
● वह पहला टेस्ट मैच और निराशा
खासा निराश करने वाला था (ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ, अक्तूबर 2010, बेंगलूरू). जल्दी आउट हो गया था (4 रन पर). इंडियन टीम में और वह भी प्लेइंग 11 में कम ही (लोगों को) मौका मिलता है. उसमें भी चूक गए.
फिर मौका मिल पाएगा, पता नहीं होता. सचिन (तेंडुलकर) पाजी 110-120 के आसपास नॉट आउट थे. शाम को मैंने उन्हें बोला: 'वेल प्लेड पाजी.' फिर उन्होंने समझाया कि ''दिल छोटा नहीं करते. एक ऐसी गेंद आई और आप आउट हो गए, उस पे शायद मैं भी आउट हो जाता. आपने कुछ गलत नहीं किया. निराशा छोड़ो और आगे देखो. मौका आए उस दौरान बेहतर करने के बारे में सोचना. जो हुआ उसे जल्दी से भूल जाना."
पहले ही टेस्ट में बेस्ट एडवाइस, वह भी एक बड़े प्लेयर से. शाम को रूम पे जाके रोया था. इसमें दो राय नहीं. सेकंड इनिंग में नंबर तीन पे बल्लेबाजी करने का मौका मिला तो उसमें परफॉर्मेंस भी अच्छा हुआ.
● वह पहला दोहरा शतक
वो प्राउड मोमेंट था (इंग्लैंड के खिलाफ, नवंबर 2012, अहमदाबाद). अपने इमोशंस को मैंने पहले से ही कन्ट्रोल में रखा था. परिवार को मैंने बहुत पहले बता दिया था कि जब मैं देश का प्रतिनिधित्व कर रहा होऊं, उस वक्त की मैदान की उपलब्धियां जाती जिंदगी से बिल्कुल अलग होती हैं. मैं देश के लिए खेल रहा हूं जो कि सबसे बड़ी जिम्मेदारियों में से एक है.
पापा ने भी बचपन से सिखाया था कि आप देश और दुनिया में रह रहे कितने करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व और उनके इमोशंस को रिप्रेजेंट कर रहे हो. हां, दिन का खेल खत्म होने पर हम सेलिब्रेट करते थे. पर जब टीम जीतती है तो पूरा देश (सेलिब्रेट करता है).

● ऑस्ट्रेलिया में गजब पारी (2021)
(56 रन/211 गेंदें/गाबा मैदान) बदकिस्मती से जिधर एक्स्ट्रा बाउंस था उस छोर पर मेरी बल्लेबाजी ज्यादा आई. स्ट्राइक रोटेट करना भी मेरे लिए मुश्किल हो रहा था. शरीर पर काफी बार गेंदें लगीं. एक ही स्पॉट पे बहुत बार गेंद लगी. इससे उस जगह पर दर्द बहुत ज्यादा हो गया.
अंदर से आप स्ट्रांग रहें तो गेंदबाज को अपना दर्द दिखने नहीं देते ये दिखाके कि 'यार, तू मार ले गेंद, मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता.' पर आप दर्द कितना भी छिपाएं, पता तो चल ही जाता है क्योंकि ह्यूमन बॉडी ज्यादा दर्द सह नहीं सकती. दर्द की मेरी सीमा पार होने ही वाली थी. जब फिर वहीं पर गेंद लगी तो बैट पकड़ना थोड़ा मुश्किल हो गया.
फिजिशियन आया और मैंने उनसे बात की. राय यही बनी फ्रैक्चर भी है तो भी मैं रिटायर नहीं करूंगा. टीम में उस सीरीज में पहले से कई खिलाड़ी चोटिल थे तो मैं प्लेइंग 11 से बाहर नहीं रह सकता था. तय हुआ कि इसको स्कैन नहीं कराएंगे. फ्रैक्चर का पता चल गया तो खेल नहीं पाएंगे. दोनों की राय थी कि फिंगर को प्रोटेक्ट करेंगे और मैच खेलेंगे.
