बगैर शिक्षक के क्या कंप्यूटर की पढ़ाई हो सकती है. शायद नहीं. लेकिन लखनऊ में विधान भवन से डेढ़ किमी दूर हजरतगंज में मौजूद लड़कियों के सबसे बड़े सरकारी इंटर कॉलेज में से एक भारतीय बालिका विद्यालय में तो ऐसी ही व्यवस्था है. वर्ष 2002 में एक सरकारी योजना के तहत 10 कंप्यूटर लगाए गए थे. उसके बाद से आज तक इस कॉलेज की 1,200 छात्राओं को कंप्यूटर पढ़ाने के लिए एक भी शिक्षक का इंतजाम नहीं हो पाया है. छात्राओं ने चंदा जमाकर किसी तरह दो शिक्षकों का जुगाड़ तो किया लेकिन 10 वर्ष पुराने इन कंप्यूटरों में लोड सॉफ्टवेयर और प्रोग्राम अब किसी काम के नहीं हैं. 2009 में इस कॉलेज को नए कंप्यूटर मिलने थे, जो नहीं मिले हैं.
अब थोड़ा दूरदराज के इलाके में चलते हैं. बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के तालबेहट ब्लॉक के कडेसराकलां पूर्व माध्यमिक विद्यालय में 2009 में 10 कंप्यूटर लगने थे लेकिन आए केवल चार. कंप्यूटर पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं मिला तो धूल खा रहे दो कंप्यूटरों को ‘ब्लॉक रिसोर्स सेंटर’ (बीआरसी) में लगवा दिया गया. बाकी दो विद्यालय के गोदाम में रखे हुए हैं. इसी जिले के बनगवांकला पूर्व माध्यमिक विद्यालय को तो केवल तीन कंप्यूटर मिले थे. इनमें से एक पर चोरों ने हाथ साफ कर दिया, एक विद्यालय प्रशासन ने बीआरसी में भिजवा दिया और एक को बांधकर अलमारी के ऊपर रख दिया गया है.
यह स्थिति दर्शाती है कि यूपी में कंप्यूटर शिक्षा किस कदर बदहाल है. प्रदेश के 5,600 राजकीय और सहायताप्राप्त माध्यमिक कॉलेजों में से केवल 4,000 ही ऐसे हैं, जिनमें सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक एक कंप्यूटर लैब है. हालांकि हकीकत में किसी भी कॉलेज की लैब दुरुस्त नहीं है. यूपी के सरकारी कॉलेजों के विद्यार्थियों के लिए कंप्यूटर शिक्षा की शुरुआत 2002 में विद्या वाहिनी योजना के साथ हुई, जब जिले के दो बड़े सरकारी इंटर कॉलेजों में 10 से 25 कंप्यूटर लगाए गए. 2004 में यह योजना बंद हो गई और 2009 में केंद्र और प्रदेश सरकार की मिली-जुली सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आइसीटी) योजना के तहत यूपी के 5,600 सरकारी और सहायताप्राप्त कॉलेजों में कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों को मुफ्त कंप्यूटर शिक्षा देने के लिए कंप्यूटर सेंटर खोलने की योजना बनी.
800 करोड़ रु. की इस योजना को पहले चरण में 2009 में राज्य के 2,500 कॉलेजों में शुरू करने का निर्णय लिया गया. हर कॉलेज में 10-10 कंप्यूटर लगाने, जनरेटर, फर्नीचर और स्टेशनरी के साथ कंप्यूटर शिक्षक और अन्य संसाधन जुटाने के लिए राज्य शिक्षा विभाग ने बाकायदा टेंडर जारी किया. यहीं से यह योजना मनमानी ठेकेदारी प्रथा की भेंट चढ़ गई. अधिकारियों ने मनमाने ढंग से अपनी चहेती कंपनियों को कंप्यूटर लैब बनाने का ठेका दिया.
कंपनियों को 8,36,000 रु. प्रति कॉलेज के हिसाब से भुगतान हुआ. कंप्यूटर लगाने के बाद इनकी देखरेख की कोई व्यवस्था न होने के कारण आज ज्यादातर कॉलेजों में कंप्यूटर खराब पड़े हैं. लैब की हालत का अंदाजा बाराबंकी के राजकीय इंटर कॉलेज से लगाया जा सकता है, यहां एकदम बंद घुटन वाले कमरों में कंप्यूटर लैब स्थापित हैं. यहां सबसे ज्यादा ध्यान इसी बात पर है कि कंप्यूटर गायब न होने पाए.
