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एबीवीपी ने भाजपा के शीर्ष पदों पर कैसे बनाया दबदबा?

भाजपा, उसकी सरकारों और संघ के शीर्ष पदों पर विद्यार्थी परिषद से आए लोगों के पहुंचने को परिषद के विस्तार के लिए बेहतर माना जा रहा और यह 2024 के आम चुनावों के लिए भी बेहद अहम.

नई दिल्ली में एबीवीपी के राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन करते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
नई दिल्ली में एबीवीपी के राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन करते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह
अपडेटेड 4 फ़रवरी , 2024

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के 8 दिसंबर, 2023 को नई दिल्ली में 69वें राष्ट्रीय अधिवेशन में केंद्रीय अमित शाह ने कहा, "मैं गौरवान्वित हूं कि मैं विद्यार्थी परिषद का एक ऑर्गेनिक प्रोडक्ट हूं." शाह यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा, "मुझे चार दशक पहले का समय याद आ रहा है, जब मैं कार्यकर्ता के रूप में पिछली पंक्ति में बैठा करता था. चीन युद्ध के बाद पूर्वोत्तर को देश से जोड़े रखने का कार्य करने में परिषद की भूमिका महत्वपूर्ण है. एबीवीपी वह मूर्ति है, जिसे यशवंतराव केलकर, मदनदास देवी, दत्ताजी डिडोलकर जैसे कई महान शिल्पियों ने 75 वर्षों की इस यात्रा में गढ़ा है. चाहे भाषा और शिक्षा का आंदोलन हो या संस्कृति को बरकरार रखना हो, हर क्षेत्र में विद्यार्थी परिषद ने युवाओं के माध्यम से समाज को 'स्व’ का महत्व बताया है."

जिस दिन शाह एबीवीपी के अधिवेशन में भाषण दे रहे थे, उस दिन मंच के सामने तीसरी पंक्ति में मध्य प्रदेश के उज्जैन दक्षिण के विधायक और प्रदेश सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे मोहन यादव भी बैठे थे. जब वे उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी स्थित आयोजन स्थल निरंकारी मैदान पहुंचे तो वहां व्यवस्था में लगे एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने उन्हें तीसरी पंक्ति में बैठाया.

यादव शाह की उन बातों को ध्यान से सुन रहे थे जिनमें वे चार दशक पहले आखिरी पंक्ति में बैठने की यादों को साझा कर रहे थे. न तो उन्हें और न ही एबीवीपी कार्यकर्ताओं को इस बात का एहसास था कि तीसरी पंक्ति में बैठे यादव के नाम की घोषणा ठीक तीन दिन बाद यानी 11 दिसंबर को मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के तौर पर होने वाली है. 

यादव के सियासी जीवन की शुरुआत भी विद्यार्थी परिषद से हुई है. उज्जैन के माधव विज्ञान महाविद्यालय में 1982 में परिषद के सचिव बनने के साथ यादव की जो यात्रा शुरू हुई, वह भारतीय जनता युवा मोर्चा होते हुए भारतीय जनता पार्टी तक पहुंची और अब वे मध्य प्रदेश के शीर्ष सियासी पद पर पहुंच गए हैं.

केवल मोहन यादव विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि से नहीं है. मध्य प्रदेश के अलावा दिसंबर, 2023 में भाजपा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चुनाव जीतकर सरकार बनाने में कामयाब रही और इन दोनों राज्यों में बनाए गए मुख्यमंत्री भी एबीवीपी की पृष्ठभूमि से हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने भी राजनीति का ककहरा एबीवीपी में ही सीखा.

इसी तरह राजस्थान के नए मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की शुरुआती ट्रेनिंग भी विद्यार्थी परिषद में ही हुई है. एबीवीपी के कश्मीर मार्च आंदोलन में उनकी प्रमुख भूमिका थी और उधमपुर में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था. परिषद के जो कार्यकर्ता राम मंदिर आंदोलन में लगे थे उनमें शर्मा भी शामिल थे. हैरानी कि कांग्रेस ने जिस रेवंत रेड्डी को तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनाया, वे भी एबीवीपी में रहे हैं. बाद में वे चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी में गए और वहां से कांग्रेस में.

