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'कंपनी की उन्नति में भागीदार हूं’ : रेनू सूद कर्नाड

मेरे करियर में दो बड़े मुकाम आए और इस संगठन के साथ भी वैसा ही हुआ. पहला यह कि हमारे बिजनेस के तरीके में बदलाव आया.

अपडेटेड 10 सितंबर , 2013
एचडीएफसी में मैंने 1978 से नौकरी शुरू की थी. उस समय मैं 26 साल की थी. यह मेरी पहली नौकरी थी. मुझे लगता है कि इस संगठन के साथ मैं भी बड़ी होती गई (एचडीएफसी का गठन 1977 में हुआ था). मेरे करियर में दो बड़े मुकाम आए और इस संगठन के साथ भी वैसा ही हुआ. पहला यह कि हमारे बिजनेस के तरीके में बदलाव आया. एचडीएफसी में हमारा सोचने का तरीका बदल गया. हालांकि इन फैसलों को लेने में समय लगा लेकिन उससे हमारे कारोबार में बहुत बड़ा फर्क आया.

आज हाउसिंग लोन आम जरूरत हो गया है. लोग अपने कंप्यूटर का माउस क्लिक करके बड़े आसानी से कर्ज ले सकते हैं. लेकिन जब हमने शुरुआत की थी तो ग्राहक चिंतित रहते थे कि उन्हें कर्ज मिलेगा या नहीं. उस समय कर्ज की मात्रा अधिकतम 70,000 रु. हुआ करती थी.

लेकिन यह रकम भी ग्राहकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होती थी. अगर उन्हें कर्ज मिल जाता था तो वे हमें अपने गृह प्रवेश पर न्यौता देते थे. आगरा, मेरठ, कानपुर जैसे शहरों के ग्राहक कर्ज लेने के लिए दिल्ली आते थे.

1980 के दशक में जब मैं मैनेजमेंट में मध्यम स्तर की कर्मचारी थी तो हमने योजना बनाई कि ग्राहकों को उनके शहर में भी कर्ज उपलब्ध कराया जाए. लेकिन इसके लिए हमें अपनी शाखाएं बढ़ानी पड़तीं. एक शाखा खोलने का मतलब था कि वहां 25-30 कर्मचारी रखे जाएं. एक छोटे शहर में यह फायदे का सौदा नहीं था, क्योंकि कारोबार इतना ज्यादा नहीं था.

इसलिए हमने हब-ऐंड-स्पोक मॉडल शुरू किया. हमारे पहले स्पोक में सिर्फ  दो या तीन कर्मचारी थे. ग्राहक उनके पास संपर्क करने आते थे और बाकी का सारा काम दिल्ली से होता था. हमने सबसे पहला स्पोक कानपुर में खोला था और दिल्ली में पहला स्पोक इंडिया हैबिटैट सेंटर में खोला था. स्पोक ग्राहकों के पेपर इकट्ठा करता और उन्हें दिल्ली के मुख्य ऑफिस को भेज देता था. तब तक टेक्नोलॉजी में ज्यादा प्रगति नहीं हुई थी. तब फाइलें कूरियर से भेजी जाती थीं.

धीरे-धीरे स्पोक अपने आप में शाखा बनते गए. नतीजा यह हुआ कि हमारे पास ढेरों ऑफिस हो गए. विस्तार करने का तरीका बहुत कारगर रहा और लागत भी कम होती थी. आज हमारा 40 प्रतिशत कारोबार मझोले दर्जे के शहरों में हो रहा है. लोगों के कानो-कान प्रचार से हमारी प्रतिष्ठा तेजी से बढ़ती गई. आज हमारे पास 25 हब और लगभग 250 स्पोक हैं.

दूसरा बदलाव हमारी जरूरत के कारण आया था. यह एचडीएफसी की सोच में बड़ा बदलाव था. हमने कभी अपने और ग्राहकों के बीच किसी बिचौलिए का इस्तेमाल करने में यकीन नहीं किया. ग्राहकों के साथ हमारा रिश्ता हमेशा सौहार्दपूर्ण रहा है. लेकिन 10 साल पहले प्रतिस्पर्धा बढऩे लगी और दूसरे बैंकों के अपने प्रतिनिधि ग्राहकों के घर पर ही उनसे संपर्क करने के लिए पहुंचने लगे और उनके ऑफिस भी ग्राहकों की सुविधा के अनुसार देर तक खुले रहने लगे. इससे हमारा कारोबार प्रभावित होने लगा.

शुरू में तो हमने कोशिश की कि एजेंट न रखे जाएं. लेकिन हमारी यह कोशिश फायदेमंद नहीं रही. इसलिए हमने कुछ अलग करने की बात सोची. हमने एजेंट तो रखने का फैसला कर लिया लेकिन उनका काम सिर्फ ग्राहकों से जरूरी पेपर एकत्र करना और कर्ज की शर्तों के बारे में बताना होता था, जबकि कर्ज देने का निर्णय हमारे ऊपर होता था. हम अब भी कर्ज देने के समय ग्राहक से सीधे मिलने पर जोर देते हैं.

हमने दिल्ली में कुछ एजेंटों के साथ शुरुआत की. लेकिन हमने जल्दी ही महसूस किया कि हमें ऐसे लोग रखने चाहिए जो हमसे जुड़ाव रखते हों. इसीलिए हमने एचडीएफसी सेल्स कंपनी शुरू की. यह एचडीएफसी की सौ फीसदी सहायक कंपनी है और यह सात-आठ साल पुरानी है. इसके कर्मचारी खुद को कंपनी का हिस्सा समझते हैं. इस प्रकार किसी तरह का गलत कर्ज देने की भावना नहीं रह गई.

मैं जब पुरानी बात याद करती हूं तो बहुत संतोष होता है कि कंपनी की उन्नति की योजना तैयार करने में मैं भी भागीदार रही हूं.
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