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अफजल की राह पर कसाब?

मुंबई में अब तक के सबसे खतरनाक हमले के दहशतगर्द को फांसी पर लटकाने में कहीं ठिठक न जाएं यूपीए के पैर.

अपडेटेड 5 सितंबर , 2012

अजमल कसाब की फांसी की सजा पर 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी. इसके साथ ही मुंबई आतंकी हमले के मुख्य दहशतगर्द पाकिस्तानी नागरिक का भविष्य अब केंद्र सरकार के हाथ में आ गया है. सवाल उठता है कि क्या सरकार फांसी की सजा देगी या फिर 2004 में फांसी की सजा सुनाए गए अफजल गुरु की तरह ही इस मामले को भी लंबा खींचेगी? कसाब 26/11 को मुंबई पर हुए हमले में दोषी है तो अफजल 2001 में संसद पर हमले का दोषी है. वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे कहते हैं, "मुझे उम्मीद है कि जो भी सत्ता में है, उसे राजनैतिक बाध्यताओं के ऊपर राष्ट्रीय हित को रखना चाहिए."

कसाब ने 14 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में 10 अक्तूबर, 2010 को अपने खिलाफ आए फैसले के खिलाफ अपील की थी. अदालतों ने हर स्तर पर 25 साल के इस आतंकी को मौत की ही सजा सुनाई है. अब कसाब के पास इकलौता कानूनी रास्ता सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका डालना बचा है. यदि इसे भी खारिज कर दिया जाता है, तो वह राष्ट्रपति के पास दया याचिका डाल सकता है. कसाब की ओर से वकील राजू रामचंद्रन ने मीडिया को बताया है कि यह फैसला कसाब को मंजूर है.

बीजेपी की प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने कहा, "सुनवाई की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाइकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है. कोर्ट ने कहा है कि कसाब ने देश के खिलाफ युद्ध छेड़ा था. संभावित आतंकियों को सही संदेश देने के लिए जरूरी है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अपना कर्तव्य तेजी से निभाए."

बीजेपी के अन्य नेता भी इस बात से सहमत हैं. पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर इस मामले में अफजल के मामले का जिक्र ले आते हैं, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तक कुछ लोगों को फांसी की सजा नहीं दी जा सकी है. यदि हम आतंकवाद से लडऩा चाहते हैं, तो फैसले करने में जल्दी करनी होगी."

लेकिन कांग्रेस के नेता दोनों मामलों में फर्क बताते हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक सांसद और अधिवक्ता कहते हैं, "गुरु पर षड्यंत्र का आरोप है जबकि कसाब पर हत्या का." गुरु ने 2011 में दया की मांग की थी लेकिन गृह मंत्रालय ने इसे ठुकराने की सिफारिश की. उसका मामला अब भी लंबित है. बीजेपी ने गुरु की फांसी की सजा में देरी पर कांग्रेस पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया है.

लेकिन कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी इस आरोप को नकारते हैं, "2012 में सिर्फ एक दया याचिका को छोड़कर (बलवंत सिंह राजोवाना) बाकी सारे मामले निपटाकर राष्ट्रपति के पास भेज दिए गए हैं. आतंकवाद से जुड़ी दया याचिकाओं और दूसरे अपराधों से जुड़ी याचिकाओं में फर्क करते हुए उनके निपटारे में तेजी लाए जाने की जरूरत है." कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भी मीडिया से कहा कि "कसाब को जल्द-से-जल्द फांसी दी जानी चाहिए." कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के मुताबिक, "आखिरकार इंसाफ मिल ही गया."

इन सब के बीच विपक्ष यह जानने को उत्सुक है कि क्या अदालती फैसले को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाएगा? मुंबई हमला जिस बड़े पैमाने पर हुआ था, उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि कांग्रेस के पास जन भावनाओं के सामने घुटने टेकने के अलावा कोई रास्ता नहीं. वैसे भी आजकल सरकार जिस मुसीबत में घिरी है वहां कुछ सख्त फैसले उसकी छवि को बचा सकते हैं.

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