scorecardresearch

"अच्छी किताबों की तरह अच्छी फिल्में भी कालजयी होती हैं"

इंडिया टुडे हिंदी से बातचीत में फिल्म निर्माता इम्तियाज़ अली ने देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल के संरक्षक होने और दोबारा रिलीज हुई लैला मजनूं की सफलता वगैरह के बारे में बातचीत की. पेश है संपादित अंश

इम्तियाज़ अली, डायरेक्टर-प्रोड्यूसर
इम्तियाज़ अली, डायरेक्टर-प्रोड्यूसर
अपडेटेड 31 दिसंबर , 2024

देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल के मेंटॉर और संरक्षक के रूप में आपका तजुर्बा जबरदस्त रहा होगा.

मैं खुद को मेंटॉर नहीं, बल्कि देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल (डीडीएलएफ) का एक दोस्त मानता हूं...और हमेशा वही रहना चाहूंगा. यह पहला लिटरेचर फेस्टिवल है जिसने मुझे कई साल पहले आमंत्रित किया था; तब से मैंने इसके पांच संस्करणों में शिरकत की है. फिल्म डीडीएलजे की तरह डीडीएलएफ को भी देश में सबसे लंबा चलने वाला बेहतरीन लिटरेचर फेस्टिवल बनना चाहिए.

● लैला मजनूं दोबारा रिलीज के बाद बड़ी हिट बन गई है...

वाकई, ये बहुत मायने रखने वाली बात है. मुझे नहीं लगता कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में किसी फिल्म ने अपनी री-रिलीज में बेहतर प्रदर्शन किया है. अच्छी किताबों की तरह अच्छी फिल्में भी कालजयी होती हैं और वक्त के साथ और भी ज्यादा मकबूल हो जाती हैं.

● फिलहाल आप किस पर काम कर रहे हैं?

मैं अभी कुछ फिल्म स्क्रिप्ट और डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए एक शो पर काम कर रहा हूं. ये सब बस जल्दी ही आने वाले हैं.

● आजकल आप क्या पढ़ रहे हैं?

हाल ही मैंने हैन कांग की किताब द वेजिटेरियन फिनिश की है, यह कमाल की किताब है. इसमें हैरत की बात नहीं कि उन्हें साहित्य के लिए 2024 का नोबेल प्राइज मिला. किसी भी संजीदा पाठक को यह किताब जरूर पढ़नी चाहिए. मैं फ्रीडम ऐट मिडनाइट भी पढ़ रहा हूं, जो अब टीवी शो भी है. मेरी रीडिंग लिस्ट में जॉर्ज ऑरवेल का उपन्यास 1984 है.

—गीतिका सचदेव.

Advertisement
Advertisement