पश्चिम बंगाल में सुदीप्त सेन जैसे घोटालेबाज राजनीतिक पार्टियों के खुलेआम समर्थन के बगैर नहीं पनप सकते थे. सिंगूर से टाटा मोटर्स के बोरिया-बिस्तर समेट लेने, टायर कंपनी डनलप के बंद होने, इन्फोसिस और विप्रो की राज्य में दिलचस्पी घटने के बाद यहां वैसे ही बड़े निवेश की भारी कमी हो गई थी. बंगाल तुरत-फुरत अपने को निवेश के एक बड़े केंद्र के रूप में पेश करना चाहता था. और जब पैसा बोलना शुरू कर देता है तो कारोबारी नियम-आदर्श और दायित्व की बातें अहमियत खो देती हैं.
शंकरादित्य उर्फ सुदीप्त सेन एक रियल एस्टेट एजेंट से उठकर जिस चमत्कारी अंदाज में राज्य का आला कारोबारी बना है उसके पीछे एक सोची-समझी रणनीति थी. उसने मीडिया के कारोबार में पैर जमाए, विभिन्न पार्टियों के नेताओं के साथ करीबी संबंध स्थापित किए, खास तौर से तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के साथ. इन नेताओं में कुणाल घोष, सृंजय बोस और मदन मित्रा जैसे नाम शामिल हैं.
सेन ने जो खुलासे किए हैं उनसे पता चलता है कि उसके तार और भी लोगों से जुड़े हुए थे, जिनमें कांग्रेसी सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री ए.एच. खान चौधरी, केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की पत्नी और पेशे से वकील नलिनी चिदंबरम शामिल हैं. सेन के बारे में बताया जाता है कि 1990 में मानव तस्करी में शामिल होने के बाद उसने अपनी पहचान बदलने के लिए प्लास्टिक सर्जरी करवा ली थी. पूर्वी भारत में अपना कारोबार फैलाने के लिए उसने राजनीति का इस्तेमाल किया था.
हाल के चिट फंड घोटाले के मद्देनजर ऐसी फर्जी वित्तीय संस्थाओं से जमाकर्ताओं को बचाने के लिए पश्चिम बंगाल विधानसभा ने पिछली 30 अप्रैल को एक नया बिल पास किया है. उसी दिन विपक्ष के नेता माकपा के सूर्यकांत मिश्र ने इंडिया टुडे से कहा, ''राज्य में तृणमूल के बढऩे के साथ-साथ फर्जी वित्तीय संस्थान भी तेजी से बढ़े हैं. '' मिश्र ने आगे जोड़ा, ''शारदा समूह ने 10 से ज्यादा टीवी चैनलों की शुरुआत की और इन चैनलों के प्रमुख तृणमूल के नेता हैं, इससे आखिर और क्या पता चलता है? '' लेकिन तृणमूल ने पलटवार करते हुए इसका सारा दोष सीपीएम पर ही मढ़ दिया है. उसका कहना है कि ये चिटफंड कंपनियां सीपीएम के कार्यकाल के दौरान ही पनपी हैं.1980 के दशक की शुरुआत में हुए संचयिता चिट फंड घोटाले का हवाला देते हुए राज्य के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी ने 24 अप्रैल को एक टीवी चैनल से कहा, ''शारदा ने 2006 में शुरुआत की थी. वाम दलों के शासन में चिट फंड कंपनियां कुकुरमुत्तों की तरह उगी हैं. ''
सेन के संपर्क पश्चिम बंगाल के साथ-साथ असम और दिल्ली तक थे. खान चौधरी ने सितंबर, 2011 को प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी एक चिट्ठी में सेन की बाकायदा सिफारिश की थी. इससे साफ तौर पर पता चलता है कि सेन ने किस तरह सभी पार्टियों में अपनी पहुंच बना ली थी. अब सेन ने इस मामले में नलिनी चिदंबरम को भी यह कहते हुए घसीट लिया है कि उसने नलिनी को एक करोड़ रु. दिए थे.
सेन का कहना था कि उसने यह रकम अपने और पत्रकार से मीडिया कारोबारी बने मनोरंजना सिंह के बीच असम में एक समाचार चैनल शुरू करने के लिए समझौते का मसौदा तैयार करने के लिए दी थी. हालांकि कांग्रेस ने नलिनी पर लगे आरोपों को बेबुनियाद बताया है. सीबीआइ को भेजी सेन की एक चिट्ठी में असम के भी नेताओं के साथ उसके संपर्कों का खुलासा हुआ है. इसमें सेन ने दावा किया है कि उसने असम के शिक्षा और स्वास्थ्य मंत्री हेमंत बिस्व सरमा को लगभग ढाई साल के भीतर 3 करोड़ रु. दिए हैं. अपने पर लगे गंभीर आरोपों से सरमा तिलमिला गए हैं और फिलहाल हिरासत में मौजूद सेन को कानूनी नोटिस भेजकर उनसे माफी मांगने को कहा है.
सुदीप्त सेन हमेशा से यही चाहता था कि उसके अखबारों के पहले पन्ने पर सिर्फ और सिर्फ उसका समूह ही छाया रहे. घोटाला सामने आने के बाद से तो शारदा समूह अब हर अखबार में मुफ्त में ही छाया हुआ है.
—साथ में मालिनी बनर्जी