दरअसल, विद्यार्थी परिषद ने हमेशा से ही ऐसे छात्र नेताओं को प्रशिक्षित किया है, जो बाद में भाजपा में शीर्ष पदों पर पहुंचे हैं. ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है. भाजपा के मौजूदा ढांचे में देखें तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की शुरुआत विद्यार्थी परिषद से हुई थी. भाजपा के सबसे ताकतवर महासचिवों में शुमार किए जाने वाले सुनील बंसल और विनोद तावड़े परिषद से ही आए हैं.

इनमें भी बंसल पूर्णकालिक हैं. वहीं पार्टी के राष्ट्रीय सचिव के पद पर काम कर रहे ओमप्रकाश धनखड़ और आशा लकड़ा ने भी अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत एबीवीपी से ही की थी. विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि वाले भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्षों की बात की जाए तो इस सूची में भारत के उपराष्ट्रपति रहे वेंकैया नायडू, मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का नाम शामिल है. एबीवीपी से निकलकर विभिन्न राज्यों में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद तक पहुंचने वाले नेताओं की लिस्ट तो और लंबी है.

एबीवीपी की गतिविधियों के जरिये छात्र जीवन में राजनीति का ककहरा सीखकर केंद्र और राज्य सरकार में प्रमुख पदों पर पहुंचने वाले नेताओं की सूची भी बेहद लंबी है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में कम से कम एक दर्जन मंत्री ऐसे हैं, जो एबीवीपी से आए हैं. इनमें आधे दर्जन से अधिक कैबिनेट मंत्री हैं. शाह, राजनाथ सिंह और गडकरी के अलावा शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, जलशक्तिमंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पर्यटन मंत्री जी. किशन रेड्डी जैसे नेता इस सूची में शामिल हैं.

यह पूछे जाने पर कि क्या एबीवीपी का एक मुख्य कार्य भाजपा के लिए नेता तैयार करना है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख और एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन सचिव रहे सुनील आंबेकर कहते हैं, "एबीवीपी सिर्फ राजनीति के लिए नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में नेतृत्व करने वाले लोग तैयार करना चाहती है. परिषद से निकले लोग अलग-अलग क्षेत्रों में नेतृत्व कर रहे हैं. हमारी कोशिश यह रहती है कि बेहतरीन व्यक्तित्व तैयार हों. हम नहीं चाहते कि छात्र किसी राजनैतिक दल का 'जिंदाबाद-मुर्दाबाद’ करने वाले बनकर रहें बल्कि हम चाहते हैं कि वे राष्ट्रीय जीवन में सक्रिय भूमिका निभाने में सक्षम बनें."

एबीवीपी से अपना सियासी सफर शुरू करके अभी राज्यों के मुख्यमंत्री के तौर पर काम करने वालों में मोहन यादव, विष्णु देव साय और भजन लाल शर्मा के अलावा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी शामिल हैं. वहीं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी एबीवीपी से आए हैं.

भाजपा और भाजपा की सरकारों में विद्यार्थी परिषद से आए लोगों का प्रभाव तो 1990 के दशक से ही बनना शुरू हो गया था. अब दबदबे की स्थिति बन गई है. लेकिन संघ और इसके आनुषंगिक संगठनों में विद्यार्थी परिषद से आए लोगों के प्रमुख पदों पर पहुंचने की शुरुआत हाल के वर्षों में हुई है. इन संगठनों में एबीवीपी के कार्यकर्ताओं का दबदबा साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है. 

अगर संघ की बात करें तो इसके सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले भी विद्यार्थी परिषद से ही आए हैं. संघ के सांगठनिक ढांचे में सरसंघचालक के बाद वरिष्ठता क्रम में दूसरे नंबर का पद सरकार्यवाह का होता है. आम तौर पर इस पद पर अब तक ऐसे लोग ही आए हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन संघ के कार्यों में लगाया है.

