● दोहा डायमंड लीग में अंतत: आपने 90 मीटर की सीमा पार कर ली. कैसा लगा?
नब्बे मीटर बस एक संख्या है जो आज एक जादुई आंकड़ा बन चुका है. और अब इसे पार करने के साथ मैं इसकी बोझ से मुक्त हो गया हूं. मेरा लक्ष्य जितना हो सके उतनी दूर तक भाला फेंकना है और इसके लिए कड़ी मेहनत करता रहूंगा. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अब 90 मीटर पार करने जैसा कोई सवाल नहीं उठेगा!
● दोहा में रजत, उसके बाद पेरिस डायमंड लीग में स्वर्ण, इस साल अपनी उपलब्धियों पर क्या कहेंगे?
हालांकि शुरुआत देर से हुई लेकिन दक्षिण अफ्रीका में कोच जान जेलेज्नी के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग लेना वास्तव में बहुत अच्छा रहा. मैं अब इसे ट्रेनिंग में अपना पा रहा हूं पर अभी इसे प्रतिस्पर्द्धाओं में दोहराने की जरूरत है. मैं दौड़ते और भाला फेंकते वक्त अपना पोस्चर नियंत्रित रखने जैसी चीजों पर काम कर रहा हूं.
● आपके नाम पर 'नीरज चोपड़ा क्लासिक’ का आयोजन कैसा लग रहा?
मैंने तो बस इन चीजों के बारे में सोचा भर था. विश्वस्तरीय एथलीट्स की घरेलू प्रतियोगिता का आयोजन एक और सपने के साकार होने जैसा है, ठीक वैसे ही जैसे ओलंपिक या विश्व चैंपियनशिप जीतना. इसका अनुभव पदक जीतने से बिल्कुल अलग है लेकिन मुझे लगता है कि इस आयोजन के जरिए मैंने भारत के लिए कुछ सार्थक किया है.
● एनसी क्लासिक को लेकर आगे आपकी क्या योजना है?
इससे बहुत कुछ सीखने को मिला है, यह भी कि कहां सुधार की गुंजाइश है. इस साल इसमें पुरुष खिलाड़ी ही शामिल रहे पर हम महिलाओं को भी शामिल करने की कोशिश करेंगे. उम्मीद है कि हम इसे वार्षिक आयोजन बना पाएंगे और भविष्य में इसमें और भी खेल जोड़ पाएंगे. मैं इस पर ध्यान देना चाहता हूं कि भारत में एथलेटिक्स के स्तर को कैसे एक नए मुकाम पर पहुंचा सकता हूं.
— शैल देसाई