चारा घोटाले के लिए एक समय बदनाम रहे देश में अब देसी शराब घोटाले के सामने आने की बात हो रही है. बिहार के प्रिंसिपल एकाउंटेंट जनरल (पीएजी) की एक गोपनीय ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया है कि राज्य के आबकारी विभाग ने कुछ शराब सप्लायरों को फायदा पहुंचाने के लिए मनमाने तरीके से देसी शराब के दाम बढ़ा दिए थे.
देसी शराब सप्लायरों को कुल 181.15 करोड़ रु. का अतिरिक्त फायदा पहुंचाया गया. संभवत यह रिपोर्ट अगले साल विधानसभा में पेश होगी. रिपोर्ट कहती है कि 2009 में एक्साइज डिपार्टमेंट के कुछ अफसरों ने मनमाने तरीके से सबसे कम बोली लगाने वाले ठेकेदार के दाम से ज्यादा दाम तय किए और सबसे कम बोली लगाने वालों में दसवें स्थान पर रहने वाले ठेकेदार को सप्लाई की कुल मात्रा का दो-तिहाई का ठेका दे डाला.
रिपोर्ट के मुताबिक, 2009-12 के ठेकों को अंतिम रूप देते वक्त ''बोली लगाने वालों को अतिरिक्त लाभ पहुंचाने के लिए कुछ सप्लायरों ने धृष्टतापूर्वक मुहैया कराए गए काल्पनिक आधार पर'' देसी शराब के दामों में इजाफा कर दिया गया. विभाग में फैसला लेने वाले अधिकारियों ने सबसे निचले टेंडर को 'दिखावटी आधार' पर खारिज कर दिया, इसके अलावा ''कुछेक सप्लायरों को अनावश्यक फायदा पहुंचाया. '' हालांकि यह ऑडिट रिपोर्ट अपने अंतिम चरण में ही है, लेकिन राज्य के पीएजी राजीव भूषण सिन्हा का पहले ही राज्य से बाहर तबादला कर दिया गया है.
विभाग ने जब 2009 में अगले तीन साल के लिए देसी शराब की आपूर्ति के टेंडर मंगाए तो उसके पास 15 बोलियां आई थीं. फिर विभाग ने लॉड्र्स डिस्टिलरी और नारंग डिस्टिलरी नाम के दो गंभीर आवेदकों को आवेदन में 'कमी' के नाम पर छांट दिया, यह कहते हुए कि लॉड्र्स ने कंपनी रजिस्ट्रार की ओर से मिलने वाले नॉन-लिक्विडेशन सर्टिफिकेट को जमा नहीं किया है और नारंग ने इन्कम टैक्स रिटर्न समेत इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट की रसीदें जमा नहीं की हैं. हालांकि ऐसी ही कमियों के साथ दूसरे आवेदकों को माफ कर दिया गया. ऑडिटर ने इन दो कंपनियों को शिकार बनाने की जिम्मेदारी जनता दल (यूनाइटेड) के तत्कालीन एक्साइज मंत्री जमशेद अशरफ के सिर पर डाली है.
नारंग डिस्टिलरी ने 200 मिली. रेक्टिफाइड स्प्रिट का दाम 1.33 रु. दिया था. देसी शराब इसी स्पिरिट से बनती है जो गन्ने के शीरे से निकलती है. इसके बाद परिशोधित शीरे में निश्चित अनुपात में पानी मिलाया जाता है और देसी शराब बनाई जाती है. डिपार्टमेंट ने अफसरों की एक आंतरिक जांच समिति बनाई थी जिसने रेक्टिफाइड स्पिरिट का दाम 1.54 रु. प्रति 200 मिली तय करने के बाद आपूर्तिकर्ताओं के लिए देसी शराब की आपूर्ति दर 2.80 रु. तय कर दिया.
नारंग डिस्टिलरी की खारिज बोली के मुताबिक, 200 मिली. के लिए सप्लायर का दाम 2.36 रु. था. समिति ने इसे 2.80 रु. तय कर दिया. इसके अलावा फैसला लेने वाले अफसरों ने उमेरी डिस्टिलरी के भी दिए गए 200 मिली. के 2.43 रु. के दाम को खारिज कर दिया, जो नारंग के खारिज किए जाने के बाद सबसे निचली दर वाला आवेदक था. सप्लायर दर वह दर होती है जिस पर कामयाब बोली लगाने वाले देसी शराब की आपूर्ति करते हैं. इसमें अधिकतम रिटेल मूल्य को तय करने के लिए राज्य बेवरेज कॉर्पोरेशन की मार्जिन मनी के साथ वैट, एक्साइज और लाइसेंस शुल्क को भी जोड़ा जाता है.
सारे फैसले लेने वाली यह जांच समिति सप्लाई के ऑर्डर को अंतिम रूप देते वक्त सीधे एक्साइज सेक्रेटरी अमीर सुभानी की निगरानी में काम कर रही थी. समिति के सदस्यों में तत्कालीन एक्साइज कमिश्नर एन. विजयलक्ष्मी (1995 काडर की आइएएस) और ज्वाइंट कमिश्नर एक्साइज राम लखन साहनी (अब सेवानिवृत्त) थे. सुभानी आज प्रधान सचिव (गृह) हैं और विजय लक्ष्मी राज्य की कृषि सचिव हैं.
