नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव किसी जंग से कम नहीं है, और उनकी हर चाल का मकसद होता है विरोधी को शिकस्त देना. मोदी अपनी तय योजना के तहत मतदान के दिन की ओर बढ़ रहे हैं वहीं विरोधी खेमा पहले ही छिन्न-भिन्न होता दिखाई देने लगा है. कांग्रेस और केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) के लिए चुनौती कठिन है. मोदी ने परंपरागत रणनीति की अनदेखी करते हुए अपने 75 प्रतिशत विधायकों को चुनाव मैदान में उतारा है और एक भी मुस्लिम को पार्टी का टिकट नहीं दिया है.
उनकी यह एक सोची-समझी चाल है. किसी भी मुस्लिम को टिकट न देने का मकसद विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और जीपीपी की चाल को नाकाम करना था, क्योंकि विहिप और जीपीपी मोदी को हिंदुओं के साथ धोखा करने वाले नेता के रूप में प्रचारित कर रही थीं. लेकिन मोदी की इस रणनीति ने पिछले साल के उनके सद्भावना अभियान पर सवाल खड़ा कर दिया है, जिसे उन्होंने अपनी मुस्लिम विरोधी नेता की छवि मिटाने और खुद को 2014 में प्रधानमंत्री पद के दावेदार के रूप में पेश करने के लिए शुरू किया था.
मोदी की ओर से कराए गए एक निजी सर्वेक्षण में पाया गया कि मुस्लिम समर्थक अभियान से उन्हें चुनावों में नुकसान हो सकता है. उनके इस फैसले से भाजपा के अल्पसंख्यक नेताओं में भारी असंतोष पैदा हो गया, लेकिन मोदी ने बाद में उन्हें राजी कर लिया.
मोदी के करीबी एक बीजेपी नेता ने कहा, ‘‘मोदी अगर मुसलमानों को टिकट देते तो विहिप, जिसने परदे के पीछे जीपीपी से सांठ-गांठ कर रखी थी, उन्हें हिंदू-विरोधी नेता के तौर पर पेश करने के लिए एकदम तैयार बैठी थी. ऐसे में मुख्यमंत्री को हिंदू-विरोधी और मुस्लिम-विरोधी लेबल के बीच चुनाव करना था.
उन्होंने मुस्लिम-विरोधी लेबल का चुनाव करना ही मुनासिब समझा.’’ इससे मोदी के विरोधियों को बल मिल गया. समाजसेवी हनीफ लकड़ावाला का कहना था, ‘‘मोदी ने अपना असली रंग दिखा दिया है.”
इसके अलावा अपने 117 में से 75 प्रतिशत से ज्यादा विधायकों और सभी मंत्रियों को टिकट देने का मोदी का फैसला भी कम चौंकाने वाला नहीं था. केशुभाई पटेल की योजना थी कि बीजेपी के संभावित असंतुष्ट नेताओं को फुसलाकर अपने साथ मिला लिया जाएगा. दो माह पहले विवेकानंद युवा विकास यात्रा से जो जानकारी मिली, उससे मुख्यमंत्री को यह बात समझ में आ गई कि मौजूदा विधायकों को टिकट न देना उनके लिए ज्यादा नुकसानदेह साबित हो सकता है.
उन्हें पता था कि इस चुनाव में वे विधायकों के नाम पर नहीं बल्कि अपने नाम पर वोट मांग रहे हैं. अमदाबाद के निकट साणंद की एक चुनावी सभा में मोदी के भाषण से यह बात साफ पता चलती है.
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले 11 वर्षों से मैंने गुजरात के खजाने के चौकीदार की तरह काम किया है और जनता के पैसों को उपयोगी विकास के काम में लगाया है, जिसका फायदा समाज के सभी तबकों को मिला है. गुजरात के चुनाव नतीजे देश को एक नई दिशा देंगे. वोट देते समय मुझे देखिए, न कि पार्टी के उम्मीदवारों को.” उनके घोषणा पत्र में युवाओं, महिलाओं, किसानों और उस वर्ग से वोट देने की अपील की गई है, जिसे वे अपने विकास कार्यक्रमों के कारण आर्थिक लाभ पाने से ‘गरीबी से उठकर बना नया मध्य वर्ग’ बताते हैं.
आधुनिकतावादी होने की अपनी छवि के अनुरूप ही उन्होंने तकनीकी को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया है. 3डी चुनाव प्रचार भारत के चुनावी इतिहास में पहला उदाहरण है. चुनावी नारों में केवल एक ही हीरो हैः वे खुद. एक नारा है, ‘‘हमारा कप्तान नरेंद्र मोदी, आपका कौन?” मोदी के चुनावी चैनल पर मोदी के नाम पर कार्यक्रम चलाए जाते हैं.
महत्वपूर्ण बात है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व भी जरूरत को भांपकर मोदी के पीछे एकजुट हो गया है. उसने फिलहाल प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के मुद्दे को एक तरफ रख दिया है. दिसंबर के पहले हफ्ते तक लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, नितिन गडकरी और अरुण जेटली जैसे दो दर्जन केंद्रीय नेता गुजरात में 125 से ज्यादा चुनावी जनसभा कर चुके हैं. एक दिसंबर को सुषमा स्वराज ने बयान दिया कि मोदी में प्रधानमंत्री बनने के सभी गुण मौजूद हैं. उनके इस बयान से मोदी को काफी बल मिला है.
