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जल महल का भविष्य अधर में फंसा

जयपुर के जल महल के आसपास बनने वाले आलीशान प्रोजेक्ट पर हाइकोर्ट की रोक के बाद अब सुप्रीम कोर्ट करेगा फैसला. जानकार इस प्रोजेक्ट को मान सागर झील के लिए ही खतरा मानते हैं.

अपडेटेड 26 सितंबर , 2012

अब जयपुर की मान सागर झील और इसके बीच में स्थित 17वीं शताब्दी के प्रसिद्ध स्मारक जल महल का भविष्य सुप्रीम कोर्ट तय करेगा. स्मारक के पास 100 एकड़ जमीन पर सेवन स्टार होटल और मार्केट कॉम्प्लेक्स के निर्माण पर राजस्थान हाइकोर्ट ने 17 मई को रोक लगा दी थी.

कोर्ट में दाखिल तीन जनहित याचिकाओं में दावा किया गया था कि अशोक गहलोत सरकार ने बहुत दरियादिली दिखाते हुए 435 एकड़ में बनने वाले लगभग 15,000 करोड़ रु. मूल्य के इस प्रोजेक्ट को सिर्फ  2.52 करोड़ रु. की सालाना लीज फीस पर दे दिया है.

मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्र और न्यायाधीश महेश भगवती की खंडपीठ ने इसे ‘जनता के साथ विश्वासघात’ और ‘हजारों करोड़ रु. कीमत वाली प्रॉपर्टी को अवैध तरीके से देने का मामला बताया था.

इस प्रोजेक्ट के खिलाफ याचिका एक पर्यावरण शोधकर्ता के.पी. शर्मा, धरोहर बचाओ समिति और हेरिटेज प्रिजर्वेशन सोसाइटी ने दाखिल की थी. प्रोजेक्ट के डेवलपर जलमहल रिसॉर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड (जेआरपीएल) और राज्य सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है.

इस मामले में अब वकालत के पेशे की तमाम शीर्ष हस्तियां आ जुड़ी हैं: राज्य सरकार ने सोली सोराबजी और मनीष सिंघवी को अपना वकील किया है तो जलमहल रिसॉर्ट्स की ओर से हरीश साल्वे, गोपाल सुब्रह्ण्यम, रंजीत कुमार और विवेक तनखा वकील हैं. इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे एक्टिविस्ट लोग प्रशांत भूषण को लेकर आए हैं.

एक अवकाशकालीन अदालत ने 25 मई को किसी तरह के नए निर्माण पर रोक के हाइकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा लेकिन अब तक जो नुकसान हो चुका है उसे पलटने यानी निर्माण कार्य को तोडऩे के आदेश पर रोक लगा दी. 25 मई और फिर 7 जुलाई को एक खंडपीठ ने हाइकोर्ट के आदेश पर रोक को बरकरार रखते हुए मामले को नियमित सुनवाई के लिए निर्धारित कर दिया.

बीस सितंबर को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पी. सदाशिवम और रंजन गोगोई की खंडपीठ ने विनोद जुत्शी और नवरतन कोठारी के खिलाफ आपराधिक मामला दायर करने और गिरफ्तारी वारंट जारी करने की अपील पर सुनवाई 4 अक्तूबर तक टाल दी. 2005 में जब इस प्रोजेक्ट पर दस्तखत हुए थे, उस वक्त जुत्शी ही राजस्थान पर्यटन विकास कॉर्पोरेशन के प्रमुख थे और जेआरपीएल के कोठारी का प्रतिनिधित्व वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने किया था. इन लोगों के खिलाफ मामला चलाने का आदेश जयपुर की एक ट्रायल कोर्ट ने दिया था और हाइकोर्ट ने भी उसे बरकरार रखा था.

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार 1999 से बार-बार यह कहती आ रही थी कि इस प्रोजेक्ट का असल मकसद तो झील और स्मारक का संरक्षण ही है, बस थोड़ी-सी जगह मनोरंजन के लिए रखी जाएगी. पर हुआ यह कि जेआरपीएल ने झील को छोटा करते हुए बड़े पैमाने पर वहां कॉमर्शियल निर्माण शुरू कर दिया और सरकार आंखें मूंदे रही. इस प्रोजेक्ट के दूसरे चरण पर काम अभी शुरू होना है. पर राजस्थान हाइकोर्ट ने 17 मई के अपने आदेश में बाकायदा कहा कि पहले ही चरण के काम से मान सागर के इको सिस्टम को काफी नुकसान हो चुका है.

पहले चरण में पानी में डूबी 15 एकड़ जमीन तो हासिल की ही गई, झील की और 85 एकड़ जमीन लेने के लिए जलस्तर को नीचे लाया गया. दूसरे चरण की योजना के तहत बनने वाली कॉमर्शियल इमारतों के लिए झील के इलाके को छोटा कर दिया गया.

दूसरे चरण में 435 कमरों का एक होटल, 200 दुकानें, एक मल्टीप्लेक्स, मॉल, कन्वेंशन सेंटर, बार और एक वेडिंग कोर्ट बनाने की योजना है. जेआरपीएल के कानूनी सलाहकार अरविंद जैन का दावा है, ‘‘मान सागर 2003 तक सीवेज उड़ेलने का अड्डा हुआ करता था. आज इसमें इतना पानी है. जल स्तर तो झील और जल महल दोनों को दुरुस्त रखने को ध्यान में रखकर तय किया गया था.’’

