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"अब चिप बनाने में भारत को अगुआ बनना है"

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के बारे में इंडिया टुडे ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा से बात की. पेश हैं कुछ हिस्से.

cover story: semiconductor mission Interview
अश्विनी वैष्णव
अपडेटेड 4 नवंबर , 2025

प्रश्नः 1984 में मोहाली में सेमीकंडक्टर लैबोरेटरी बनाई गई थी तब भारत सेमीकंडक्टर रेस में आगे लगता था. लेकिन 40 साल बाद हम पिछड़ गए और आज 95 फीसद चिप्स आयात कर रहे हैं. कहां चूक हुई?

इसके पीछे एक लंबा इतिहास है. कई मौके छूटे, लेकिन मैं चर्चा को राजनैतिक बहस में नहीं ले जाना चाहता. अहम बात यह है कि जैसा हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं, हमें उस अवसर को देखने की जरूरत नहीं है जो हमसे छूट गया. अब हमें खुद इस अवसर का अगुआ बनना है. उनके पास इस मिशन को लेकर विजन बहुत साफ है और इसे पूरा करने पर जोरदार फोकस है.

मोदी सरकार का इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आइएसएम) पहले की पहलकदमियों से कितना अलग है?
इस इंडस्ट्री की प्रकृति समझना जरूरी है. यह तभी कामयाब होती है जब पूरा इकोसिस्टम विकसित हो गया हो. चिप निर्माण में 500 से ज्यादा केमिकल और 50 से अधिक गैस लगती हैं. इनकी प्योरिटी को पार्ट पर मिलियन से नहीं, बल्कि पार्ट पर बिलियन और ट्रिलियन में मापा जाता है, क्योंकि यह बेहद अल्ट्रा-प्योर सामग्री होती है.

इन्हें पाने के लिए पूरी ग्रिड की स्थिरता और पूरा इकोसिस्टम खड़ा करना जरूरी है. तभी इस इंडस्ट्री की मजबूत नींव डलेगी और यह अगले 40 साल तक चलेगी. इसके लिए हमें पूरी वैल्यू चेन—डिजाइन, फैब्रिकेशन, असेंबली टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग तक—देखनी होगी, जिसे ईडीए (इलेक्ट्रॉनिक डिजाइन ऑटोमेशन) टूल्स सपोर्ट करते हैं.

क्या आइएसएम इस इकोसिस्टम को विकसित करने में मदद करेगा?

हमने हर इकोसिस्टम प्लेयर के साथ गहराई से काम किया है, चाहे वह केमिकल और गैस बनाने वाले हों, उपकरण निर्माता हों या सप्लायर, साथ ही राज्य सरकारें, पंचायतें और स्थानीय निकाय. इस इंडस्ट्री को खड़ा होने में कम से कम 10 साल लगते हैं. चीन को भी 20 साल से ज्यादा लगे. आज हम उस मुकाम पर हैं जहां 10 यूनिट निर्माणाधीन या योजना में हैं. वैल्यू चेन के डिजाइन हिस्से में तो हमें पता है कि हमारी अपनी ताकत बहुत अच्छी है. इसलिए यह संतोष की बात है कि जल्द ही हमारे पास एंड-टू-एंड चिप मैन्युफैक्चरिंग होगी.
 
आपने बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनियों को क्या प्रोत्साहन दिए हैं और क्यों?

अगर आप ग्लोबल बेंचमार्क देखें तो हमारे आकार वाले देशों ने इस इंडस्ट्री में अरबों-खरबों डॉलर लगाए हैं, क्योंकि यह एक रणनीतिक इंडस्ट्री है. इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, इसलिए सरकार का सपोर्ट जरूरी है. पूरी दुनिया में यही प्रैक्टिस है और हम भी बेस्ट प्रैक्टिस फॉलो कर रहे हैं.

हमने इंसेंटिव्ज दिए हैं जो सेमीकंडक्टर मिशन पॉलिसी के हिसाब से हैं, कैपिटल एक्सपेंडिचर और एलिजिबल इन्वेस्टमेंट, दोनों को सपोर्ट किया गया है. कुछ राज्य सरकारों ने भी ऐसा किया है. अब तक करीब 18 अरब डॉलर (1.6 लाख करोड़ रुपए) का निवेश हो चुका है. हमारा लक्ष्य है कि हम सिर्फ चिप ही नहीं बल्कि उसके मटीरियल और मशीनें भी यहीं बनाएं. पूरा इकोसिस्टम इसी पर बन रहा है.

