scorecardresearch

मधुरिमा मुखर्जी: पूंजी बाजार की महारानी

उन्होंने पूंजी बाजार वकील के रूप में पहचान बना ली है, लेकिन यहीं रुकने को तैयार नहीं हैं

अपडेटेड 10 सितंबर , 2013
हमेशा की तरह उस दिन भी शनिवार की दोपहर बीत चुकी थी, मधुरिमा मुखर्जी लंच करने के बाद दक्षिण दिल्ली के गीतांजलि एनक्लेव में अपने घर के ड्रॉइंगरूम में फुरसत से सोफे पर विराजमान थीं. पति बच्चों के साथ खेल रहे थे.

कहीं कोई बेचैनी नजर नहीं आ रही थी, लेकिन उन्होंने माना कि शांति के इस मुखौटे के पीछे कुछ दिनों से बेचैनी रहने लगी है. उसकी वजह? वे बताती हैं, ''पूंजी बाजार में बहुत उथल-पुथल है और हर छह महीने में ढह जाता है. उम्र बढऩे के साथ-साथ यह मुझे ज्यादा परेशान करने लगा है.”

39 साल की मुखर्जी दिल्ली की लॉ फर्म, लूथरा ऐंड लूथरा लॉ ऑफिसेज की पार्टनर हैं और लोग उन्हें अकसर कैपिटल मार्केट की महारानी कहते हैं. 16 साल की वकालत में उन्होंने देश में पूंजी जुटाने के कुछ नामी मामलों में हाथ बंटाया है. पिछला वित्त वर्ष पब्लिक इश्यूज के लिए बहुत अच्छा नहीं था, फिर भी उन्होंने कंपनियों को 18,389 करोड़ रु. जुटाने में मदद की.

नेशनल लॉ स्कूल बंगलुरू की लॉ ग्रेजुएट मुखर्जी 1997 में वकालत के पेशे में आईं. देश में सबसे बड़ी लॉ फर्म अमरचंद मंगलदास ने कैंपस प्लेसमेंट में उन्हें नौकरी दी. शुरू में उन्होंने पूंजी बाजार वकील के रूप में अपना हुनर तराशा और पूंजी जुटाने में माहिर हो गईं. 

छह साल पहले जब मुखर्जी लूथरा ऐंड लूथरा की पार्टनर बनीं तब कंपनी के पास पूंजी बाजार का कोई खास बिजनेस नहीं था. उन्हें जीरो से शुरू करके टीम और कारोबार बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. आज उनकी टीम देश में बेहतरीन टीम मानी जाती है.

आज तक मुखर्जी की सबसे बड़ी कामयाबी 2010 में कोल इंडिया की इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (आइपीओ) रही. कंपनी के अध्यक्ष पार्थो भट्टाचार्य को इश्यू मैनेज करने की उनकी क्षमता पर संदेह था. उन्होंने कहा था, ''मैं तुम्हें कैसे समझ सकता हूं, तुम मुझ से आधी उम्र की हो.” मुखर्जी ने उनसे एक मौका देने को कहा. कंपनी ने 15,199 करोड़ रु. जुटाए और यह अब तक का देश का सबसे बड़ा आइपीओ हो गया.

आज मुखर्जी के नौ पन्नों के परिचय में आइपीओ, ओवरसीज लिस्टिंग्स, राइट्स इश्यूज और डेट ऑफरिंग्स सहित 85 बड़े सौदे शामिल हैं. उन्होंने जो बड़े आइपीओ संभाले हैं उनमें भारती इन्फ्राटेल, कैर्न इंडिया, ऑयल इंडिया और मारुती उद्योग के इश्यू शामिल हैं.

सारी प्रतिष्ठा के बावजूद मुखर्जी अपनी कामयाबी से संतुष्ट नहीं हैं. वे आज भी अपने पेशे में बेहतरीन परिणाम देने के लिए कड़ी मेहनत करती हैं. मुखर्जी की कामयाबी इसलिए और भी ज्यादा बढ़ी है कि कानूनी पेशे में आज भी मर्दों का दबदबा है. उन्होंने बताया कि अकसर काम के समय कमरे में तमाम मर्दों के बीच वे अकेली महिला होती हैं. मधुरिमा ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं इस पेशे के छोटे से हिस्से की नुमाइंदगी करती हूं.
Advertisement
Advertisement