तापमान 30 डिग्री है और ऊपर से चिलचिलाती धूप पड़ रही है. मगर इस सबसे बेपरवाह वे अपनी धुन में बढ़ती ही जा रही हैं. सफारी सूट पहने और काली रस्सी पकड़े 20 लोग उन्हें चारों ओर से घेरे हए हैं. टी-शर्ट और वाइएसआर कांग्रेस के नीले, हरे और सफेद रंगों की टोपियां पहने सैकड़ों दूसरे लोग भी इस घेरे के आस-पास मौजूद हैं. दोपहर का सूरज सिर पर है लेकिन वह भी आंध्र प्रदेश के नलगोंडा के धूल भरे रास्ते पर तेजी से बढ़ते उनके कदमों को रोक नहीं पा रहा है.
सड़क किनारे इंतजार कर रही छह महिलाएं नमस्ते कहकर उनका अभिवादन करती हैं. उनमें से एक मन्नाम्मा शिकायत करती हैं, ''यहां खेती और पीने के लिए पानी नहीं है. हमें बैंक से लोन भी नहीं मिल रहा.” आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाइ.एस. राजशेखर रेड्डी की पुत्री शर्मिला रेड्डी उनकी शिकायत सुनती हैं और जेल में बंद अपने भाई वाइ.एस. जगनमोहन रेड्डी के लिए बड़े ही मीठे शब्दों में कहती हैं, ''थोड़ा इंतजार करिए. जगन को एक बार मुख्यमंत्री बनने दें, वे आपकी सारी दिक्कतें हल करेंगे.” शर्मिला मन्नाम्मा से गले मिलती हैं और बाकी लोगों के हाथ छूती हैं. मन्नाम्मा धीरे-धीरे आंखों से ओझल होते जुलूस को देखकर बुदबुदाती हैं, ''चलो, मैडम ने कुछ उम्मीद तो बंधाई.” मन्नाम्मा से पूछा जाता है कि यह मैडम कौन हैं, तो वे जवाब में कहती हैं, ''वाइएसआर की बिटिया शर्मिला.”
अपने भाई से साल भर छोटी 39 वर्षीया शर्मिला अब एक जाना-पहचाना चेहरा बन गई हैं. यह उनके भाई और उनकी पार्टी वाइएसआर कांग्रेस दोनों के लिए खुशी की बात है. पिछले साल 18 अक्तूबर को कडपा के इदुपुलापया गांव में अपने पिता की समाधि से उन्होंने राज्यभर का दौरा करने के लिए 3,000 किलोमीटर लंबी पद यात्रा शुरू की थी. पिछले साल से ही उनके भाई वित्तीय गड़बडिय़ों के आरोप में जेल में हैं. वे जानती हैं कि अगर उनकी पार्टी को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता में आना है तो इसके लिए पार्टी के राजनैतिक एजेंडे का सुर्खियों में रहना जरूरी है और इस वक्त यह काम सिर्फ वे ही कर सकती हैं.
वे रोज सुबह लगभग दस बजे यात्रा शुरू करती हैं और दोपहर में एक बजे रुकती हैं. चार बजे तक एयरकंडीशंड बस में आराम करने के बाद, वे दिन के आखिर में होने वाली सभा के ठिकाने के लिए फिर से चल पड़ती हैं.
शर्मिला रोज 10 से 15 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं. 12 फरवरी तक वे 64 दिनों में 927 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी थीं. उनका काफिला कडपा, अनंतपुर, कुरनूल, महबूबनगर, रंगा रेड्डी और नलगोंडा समेत छह जिलों के 28 विधानसभा क्षेत्रों में घूम चुका है. यात्रा के दौरान रास्तों पर होने वाली छोटी-छोटी बैठकों और शाम की सभाओं में शर्मिला 2,000-5,000 की संख्या में लोगों को खींच पाने में सफल रहती हैं.
तिरगंदलापल्ली में एक किसान ने शर्मिला को बताया कि उसका कर्ज मंजूर नहीं हुआ. एक छात्र ने बताया कि उसकी स्कूल फीस उसे वापस अदा नहीं की गई (वाइएसआर ने शिक्षा योजना बनाई थी, जिसके तहत युवाओं को कॉलेज फीस वापस मिलती थी). इसके बाद शर्मिला ने अलग-अलग वंचित तबकों से आने वाले पंद्रह लोगों की शिकायतें सुनीं. वे सबको एक ही आश्वासन देती हैं, ''हमारी पार्टी को समर्थन दें, हम वाइएसआर शासन के सुनहरे दिन वापस लाएंगे.”
