तकदीर का भी निराला खेल होता है. जयपुर का एक नौ वर्षीय राजकुमार दक्षिणी हिमाचल प्रदेश की पहाडिय़ों में स्थित एक पूर्व रियासत सिरमौर के 'महाराजा' का पद संभालने की तैयारी कर रहा है. 13 अप्रैल को नन्हें लक्ष्य राज का गोत्र मानव से बदलकर अत्रि कर दिया गया. सिरमौर के राजपरिवार का गोत्र अत्रि ही है.
सिरमौर के नए 'राजा' के रूप में अपनी भावी भूमिका से बेपरवाह लक्ष्य जयपुर के सिटी पैलेस में घंटेभर से चल रहे मंत्रोच्चार और धूप-दीप की सुहानी खुशबू के बीच बेसब्री से अनुष्ठान के पूरे होने का इंतजार कर रहा था. यह सब सिरमौर के शाही प्रतिनिधियों अरक सिंह, अजय बहादुर सिंह और अभय बहादुर सिंह की खास देखरेख में हो रहा था. लक्ष्य की मां 43 वर्षीया दीया कुमारी और दादी 75 वर्षीया पद्मिनी देवी की स्नेहिल निगाहों से आशीर्वाद बरस रहा था.
नाहन के शाही महल में 15 मई को एक औपचारिक ताजपोशी होनी है, जिसमें पूर्व रियासती घरानों के दर्जनों लोगों के शामिल होने की उम्मीद है. लेकिन सिरमौर के बाहर ब्याही बेटियों के बच्चों में से वारिस का चुनाव शाही महल की शांत दिख रही फिजाओं में खलबली जरूर पैदा करेगा.
लक्ष्य राज जयपुर के अंतिम महाराजा मरहूम ब्रिगेडियर भवानी सिंह और पद्मिनी देवी की इकलौती औलाद दीया कुमारी के छोटे बेटे हैं. 1997 में दीया ने जब अपने पिता के गोत्र के एक आम आदमी नरेंद्र सिंह से शादी कर ली तो राजपूत समुदाय के लिए उसे पचाना आसान न था. भवानी सिंह ने उन्हें अपनी जिंदगी से बाहर करने की बजाए अपने पितृसत्तात्मक अहं को परे धकेल दीया के बड़े बेटे 14 वर्षीय पद्मनाभ को 2002 में कानूनन अपना वारिस घोषित कर दिया था क्योंकि उनकी रगों में जयपुर शाही घराने के गोत्र का खून था, जो उसे अपने पिता से विरासत में मिला था. 2011 में अपने दादा के निधन पर इस किशोर ने जयपुर के महाराजा का ताज पहना.
लक्ष्य राज का सिरमौर के सिंहासन तक का सफर भी उसी तरह जटिलताओं से भरा है. ताज तक वे असल में अपनी नानी पद्मिनी देवी के जरिए पहुंच रहे हैं. पद्मिनी सिरमौर के शासन करने वाले अंतिम महाराजा राजेंद्र प्रकाश की बेटी हैं. महाराजा की 1964 में मौत हो गई और कोई पात्र उत्तराधिकारी भी तैयार न हो सका.
ऐसे में लक्ष्य की ताजपोशी को लेकर सवाल खड़े होने लगे हैं. पद्मिनी के 58 वर्षीय सौतेले भतीजे उदय प्रकाश ने दावा किया है कि 'गद्दी पर पहला अधिकार मेरा है. ' उनकी दलील है कि उनकी दादी दुर्गा देवी और मरहूम महाराजा की दो पत्नियों में से पहली पत्नी ने कानूनी रूप से 1965 में उन्हें गोद ले लिया था. भारत सरकार ने भी इसे मान्यता दे दी थी लेकिन यह वारिस प्रिवी पर्स पर कोई दावा नहीं कर सकता था.
सिरमौर के शाही परिवार में अहम दर्जा रखने वाले अरक, अजय बहादुर और अभय बहादुर ताज के लिए उदय प्रकाश के दावे का जोरदार विरोध करते हैं. पूर्व विधायक अजय बहादुर सिंह कहते हैं, ''उन्हें शाही प्रतिनिधियों में कोई स्वीकार नहीं कर सकता और वे शायद ही कभी नाहन आते हैं. ''
यह सुदूर अतीत की परंपरा से चले आ रहे खिताब पर छेड़ा गया एक बेमानी झगड़ा है. लक्ष्य राज को मिल रही 'गद्दी' से उन्हें सिरमौर की मुख्य शाही संपत्ति पर कोई खास कानूनी अधिकार नहीं मिलने वाला, सिवा उनकी दादी से मिलने वाली विरासत के. सिरमौर राजपरिवार की संपत्ति में शाही महल और नाहन में एक विशाल विला, कई एकड़ कृषि भूमि और देहरादून में एक चाय बागान शामिल है. इसके बंटवारे के संबंध में पद्मिनी देवी और उदय प्रकाश ने 2011 में एक कानूनी समझौते पर दस्तखत किए थे.
हालांकि, यह खिताब पूरी तरह से प्रतीक मात्र है, फिर भी भारत के पूर्व राजपरिवारों के बीच इसकी अहमियत साफ झलकती है क्योंकि इससे समाज में उनकी शख्सियत को एक ऊंचा मुकाम हासिल होता है और पारंपरिक अवसरों और उत्सवों में उन्हें नेतृत्व का हक मिलता है. दीया कुमारी की आवाज में भवानी सिंह के लिए थोड़ी शिकायत झलकती है क्योंकि उन्होंने उन्हें रानी की पदवी नहीं दी थी. वे कहती हैं, ''मेरे पिता मुझे बहुत प्यार करते थे लेकिन परंपरा का पालन करने के लिए उन्होंने पुरुष वारिस चुना. '' वैसे वे खुश हैं कि उनके दोनों बेटों पद्मनाभ और लक्ष्य राज को 'महाराजा' बनाया गया है और इस तरह उन्हें भी 'रानीमां' या 'राजमाता' का दर्जा हासिल हो चुका है.