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मध्य प्रदेश: तीखी मिर्च से जिंदगी चोखी

मध्य प्रदेश के निमाड़ में उगने वाली तीखी मिर्च ने किसानों, व्यवसायियों और श्रमिकों के जीवन में भरा गहरा रंग.

तीखी मिर्च
तीखी मिर्च
अपडेटेड 26 मार्च , 2013

आज से कुछ समय पहले खंडवा से 50 किमी दूर इंदौर के रास्ते पर जब मटमैले रंग की छतों वाले मकान दिखने लगते थे तो लोग समझ जाते थे कि धनगांव आ गया है. लेकिन अब यहां ऐसा नजारा नहीं दिखता. वजह, टीन की छतों वाले मकान और झोंपड़ों की जगह आलीशान मकानों ने ले ली है. यहां के खेतों में खड़ी लाल मिर्च किसानों को इतना फायदा पहुंचा रही है कि उनके बंगलों के बाहर एक-से-एक गाडियां दिखने लगी हैं.

धनगांव के किसान दशरथ काशीराम गुर्जर को मिर्च की अहमियत उस वक्त पता चली जब 15 रु. प्रति किलो बिकने वाली मिर्च 1997-98 में 30 रु. किलो हो गई. 2004-05 में भाव 45 रु. प्रति किलो तक पहुंच गया. लेकिन दशरथ की तकदीर 2008-09 में खुली, जब मिर्च 70 रु. प्रति किलो हो गई और वे कच्चे मकान से तीन मंजिला पक्के मकान में आ गए. घर की छत पर सूख रहीं सुर्ख लाल मिर्चें दिखाते हुए वे कहते हैं, ''मिर्च ने यहां के झोंपड़ों को हवेलियों में बदल दिया है. ''

पूर्वी और पश्चिमी निमाड़ में नर्मदा किनारे की उर्वर भूमि ने मिर्च में ऐसा सुर्ख रंग और तीखा स्वाद भरा है कि यहां की मिर्च की मांग देश ही नहीं, विदेशों में भी बढ़ी है. पहले यहां के किसान कपास, गेहूं और सोयाबीन ही उगाते थे लेकिन अब ज्यादातर लाल मिर्च की फसल लेते हैं. उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक वकील सिंह गुर्जर बताते हैं, ''पहले सात हजार हेक्टेयर में मिर्च होती थी. अब रकबा चार गुना ज्यादा हो गया है. '' क्षेत्र के एक बड़े मिर्च व्यवसायी दिलीप पहाडिय़ा दावा करते हैं कि खरगोन जिले की बेडिय़ां मंडी देश की दूसरी सबसे बड़ी मिर्च मंडी है. वे कहते हैं, ''पहले नंबर पर आंध्र प्रदेश की गुंटूर मंडी है, जहां डेढ़ करोड़ बोरी मिर्च आती है, तो मध्य प्रदेश में यह 80 लाख बोरी है. इसमें से भी ज्यादातर माल बेडिय़ां मंडी में आता है. '' वैसे खरगोन के कलेक्टर डॉ. नवनीतमोहन कोठारी के शब्दों में, ''कहा तो यही जाता है कि बेडिय़ां देश की दूसरी सबसे बड़ी मिर्च मंडी है लेकिन इसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है. ''

बेडियां मंडी के सचिव के.सी.पाराशर के मुताबिक इस मंडी में मिर्च की आवक हर साल बढ़ रही है. वे कहते हैं, ''2009-10 में मिर्च की आवक 2.75 लाख क्विंटल और कारोबार 1.09 करोड़ रु. था. तो 2011-12 में आवक 4.11 लाख क्विंटल और कारोबार 2.86 करोड़ रु. हो गया. इस साल इसके और बढऩे की संभावना है. ''

बेडिय़ां में रहने वाले केशवजी बिरला की संपन्नता पूरे गांव की कहानी कहती है. वे 57 एकड़ रकबे में से 25 एकड़ से ज्यादा में मिर्च लगाते हैं. इससे प्रति एकड़ 30 क्विंटल मिर्च निकलती है, जिसका बाजार भाव करीब 5,000 रु. प्रति क्विंटल है. केशवजी को हर साल 35 लाख रु. की आमदनी तो मिर्च से ही हो जाती है.

वे बताते हैं, ''पिछले दस साल में मिर्च ने बहुत लाभ दिया है. इसी आमदनी के सहारे मैं हीरो-होंडा का शोरूम, दो शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और कपड़े के शोरूम खड़े कर पाया. '' आज उनके पास बंगला, गाड़ी सहित सारे ठाट-बाट हैं. उनके 30 वर्षीय पुत्र महावीर बिरला कहते हैं, ''यह मिर्च का ही कमाल है कि बारह हजार की आबादी वाले बेडिय़ां में  सालभर में बारह सौ से ज्यादा मोटरसाइकिलें बिकती हैं, उनमें भी ज्यादातर नकद. ''

केशवजी की तरह ही जयराम नत्थूजी गुर्जर की किस्मत भी मिर्च की खेती ने ही बदली है. वे 38 एकड़ रकबे में से 12 एकड़ में मिर्च लगाते हैं. इससे उन्हें 15 लाख रु. से ज्यादा का लाभ मिल जाता है, दूसरी फसल से होने वाली बचत अलग. इसी के बल पर वे शानदार बंगले और गाड़ी के मालिक बने हैं.

लाल मिर्च ने किसानों के साथ-साथ मिर्च व्यापारियों का भी जीवन बदल दिया है. बेडिय़ां के व्यापारी अकलीम पठान कहते हैं, ''पंद्रह से बीस साल पहले मैं इसी मंडी में सिर्फ दस-बारह क्विंटल मिर्च खरीदकर बेचता था. इससे हफ्ते में बमुश्किल  डेढ़ हजार रु. की कमाई होती थी. अब मैं हर हफ्ते पांच ट्रक (करीब 800 क्विंटल) माल बेच लेता हूं. '' पठान जिनके लिए कभी मोटरसाइकिल भी सपना थी, आज नई बोलेरो गाड़ी में चलते हैं.

मिर्च कारोबार से जुड़े हर तबके को इसका लाभ पहुंच रहा है. इससे श्रमिक वर्ग भी अछूता नहीं है. सताजन गांव में मिर्च की तुड़ाई में लगी कुसुमबाई को एक किलो मिर्च तोडऩे के लिए तीन रु. मिलते हैं. वे दिन भर में साठ किलो से ज्यादा मिर्च तोड़ लेती हैं. उनका पूरा परिवार यही काम करता है, जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है. वे कहती हैं, ''सीजन में अच्छा काम मिल जाए तो घर के दरवाजे पर नई मोटरसाइकिल खड़ी हो जाए, इतना तो कमा ही लेते हैं. ''

मगर मिर्च के व्यापार से समृद्ध इलाके के लोग अनजाने ही इसकी बड़ी कीमत भी चुका रहे हैं. बेडिय़ां की पूरी आबोहवा में मिर्च घुल चुकी है, जिसकी वजह से लोगों को अस्थमा, एलर्जी के साथ ही सांस संबंधी तकलीफ भी हो रही है. डॉ. सुरेंद्र कुमार धनोते कहते हैं, ''दूसरों की क्या बात कहूं, मिर्च के कारण तो मैं खुद मरीज बन गया हूं. '' फिलहाल तो इलाके के लोगों को तीखी मिर्च का स्वाद खूब भा रहा है.

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