भारतीय रेल में चलने वाला एक यात्री रोजाना औसतन 64 ग्राम कचरा बनाता है. भारतीय रेल रोज 14 लाख यात्रियों को ढोती है, जाहिर है, कचरे का आंकड़ा भयावह होगाः रोजाना 3,980 मीट्रिक टन मानव निर्मित कचरा. एम्सटर्डम के रहने वाले 37 वर्षीय शम्मी जैकब और 33 वर्षीय दिनेश शौनक ने कचरे के इस पहाड़ से लडऩे के लिए साफ इंडिया प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. इस अभियान को रेलगाडिय़ों में कम, लोगों के दिमाग में ज्यादा चलाया जाएगा. इसके लिए यात्रियों और रेल कर्मचारियों के साथ जुड़कर उनकी मानसिकता बदलने की दिशा में काम किया जाएगा और कचरे के निबटारे के लिए सही तरीका तलाशा जाएगा.
फिलहाल यह प्रोजेक्ट शुरुआती दौर में है. जैकब और शौनक ने लगभग 16,000 किलोमीटर लंबे रेल मार्ग को कवर करके यह जानने की कोशिश की है कि भारत में लोगों की कचरा फैलाने की आदतें किस तरह की हैं.
व्यवहार से जुड़ी रेलवे की यह दूसरी साझेदारी होगी. इससे पहले भारतीय रेलवे ने मुंबई स्थित फाइनलमाइल के साथ मिलकर रेलवे पटरी पार करने के दौरान होने वाली मौतों को रोकने के लिए कामयाब कोशिश की थी जिससे ऐसी मौतों में 70 फीसदी की कमी आई है. फाइनलमाइल भी साफ इंडिया प्रोजेक्ट के साथ जुड़ा है, जिसके अन्य सहयोगियों में टीएचएनके, द एम्सटर्डम स्कूल ऑफ क्रिएटिव लीडरशिप, इंडिया डिजाइन फोरम, वॉशिंगटन स्थित टिकाऊ परिवहन समाधान केंद्र एम्बार्क, दिल्ली स्थित टेरी और हैदराबाद का इंडियन बिजनेस स्कूल शामिल हैं. अन्य साझीदारों में पेप्सीको, इनफोसिस, हिंदुस्तान यूनीलीवर, बिल ऐंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, गोदरेज, येस बैंक और वल्र्ड बैंक हैं.
फिलहाल आदत को लेकर यह रुझान सामने आया है कि भारत के लोग साफ-सुथरे माहौल में सफाई के नियमों का पालन तो करते हैं लेकिन गंदगी भरा माहौल उन्हें और कचरा फैलाने को उकसाता है. यहां कचरे के निबटारे का काम भी दूसरे की जिम्मेदारी समझी जाती है. इस तरह के नतीजे रेलवे को बेहतर डिजाइन वाले स्टेशनों और बोगियों के निर्माण की दिशा में सोचने को मजबूर कर सकते हैं.
टीएचएनके के भारत में प्रतिनिधि शौनक ने देशभर में रेल से यात्राएं की हैं. जैकब भारत में पैदा हुए थे. लेकिन 1992 में देश छोड़कर चले गए. वे टीएचएनके के पूर्व छात्र रह चुके हैं. दोनों की योजना रेलवे के सफाई कर्मचारियों को जागरूक करने की है. शौनक और जैकब याद करते हुए बताते हैं कि एक हॉल्ट पर उन्होंने एक सफाई टीम को ट्रेन को बाहर से साफ करते हुए देखा तो काम खत्म होने पर पूछा कि वे दूसरी तरफ साफ क्यों नहीं कर रहे? जवाब आया—क्योंकि दूसरी ओर प्लेटफॉर्म नहीं है!
आखिर लोगों को उनका फैलाया कचरा साफ करने के लिए क्या चीज प्रेरित करती है? साफ इंडिया के दोनों प्रणेता कहते हैं, जुड़ाव. उनकी योजना है कि एक बार मौजूदा रेलवे सफाई स्टाफ और सवारियों के साथ बातचीत करके और वर्कशॉप्स के माध्यम से आंकड़े जुटाने के बाद वे सभी पक्षों को इस काम में जोड़ेंगे ताकि आने वाले दिनों में भारत की रेल पटरियां भी साफ-सुथरी नजर आ सकें.

