उत्तर प्रदेश में चित्रकूट के जिला मुख्यालय कर्वी से 30 किमी दक्षिण विंध्य की पहाडिय़ों में स्थित एक गांव लखनपुर में रहने वाली 25 वर्षीय रजुआ देवी बेसुध हैं. बीते 31 मार्च की सुबह रजुआ के पति 30 वर्षीय वृंदावन उर्फ खूंटी का शव गांव से तीन किमी दूर जंगल में पड़ा मिला. मुखबिरी के शक में डाकू सुदेश पटेल उर्फ बलखडिय़ा के गिरोह ने उसे मौत के घाट उतार दिया. अब अपनी और तीन छोटे बच्चों की चिंता में रजुआ देवी के होंठ सिले हुए हैं. उन्हें पता है कि मुंह खोलने की सजा मौत है. इसलिए उन्होंने अज्ञात लोगों पर अपने पति की हत्या करने का मुकदमा दर्ज कराया है.
रजुआ देवी के घर से महज 100 मीटर की दूरी पर 40 वर्षीय मनभावन उर्फ सुल्ताना के घर के लोग गमजदा से ज्यादा खौफजदा हैं. पुलिस से संपर्क रखने के शक में डकैतों ने सुल्ताना की भी हत्या कर दी. उसके बड़े भाई 50 वर्षीय शिवकुमार कुछ बोलने को तैयार नहीं. डकैतों के बढ़ते आतंक के डर से लखनपुर गांव के चार दर्जन परिवारों में से आधे से ज्यादा एक हफ्ते के भीतर दूसरी जगह पलायन कर गए हैं. घरों में ताले लटके हैं और पूरे गांव में आतंक का साम्राज्य है.
बुंदेलखंड में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर डकैत फिर सिर उठाने लगे हैं. पठारनुमा इन पहाडिय़ों का स्थानीय नाम पाठा है. चित्रकूट जिले के मानिकपुर, बाहिलपुर और मारकुंडी थाना क्षेत्र और बांदा जिले का भरतकूप थाना क्षेत्र दस्यु प्रभावित इलाकों में सबसे संवेदनशील है. पिछले 10 महीने के भीतर इन इलाकों के 17 लोग डकैतों की गोलियों का निशाना बन चुके हैं.
पाठा के इन बीहड़ों में डकैती का इतिहास तीन दशक पुराना है, जब यहां डकैत शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ आतंक का पर्याय बनकर सामने आया था. इसके बाद अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया उर्फ डॉक्टर ने भी यहां डकैती की कई वारदातों को अंजाम दिया.
22 जुलाई, 2007 को स्पेशल टास्क फोर्स ने ददुआ को मार गिराया था और इसके साल भर बाद 4 अगस्त, 2008 को ठोकिया को भी मौत के घाट उतार दिया गया. ठोकिया के बाद इस गैंग की कमान सुंदर पटेल उर्फ रागिया ने संभाली. इस गैंग के दो मुख्य सदस्य बलखडिय़ा और राम सिंह गौड़ थे. 25 दिसंबर, 2011 को मध्य प्रदेश पुलिस ने मारकुंडी में रागिया को भी मार गिराया.
डकैती और राजनीति में यहां गहरा संबंध है. चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक वीर सिंह ददुआ का ही बेटा है. ददुआ का भाई बाल कुमार पटेल मिर्जापुर से सपा सांसद और बाल कुमार का बेटा राम सिंह प्रतापगढ़ जिले के पट्टी विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं. ददुआ के चाचा शिव संपत चित्रकूट के मऊ थाना क्षेत्र के तहत आने वाले एक गांव में 1990 से 2000 तक लगातार प्रधान रहे. सपा ही नहीं, बीएसपी में भी ददुआ के संपर्क रहे. मायावती की सरकार में ग्राम्य विकास मंत्री रहे मऊ-मानिकपुर विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक दद्दू प्रसाद और चित्रकूट-बांदा लोकसभा क्षेत्र से सपा सांसद आर. के. पटेल पर मानिकपुर थाने में ददुआ से संपर्क रखने का मुकदमा दर्ज है. ददुआ के नक्शेकदम पर ठोकिया ने भी अपने परिजनों को राजनीति में उतारा. 2005 में ठोकिया ने चाची सरिता पटेल को कर्वी ब्लॉक प्रमुख के पद पर निर्विरोध निर्वाचित कराया.