इक्कीस अगस्त को जयपुर और उसके आसपास के इलाकों में महज 177 मिलीमीटर बारिश से आए चौतरफा उफान ने कोर्ट के अंदेशों पर मुहर लगा दी. पहले चरण में झील के बेसिन में किए गए बदलाव से लगता है, ब्रह्मपुरी और नागतलाई नाम के दो अहम नालों के जल प्रवाह और संयोजन को बदल डाला.

नतीजा यह हुआ कि पिछली चार सदी में पहली दफा 21 अगस्त को झील से पानी उलटी दिशा में बहना शुरू हो गया. इस उलटे प्रवाह ने झील के ज्यादातर तटबंध को तोड़ दिया और जयुपर-दिल्ली रोड आठ फुट तक पानी में डूब गया. आमेर किले की तरफ जाने वाली सड़क शहर से पूरी तरह कट गई और हजारों मकान कमर भर पानी में डूब गए. हाइकोर्ट के आदेश में कहा गया है कि कई प्रतिवादियों ने कोर्ट को यह कहकर गुमराह करने की कोशिश की कि निर्माण को केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने मंजूरी दी है जबकि ऐसा कुछ भी नहीं था.

गहलोत पर इस बात के आरोप लग रहे हैं कि वे अपने दोस्त की कंपनी को बहुत ज्यादा रियायतें दे रहे हैं. गौरतलब है कि जेआरपीएल जिस कल्पतरु ग्रुप का हिस्सा है, उसके अरबपति प्रमोटर मफतराज मूणोत करीब तीन दशकों से गहलोत के दोस्त हैं. मूणोत के एक साझेदार जयपुर के ज्वैलर कोठारी भी गहलोत के करीबी बताए जाते हैं.

मुख्यमंत्री ने 17 मई को आए आदेश पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा था, ‘इस समझौते पर दस्तखत होने में मैं कहीं से भी शामिल नहीं था.’ लेकिन डेवलपर्स के प्रति सरकार का नरम रवैया दिसंबर 2003 में वित्तीय निविदाएं खुलने से पहले ही जाहिर हो गया.

इस तरह के प्रोजेक्ट्स में किसी तरह का अनुभव न रखने वाले केजीके इंटरप्राइज़ेज़ को 17 अक्तूबर, 2003 को प्रतिस्पर्धा में शामिल होने दिया गया. यही केजीके 10 नवंबर, 2004 को जेआरपीएल में तब्दील हो गया. गहलोत ने वित्तीय निविदाएं 3 दिसंबर, 2003 को खोलने की इजाजत दी और सौदा केजीके इंटरप्राइज़ेज़ के पक्ष में गया.

ढीली-ढाली शर्तों वाली 99 साल की सेल-कम-लीज़ डीड पर नवंबर 2005 में बीजेपी के शासन में दस्तखत हुए. इसके तहत जेआरपीएल को 2.52 करोड़ रु. की सालाना लीज़ फीस देने के अलावा जल महल के संरक्षण पर महज 1.5 करोड़ रु. खर्च करने थे. जेआरपीएल को 65 करोड़ रु. की स्टांप ड्यूटी चुकाने से भी छूट दे दी गई.

सरकार ने 35 करोड़ रु. की लागत से सीवेज का पानी साफ करने का जिम्मा भी खुद पर ले लिया. 10 अक्तूबर, 2007 को बीजेपी सरकार ने 435 कमरों के दो होटल बनाने के लिए डेवलपमेंट एरिया 11,500 वर्ग मीटर से बढ़ाकर 32,185 वर्ग मीटर करने की जेआरपीएल की अर्जी खारिज कर दी.

वसुंधरा राजे दिसंबर 2008 में सत्ता से बेदखल हो गईं और गहलोत फिर से कुर्सी पर आ गए. इसके बाद लीज की शर्तें तो कायम रहीं ही, राज्य सरकार ने 2009 में डेवलपमेंट एरिया भी बढ़ाने की इजाजत दे दी. हाइकोर्ट ने 17 मई को कहा कि इस प्रोजेक्ट के बारे में लीज के पैसे से ‘श्राज्य सरकार के उपकार का एक छोटा अंश’ भी नहीं चुक सकेगा.

इस प्रोजेक्ट को बंद कराने के पैरोकार जयपुर के वकील अजय जैन का आरोप है, ‘श्राज्य सरकार ने अपनी कीमती संपत्ति भेंट कर दी और उस पर खर्च भी किए जा रही है ताकि एक प्राइवेट पार्टी को इससे नियमित कमाई होती रहे.’ पर जेआरपीएल के अरविंद जैन जोर देकर कहते हैं, ‘सरकारी पैसे का कतई दुरुपयोग नहीं हुआ है. प्रोजेक्ट एक ग्लोबल टेंडर के जरिए हासिल किया गया है. सरकार को इससे नुकसान का जो दावा किया जा रहा है, उसकी बजाए उसे कहीं ज्यादा फायदा होने वाला है.’ अब विरासत और कॉमर्शियल हित के बीच इस टकराव का भविष्य सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है.

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