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सारी बला अब भीड़ के सिर

राजस्थान में 2011 में गोपालगढ़ के दंगों में दस मेव मुस्लिम मारे गए थे. सीबीआइ अब पुलिस और प्रदेश सरकार को बरी करते हुए सारा ठीकरा हिंदुओं और मुसलमानों की भीड़ पर फोडऩे वाली है.

अपडेटेड 7 अक्टूबर , 2013
बात 14 सितंबर, 2011 की है. 65 वर्षीय हाजिर खान और उनका बेटा मौलवी खुर्शीद राजस्थान में भरतपुर से 90 किलोमीटर दूर गोपालगढ़ नाम के छोटे-से कस्बे में मस्जिद के भीतर नमाज पढ़ रहे थे. अचानक राजस्थान पुलिस की दंगा रोकने वाली नीली गाड़ी धड़धड़ाती हुई आई. साथ में हथियारबंद पुलिस वाले थे. खान कहते हैं, ''गोलियों की बौछार ने मस्जिद को छलनी कर दिया. एक गोली मेरे बेटे के चेहरे को छेद गई.

मैं अपनी जान बचाने के लिए झुक गया.” थोड़ी देर की शांति के बाद बख्तरबंद गाड़ी वापस चली गई, लेकिन बंदूकें फिर गरजीं. दो दिन बाद खान को अपने बेटे की लाश भरतपुर के अस्पताल के मुर्दाघर में मिली. लाश जलकर लोंदा हो गई थी. उसके हाथ-पैर गायब थे. खान को बताया गया कि यह लाश मस्जिद से दो सौ गज दूर ईदगाह के कुएं में दो और लाशों के साथ 15 सितंबर की शाम को मिली थी. बेटे की पहचान दांतों की डीएनए जांच से हुई.

उसका कहना है कि चेहरे के जिस हिस्से में गोली लगी थी, उसे काट दिया गया था, शायद इसलिए ताकि कोई सबूत न मिले. लेकिन इंडिया टुडे के पास मौजूद पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक तीनों को जिंदा जलाया गया था.

उस मनहूस दिन पांच लोग और मरे और ये पांचों स्थानीय मुसलमान मेव समुदाय के थे. उनकी लाशें या तो जली हुई थीं या उन पर गोलियों और जलने के निशान थे. दो लोगों की मौत बाद में अस्पताल में हुई. हादसे की जांच को करीब दो साल हो चुके हैं. सूत्रों का कहना है कि सीबीआइ अक्तूबर में जो चार्जशीट दाखिल करने वाली है, उसमें हिंसा का ठीकरा पूरी तरह हिंदू गुर्जर और मेव मुसलमान समुदायों की भीड़ पर फोड़े जाने का अंदेशा है.

वहीं, आरोपों से घिरी पुलिस और राज्य सरकार को निर्दोष साबित कर दिया जाएगा. इस मामले में राजस्थान पुलिस पर आरोप था कि उसने बेहिसाब बल प्रयोग किया तो राज्य की अशोक गहलोत सरकार ने भी सांप्रदायिक झड़प के बारे में भरतपुर प्रशासन से मिली खुफिया चेतावनी को अनदेखा किया.

गोपालगढ़ भले ही हरियाणा तक फैले मेव प्रभाव वाले क्षेत्र का हिस्सा हो, लेकिन इस कस्बे में गुर्जरों की तादाद ज्यादा है. 14 सितंबर, 2011 को हुए खूनी खेल से पहले इन दोनों पशुपालक समुदायों के बीच कई बार झड़पें हो चुकी थीं. विवाद की जड़ दो एकड़ की सरकारी जमीन थी, जिसे किसी को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता था.

 मोहम्मदा अपने पुत्रों नौमान (बाएं) और उस्मान के साथ

मस्जिद के बगल की जमीन को मेव मुसलमानों ने कब्रिस्तान के रूप में ट्रांसफर करा लिया था, फिर भी जुलाई 2011 तक गुर्जर इस पर अपने मवेशी चराते रहे. दोनों पक्ष अदालत में गए और 13 सितंबर को सुनवाई के समय आपस में भिड़ गए. उसी शाम मस्जिद के केयरटेकर अब्दुल गनी की सेलफोन की दुकान पर लड़की छेडऩे के इल्जाम में एक गुर्जर लड़के की पिटाई हो गई. कुछ ही घंटों बाद गुर्जरों के लड़कों ने अब्दुल गनी, उनके दो बेटों और वहां से गुजर रहे मस्जिद के इमाम मौलवी रशीद की पिटाई कर दी.

बताते हैं कि रात होने तक स्थानीय मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से इन दोनों लड़ाइयों के किस्सों के साथ यह अफवाह फैला दी गई कि इमाम के हाथ-पांव काट दिए गए हैं. सीबीआइ की चार्जशीट में सबूत के तौर पर मस्जिद से की गई घोषणाओं और साथ ही बदला लेने के लिए लोगों को उकसाए जाने का पुलिस रिकॉर्ड शामिल किया जा रहा है.

14 सितंबर की दोपहर तक मेव और गुर्जर एक दूसरे को धमकाने के लिए देसी कट्टों से हवा में फायर करने लगे. तब भरतपुर के जिला कलेक्टर कृष्ण कुणाल और पुलिस अधीक्षक हिंगलाज दान ने दोनों समुदायों के नेताओं को बुलाकर सुलह कराई और गुर्जरों पर दबाव डाला कि शाम चार बजे तक इमाम से माफी मांगें.

