पार्टी के राष्ट्रीय संविधान में संशोधन के बाद से बीजेपी की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष (अब पूर्व अध्यक्ष) प्रभात झा अपनी वापसी को लेकर बेफिक्र थे. उन पर संघ के प्रमुख पदाधिकारी सुरेश सोनी का वरदहस्त होना भी उन्हें दूसरा कार्यकाल दिलवाने की गारंटी जैसा था. लेकिन अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद नजारा कुछ अलग था.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मास्टर स्ट्रोक खेल में अपने पसंदीदा नरेंद्र सिंह तोमर को ताज पहना चुके थे जबकि झा ठगा-सा महसूस कर रहे थे. परिणाम देख बौखलाए प्रभात झा के पास मौका था तो सिर्फ मन का गुबार निकालने का और उन्होंने यही किया.
तोमर को प्रदेश अध्यक्ष बनवाकर चौहान ने जता दिया है कि राज्य के मामले में उनकी चलती है. इस बात को झा ने भी माना लेकिन तल्ख शब्दों में. विदाई के मौके पर उन्होंने कहा, ''जिस तरह वाजपेयी जी ने पोखरण विस्फोट की भनक किसी को नहीं लगने दी, उसी तरह शिवराज सिंह चौहान ने नरेंद्र सिंह तोमर को अध्यक्ष बनाने के फैसले की खबर किसी को नहीं होने दी. '' इसके साथ ही यह भी साफ हो गया कि उनके और चौहान के बीच सबकुछ सामान्य होने के दावे खोखले थे.
हालांकि मुख्यमंत्री ने यह कहकर अपना बचाव किया कि, ''संगठन के काम में मैंने कभी हस्तक्षेप नहीं किया. मुझे तो यह भी नहीं पता होता है कि मेरे गृह जिले में जिला और मंडल अध्यक्ष कौन बन रहा है. ''
दरअसल झा के कामकाज के तरीके को लेकर चौहान खुश नहीं थे, उनकी प्रदेश संगठन के महासचिव अरविंद मेनन से भी नहीं पटती थी. जबकि तोमर को सर्वसम्मति वाला अध्यक्ष माना जा रहा है. 2008 में तोमर के अध्यक्ष रहने के दौरान ही पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. इस बार भी उन्होंने अपने इरादे जता दिए हैं.
तोमर ने कहा है, ''मेरे पैर हमेशा जमीन पर रहते हैं. मैं अति-उत्साह में कोई फैसला नहीं लेता. अब मिशन 2013 में जुट रहा हूं. '' राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर के मुताबिक झा के हटने की मुख्य वजह यह है कि वे पार्टी के अंदर अपनी स्वीकारिता नहीं बढ़ा पाए. दिल्ली और भोपाल के नेताओं में तालमेल नहीं बना पाना भी उनके खिलाफ गया.

