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सांची स्तूप: शुरुआत से पहले विवाद

मध्य प्रदेश सरकार एक के बाद एक विवादित मसलों में फंसती जा रही है. जल सत्याग्रहियों के मुद्दे से पीछा छूटा भी नहीं था कि 21 सितंबर को बुद्घ की ज्ञान प्राप्ति के 2,600 साल पूरे होने के मौके पर सांची में होने जा रहा कार्यक्रम अभी से विवादों में फंस गया.

अपडेटेड 22 सितंबर , 2012

मध्य प्रदेश सरकार एक के बाद एक विवादित मसलों में फंसती जा रही है. जल सत्याग्रहियों के मुद्दे से पीछा छूटा भी नहीं था कि 21 सितंबर को बुद्घ की ज्ञान प्राप्ति के 2,600 साल पूरे होने के मौके पर सांची में होने जा रहा कार्यक्रम अभी से विवादों में फंस गया. दरअसल, इस कार्यक्रम में बौद्घ स्टडी सेंटर की आधारशिला रखी जानी है, जिसके लिए श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को खास तौर से आमंत्रित किया गया है. इसी का तमिल नेता कड़ा विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि श्रीलंका में तमिलभाषी लोगों की हत्या के जिम्मेदार राजपक्षे हैं.

सांची में सौ एकड़ जमीन पर इस सेंटर की स्थापना भारत और श्रीलंका की सरकार, मध्य प्रदेश सरकार और महाबोधि सोसायटी मिलकर कर रहे हैं. लगभग 200 करोड़ रु. की लागत से बनने वाला सेंटर बौद्घ समुदाय के लोगों के लिए शिक्षा के एक प्रमुख केंद्र के रूप में काम करेगा और इसे सांची यूनिवर्सिटी ऑफ बुद्घिज्म कहा जाएगा. इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर विवादों का साया तभी से पडऩे लगा जबसे लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने राजपक्षे की भोपाल यात्रा की घोषणा की.

श्रीलंका में तमिल हितों के लिए हमेशा से आवाज उठाते रहे एमडीएमके के नेता वाइको ने इस घोषणा पर हैरत जताते हुए कहा, “राजपक्षे श्रीलंका में तमिल लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं. यह मामला तमिलनाडु के आम लोगों की भावनाओं से जुड़ा हुआ है. यह एक गंभीर मसला है. जिसके चलते राजपक्षे को कार्यक्रम में शामिल नहीं होने देना चाहिए.”

वाइको ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर मांग की है कि राजपक्षे को सांची के कार्यक्रम में हिस्सा लेने से रोका जाए, साथ ही चेतावनी भरे अंदाज में यह भी कहा कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो वे अपने ढेर सारे समर्थकों के साथ सांची पहुंचकर राजपक्षे का विरोध करेंगे. उनके मुताबिक तमिलनाडु से 3,000 से ज्यादा तमिल सांची पहुंचेंगे और राजपक्षे को काले झंडे दिखाएंगे.

तमिलनाडु की अन्य पार्टियों ने भी राजपक्षे की भोपाल यात्रा के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है. डीएमके प्रमुख करुणानिधि ने दो टूक शब्दों में कहा, “राजपक्षे की प्रस्तावित यात्रा का विरोध करने वाले लोगों के साथ हूं.”

तमाम चेतावनियों को ज्यादा महत्व न देते हुए प्रदेश के संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने जता दिया कि विरोधियों के तेवरों के बावजूद कार्यक्रम में किसी तरह का बदलाव नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा, “कार्यक्रम की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं और हम मेहमानों के स्वागत के लिए पूरी तरह से तैयार हैं.”

इस मुद्दे पर विरोधी विचारधारा वाली पार्टियां एक साथ खड़ी दिखाई दे रही हैं. प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता माणक अग्रवाल ने राजपक्षे की यात्रा को लेकर अपना पक्ष रखते हुए कहा, “श्रीलंका के राष्ट्रपति का हम स्वागत करते हैं और हमें उनकी मध्य प्रदेश यात्रा से न तो कोई दिक्कत है और न ही हम इसका विरोध करेंगे.”

बौद्घ समाज, जो इस पूरे कार्यक्रम के केंद्र में है, स्टडी सेंटर को लेकर हो रहे विवादों से खासा नाखुश है. बुद्घिस्थ सोसायटी ऑफ इंडिया के राज्य संयोजक मोहनलाल पाटील कहते हैं, “विरोध का यह तरीका ठीक नहीं है.” बौद्घ समाज सांची में राजपक्षे के खिलाफ होने वाले किसी भी विरोध प्रदर्शन का साथ नहीं देगा. पाटील के शब्दों में “वाइको अगर राजपक्षे का विरोध करना ही चाहते हैं तो इसके लिए सांची सही जगह नहीं है. उनको चाहिए दिल्ली जाकर अपना विरोध दर्ज करवाएं. राजपक्षे अच्छे काम के लिए आ रहे हैं और हमें उनका स्वागत करना चाहिए.”

इस कार्यक्रम में राजपक्षे के अलावा अन्य देशों से भी कई हाइप्रोफाइल लोग शामिल होने वाले हैं. जैसे कि भूटान के प्रधानमंत्री ल्यूनपो जिगमे थिनले और चीन, इज्राएल, ब्रिटेन, फ्रांस, इंडोनेशिया, जापान सहित कई देशों के दार्शनिक भी यहां आएंगे. ऐसे में जरा-सी चूक दुनिया में भारत की छवि खराब कर सकती है. इसलिए प्रदेश सरकार पूरी एहतियात बरत रही है. इसकी एक वजह 2013 में होने जा रहा विधानसभा चुनाव भी है. शिवराज सरकार के हाथ सुनहरा मौका लगा है जब वह खुद को

बौद्घ हितैषी साबित कर सकती है. कांग्रेस भी बौद्घ मतदाताओं को लुभाने में पीछे नहीं रहना चाहती,   इसीलिए वह बीजेपी के सुर में सुर मिला रही है.

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