अगर किसी खिलाड़ी के भाग्योदय के साथ एक मंदिर के लोकप्रिय होने की दास्तान जुड़ी हो तो इसे क्या कहेंगे. ऐसा ही कुछ रांची के दिउड़ी मंदिर के बारे में कह सकते हैं. भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने जब से इस मंदिर में मां काली के दर्शन करने शुरू किए, तब से उन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा.
इस मंदिर का राष्ट्रीय मानचित्र पर आना और महेंद्र सिंह धोनी का राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में चमकना दोनों ही बातें लगभग एक ही समय हुईं. 1998 में जब धोनी रणजी में खेला करते थे तब से वे इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आते हैं. हर क्रिकेट सीरीज से पहले वे काली मां का आशीर्वाद पाने यहां पहुंचते हैं.
मंदिर के पुजारी मनोज पंडा कहते हैं, ''धोनी हर सीरीज से पहले मंदिर जरूर आते हैं और मां का आशीर्वाद लेते हैं. वर्ल्ड कप खेलने जाने से पहले वे यहां आए थे और मन्नत मांगी थी कि कप जीतने पर वे अपना सिर मुंडवा लेंगे. वे अगर क्रिकेट में सफल हुए हैं तो इसकी वजह माता का आशीर्वाद भी है. उन्होंने दक्षिणा के तौर पर 11,000 रु. दिए थे. उनकी कामयाबी के लिए फाइनल मैच के दिन हम लोगों ने विशेष पूजा और हवन किया था. ''
ऐसा नहीं है कि यहां सिर्फ वीआइपी श्रद्धालु ही आते हैं. पिछले 20 साल से तड़के मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने वाले रामप्रवेश साह उन सैकड़ों लोगों में से हैं जो रोजाना रांची-जमशेदपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-33 पर स्थित दिउड़ी मंदिर में काली देवी के दर्शन के लिए आते हैं. हालांकि इतिहास इस मंदिर को लेकर खामोश है.
रांची विश्वविद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक डॉ. इंद्र कुमार चौधरी बताते हैं, ''करीब साढ़े तीन फुट ऊंची देवी 16 भुजाओं वाली हैं. देवी की प्रतिमा काले पत्थर से बनी हुई ओडिसा की मूर्ति शैली की है. पूर्व मध्यकाल में तकरीबन 1300 ई. में सिंहभूम के मुंडा राजा केरा ने युद्ध में परास्त होकर लौटते समय इसकी स्थापना की थी. देवी ने उन्हें सपने में दर्शन देकर मंदिर स्थापना करने का आदेश दिया और उनके आशीर्वाद से उन्होंने अपना राज्य दोबारा हासिल कर लिया. ''
इतिहास के पन्नों में इस बात की थोड़ी-बहुत चर्चा है कि 1831 में सिंहभूम में हुए कोल विद्रोह के दौरान मंदिर का यह इलाका विद्रोहियों का एक बड़ा ठिकाना हुआ करता था. मंदिर की आड़ में छुपे विद्रोहियों पर ब्रिटिश सेना ने गोलियां बरसाई थीं, उन गोलियों के निशान मंदिर की दीवार पर आज भी मौजूद हैं.
इस मंदिर को आदिवासी संस्कृति और हिंदू धर्म का अद्भुत संगम माना जाता है क्योंकि इस मंदिर के पुजारी मुंडा पाहन होते हैं जो हफ्ते के छह दिन पूजा करते हैं. वहीं ब्राह्मण पंडित सिर्फ मंगलवार को पूजा करते हैं. नरसिंह पंडा का परिवार सात पुश्तों से मंदिर में पुजारी का काम कर रहा है. लेकिन वे भी मंदिर के बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं दे पाते. वे कहते हैं, ''हम लोगों ने सुना है कि 18वीं सदी में बुढ़ा बाबा नाम के एक शख्स थे जिन्होंने इस मंदिर को फिर से खोजा था. बाकी सब आस्था है. '' मंदिर के पुराने ढांचे को कायम रखते हुए, इसके ऊपर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जा रहा है.
स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं से एकत्र किए गए दान के पैसों से मंदिर का निर्माण चल रहा है. हालांकि राज्य सरकार ने हाल ही में इस मंदिर को पर्यटन सर्किट में शामिल कर इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का फैसला किया है. लेकिन मंदिर के पुजारियों और स्थानीय लोगों को इस बात का मलाल है कि धोनी ने इस मंदिर के विकास के लिए कुछ नहीं किया.
वर्ल्ड कप में कामयाबी के बाद धोनी को अपने करियर के सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा था जब वे इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया से मात खा कर लौटे थे. उस समय धोनी फिर मंदिर आए थे. नरसिंह पंडा कहते हैं, ''मां ने कभी भी उनकी मनोकामना को अनसुना नहीं किया. जब वे खेल हार रहे थे तो मैंने उन्हें बताया कि मां उनसे नाराज हैं.''