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश मंत्री डॉ. आर.पी. मिश्र, जो लखनऊ के क्वींस कॉलेज के प्रधानाचार्य भी हैं, कहते हैं, ‘‘कंप्यूटर लगाने के बाद कंपनी का एक भी कर्मचारी इन्हें देखने नहीं आया है. पिछले तीन साल में एक बार जो कंप्यूटर खराब हुआ तो वह ठीक नहीं हुआ.’’ हालांकि डॉ. मिश्र ने अपने खर्च पर हाल में कुछ कंप्यूटर ठीक करवाए, जिनसे कुछ दिन पढ़ाई हुई, लेकिन अब यूपीएस खराब हो गया है.
आगरा के हुब्बालाल इंटर कॉलेज में डेढ़ साल से कंप्यूटर की क्लास नहीं लगी है. अगस्त, 2011 में चोर यहां के कंप्यूटर लैब में लगे सभी 10 कंप्यूटर उठा ले गए थे. कानपुर के एक कॉलेज के कंप्यूटर शिक्षक पीयूष त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘कंप्यूटर चलाने के लिए सभी कॉलेजों में जनरेटर तो दे दिए गए लेकिन ईंधन की व्यवस्था न होने से ये महज शोपीस बने हुए हैं.’’
पहले चरण में ही दम तोड़ चुकी योजना का दूसरा चरण भी 2010 में शुरू हो गया है. इसके लिए 1,500 कॉलेजों का चयन किया गया है. इस बार कंप्यूटर शिक्षा के आधारभूत ढांचे के विकास के लिए प्रति कॉलेज 19,40,000 रु. का प्रावधान किया गया है. डॉ. मिश्र कहते हैं, ‘‘दूसरे चरण में कंप्यूटर लैब की स्थापना के लिए सरकार ने अधिक पैसों का इंतजाम किया. इसके बावजूद गुणवत्ता सुधरने की बजाए और बदतर हो गई है. अगर जांच करा ली जाए तो कंप्यूटर लैब के निर्माण में बड़ा घोटाला सामने आ सकता है.’’
समस्या कंप्यूटर शिक्षकों को लेकर भी है. मोहनलालगंज के काशीश्वर इंटर कॉलेज में कक्षा 6 से 12 तक के 680 छात्रों को पढ़ाने के लिए केवल एक शिक्षक है. यही स्थिति हर कॉलेज की है, जहां कंप्यूटर शिक्षा दी जा रही है. सरकारी मानकों के अनुसार शिक्षक-छात्र अनुपात 1:98 से अधिक नहीं होना चाहिए.
कंप्यूटर शिक्षकों को ‘मास्टर ऑफ कंप्यूटर ऐप्लीकेशन’ (एमसीए) या फिर श्पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन कंप्यूटर एजुकेशन्य (पीजीडीसीए) डिग्रीधारी होना चाहिए. संविदा पर तैनात होने वाले इन शिक्षकों को 10,000 रु. प्रति माह वेतन का प्रावधान है, लेकिन किसी भी शिक्षक को पूरा वेतन नहीं मिल रहा है. शिक्षक नेता जगदीश पांडेय ठकुराई कहते हैं, ‘‘सरकार ने कंप्यूटर शिक्षक तैनात करने का जिम्मा भी निजी कंपनियों को सौंप दिया है. वे 4,000 रु. से ज्यादा वेतन नहीं देतीं.’’
हालांकि इन गड़बडिय़ों को दूर करने के वादे भी कम नहीं हैं. माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक वासुदेव यादव कहते हैं, ‘‘सरकारी कॉलेजों में कंप्यूटर लैब में गड़बडिय़ां सामने आई हैं. प्रधानाचार्य और सर्विस प्रोवाइडर कंपनी इसके लिए जिम्मेदार हैं. सभी कंप्यूटर लैब का ‘‘थर्ड पार्टी इवैल्यूएशन’’ कराया जा रहा है.’’ लिहाजा, कंप्यूटर शिक्षा में लगे वायरस को साफ करने में अभी वक्त लगेगा.
-साथ में संतोष पाठक, हरिशंकर शाही और सिराज कुरैशी