सुलह जल्दी ही टूट गई. पुलिस और सीबीआइ दोनों इस बात पर अड़े हैं कि मौलवी रशीद और गनी ने मेव मुसलमानों को सुलह नामंजूर करने के लिए उकसाया. हथियारबंद भीड़ मस्जिद की तरफ बढऩे लगी और रास्ते में पडऩे वाली गुर्जरों की दुकानों में आग लगा दी. जयपुर में सीबीआइ अदालत में पेश दस्तावेजों से पता चलता है कि उसी समय कुछ हिंदू, जिनमें ज्यादातर गुर्जर थे, पुलिस के पास गए और आरोप लगाया कि मेव मुसलमान उन पर हमले कर रहे हैं.

शाम तक दंगा रोकने वाली पुलिस की गाड़ी मस्जिद पर पहुंच गई. उसमें भरतपुर के जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौजूद थे. उनके पीछे-पीछे हथियारबंद पुलिस वाले थे. उन पर फायरिंग हुई और कलेक्टर के जूते पर एक छर्रा भी लगा.

लेकिन मेव मुसलमान इस बयान को गलत बताते हैं. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि सुलह होने के बाद सौ से भी कम मुसलमान मस्जिद में नमाज अदा कर रहे थे और बाकी भी नमाज पढऩे के वास्ते ही मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे.

जैुना और शमशुद्दीन

पुलिस की गोलियों की पहली बौछार के बाद शाम पांच बजे के आसपास दूसरे राउंड की फायरिंग हुई. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, ज्यादातर हथियारबंद मेव मुसलमान पहले राउंड की फायरिंग के बाद ही मस्जिद से भाग गए और सिर्फ निहत्थे लोग बच गए. सूत्रों की मानें तो सीबीआइ अपनी चार्जशीट में यह भी दावा करने वाली है कि मेव मुसलमान वहां नमाज के लिए जमा नहीं हुए थे. शाम 6 बजे के करीब गुर्जरों की भीड़ मस्जिद में घुसी और मेव मुसलमानों को मार डाला.

यह संभावना है कि सीबीआइ की चार्जशीट में सात मौतों के लिए गुर्जरों की भीड़ को जिम्मेदार ठहराया जाए और कहा जाए कि बाकी तीन हत्याएं भी 'शायद’ भीड़ ने ही की होंगी. इससे पुलिस को संदेह का लाभ मिल जाएगा. दूसरी ओर, घटना के दिन पुलिस ने करीब 20 मिनट तक गोलियां चलाई थीं. सीबीआइ और पुलिस ने अब तक सिर्फ एक देशी बंदूक बरामद की है और बेशक उससे तो इतने लोगों को नहीं मारा जा सकता था.

इन हत्याओं ने प्रदेश की गहलोत सरकार और कांग्रेस, दोनों को हिला दिया था. 24 सितंबर को मुख्यमंत्री गोपालगढ़ गए और आनन-फानन में सीबीआइ जांच के साथ-साथ राजस्थान हाइकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस सुनील कुमार गर्ग से न्यायिक जांच कराने का आदेश दे दिया.

स्थानीय पुलिस अधीक्षक और कलेक्टर का भी तबादला कर दिया गया. सीबीआइ ने अधिकारियों के खिलाफ दर्ज 11 मामलों की जांच करने से इस आधार पर मना कर दिया कि गोली चलाने का आदेश कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिया गया था. शायद न्यायिक आयोग ही यह तय करेगा कि पुलिस की फायरिंग उचित थी या नहीं.
 
सीबीआइ के अधिकारियों ने 43 फरार संदिग्धों के लिए गोपालगढ़ और आसपास के गांवों का चप्पा-चप्पा छान मारा. गनी सहित 19 दूसरे लोगों को गिरफ्तार किया गया. स्थानीय कांग्रेस विधायक जाहिदा खान और बीजेपी की अनिता सिंह को सितंबर 2013 के शुरू में ही अग्रिम जमानत मिल गई.

हालांकि सीबीआइ इन दोनों पर पुलिस के काम में रुकावट डालने और भीड़ को भड़काने के आरोपों में गिरफ्तारी की मांग कर रही थी. दोनों का दावा है कि स्थानीय अधिकारियों ने स्थिति शांत करने के लिए उन्हें बुलाया था. अगस्त में देशद्रोह का आरोप लगने के बाद मौलवी रशीद भूमिगत हो गया है.



पूर्व सांसद और भरतपुर की पूर्व रियासत के वारिस, कांग्रेस के विश्वेंद्र सिंह का कहना है कि मेव और गुर्जर, दोनों सीबीआइ के छापों से डरे हुए और गुस्से में हैं. बीजेपी ने असंतोष को भुनाने के लिए पूरे जिले में छापों के विरोध में बंद आयोजित किए. सीबीआइ से मिलने वाली क्लीन चिट की उम्मीद में ही शायद मुख्यमंत्री ने हाल में कहा था कि उनके शासनकाल में कभी किसी पर लाठीचार्ज नहीं हुआ.

इस पर बीजेपी की वसुंधरा राजे ने सवाल दागा कि अगर सरकार ने गोली नहीं चलवाई तो गोपालगढ़ में लोग कैसे मारे गए? हो सकता है कि सीबीआइ की क्लीन चिट गहलोत के चुनावी गणित पर भारी पड़ जाए.     

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