होसबाले 1972 में विद्यार्थी परिषद से जुड़े और 1978 में परिषद के महासचिव बनाए गए. 15 वर्षों तक उस पद पर रहते हुए उन्होंने न सिर्फ दक्षिण भारत में बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी एबीवीपी के विस्तार में सक्रिय भूमिका निभाई. 2004 में वे संघ में वापस आए और मार्च, 2021 में संघ के नंबर दो हो गए. पहली बार ऐसा हुआ कि संघ में इतने शीर्ष पद पर एबीवीपी की पृष्ठभूमि वाला कोई व्यक्ति पहुंचा है.

होसबाले के अलावा भी संघ में प्रमुख पदों पर एबीवीपी में रहे लोग अभी काम कर रहे हैं. संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख आंबेकर भी विद्यार्थी परिषद से ही आए हैं. पूर्ण रूप से संघ के कार्यों में वापस लौटने से पहले आंबेकर एबीवीपी के राष्ट्रीय संगठन सचिव के तौर पर काम कर रहे थे. उनके अलावा संघ के आउटरीच प्रोग्राम के सह प्रभारी रमेश अप्पाजी भी विद्यार्थी परिषद से ही आए हैं. 

इनके अलावा विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार भी अपने छात्र जीवन में विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहे हैं. 1970 के दशक में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान आलोक 1973 में छात्रसंघ अध्यक्ष बने. बाद में वे संघ में काम करने लगे. दिल्ली प्रांत के सह संघ चालक के पद तक पहुंचे और वहां से 2018 में वे विहिप के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष पद पर आए.

विहिप में इस पद की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके पहले इस पद पर प्रवीण तोगड़िया थे. संघ और आनुषंगिक संगठनों में दूसरी और तीसरी पंक्ति में जो लोग काम कर रहे हैं, उनमें विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि वाले लोगों का दबदबा है. इससे यह भी पता चलता है कि आने वाले दिनों में इन संगठनों में शीर्ष पदों पर एबीवीपी से आए लोग और अधिक दिखेंगे.

भाजपा, सरकार, संघ और इसके संगठनों में एबीवीपी से गए लोगों के बढ़ते कद से आखिर एबीवीपी को क्या लाभ है? संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं, "इससे कॉलेज और विश्वविद्यालयों में काम कर रहे एबीवीपी कार्यकर्ताओं का काम थोड़ा आसान हुआ है. जब वे नए छात्रों को संगठन से जोड़ने के लिए जाते हैं तो कई बार नए छात्रों पर बड़े नामों का असर पड़ता है. उन्हें लगता है कि अगर वे एबीवीपी से जुड़कर पूरी लगन से काम करेंगे तो उनके लिए चुनावी राजनीति के अलावा सामाजिक जीवन में आगे बढ़ने के असीमित अवसर हैं. प्रमुख पदों पर एबीवीपी की पृष्ठभूमि वाले लोगों के होने से परिषद के कार्यकर्ताओं का भी उत्साह बढ़ता है और उन्हें लगता है कि अगर वे ठीक से काम करते रहे तो संगठन भविष्य में उन्हें और अहम जिम्मेदारियां दे सकता है."

दरअसल, हाल में तीन राज्यों में विद्यार्थी परिषद के मुख्यमंत्री बनने को परिषद के कार्यकर्ता अपने संगठन विस्तार में उपयोगी मान रहे हैं. खासकर उन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में जहां केंद्र में करीब 10 साल की भाजपा सरकार के बावजूद परिषद अपनी पैठ उतनी मजबूत नहीं कर पाई है, जितनी उसे अपेक्षा थी.

