राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब तेजी से एहसास होने लगा है कि जनता को नकदी और रियायतें बांटकर ही वोट नहीं बटोरे जा सकते. कांग्रेस में हाल के दिनों में अचानक उभरे असंतोष के बाद एक कैबिनेट मंत्री का इस्तीफा हो चुका है और एक अन्य मंत्री ने अगले चुनाव में खड़े होने से इनकार कर दिया है.
राजस्व मंत्री और बाड़मेर से जाटों के एक प्रमुख नेता हेमाराम चौधरी ने 24 जुलाई को इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उन्होंने अपनी कार और अंगरक्षक भी लौटा दिए और सरकारी कामों से भी किनारा कर लिया. इस्तीफे से पहले वे लीलाणा में कांग्रेस समर्थक किसानों के साथ बातचीत कर रहे थे, जहां से प्रस्तावित रिफाइनरी को पचपदरा स्थानांतरित कर दिया गया है.
रिफाइनरी राज्य के संसाधनों से स्थापित हो रही है. घोषणा के पहले ही दिन से इसे लेकर कोई न कोई विवाद खड़ा हो रहा. बीजेपी ने रिफाइनरी के लिए केंद्र से अनुदान न ले पाने पर गहलोत के ऊपर सवाल उठाया और प्रचारित किया कि इससे राज्य में संसाधनों का अभाव हो जाएगा.
यह भी कि चार साल में चालू होने के वादे के उलट इसमें दस साल लगेंगे. रिफाइनरी लगाने वाली कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ सरकार के अनुबंध पर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने से मना कर दिया गया. सरकार को डर था कि इससे उसके कुप्रबंधन का राजफाश हो जाएगा.
बाड़मेर में तेल और गैस परियोजनाओं के लिए गहलोत की ओर से अवास्तविक स्तरों तक मुआवजे के ऐलान के बाद किसानों ने और ज्यादा मुआवजे की मांग कर डाली. इसके बाद पास की ही जगह पचपदरा में जमीन के सौदे किए जाने शुरू हुए, जहां बेनामी सौदों के तहत नेताओं को जमींदारों ने कौडिय़ों के दाम जमीन बेच दी. रिफाइनरी पचपदरा ले जाने के ऐलान पर गहलोत सरकार पर जमीन घोटाले के भी आरोप लगे.
इस मामले पर भड़के बुजुर्ग कांग्रेसी विधायक कर्नल सोनाराम ने गहलोत पर आरोप लगाया था कि वे अपने बेटे वैभव गहलोत को पचपदरा से चुनाव में उतारने की जमीन तैयार कर रहे हैं. आरोप भी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान प्रभारी गुरदास कामत के सामने लगाया. गहलोत ने इससे इनकार किया. सोनाराम ने हेमाराम पर भी किसानों के हितों की रक्षा न कर पाने का आरोप लगाया. इस इलाके के जमीन वाले ज्यादातर गरीब हैं. लीलाणा और पचपदरा दोनों जगह सबसे ज्यादा नुकसान इन्हें ही हुआ है.
इसी के चलते हेमाराम को इस्तीफा देना पड़ा. इस्तीफे के 18 घंटे बाद तक सरकार इससे इनकार करती रही. 25 जुलाई को गहलोत बोले, ''हेमाराम बहुत भावुक हैं. यह मुद्दा तो बहुत स्थानीय किस्म का है. '' गहलोत ने संकेत दिए कि हेमाराम को इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लिया जाएगा. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने रिफाइनरी के मुद्दे की सच्चाई उजागर कर दी. गहलोत चार साल तक इसे दाबे बैठे रहे और चुनावी वर्ष में याद आ गई.
कुछ ही दिन पहले 22 जुलाई को गहलोत के भरोसेमंद लोक निर्माण मंत्री भरत सिंह ने कामत के सामने कांग्रेस की एक बैठक में कहा था कि वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनकी शिकायत थी कि पार्टी ने ऐसे पदाधिकारियों की नियुक्ति की है, जिनका कोई जनाधार नहीं है.
राजस्व मंत्री और बाड़मेर से जाटों के एक प्रमुख नेता हेमाराम चौधरी ने 24 जुलाई को इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद उन्होंने अपनी कार और अंगरक्षक भी लौटा दिए और सरकारी कामों से भी किनारा कर लिया. इस्तीफे से पहले वे लीलाणा में कांग्रेस समर्थक किसानों के साथ बातचीत कर रहे थे, जहां से प्रस्तावित रिफाइनरी को पचपदरा स्थानांतरित कर दिया गया है.
रिफाइनरी राज्य के संसाधनों से स्थापित हो रही है. घोषणा के पहले ही दिन से इसे लेकर कोई न कोई विवाद खड़ा हो रहा. बीजेपी ने रिफाइनरी के लिए केंद्र से अनुदान न ले पाने पर गहलोत के ऊपर सवाल उठाया और प्रचारित किया कि इससे राज्य में संसाधनों का अभाव हो जाएगा.
यह भी कि चार साल में चालू होने के वादे के उलट इसमें दस साल लगेंगे. रिफाइनरी लगाने वाली कंपनी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के साथ सरकार के अनुबंध पर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने से मना कर दिया गया. सरकार को डर था कि इससे उसके कुप्रबंधन का राजफाश हो जाएगा.
बाड़मेर में तेल और गैस परियोजनाओं के लिए गहलोत की ओर से अवास्तविक स्तरों तक मुआवजे के ऐलान के बाद किसानों ने और ज्यादा मुआवजे की मांग कर डाली. इसके बाद पास की ही जगह पचपदरा में जमीन के सौदे किए जाने शुरू हुए, जहां बेनामी सौदों के तहत नेताओं को जमींदारों ने कौडिय़ों के दाम जमीन बेच दी. रिफाइनरी पचपदरा ले जाने के ऐलान पर गहलोत सरकार पर जमीन घोटाले के भी आरोप लगे.
इस मामले पर भड़के बुजुर्ग कांग्रेसी विधायक कर्नल सोनाराम ने गहलोत पर आरोप लगाया था कि वे अपने बेटे वैभव गहलोत को पचपदरा से चुनाव में उतारने की जमीन तैयार कर रहे हैं. आरोप भी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और राजस्थान प्रभारी गुरदास कामत के सामने लगाया. गहलोत ने इससे इनकार किया. सोनाराम ने हेमाराम पर भी किसानों के हितों की रक्षा न कर पाने का आरोप लगाया. इस इलाके के जमीन वाले ज्यादातर गरीब हैं. लीलाणा और पचपदरा दोनों जगह सबसे ज्यादा नुकसान इन्हें ही हुआ है.
इसी के चलते हेमाराम को इस्तीफा देना पड़ा. इस्तीफे के 18 घंटे बाद तक सरकार इससे इनकार करती रही. 25 जुलाई को गहलोत बोले, ''हेमाराम बहुत भावुक हैं. यह मुद्दा तो बहुत स्थानीय किस्म का है. '' गहलोत ने संकेत दिए कि हेमाराम को इस्तीफा वापस लेने के लिए मना लिया जाएगा. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने रिफाइनरी के मुद्दे की सच्चाई उजागर कर दी. गहलोत चार साल तक इसे दाबे बैठे रहे और चुनावी वर्ष में याद आ गई.
कुछ ही दिन पहले 22 जुलाई को गहलोत के भरोसेमंद लोक निर्माण मंत्री भरत सिंह ने कामत के सामने कांग्रेस की एक बैठक में कहा था कि वे अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनकी शिकायत थी कि पार्टी ने ऐसे पदाधिकारियों की नियुक्ति की है, जिनका कोई जनाधार नहीं है.