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मुस्लिम वोटों का गणित

भारत में मुस्लिम वोटरों का बिखराव चुनाव को दिलचस्प बना देता है. कहीं उनकी ज्यादा संख्या उन्हें अप्रासंगिक बना देती है तो कहीं वे संख्या में कम होकर भी असरदार हो जाते हैं.

अपडेटेड 1 अक्टूबर , 2013
भारत में 18 करोड़ मुसलमान हैं. चुनाव आयोग धर्म के आधार पर मतदाता सूचियों का अनुमान नहीं बताता लेकिन एक अनुमान के मुताबिक पूरे भारत में लोकसभा के 218 निर्वाचन क्षेत्रों में मुसलमानों की वोट में हिस्सेदारी 10 फीसदी से अधिक है. कई दल मुस्लिम वोट को खींचने में जुटे हैं तो 2014 के आम चुनाव पर इसका क्या असर होगा?

अब तक मुसलमानों ने कमोबेश गैर-बीजेपी दलों को वोट दिया है. उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में जहां एक से अधिक धर्मनिरपेक्ष विकल्प मौजूद हैं, वहां, कहा जाता है कि मुसलमान बीजेपी को हराने के लिए 'टैक्टिकल वोटिंग’ करते हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति मुसलमानों का आक्रोश बीजेपी के प्रति नाराजगी से अधिक कठोर है.

हालात ऐसे हो गए हैं कि लालकृष्ण आडवाणी को भी अपेक्षाकृत धर्मनिरपेक्ष बताया जा रहा है हालांकि उन्होंने ही बीजेपी को अयोध्या के रास्ते आगे बढ़ाया था.

अल्पसंख्यक बीजेपी को मुस्लिम विरोधी पार्टी मानते हैं. 70 के करीब सीटों पर 20 फीसदी से अधिक निर्णायक मुस्लिम वोट हैं जहां बदले में हिंदू वोटों का ध्रर्वीकरण हो सकता है सांप्रदायिक आधार पर बंटे किसी भी चुनाव में इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा.

पूरे भारत में करीब 150 सीटों पर मुसलमानों की वोट हिस्सेदारी 10 फीसदी से अधिक है. इस संख्या की वजह से उन्हें यह तय करने की ताकत तो मिलती है कि किसे वोट देना है लेकिन हिंदू वोटर को बीजेपी के पक्ष में गोलबंद करने लायक ताकत पैदा नहीं होती.

ये इस तरह की सीटें हैं जहां गैर-बीजेपी दल निर्णायक मुस्लिम वोट पाने के लिए अपनी-अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि दिखाना चाहेंगे. इन सीटों पर जीत का अंतर 10 फीसदी से कम है. दिलचस्प  बात यह है कि ये सीटें उन राज्यों में ज्यादा है जहां बीजेपी का अस्तित्व नहीं है.

मिसाल के तौर पर केरल, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओडिसा और असम में क्षेत्रीय दल ही कांग्रेस को सीधी टक्कर देते हैं. वहां कांग्रेस को हराने के लिए उन्हें बड़ी संख्या में मुस्लिम वोट चाहिए. इसीलिए इन राज्यों में अधिकतर क्षेत्रीय दल मोदी और बीजेपी का विरोध करना पसंद करेंगे. इससे वे कांग्रेस के मुकाबले खड़े होंगे.

लेकिन महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश या गुजरात जैसे राज्यों में यह तरकीब काम नहीं करती जहां बीजेपी सशक्त दावेदार है और आगे बढऩे को बेचैन है. इन राज्यों में बड़ी संख्या में ऐसी सीटें हैं जहां मुसलमान अच्छी-खासी तादाद में हैं. इन्हीं राज्यों में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राट्रीय जनता दल और जनता दल (युनाइटेड) का स्पष्ट मुस्लिम समर्थक रुख मुसलमानों को इन पार्टियों की तरफ एकजुट करता है. इन सीटों पर बीजेपी के लिए भी हिंदू ध्रुवीकरण की गुंजाइश बन जाती है.
आम धारणा है कि जब भी कोई पार्टी बीजेपी से नाता जोड़ती है तो मुस्लिम वोट खो देती है. यह काफी हद तक सही है पर पूरी तरह सही नहीं है. नीतीश कुमार और मायावती साबित कर चुके हैं कि बीजेपी की बगलगीर होने पर भी उन्हें मुस्लिम वोट मिल सकता है हालांकि नरेंद्र मोदी के आने से मामला उलझ गया है.

मुस्लिम वोट का गणित

मुस्लिम संगठन लोकसभा के सभी 543 निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश तैयार कर रहे हैं. चुनाव के बाद के माहौल में इसका हश्र क्या होगा यह कहना मुश्किल है, क्योंकि बीजेपी वाम दलों के लिए भले ही अछूत हो लेकिन अमूमन हर बड़ी क्षेत्रीय पार्टी कभी न कभी उससे गठजोड़ कर चुकी है.

मुस्लिम समुदाय का वोट करीब 220 लोकसभा सीटों पर सांसद तय कर सकता है. इन सीटों को उन सीटों से नहीं मिलाना चाहिए जहां मुस्लिम उम्मीदवार जीतते हैं. मुस्लिम सांसद सिर्फ 30 यानी कुल सांसदों में करीब 6 फीसदी हैं. भारत की 120 करोड़ आबादी में मुसलमानों की 14 फीसदी हिस्सेदारी को देखते हुए यह अनुपात काफी कम है.

ज्यादातर हिसाब-किताब उत्तर प्रदेश में सिमट जाता है. 2007 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों में बहुजन समाज पार्टी को चुना तो 2012 में सपा का दामन थामा जिससे राज्य में एकदलीय शासन हुआ. लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तरकीब से काम लिया ताकि सपा, बीएसपी और कांग्रेस के बेहतरीन उम्मीवार बीजेपी से जीत सकें.

सरसरी तौर पर 2009 में उत्तर प्रदेश का जनादेश खंडित लगता है लेकिन गौर से देखें तो राज्य में हार सिर्फ बीजेपी की हुई जिसने 18 फीसदी वोट लेकर सिर्फ 10 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस की सीटें 9 से बढ़कर 21 हो गईं और उसे इतने ही वोट मिले. इसका अर्थ यह हुआ कि उत्तर प्रदेश ने 80 में से 70 लोकसभा सीटों पर गैर बीजेपी दलों को चुना.

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटों में से पश्चिम की करीब दो दर्जन सीटों पर मुसलमान 20 फीसदी से अधिक हैं. इनमें बरेली, बदायूं, पीलीभीत, रामपुर, संभल, अमरोहा, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर और मुरादाबाद शामिल हैं.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में बहराइच, आजमगढ़, गोंडा, श्रावस्ती, वाराणसी, डुमरियागंज और बलरामपुर सहित 12 और सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक है. अगर मोदी ने इनमें से किसी सीट, खासकर वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो ध्रुर्वीकरण का असर न सिर्फ प. उत्तर प्रदेश बल्कि प. बिहार/भोजपुर क्षेत्र में भी दिखाई देगा.

लेकिन यह सब करते ही मोदी का विकास का एजेंडा पृष्ठभूमि में चला जाएगा.

लेखक सीवोटर के संपादक हैं.
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