मैं तीन उंगली से बैट पकड़ रहा था. एक उंगली बैट के ऊपर लग ही नहीं रही थी. ऋषभ (पंत) और अजिंक्य (रहाणे) बल्लेबाजी के लिए आए तो उनको बोला कि मैं बल्लेबाजी करूंगा पर शॉट्स नहीं खेल पाऊंगा क्योंकि मेरे हाथ में उतनी पकड़ ही नहीं है. आप साहस दिखाते हो तो ऊपर वाला कहीं न कहीं मदद कर देता है. वह सीरीज बहुत ही अलग थी.
● और जब टीम से निकाल दिया गया
मैं ये तो नहीं कह सकता कि सिर्फ मुझे क्यों ड्रॉप किया गया (2023). मैंने सेलेक्टर्स से जानने की कोशिश की तो जवाब मिला कि 'यंग प्लेयर्स को लाने की कोशिश कर रहे हैं, आप घरेलू क्रिकेट में अच्छा करते रहिए.' मैं अपनी तरफ से जो कुछ भी कर सकता हूं, कर रहा हूं. सेलेक्शन होना, न होना मेरे हाथ में नहीं. पर मुझे अब भी उम्मीद है और मुझमें अब भी काफी क्रिकेट बाकी है. इसके लिए जरूरी डिसिप्लिन मेरे अंदर है.
● क्रिकेट टीम के दोस्त
जयदेव उनादकट काफी करीबी दोस्त हैं. हम दोनों ने सौराष्ट्र से क्रिकेट की शुरुआत की और इंडिया ए टुअर में भी साथ थे. दोनों का क्रिकेट का सफर लगभग साथ में शुरू हुआ. तो उनके साथ काफी बातचीत होती रहती है. इंडियन टीम के दूसरे प्लेयर्स के साथ इतने मैच खेले तो रिलेशन्स बन जाते हैं.
● स्लेजिंग यानी गालीगलौज पर
थोड़ी-बहुत स्लेजिंग करता हूं, सिर्फ क्रिकेट से रिलेटेड. कोई बल्लेबाज अच्छी बल्लेबाजी कर रहा है तो उसको याद दिलाया जाता है कि फलां गेंदबाज ने उसको कितनी बार आउट किया. इससे बल्लेबाज का आत्मविश्वास हिल जाता है और एकाग्रता भंग हो जाती है.
मुझे याद है भारत के एक ऑस्ट्रेलिया दौरे पर एक मैच में डेविड वार्नर बैटिंग कर रहे थे और मैं शॉर्ट लेग पे था. उसके पहले इंडिया में सीरीज के दौरान आश्विन ने उन्हें कई बार आउट किया था.
तो ऑस्ट्रेलिया में मैच के दौरान मैंने उनको रिमाइंड किया कि 'आपको याद है, आश्विन ने कितनी बार आपको आउट किया है?' उन्होंने बोल भी दिया, ''हां, छह बार. पर हम अभी ऑस्ट्रेलिया में खेल रहे हैं तो यहां अलग अंदाज होगा मेरा." लेकिन कई बार ऐसी भी बातें होती हैं जो ऑन कैमरा नहीं बोली जा सकतीं.
लेकिन अब चीजें काफी बदल गई हैं. सीरीज के वक्त दोनों टीमें साथ में ट्रैवल करती हैं. और आईपीएल आ गया. वहां काफी फ्रेंड्ली बातें भी हो जाती हैं. पर वो ऑन फील्ड बिहेवियर वो बस उस लम्हे में हो जाता है. बट उसके बाद...
● विराट कोहली का विदा होना
देखिए रिटायरमेंट एक पर्सनल कॉल होता है. विराट ने यह कॉल लिया तो सोच-समझकर ही लिया होगा. उनके और टीम मैनेजमेंट के बीच क्या चर्चा हुई, मुझे नहीं पता. पर विराट के साथ फिटनेस का कोई इश्यू नहीं था. जिस तरह से वे बल्लेबाजी कर रहे थे, वो उनके फिटनेस लेवल को दिखाती है.
● विराट मैदान पर
मैदान पर विराट कोहली का रवैया आक्रामक रहता है लेकिन मैदान से बाहर उनका एक अलग वर्जन आपको देखने को मिलेगा. वे बहुत शांत रहते हैं. बेहद संजीदा तरीके से बात करते हैं. ऑन फील्ड वे बेहद कंपीटिटिव हैं. बेहद एग्रेसिव.
