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जयपाल रेड्डी: चुकाई ईमानदारी की कीमत

रेड्डी को हटाना संकेत है कि सरकार को मनमौजी तरीके से नीति निर्धारण से बाज आना चाहिए.

अपडेटेड 5 नवंबर , 2012

जनवरी 2011 में जब सुदिनी जयपाल रेड्डी मुरली देवड़ा की जगह केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री बने थे, तो उनके लिए काम पहले से तय था-देवड़ा के कार्यकाल के दौरान जो विवाद मंत्रालय से जुड़ गए थे, उनसे पीछा छुड़ाना. इनमें सबसे बड़ा विवाद रिलायंस इंडस्ट्रीज के आंध्र प्रदेश स्थित कृष्णा गोदावरी बेसिन में केजी-डी6 नाम के प्राकृतिक गैस ब्लॉक का था. रेड्डी के मंत्री बनने के कुछ माह के भीतर ही कैग की एक मसौदा रिपोर्ट में रिलायंस और सरकार के बीच उत्पाद साझेदारी समझौते में ढेरों अनियमितताओं के आरोप लगाए गए.

कैग ने संकेत दिए कि रिलायंस ने अन्वेषण की अपनी लागत-जिसे गोल्ड प्लेटिंग कहते हैं-कृत्रिम तरीके से बढ़ा दी होगी जिससे 2004 से 2006 के बीच इसमें 117 फीसदी का असाधारण इजाफा हुआ होगा. इसका बोझ सीधे सरकारी खजाने और कमाई पर पड़ा क्योंकि सरकार के साथ रिलायंस के अनुबंध में सरकार के साथ राजस्व साझ करने से पहले अन्वेषण की लागत वसूले जाने का प्रावधान शामिल था.

कैग ने यह भी कहा कि अन्वेषण के पहले से दूसरे चरण और दूसरे से तीसरे चरण के बीच ही सरकार ने रिलायंस को अन्वेषित नहीं किए गए इलाके रखने की छूट दे दी थी जबकि अनुबंध के मुताबिक ऐसे इलाके हरेक चरण खत्म होने के बाद ही कंपनी को सौंपे जाने थे.

रेड्डी ने रिलायंस को दिए गए इन लाभों से उपजी धारणा को दुरुस्त करने का काम किया. उन्होंने रिलायंस को उसकी पूरी लागत वसूलने देने से इनकार कर दिया जिसके पीछे उनकी यह दलील यह थी कि उत्पादन में गिरावट आ रही है. बीते 31 अक्तूबर को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि उत्पादन में गिरावट दरअसल चुपके से गैस की जमाखोरी करने की रिलायंस की रणनीति थी ताकि वह अपनी शर्तें मनवाने के लिए सरकार को मजबूर कर सके.

रेड्डी ने आरआइएल द्वारा नए चरणों में अन्वेषण के लिए उसके लागत अनुमान को भी मंजूरी नहीं दी. आरआइएल का कहना है कि रेड्डी के कदम के कारण ही उत्पादन में गिरावट आई क्योंकि बगैर मंजूरी के और इलाकों में अन्वेषण करना मुमकिन नहीं था.

रेड्डी और रिलायंस के बीच सबसे बड़ा विवाद गैस कीमतों में बदलाव  को लेकर हुआ. सरकार ने 2010 में एक विशेषाधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह के माध्यम से गैस की कीमत प्रति यूनिट 4.42 डॉलर (237.80 रु.) तय की थी. इसे अप्रैल 2014 में संशोधित किया जाना था. रेड्डी का कहना था कि इसे बढ़ाया नहीं जा सकता क्योंकि इससे केजी-डी6 की गैस से पैदा होने वाली बिजली और उर्वरक के दाम बढ़ जाएंगे.

इन विवादों का हल भी नहीं हुआ था कि 28 अक्तूबर को रेड्डी को मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और उन्हें विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय में भेज दिया गया. विपक्षी दलों और केजरीवाल का मानना है कि इन्हीं विवादों के कारण रेड्डी को मंत्रालय से हटाया गया है. जबकि प्रधानमंत्री और सरकार का नजरिया है कि मंत्रालय और कंपनी के बीच पैदा गतिरोध बुनियादी ढांचा क्षेत्र को नुकसान पहुंचा रहा था. गौर करने की बात है कि भारत में बिजली की अधिकतम कमी 10 फीसदी से ज्यादा है और कई ऊर्जा संयंत्रों को चलाने के लिए गैस बेहद जरूरी है.

जाहिर है सरकार अपने सबसे बड़े गैस के भंडार केजी-डी6 में उत्पादन की इतनी बड़ी गिरावट बर्दाश्त नहीं कर सकती क्योंकि मार्च 2010 से अप्रैल 2012 के बीच उत्पादन आधा रह गया है. इसके अलावा तेल क्षेत्र में मौजूदा अनिश्चय निवेशकों को बिदका रहा है. 2009 में आई सरकार की नई अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति 8 के तहत 70 ब्लॉकों की व्यावसायकि नीलामी की जानी थी, लेकिन सिर्फ आधे से कम पर ही बोली लग पाई.

तेल और गैस क्षेत्र के विवाद से सरकार सबक ले सकती है. उसे अराजक नीति तंत्र को छोड़ बाजार आधारित पारदर्शी तंत्र को अपनाना चाहिए. कंपनियों के साथ अपने पर लग रहे सांठगांठ के आरोपों से वह सिर्फ तभी बच सकती है.

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