उमेरी डिस्टिलरी ने प्रति 200 मिली. के लिए 2.43 की दर सिर्फ तीन जिलों नालंदा, नवादा और दरभंगा के लिए दी थी, हालांकि जांच समिति ने पूरी प्रक्रिया का मखौल उड़ाते हुए इन तीन जिलों में भी 2.80 की दर से आपूर्ति तय कर दी. इससे सप्लायरों और थोक विक्रेताओं को अकेले इन तीन जिलों में कुल 25.52 करोड़ रु. का अनावश्यक लाभ पहुंचा. पीएजी कार्यालय के सूत्र के मुताबिक, ''यह अभूतपूर्व था, और सबसे वफादार ऑडिटर भी इसकी अनदेखी नहीं कर सकता.''
उमेरी डिस्टिलरी से कहा गया कि उसे सिर्फ कैमूर जिले में सप्लाई करनी है. उसे कुल सप्लाई ऑर्डर का 8.9 फीसदी दिया गया जबकि समिति ने 13 कामयाब आवेदकों में दसवें स्थान पर रहने वाली सराया इंडस्ट्रीज को कुल सप्लाई का 67.2 फीसदी हिस्सा दे डाला. ऑडिटर के मुताबिक इस आवंटन का कोई भी तार्किक आधार रिकॉर्ड में मौजूद नहीं है.
लेकिन यहीं एक प्रश्न यह भी पैदा होता है कि आखिर उन्होंने देसी शराब के लिए सप्लायर रेट में इजाफा क्यों किया था? ऑडिटर्स को दिए गए जवाब में एक्साइज डिपार्टमेंट ने कहा है कि उसकी स्क्रीनिंग कमेटी का अनुमान था कि 50 फीसदी रेक्टिफाइड स्प्रिट उत्तर प्रदेश से 32 रु. की दर से खरीदी जाएगी. यह कीमत बिहार के राजस्व बोर्ड की तय कीमत 24.55 रु. प्रति बल्क लीटर से 30 फीसदी अधिक है. हालांकि पीएजी की जांच में अनुमान संबंधी तर्कों में खामियां पाई गई हैं. उत्तर प्रदेश में रेक्टिफाइड स्प्रिट का रेट 25.51 रु. प्रति बल्क लीटर था न कि 32 रु., जैसा कि बिहार एक्साइज डिपार्टमेंट ने आकलन किया था. पीएजी ने पाया कि बिहार में शराब का उत्पादन देसी शराब की खपत के मुताबिक ही था, जिसके मायने यह हैं कि उत्तर प्रदेश से रेक्टिफाइड स्प्रिट मंगाए जाने की कोई जरूरत नहीं थी.
ऑडिटरों ने एक्साइज अधिकारियों के शराब सप्लायरों के कारोबार संबंधी जोखिम का आकलन किए जाने पर भी सवाल उठाया है. शराब की सप्लाई हासिल करने वालों ने अपनी बोली जमा कराने से पहले ही स्प्रिट की भविष्य की कीमतों का गुणा-भाग कर लिया होगा. फिर भी एक्साइज विभाग के अधिकारियों ने कीमतें बढ़ाईं और बेवजह आयात मूल्य का आकलन किया, जिससे कीमतों में इजाफा हुआ. नतीजतन उन्होंने उच्च सप्लायर रेट तय किया जिसने सप्लायरों को मोटा फायदा पहुंचाने की राह प्रशस्त की.
यही नहीं, 2009-12 के उलट इस साल कम कीमत तय किए जाने का मतलब राज्य के लिए मोटा फायदा है. 2009 में बिहार स्टेट बेवरिज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीएसबीसीएल) ने सिर्फ 5 फीसदी (0.61 पैसे) की मार्जिन मनी कमाई थी. बीएसबीसीएल ने प्रति 200 मिली के 2.80 रु.के सप्लायर रेट पर अपनी 5 फीसदी मार्जिन
मनी का आकलन वैट और अन्य एक्साइज शुल्कों को जोड़कर किया. 2012 में कम सप्लायर रेट (2.14 रु. öति 200 मिली.) की वजह से बीएसबीसीएल को 10 फीसदी मार्जिन मनी चार्ज करने का मौका हाथ लगा, जिससे इसने प्रति 200 मिली. के लिए 1.28 रु. चार्ज करने का मौका दिया. इस तर्क से पता चलता है कि अगर देसी शराब की सप्लाई दर मनमाने तरीकों से न बढ़ाई गई होती तो बीएसबीसीएल 2009 में भी ज्यादा मार्जिन मनी कमा सकता था.
एक्साइज डिपार्टमेंट ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 2005 में राज्य में सत्ता संभालने के बाद काफी कामयाबी हासिल की थी. अपने 1,900 करोड़ रु. के राजस्व लक्ष्य का पीछा करते हुए विभाग ने 2011-12 में उम्मीद से कहीं ज्यादा 2045.31 करोड़ रु. का आबकारी राजस्व जुटाया जबकि 2004-05 में यह महज 566 करोड़ रु. था, यानी बिहार सरकार के राजस्व में कुल 361 फीसदी का इजाफा हुआ. लेकिन ऑडिट रिपोर्ट के तथ्यों को देख लगता है कि एक्साइज विभाग को आत्मावलोकन की जरूरत है.