लेकिन अब तक टीएसएमसी, एनविडिया या चीनी मैन्युफैक्चर्स जैसी बड़ी कंपनियां भारत नहीं आई हैं. ऐसा क्यों?

एक बड़ी कंपनी पीएसएमसी ने टाटा के साथ साझेदारी की है. माइक्रॉन, जो दुनिया की टॉप पांच कंपनियों में है, वह भी गुजरात के साणंद में प्रोजेक्ट लगा रही है. बाकी कंपनियां भी आएंगी. जब आप कोई बिल्कुल नई इंडस्ट्री शुरू करते हैं तो दुनिया पहले सवाल करती है. अब वे सवाल पीछे छूट चुके हैं. जैसे (डच कंपनी) एएसएमएल अपनी पूरी टॉप लीडरशिप के साथ आई थी और उन्होंने साफ कहा कि भारत सेमीकंडक्टर नेशन बनने के लिए बिल्कुल सही रास्ते पर है.

कब तक हम अपने यहां चिप्स बनाना शुरू करेंगे और आयात पर निर्भरता कम होगी?

जिन 10 प्रोजेक्ट्स को हमने चुना है, उनमें लगभग हर सेक्टर कवर हो गया है. जैसे-जैसे ये फैसिलिटीज तैयार होंगी, हम अपनी घरेलू जरूरत का बड़ा हिस्सा खुद पूरा कर पाएंगे. लेकिन यह भी समझना जरूरी है कि सेमीकंडक्टर एक ग्लोबल इंडस्ट्री है. यह देशों की सीमाओं में बंधी नहीं है. हर मटीरियल और हर कॉम्पोनेंट कई देशों से गुजरता है, तब जाकर फाइनल प्रोडक्ट बनता है. हमारी भूमिका है कि हम इस ग्रोथ स्टोरी में भरोसेमंद पार्टनर बनें और इसमें योगदान दें. जिस तरह हमने पब्लिक और प्राइवेट दोनों सेक्टर की ताकत को मिलाया है, आने वाला सफर अच्छा होगा.

स्किल डेवलपमेंट और नौकरी सृजन के बारे में क्या योजना है?

हमने टैलेंट डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किया है और 278 यूनिवर्सिटीज को लेटेस्ट डिजाइन टूल्स दिए हैं. नतीजा यह है कि सिर्फ ढाई साल में छात्रों ने उन्हीं टूल्स पर आधारित चिप्स डिजाइन कर लीं और हमने एससीएल के जरिए उन्हें फैब्रिकेट भी किया. दुनिया के बहुत कम देश यह दावा कर सकते हैं कि उनके विश्वविद्यालय और कॉलेज के छात्र चिप्स डिजाइन और प्रोड्यूस कर रहे हैं. यह भविष्य में नौकरियों का बहुत बड़ा कारक बनेगा.

आपको क्या लगता है कि अगले पांच या 10 साल में भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री कैसी दिखेगी?

यह एक बेहद व्यापक इंडस्ट्री होगी. पांच साल बाद हम चिप्स बना रहे होंगे, हमारे पास मजबूत आरऐंडडी होगा, और एक शानदार इक्विपमेंट-मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम खड़ा होगा. हम सिलिकॉन कार्बाइड जैसे सबसे जटिल और अहम नए मटीरियल भी बनाएंगे.

यह सफर आने वाले सालों में बहुत बड़ा और असरदार बनने वाला है और हम इसे लीड करने की तरफ बढ़ रहे हैं. यह इंडस्ट्री तभी कामयाब होती है जब पूरा इकोसिस्टम, डिजाइन, फैब्रिकेशन, असेंबली टेस्टिंग, मार्किंग और पैकेजिंग तक विकसित हो गया हो. और ऐसा होने में कम से कम 10 साल लगते हैं.’

जब आप कोई बिल्कुल नई इंडस्ट्री शुरू करते हैं तो दुनिया पहले सवाल करती है. लेकिन अब वे सवाल पीछे छूट चुके हैं... हम इसे लीड करने की तरफ बढ़ रहे हैं.

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