मध्य प्रदेश में खंडवा के एक उत्साही किसान 49 वर्षीय अभय जैन ने जब तीन साल पहले चंदन की खेती शुरू की तो लोगों ने उन्हें झक्की समझ. लेकिन आज तीन सौ एकड़ में फैले चंदन के 36,000 पेड़ आठ से दस फुट ऊंचे हो चुके हैं.
खंडवा से पच्चीस किमी दूर खापरखेड़ा गांव में चंदन की खेती के लिए जैन ने पहाड़ी की बंजर जमीन खरीदी तो सबसे पहले गांव वाले ही उनके विरोध पर उतर आए. उन्हें लगता था कि चंदन के पेड़ लगाने का मतलब है सांप और अजगर को बुलावा देना. लेकिन जैन ने लोगों को भरोसे में लिया और फिर गांव वालों ने चंदन की खेती में न केवल उनकी मदद की बल्कि सर्वसम्मति से गांव का नाम ही बदलकर चंदनपुर रख दिया. कुछ ही समय में पथरीली जमीन पर चंदन के पौधे लहलहा उठे. खुशबू दूर तक पहुंचने लगी. चंदन का यह खेत इतना प्रसिद्घ हो गया कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आने लगे.
चंदन की यह बागवानी जैन के लिए एक पंथ दो काज की तरह थी. हरियाली की हरियाली और कमाई ऊपर से. वे हरसूद में पचास एकड़ जमीन पर और बलवाड़ा गांव में सौ एकड़ जमीन पर सुबबूल और नीलगिरी लगा कर लाखों रुपए कमा चुके थे. फिर उन्होंने चंदन की खेती करने की ठानी और बंगलुरू से चंदन के व्यावसायिक वृक्षारोपण का प्रशिक्षण भी लिया.
पर उनका सपना साकार होने की राह में अभी और भी रोड़े थे. चंदन की खेती के लिए सरकार सब्सिडी नहीं देती. जैन ने बैंक से कर्जा लेने की कोशिश की लेकिन यहां भी मुश्किलें आईं. तब उन्हें उपाय सूझः चंदन के साथ आंवले की भी खेती करने का. तरकीब काम आई. बैंक ऑफ इंडिया से उन्हें आंवले की खेती के लिए एक करोड़ बीस लाख रु. का कर्ज मिल गया. बैंक की बरूड शाखा के प्रबंधक एस.आर. गजरे कहते हैं, ''चंदन की खेती का जोखिमभरा फैसला जुनूनी व्यक्ति ही ले सकता था.''
आर्थिक परेशानियां थोड़ी कम हुईं तो अगली चुनौती थी बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने की. इसके लिए जैन ने सबसे पहले यहां एक तालाब बनवाया. इससे भूजल स्तर तो बढ़ा ही, पौधों के लिए पानी भी उपलब्ध हुआ. चंदन के साथ आंवले की खेती का एक और फायदा हुआ, जैसा कि उद्यानिकी विभाग के तकनीकी सहायक जवाहरलाल जैन बताते हैं, ''चंदन परजीवी वृक्ष है. उसकी जड़ें दूसरे पेड़ से पोषण लेती हैं. आंवले में वे सारे पोषक तत्व होते हैं जो चंदन के लिए जरूरी हैं. चंदन की सुरक्षा का खर्च आंवले से होने वाली आमदनी से निकाला जा सकता है.''
जैन ने चंदन के इस निजी जंगल को चारदीवारी से घेरने, हर पेड़ पर सेंसर लगाने और सशस्त्र गार्ड तैनात करने की योजना बनाई है. वे बताते हैं, ''पंद्रह साल बाद एक पेड़ की कीमत लगभग छह लाख रु. होगी. पेड़ में सबसे महंगा तत्व इसका तेल होता है. एक पेड़ की जड़ से पौन लीटर तेल निकलता है जिसका बाजार भाव दो लाख रु. लीटर है.''
चंदन की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश लोक वानिकी अधिनियम 2001 के तहत प्रावधान है कि अपने खेत में व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए चंदन उगाने वाले किसान उसे काट भी सकेंगे. हालांकि इसके लिए उसे वन विभाग से इजाजत लेनी होगी. जैन ने इसी नीति का लाभ उठाया. इसी जागरूकता से अब उनकी जीवन की बगिया में समृद्धि आएगी. इस इलाके के किसान इस प्रयोग को गौर से देख रहे हैं.