वे और टीम दोनों ही मैदान पर कंपीटिटिव होना चाहते हैं. मैदान के बाहर आप जैसा भी व्यवहार-बर्ताव करें, वह आपकी चॉइस है. लेकिन मैदान पर आप कम्पीट करना चाहते हैं तो वह मैसेज अपोजिशन को भी क्लियरली देना चाहिए. दिखाना चाहिए कि हम यहां पर कम्पीट करने, मैच जीतने के लिए आए हैं. यही विराट की स्ट्रेंथ है.
● और रोहित शर्मा...
रोहित एकदम शांत और संयत रहते हैं. बिल्कुल नेचुरल. घर-बाहर एक-सा बर्ताव. खिलाड़ियों से मैदान पर और बाहर भी एक ही अंदाज में बतियाते हैं. खुद को चेंज नहीं करते. कप्तानी में भी उसी तरह. खुद को रोकते नहीं.
जो भी मन में आता है, प्लेयर्स से कह देते हैं. 'भाई आप यहां मैदान पर ध्यान दीजिए. आपका फोकस गेम में रहना चाहिए.' उनकी बात का कभी किसी प्लेयर ने बुरा नहीं माना. सब उनके बारे में जानते हैं. उनके मुंह से गाली भी निकले तो सब जानते हैं कि उनका वह मतलब नहीं. बहुत-सी बातें मैं कैमरे पर नहीं बता सकता.
● घर-परिवार और बीवी-बच्चे
मेरे करियर में परिवार और दोस्तों का बहुत सपोर्ट रहा. एक क्रिकेटर के परिवार को बहुत-सी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं. अब देखिए, मैं इंट्रोवर्ट हूं और (पत्नी) पूजा बहुत एक्सप्रेसिव हैं. यही चीज हम दोनों को कॉम्प्लीमेंट करती है. हम 2012 में एक-दूसरे से मिले. हमारी अरेंज्ड मैरिज थी. पिताजी ने मुझसे एक बायोडेटा बनाने के लिए कहा, जो मैंने खुद बनाया...
(पूजा बताती हैं)...उसमें इन्होंने अपना वजन 76 किलो लिखा था लेकिन लंबाई लिखी ही नहीं.
(पुजारा) बायोडेटा बनाने में मैंने किसी की हेल्प नहीं ली थी. समय कम था और परिवार वालों ने किसी को भेजने के लिए अचानक मांग लिया था. खुद लैपटॉप पे बैठकर थोड़ी-सी डिटेल भरी और दे दिया. सिर्फ 5 मिनट लगे मुझे वो तैयार करने में. कभी सोचा नहीं था कि बायोडेटा इतना डिटेल्ड होना चाहिए.
मेरे दिमाग में तो यही था कि सबको पता ही होगा, मैं कौन हूं. गूगल कर लेंगे तो काफी सारी चीजें मिल जाएंगी. जैसा मैंने पहले भी कहा कि मैं थोड़ा-सा इंट्रोवर्ट हूं तो अपने बारे में बहुत ज्यादा बताना पसंद नहीं करता और अभी भी बहुत कम लोगों को मेरे बारे में पता होता है क्योंकि खुल के बातें बहुत कम लोगों के साथ होती हैं. मेरे दोस्त और रिलेटिव्ज को छोड़कर बहुत ज्यादा लोगों को मेरे बारे में पता नहीं होता.
(पूजा) एक्चुअली मेरे पास एक बहुत ही गलत इंप्रेशन था. जो बायोडेटा आया था वो अधूरा था. उसे आए हुए भी एक हफ्ता हो गया था लेकिन ये मुझसे मिले नहीं थे. तो मुझे लगा कि इनको कोई इंटरेस्ट नहीं होगा. फिर मेरे ससुरजी मुझसे मिलने आए थे क्योंकि ये ट्रैवल कर रहे थे.