इनमें नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और हैदराबाद के उस्मानिया विश्वविद्यालय के अलावा दक्षिण भारत, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में एबीवीपी को मजबूत करना शामिल है. परिषद के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी इसको लेकर विस्तृत चर्चा हुई कि उसका विस्तार उन क्षेत्रों में तेजी से करना है, जहां उसकी उपस्थिति मजबूत नहीं है. परिषद के कार्यकर्ता बताते हैं कि जमीनी स्तर पर छात्रों को संगठन से जोड़ने के लिए वे उन्हें संघ, सरकार या पार्टी में वरिष्ठ पदों पर पहुंचे लोगों का उदाहरण देकर प्रेरित करने की कोशिश करते हैं.

साल 1948 में स्थापना से अब तक के विद्यार्थी परिषद की यात्रा के बारे में उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राजशरण शाही कहते हैं, "एबीवीपी समय के साथ सतत अपने ध्येय यात्रा को आगे बढ़ा रही है. 75वर्षों की गौरवशाली यात्रा में केवल विद्यार्थी परिषद ने प्रश्न ही नहीं अपितु उनके समाधान भी प्रस्तुत किए हैं और देश के युवाओं को भारत के वास्तविक इतिहास से परिचित कराने का कार्य किया है." 

असल में, सांगठनिक विस्तार की दृष्टि से यह परिषद के लिए बेहतरीन दौर है. इस बारे में एबीवीपी के राष्ट्रीय महामंत्री याज्ञवल्क्य शुक्ल कहते हैं, "एबीवीपी ने सदस्यता के मामले रिकॉर्ड तोड़ा, विद्यार्थी परिषद ने अपने अमृत महोत्सव वर्ष में सदस्यता के पिछले सभी आंकड़ों को पार कर वर्ष 2023-24 में 50,65,264 सदस्यता करते हुए पुन: इतिहास रचा है. एबीवीपी देश का सबसे बड़ा छात्र संगठन है." बुराड़ी में 7 से 10 दिसंबर के बीच आयोजित अधिवेशन में देशभर से परिषद के करीब 10,000 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

एबीवीपी दिल्ली प्रदेश के एक पदाधिकारी बताते हैं, "2024 लोकसभा चुनाव का साल है. आम तौर पर हमारे कार्यकर्ता अपनी इच्छा और रुचि से विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में सक्रिय रहते हैं. संगठन के स्तर पर ऐसा करने की कोई विवशता उनके सामने नहीं रहती है. अब जब भाजपा संगठन और सरकार में शीर्ष पदों पर एबीवीपी के पूर्व कार्यकर्ता दिखते हैं तो चुनावी राजनीति में रुचि रखने वाले परिषद के कार्यकर्ताओं की चुनावों में सक्रियता बढ़ जाती है. संभव है कि लोकसभा चुनावों में विभिन्न स्तर पर परिषद के कार्यकर्ता सक्रिय दिखें." जाहिर है कि चुनावों में परिषद के कार्यकर्ताओं की सक्रियता जितनी अधिक बढ़ेगी, भाजपा को कई तरह से उतना अधिक फायदा होगा.

विद्यार्थी परिषद ने अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर उद्घाटन के अवसर पर भी विस्तृत गतिविधियों पर काम करना शुरू किया है. उसके शीर्ष नेताओं को यह लगता है कि इससे विभिन्न कॉलेज और विश्वविद्यालय परिसरों में नए छात्रों तक पहुंचने में मदद मिलेगी. परिषद के एक कार्यकर्ता बताते हैं, "राम मंदिर एक ऐसा विषय है जिसे लेकर एक सकारात्मक श्रद्धा भाव उन छात्रों में भी है जो एबीवीपी से नहीं जुड़े हैं. ऐसे में अगर ये छात्र राम मंदिर से संबंधित हमारी गतिविधियों में शामिल होते हैं तो भविष्य में वे हमारे संगठन से भी जुड़ सकते हैं. हमने 22 जनवरी को देश के हर शैक्षणिक परिसर में दीवाली मनाने की योजना बनाई है. इसके लिए हम सभी छात्रों को आमंत्रित कर रहे हैं."

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