात-उद-दावा में नॉलेज सेंटर के लिए 6.1 करोड़ रु. दिए हैं. जमात-उद-दावा प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा का मुखौटा है और उसके सरगना हाफिज मोहम्मद सईद ने ही 26 नवंबर, 2008 के मुंबई हमलों की साजिश रची थी.

सेना के काफिले पर हमले के दौरान मोर्चा संभालते सैनिक

पाकिस्तान ने कश्मीर की नई रणनीति 2014 में अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की पूरी तरह वापसी को ध्यान में रखकर बनाई है. इस वापसी से तालिबान पर दबाव कम होगा और कश्मीर में हिंसा भड़काने के लिए पाकिस्तान की फौज के हाथ और हौसले बुलंद होंगे. हिज्बुल मुजाहिदीन के सरगना सैयद सलाउद्दीन जैसे आतंकवादी नेताओं का कहना है कि अमेरिकी सेना की वापसी का कश्मीर पर उनकी जंग का अच्छा असर पड़ेगा. कश्मीर में नए जेहादियों से निबटने में जुटे भारतीय रणनीतिकारों को इस भविष्यवाणी को भी ध्यान में रखना होगा.

और उन्हें उस युवा जेहादी की जिद को भी ध्यान में रखना होगा, जो सिरफिरी जिद को पूरा करने से पहले अपनी मां से दुआ करने को कह रहा था. यह नासूर अब इतना गहरा हो चुका है कि इसके ऑपरेशन के नए तरीके ईजाद करने ही पड़ेंगे. बार-बार पुराने ढर्रे की कूटनीति और बातचीत का सिलसिला अपना रंग खो चुका है और सरहद के दोनों ओर अब कोई इस पर यकीन नहीं करता. अगर दहशत फैलाने वाले जोखिम उठाने के लिए हर वक्त तैयार हैं, तो अमन की राह पर चलने वालों को भी कुछ जोखिम उठाने होंगे, जिनमें दरियादिली भी हो.   
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