वे सधा हुआ बोलती हैं. इसके लिए उनके पास हैदराबाद के लोगों का एक छोटा-सा समूह है, जो पदयात्रा के दौरान उनके उठाए जाने वाले स्थानीय मुद्दे निकालकर लाता है. राजनीति के मैदान में लंबे समयतक अनाड़ी रहीं शर्मिला पिछले साल 27 मई को अपने भाई जगनमोहन रेड्डी के जेल जाने से पहले एक साधारण गृहिणी थीं. लेकिन इस घटना के बाद उन्हें राजनीति में उतरने को मजबूर होना पड़ा.
उन्हें सियासी कार्यों में अकसर अपने भाई के अलावा विधायक और पार्टी अध्यक्ष पद पर कायम अपनी मां वाइ.एस. विजयलक्ष्मी के सलाह-मशविरे की जरूरत पड़ती है. राजनैतिक कार्यों में उन्हें सलाह देने का काम दो और लोग भी करते हैं. इनमें से एक उनके चाचा वाइ.वी. सुब्बा राव हैं जो तीन साल पहले तक रियल एस्टेट कारोबार में थे और दूसरे साक्षी मीडिया समूह के संपादकीय निदेशक और लंबे वक्त तक वाइएसआर के साथ जुड़े रहे एस. रामकृष्ण रेड्डी हैं.
ईसाई धर्म के उपदेशक अपने पति अनिल कुमार के साथ लंबी यात्रा कर चुकीं शर्मिला राजनैतिक सभाओं और बैठकों में श्रोताओं के मिजाज और उनकी प्रतिक्रियाओं को समझने में पारंगत हो गई हैं. उनका स्टाइल बातों को ज्यादा स्थायी और मानवीय पुट देकर धीरे-धीरे आगे बढऩे का है. शर्मिला बुजुर्ग औरतों को बेहद सहजता से अपने गाल छूने की इजाजत देती हैं और अपनी शारीरिक भाव-भंगिमाओं के जरिए उनसे घुलती-मिलती भी बहुत हैं. अगर भावनाओं के उमडऩे के लिए ये भी काफी नहीं होता तो वह सड़कों के किनारे दिए जाने वाले छोटे-छोटे भाषणों में अपने पिता का जिक्र करती हैं.
अपने इस खास अंदाज से वे भीड़ खींचने में पूरी तरह कामयाब हो रही हैं. हालांकि अब भी उनका जादू 1982 में चैतन्य रथम के जरिए तेलगु देशम पार्टी शुरू करने वाले एन.टी. रामाराव जैसा कहीं नजर नहीं आ रहा है. राजनैतिक टिप्पणीकार एम.ई.वी. प्रसाद रेड्डी मानते हैं कि कांग्रेस के वाइएसआर परिवार के प्रति किए गए बर्ताव की वजह से औरतें बड़ी संख्या में बाहर आ रही हैं और अपनी सहानुभूति जता रही हैं.
कुछ पार्टी कार्यकर्ता मानते हैं कि जगनमोहन के जेल में होने और पार्टी के 2014 का चुनाव जीतकर सत्ता में आने की स्थिति में, दोनों ही स्थितियों में शर्मिला एक अच्छा विकल्प हैं. 2011 की शुरुआत में वाइएसआर कांग्रेस की स्थापना के समय में अपनी नौकरी छोड़कर जगनमोहन के साथ जुडऩे वाले 46 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर डी. वेंकट गिरि बाबू कहते हैं, ''शर्मिला लोगों के बीच यह प्रभाव छोडऩे में कामयाब हुई हैं कि वाइएसआर कांग्रेस बदलाव लाने में सह्नम पार्टी है.” वेंकट बाबू उन चालीस लोगों में से एक हैं जो शर्मिला के साथ पदयात्रा पर हैं.
शर्मिला ने सिर्फ अपनी पार्टी के समर्थकों को ही प्रभावित नहीं किया बल्कि वाइएसआर कांग्रेस की प्रतिद्वंद्वी पार्टियां भी उनकी क्षमता देखकर सजग हो गई हैं. शर्मिला की पद यात्रा से सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस किस कदर परेशान है, इस बात का अंदाजा राज्यसभा सदस्य पलवाई गोवर्धन रेड्डी के उस बयान से लगता है जिसमें उन्होंने शर्मिला पर निशाना साधते हुए कहा, ''अपने परिवार की लुटी हुई संपत्ति को बचाने के लिए शर्मिला ने सड़कों पर हमला बोल दिया है.”
निश्चित तौर पर 2009 में हैदरबाद के लाल बहादुर स्टेडियम में अपने पिता की जीत को चुपचाप देखने वाली और पहली बार किसी राजनैतिक मंच पर नजर आने वाली शर्मिला राजनीति में काफी लंबा रास्ता तय कर चुकी हैं. उन्हें अपने स्कूल में पढऩे वाले 14 वर्षीय बेटे राजा और 11 वर्षीया बेटी अंजलि की याद बहुत सताती है लेकिन वे अपने कदम पीछे नहीं हटाने वालीं.