रागिया की मौत के बाद सुदेश पटेल उर्फ बलखडिय़ा और राम सिंह गौड़ डाकुओं के मुख्य सरगना रहे, लेकिन एक आपसी गैंगवार में राम सिंह की मौत के बाद बलखडिय़ा का पूरे इलाके पर कब्जा हो गया है.
ददुआ से लेकर बलखडिय़ा और अब राजू गोंड जैसे डकैतों के पनपने को लेकर बुंदेलखंड खासकर चित्रकूट और बांदा से लगे बीहड़ इलाकों की उपेक्षा जिम्मेदार है. चित्रकूट इलाका प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है. इसी की बानगी दस्यु प्रभावित क्षेत्रों में सबसे संवेदनशील मारकुंडी में देखने को मिलती है. यहां के तीन दर्जन गांवों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा. मानिकपुर ब्लॉक से पाटिन गांव तक 40 किमी की दूरी पर एक भी सरकारी इंटर कॉलेज नहीं है. यहां के मेहुनिया गांव में तीन साल पहले प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनना शुरू हुआ था, लेकिन गत डेढ़ वर्षों से इसका काम रुका पड़ा है.
20 साल से दस्यु प्रभावित क्षेत्रों का अध्ययन कर रहे चित्रकूट के स्थानीय पत्रकार सुधीर अग्रवाल कहते हैं, ''पिछड़ेपन की वजह से यहां के लोग डकैतों के संपर्क में आते हैं. डकैत इनसे भोजन लेते हैं और बदले में आर्थिक मदद देते हैं. '' पाठा के बीहड़ों में बसे गांवों में 60 फीसदी से ज्यादा कुर्मी बिरादरी के लोग हैं. इसके अलावा यहां कोल आदिवासियों की भी खासी तादाद है.
बलखडिय़ा गैंग में 25 वर्षीय बबली कोल और 26 वर्षीय जुग्गी पटेल का नाम सामने आया है. ये दोनों शार्प शूटर हैं और इन पर सरकार ने दो-दो लाख का इनाम घोषित किया है. चित्रकूट के पूर्व पुलिस उपाधीक्षक ओ.पी. राय कहते हैं, ''बुंदेलखंड में पटेल (कुर्मी) समुदाय डकैत ददुआ को अपना हीरो मानता है. बीहड़ में दो दर्जन से ज्यादा छोटे-छोटे गैंग हैं, जिनकी कमान युवा डकैतों के हाथ में है. इनकी मुख्य गतिविधि अपहरण और सरकारी योजनाओं में लगे ठेकेदारों से पैसा वसूलना है. ''
लेकिन लखनपुर गांव में रहने वाले शिवमोहन कहते हैं, ''विंध्य के आसपास बसे कुर्मीबहुल इलाकों में लोगों को डाकुओं का उतना खौफ नहीं, जितना कि पुलिस का है. पुलिस पटेल समुदाय के हर व्यक्ति को डकैतों का मददगार समझती है और प्रताडि़त करती है. '' पिछले दस साल में पुलिस इन इलाकों में 50 से ज्यादा युवाओं को भारतीय दंड संहिता की धारा 216 के तहत अपराधियों की मदद और संरक्षण देने के नाम पर जेल भेज चुकी है. लिहाजा मानिकपुर, मारकुंडी, बाहिलपुर, भरतकूप, फतेहगंज जैसे इलाकों में आधे से ज्यादा युवा पलायन कर चुके हैं.
बहरहाल खनिज संपदा से भरपूर बुंदेलखंड को पिछड़ेपन के दंश से उबारने के लिए राजनैतिक स्वार्थों से ऊपर उठकर प्रयास करना होगा. हर हाथ को रोजगार देकर इन्हें बंदूक थामने से रोका जा सकता है, ताकि लोग अमन-चैन से जी सकें.