लखनऊ शहर के दक्षिण में मौजूद आजाद इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट में 21 अप्रैल को गौतमबुद्घ टेक्निकल यूनिवर्सिटी (जीबीटीयू) के इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए राज्य स्तरीय प्रवेश परीक्षा (एसईई) हो रही थी. तभी इस इंस्टीट्यूट के कमरा नंबर 106 में सुबह की पाली में परीक्षा दे रहे 22 वर्षीय प्रकाश पांवरिया को अचानक क्राइम ब्रांच के दस्ते ने पकड़ लिया. लखनऊ के इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी (आइईटी) में बीटेक सेकेंड ईयर का छात्र प्रकाश दूसरे व्यक्ति की जगह परीक्षा दे रहा था. इसी परीक्षा के दौरान बरेली में दो, सीतापुर और कानपुर में एक-एक फर्जी परीक्षार्थी पकड़े गए. अमेठी के गायत्री नगर में रहने वाले और मोबाइल कंपनी में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत 25 वर्षीय रमेश चंद्र शुक्ल प्रतापगढ़ के ग्राम बहोरीपुर में रहने वाले वीरेंद्र कुमार की जगह बीएड प्रवेश परीक्षा देने इलाहाबाद के स्काउट ऐंड गाइड इंटर कॉलेज पहुंच गए और और प्रवेश पत्र की फर्जी फोटो से पकड़ लिए गए.
कानपुर के गांधीनगर में रहने वाले 25 वर्षीय मयंक द्विवेदी ने यहीं के प्रतिष्ठित हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (एचबीटीआइ) से दो वर्ष पहले बीटेक किया था और अब झंसी स्थित परीछा पावर प्लांट में बतौर असिस्टेंट इंजीनियर तैनात हैं. 28 अप्रैल को मयंक लखनऊ के पायनियर मांटेसरी इंटर कॉलेज में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के प्रोबेशनरी ऑफिसर (पीओ) की परीक्षा में झंसी के वीरा गांव निवासी सत्य प्रकाश गुप्ता की जगह परीक्षा देते क्राइम ब्रांच द्वारा धर लिए गए. 4.80 लाख रु. सालाना पैकेज पर काम कर रहे मयंक ने पांच लाख रु. में बैंक पीओ की परीक्षा देने का सौदा तय किया था.
बीते दो हफ्ते के दौरान हुई प्रतियोगी परीक्षाओं में दूसरे की जगह परीक्षा देते पकड़े गए इन ‘‘मुन्ना भाइयों’’ ने परीक्षाओं की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं. 2011 में फर्जी परीक्षार्थियों के 23 मामले सामने आए और 2012 में 30. इस वर्ष 12 से ज्यादा मुन्ना भाई पकड़े जा चुके हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज में पढऩे वाले मेधावी छात्र इस धंधे में कूद पड़े हैं. जीबीटीयू का सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज एचबीटीआइ कानपुर, आइईटी लखनऊ, किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू), आगरा और गोरखपुर के मेडिकल कॉलेजों की पहचान सॉल्वरों की फैक्ट्री के तौर पर भी होने लगी है. दो साल पहले केजीएमयू के दो छात्र पंजाब मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट में बतौर फर्जी परीक्षार्थी पकड़े गए थे. सॉल्वर गैंग की तह तक जाने में लगी क्राइम ब्रांच को यूपी के अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब और बिहार की परीक्षाओं में भी इनके तार मिले हैं.
मयंक द्विवेदी ने क्राइम ब्रांच को एचबीटीआइ में पढ़ रहे कुछ छात्रों के नाम बताए हैं, जो सॉल्वर गैंग का हिस्सा हैं. यही नहीं पिछले तीन वर्षों में प्रदेश में पकड़े गए मुन्ना भाइयों के तार भी जीबीटीयू से ही जुड़ रहे हैं. फोरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. अमर सिंह कहते हैं, ‘‘प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रवेश पत्र जब से ऑनलाइन मिलने लगे हैं, तभी से इनमें फर्जीवाड़ा बढ़ा है.’’ एसईई में बतौर परीक्षक तैनात डॉ. आर. पी. श्रीवास्तव कहते हैं, ‘‘परीक्षक न हस्ताक्षर पहचानने में पारंगत होते हैं और न ही उनके पास वक्त है कि एक-एक परीक्षार्थी की फोटो की सूक्ष्म जांच करें.’’
सीपीएमटी (कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट) में नए प्रयोगों के सूत्रधार रहे किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के पूर्व परीक्षा नियंत्रक प्रो. सिद्घार्थ दास कहते हैं, ‘‘सीपीएमटी में शामिल होने वाले हर छात्र की वीडियोग्राफी कराई जाती है और फोटो खींची जाती है. इसका मिलान तब किया जाता जब सेलेक्शन के तीन से चार महीने तक की पढ़ाई छात्र पूरी कर चुका होता है. इस प्रक्रिया के चलते प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में 2012 में 10 ऐसे छात्र पकड़े गए, जिन्होंने प्रवेश परीक्षा नहीं दी थी.’’
पुलिस फर्जी परीक्षार्थियों को पकड़कर अपनी पीठ तो थपथपा रही है, लेकिन बीते 10 सालों में कितनों को इस अपराध की सजा मिली, उसका कोई ब्यौरा विभाग के पास नहीं है. पुलिस के हाथ ऐसे लोगों तक भी नहीं पहुंचे हैं, जो पैसे के बल पर फर्जी परीक्षार्थियों के बूते मेधावी छात्रों का हक मार रहे हैं. आखिर नुकसान तो उन्हीं का है.