केशुभाई पटेल को लुवा पटेल वोट—जिसकी संख्या 12 से 14 फीसदी है—में प्रभावशाली बताया जा रहा है. बीजेपी के लिए सिर्फ यही एक अटकलबाजी का बिंदु है. क्या केशुभाई बीजेपी के वोटों का बंटवारा करा देंगे या उनकी जातिगत अपील के कारण गैर-पटेल जातियां मोदी के खेमे में आ जाएंगी? लुवा पटेल जाति के नेता नरेश पटेल ने पटेल समुदाय से अपील की है कि वे जीपीपी या कांग्रेस को वोट दें. लेकिन चुनाव पूर्व विभिन्न सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि जीपीपी से बीजेपी को कोई खास नुकसान नहीं होने वाला है.
जाति के आधार पर पटेल जीपीपी के साथ शायद ही जाएं क्योंकि मोदी के विकास कार्य का सबसे ज्यादा फायदा पटेलों को ही मिला है, चाहे वे किसान हों या व्यापारी. राजनैतिक विश्लेषक अरविंद बोसामिया कहते हैं, ‘‘केशुभाई पटेल फैक्टर को जरूरत से ज्यादा आंका जा रहा है. इस समय मोदी ही एकमात्र फैक्टर हैं.”
टिकट बांटने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले कांग्रेस ने आक्रामक रुख अपनाया था, जबकि चुनाव सर्वेक्षणों से स्पष्ट संकेत मिल रहा था कि इस बार भी मोदी अच्छे बहुमत से जीत हासिल करेंगे. उसके इस तरह के रुख की असली वजह यह थी कि गुजरात का चुनाव कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी और मोदी के बीच 2014 में प्रधानमंत्री पद के लिए ‘जियो या मरो’ की लड़ाई साबित हो सकता है. एक और जीत मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के खिलाफ एक दिग्गज विरोधी के तौर पर खड़ा कर देगी.
एकतरफा टिकट बंटवारे से आखिरी चरण में कांग्रेस की संभावनाओं को ग्रहण लग सकता था, लेकिन कांग्रेस के नेता साहस दिखा रहे हैं. गुजरात कांग्रेस प्रमुख अर्जुन मोधवाडिया कहते हैं, ‘‘गुजरात का चुनाव परिणाम सभी को चौंका देगा.” विपक्ष के नेता शक्तिसिंह गोहिल का कहना है, ‘‘बहुत से लोग उन बारीकियों को नहीं देख पा रहे हैं, जो नरेंद्र मोदी सरकार के कुशासन, भ्रष्टाचार और तानाशाही के खिलाफ अंदर ही अंदर लोगों के गुस्से को जाहिर करती है.” कई लोग उनकी इस बात से असहमत होंगे, लेकिन बहुत कम लोग इस बात से इनकार कर सकते हैं कि दिग्गज नेता शंकरसिंह वाघेला के साथ दोनों नेता मोदी के खिलाफ एकजुट बने हुए हैं. उन्होंने चुनावी रूप से ताकतवर वर्गों जैसे आदिवासियों और मछुआरों के लिए 2011 के मध्य से कई कार्यक्रम चलाकर मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए कड़ी मेहनत की है. उनके इन प्रयासों ने बीजेपी के एक वर्ग में मतभेद का माहौल तैयार कर दिया था, लेकिन सितंबर में मोदी ने विवेकानंद युवा विकास यात्रा शुरू करके इस माहौल को बदल दिया.
बीजेपी के खेमे में हड़कंप मचा देने वाले कांग्रेस के ये दो कार्यक्रम थे, घर नु घर (अपना घर पाएं), जिसमें गरीब शहरी महिलाओं के लिए घर देने की योजना थी और ग्रामीण गरीब परिवारों के लिए 100 वर्ग गज का प्लॉट, जिस पर 30 वर्ग गज में मकान बना होगा. पहला कार्यक्रम अगस्त में शुरू किया गया, जिसमें लिखित रूप से वादा किया गया था कि कांग्रेस अगर सत्ता में आई तो कम कीमत का मकान दिया जाएगा. प्रत्येक कार्यक्रम के लिए करीब 30 लाख फॉर्म भरे जा चुके थे. कांग्रेस के विधायक परांजयादित्य सिंह पूछते हैं, ‘‘इन कार्यक्रमों की घोषणा के बाद मेरे निर्वाचन क्षेत्र के राजनैतिक कार्यक्रमों में बेहिसाब भीड़ देखी गई. इस उत्साह को चुनाव में कैसे खारिज किया जा सकता है?”
लेकिन मोदी ने बीजेपी के घोषणा पत्र में गरीबों के लिए 50 लाख नए मकान बनाने का वादा किया है, जिससे कांग्रेस की यह रणनीति शायद ही असरदार साबित हो. वधवान विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस नेता हिमांशु व्यास कहते हैं, ‘‘चौकस कांग्रेस ने अपनी चुनाव तैयारी में कोई भी मुद्दा अछूता नहीं रहने दिया है. हमारी कड़ी मेहनत बेकार नहीं जाएगी.” दरअसल, मुख्यमंत्री के खिलाफ पार्टी के ‘दिशा बदलो, दशा बदलो” नारे ने शुरू में सचमुच अपना असर दिखाया था, लेकिन मोदी ने अपने प्रभाव से उसे बेअसर कर दिया. कांग्रेस ने अपना प्रचार समय से पहले ही तेज कर दिया था, जबकि मोदी ने सही वक्तपर प्रचार शुरू किया.
मोदी को सबसे ज्यादा फायदा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन से हो सकता है. इसमें 18 नई शहरी सीटें और 22 अर्ध-शहरी सीटें बनाई गई हैं. मोदी का प्रभाव गांवों की अपेक्षा शहरी मतदाताओं में ज्यादा है.