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सत्ता के लिए होगी रस्साकशी

मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में इस साल चुनावी जोर-आजमाइश होगी, जिसके लिए बीजेपी-कांग्रेस अपनी-अपनी बिसात बिछाएंगी तो दोनों दलों में स्थानीय नेतृत्व को लेकर भी जबरदस्त खींचतान रहेगी.

दिग्विजय सिंह
दिग्विजय सिंह
अपडेटेड 14 जनवरी , 2013

बज गया चुनावी बिगुल
नवंबर में राज्य की 230 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होना है और मध्य प्रदेश जल्द ही चुनावी बुखार की चपेट में आने जा रहा है. बीजेपी सत्ता में हैट्रिक की पूरी जोर-आजमाइश करेगी, तो मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस उससे सत्ता छीनने की सारी कोशिशें करेगी. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी चुनावों के लिए कमर कस चुकी है. दूसरी ओर धड़ेबाजी से त्रस्त कांग्रेस अपना मुख्यमंत्री का प्रत्याशी घोषित नहीं करेगी.

फिलहाल, ऐसा लगता है कि बीजेपी ने चुनावों के लिए काफी तैयारी कर ली है. पिछले ही महीने चौहान के सिपहसालार नरेंद्र तोमर को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया और प्रभात झा को इस पद से हटा दिया गया, जो अपने विवादास्पद बयानों से काफी सुर्खियों में रहे. इसमें चौहान की बड़ी भूमिका रही जिन्होंने तोमर के नाम पर संघ को राजी कर लिया. तोमर इस पद पर 2008 में रहे थे जब बीजेपी ने चौहान के नेतृत्व में चुनाव जीता था. पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह है और वे चौहान-तोमर की जोड़ी के चुनाव जीतने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं.

कांग्रेस अपनी खोई जमीन को हासिल करने के लिए खूब जोर-आजमाइश कर रही है और इसी क्रम में उसने पिछले साल दो बड़े प्रदर्शन किए हैं. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कई बार राज्य का दौरा किया है और हाल ही में पार्टी ने कार्यकर्ताओं में उत्साह लाने के लिए ब्लॉक स्तर की बैठकें आयोजित की थीं. माना जा रहा है कि चुनाव से पहले राज्य सरकार का पर्दाफाश करने के लिए कांग्रेस कई दस्तावेज जुटाने में लगी है.

पिछली बार बीजेपी ने चुनावों में एकता दिखाई थी जबकि कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकी और उसे 76 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. बीजेपी को 143 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

उधर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह भी इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में बीजेपी को नेतृत्व देने के लिए कमर कस चुके हैं. उनका उत्साह चरम पर है और वे इस बार सत्ता की हैट्रिक लगाने की कोशिश करेंगे ताकि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की बराबरी कर सकें.MadhyaPradesh

वे ऐसा कर पाएंगे या नहीं, इसे लेकर छत्तीसगढ़ बीजेपी के भीतर अटकलों का बाजार गर्म है. एक बात जरूर है कि उनकी पार्टी के भीतर उनके खिलाफ  कहीं कोई विरोध नहीं है.

वहीं कांग्रेस उनके सपनों पर पानी फेरने के लिए तैयार है. धड़ों में बंटी कांग्रेस से संकेत मिल रहे हैं कि 90 सीटों के लिए होने वाले चुनाव से पहले उसने अपनी बहाली की तैयारी लगभग कर ली है. अजित जोगी और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल धड़ेबाजी से ग्रस्त पार्टी के भीतर जान फूंकने के लिए पूरी कवायद कर रहे हैं.

दिग्विजय सिंह और उनका कुनबा
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और उनका परिवार इस बार मध्य प्रदेश के चुनावों में खास आकर्षण का केंद्र रहेगा. उनके भतीजे आदित्य विक्रम सिंह पहले ही राघोगढ़ नगर निगम अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे हैं. गृह जिले गुना की इस नगर निकाय सीट पर अपने भाई लक्ष्मण सिंह के बेटे आदित्य को जिताने के लिए दिग्विजय कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.

कांग्रेस के भीतर चर्चा है कि दिग्विजय राघोगढ़ विधानसभा सीट से अपने बेटे जयवर्धन को चुनाव में खड़ा करना चाहते हैं. जयवर्धन राघोगढ़ की राजनीति में काफी सक्रिय हैं.