उसके हफ्ते भर बाद हमारे परिवार को कॉल आता है कि लड़का शहर में है और वो मिलना चाहता है. तो फिर मामाजी के घर पर मुलाकात हुई. मुझे यह भी अजीब लगा कि आज के समय में मामा के यहां कौन मिलता है. इससे मुझे लगा कि इसको कोई दिलचस्पी है नहीं. बस परिवार के दबाव में आकर इसने हां बोल दिया. फिर जब मिली और जैसे ही हम घर में दाखिल हुए, सारा नजारा ही बदल गया.
● परिवार की कुर्बानी
(पूजा) चेतेश्वर ने शादी से पहले ही बता दिया था कि ''आपको मेरे साथ ट्रैवल करना है, कीजिए. बशर्ते कि उसकी परमिशन है. पर मैं यहां काम पे आया हूं, घूमने नहीं. तो यह उम्मीद न रखना कि दिन भर खेलकर थकने के बाद हम लोग कहीं बाहर खाना खाने जाएंगे या किसी छुट्टी वाले दिन अगर मुझे रिकवरी की जरूरत है तो रिकवरी छोड़ के मैं आपके साथ बाहर चलूंगा.
यहां मैं एक एजेंडे के साथ हूं और वो एजेंडा मेरी प्रायोरिटी है." इनकी प्राथमिकताएं बहुत स्पष्ट थीं. यह मुझे बहुत पहले से पता था. और क्रिकेट फैमिली है तो घर पर भी क्रिकेट की ही बातें होती रहती थीं.
हमारी बेटी छह महीने की ही थी और तभी इनका इंग्लैंड दौरा पड़ा. इनका अंदाज तो कुछ इस तरह का था कि आप अपना (इंतजाम) कर लो. मतलब आपको होटल में ही रहना है, वहां रूम चाहिए तो मुझे बोल दो. मैं मैनेजर को बता दूंगा. तो मैंने कहा कि नहीं नहीं, हम लोग हमारा खुद का (इंतजाम) कर लेंगे.
फिर हम पहुंचे साउथैंपटन. वहां (होटल में) कमरे उपलब्ध ही नहीं थे. और मैं एयरबीएनबी (ट्रैवलर्स के लिए कुछ समय के वास्ते रिहाइश साझा करने की व्यवस्था) के तहत सर्विस अपार्टमेंट्स में रहकर थक चुकी थी. मुझे लगा कि होटल में ही रह लेते हैं. तो मैंने कहा कि मुझे होटल में रूम चाहिए.
इन्होंने मैनेजर को बोला तो पता चला कि उपलब्ध ही नहीं. पूरा होटल सोल्ड आउट है. अब ये इंडिया तो था नहीं कि कहीं से कुछ जुगाड़ हो गया. इन्होंने तो सीधे कह दिया कि नहीं मिल सकता रूम. और मैं आपके साथ रूम शेयर नहीं कर सकता. मुझे लगा कि अब मैं क्या करूं? इनका कहना था कि मैच को अभी तीन दिन हैं.
आपके पास 24 घंटे हैं. अपने लिए आप नया वाला रूम ढूंढ लो. मैंने कहा, मेरी गोद में छह साल की बेटी है, मैं कैसे करूं? कहां ढूंढने जाऊं? ये फिर कहने लगे कि जो भी करना है, करो पर मैं रूम शेयर नहीं कर सकता क्योंकि मुझे मैच की तैयारी के लिए अलग रूम चाहिए.
मैंने फिर एयरबीएनबी पर बहुत सारी खोजबीन की कि कैसे भी करके 200-300 मीटर वाली कोई जगह मिल जाए क्योंकि बच्ची छोटी थी. हम लोग ट्राइ कर रहे थे कि होटल के आसपास ही कुछ मिल जाए. तो फिर एक पूरा प्रॉपर घर जैसा मिला. उसी को चार दिन के लिए रेंट कर लिया.
उसके बाद तो फिर हमारा बाकायदा झगड़ा जैसा हो गया था कि आप इतने बेरहम कैसे हो सकते हैं? मैं एक छोटी बच्ची की देखभाल भी कर रही हूं! प्रॉपर वाला झगड़ा हुआ. मैच खत्म हुआ. उसमें इन्होंने 132 रन बनाए. उसके बाद बैग लेकर छोटे बच्चों की तरह हंसते हुए हमारे एयरबीएनबी आए. उसके बाद पूरा झगड़ा खत्म हो गया.