इतना ही नहीं, दिग्विजय ने ऐलान किया है कि उनके भाई लक्ष्मण कांग्रेस में जल्द ही वापस आएंगे. लक्ष्मण बीजेपी में चले गए थे और उन्होंने राघोगढ़ की संसदीय सीट 2004 में उससे जीती थी, हालांकि बीजेपी से ही लड़ते हुए वे 2009 में चुनाव हार गए थे. दिग्विजय की योजना है कि अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस से इसी सीट से उतारा जाए. वे लोकसभा चुनाव की जिम्मेदारी लेने की कोशिश कर रहे हैं.

इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में दिग्विजय और उनका कुनबा काफी सक्रिय दिखेगा.Raman Singh

राजनीति में अपने परिवार को मजबूत स्थिति में लाने के लिए ही दिग्गी राजा ने हाल ही में गुना के एक चौराहे पर हाथ में माला लेकर छोटे महाराज केंद्रीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) ज्योतिरादित्य सिंधिया का स्वागत करने के लिए इंतजार किया था. पार्टी के नेताओं को इस पर काफी अचरज हुआ था. उन्हें पता है कि सिंधिया गुना से सांसद रह चुके हैं और यहां उनकी अच्छी साख है. वे समझते हैं कि सिंधिया अब भी अपनी राजशाही विरासत से चिपके हुए हैं और उस पर लगा कोई भी धब्बा खुद दिग्विजय के खिलाफ चला जाएगा. दोनों नेताओं के अपने समर्थक भारी संख्या में हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि अपने परिवार के भले के लिए दिग्विजय निजी तौर पर सिंधिया को तरजीह देते हैं. गौरतलब है कि सिंधिया ने दिग्विजय के हाथ से माला पहनने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि वे तो उनके 'पिता' समान हैं. इसके बाद दिग्विजय ने उन्हें अपने 'बेटे' की तरह कहकर एहसान चुकाया.

हॉकी का जश्न
इस साल भोपाल में हॉकी प्रेमियों के लिए एक बड़ा जमघट लगने वाला है. नवंबर में भारत के सबसे बड़ी पुरस्कार राशि वाले टूर्नामेंट ओबैदुल्ला गोल्ड कप का यहां आयोजन किया जाना है जिसमें फाइनल खेलने वाली दोनों टीमों के हर खिलाड़ी को एक-एक लाख रुपए दिए जाएंगे. ऐसा लगता है कि हॉकी की गरीबी के दिन अब लद गए हैं, जैसा कि पिछले एक-दो दशक में इसकी घटी लोकप्रियता के चलते हुआ था और सारे आयोजक इस खेल से दूर चले गए थे.

ओबैदुल्ला कप जीतने वाली टीम को 51 लाख रु. मिलेंगे. वहीं दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाली टीमों को क्रमश: 21 लाख और 11 लाख रु. का नकद पुरस्कार दिया जाएगा. हाल ही में संपन्न 66वें ओबैदुल्ला गोल्ड कप टूर्नामेंट में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बढ़ी हुई पुरस्कार राशि की घोषणा की थी.

चौहान देश के पहले मुख्यमंत्री थे जिन्होंने दो साल पहले भारत की पुरुष हॉकी टीम के लिए वित्तीय मदद की घोषणा की थी जब टीम ने देश में पहली बार आयोजित विश्व कप में खेलने से मना कर दिया था. इसके बाद राज्य सरकार ने खिलाडिय़ों को एक-एक करोड़ रु. दिए थे. इसके अलावा, जब महिला हॉकी टीम ने पुरुष हॉकी टीम के बराबर दर्जा दिए जाने की मांग उठाई थी, तब भी आॢथक मदद के लिए चौहान आगे आए थे.

ताकि कोई भूखे पेट न सोए
छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा कानून लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. इससे जुड़े बिल को छत्तीसगढ़ विधानसभा ने हाल ही में पारित किया है और उसे राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा गया है. दूसरी ओर, संसद में इसी आशय का बिल लंबित पड़ा हुआ है.

इस कानून का उद्देश्य राज्य की 90 फीसदी जनता को भोजन की गारंटी देना है. विधानसभा चुनावों में बीजेपी को इस बिल के कारण फायदा मिल सकता है. बीजेपी अब इस बिल के सहारे केंद्र सरकार पर निशाना भी साध सकेगी क्योंकि लंबे समय से उसने इस बिल को ठंडे बस्ते में

डाल रखा है.

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