● हाल ही में हुए आपके नाटक त्रासदी की कहानी और फिर इसको मंच पर लाने का विचार कैसे आया?
जब मैं महिला साहित्यकारों को पढ़ता हूं तब मुझे मेरी मां याद आती हैं, जो इनके जैसे ही लिख सकती थीं लेकिन उनको तय खांचों में समेट दिया गया. अनगिनत औरतों के साथ यही हुआ और होता आया है. इंसान को जीने की जगह ही नहीं दी गई जबकि उसमें अपार संभावनाएं थीं. यही नाटक का मूल विचार है.
● थिएटर में आपने बतौर लेखक और निर्देशक लगातार और खूब काम किया है, आपके लिखने का प्रोसेस क्या होता है?
मुझे लगता है आप जितना पर्सनल होंगे उतने ही यूनिवर्सल भी होंगे. दुनिया भर के क्लासिक उपन्यास देश, काल, भाषा से इसलिए परे जा निकले क्योंकि वे रचनाएं इंसानी भावनाओं से गहरी जुड़ी हैं. मेरे लिखे में कल्पना के साथ मेरा होना जरूरी है. नहीं तो एक और नाटक या किताब लिखने का क्या फायदा?
● पीले स्कूटर वाला आदमी आपका एक मशहूर नाटक है, इसके पीछे की यात्रा क्या रही?
शक्कर के पांच दाने के बाद ये मेरा दूसरा नाटक था. जब मैंने ये नाटक मुंबई के पृथ्वी थिएटर फेस्टिवल में 2004 में पहली बार किया, तब मुझे याद है कि मेरे कई सीनियर आकर मुझे डांटने लगे थे और मैं अकेले में खूब रोया था. नाटक अपने आप में थोड़ा अनूठा था. बाद में धीरे-धीरे ये नाटक ऐसा पसंद किया गया कि लगातार कई सालों से होता आ रहा है.
● मंचन के लिहाज से संस्कृत के नाटकों को किस तरह देखते हैं आप?
मुझे लगता है कि नाटक में आपके जिए हुए जीवन का दिखना ज्यादा जरूरी है. एक समय इन नाटकों ने मुझ पर बहुत असर डाला, लेकिन अब मैं अगर कोई नाटक करता हूं तो उसमें मेरे जीवन का हिस्सा होना चाहिए. आज के लिए आज का नाटक ज्यादा जरूरी है जिससे देखने वालों का सीधा रिश्ता हो.
● आपकी सीरीज त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर पर दर्शकों का रिएक्शन कैसा रहा?
बेहद कमाल. यह किरदार बहुत खूबसूरत और सटीक तरीके से महिलाओं की सेक्सुअल लाइफ की बात करता है. शायद इसीलिए महिलाओं ने इस शो को बहुत पसंद किया, मुझे मैसेज आए कि यह बहुत जरूरी मुद्दे पर बात करने वाला शो था. बहुत सुंदर रिएक्शन आए हैं कि बहुत मनोरंजन के साथ जरूरी बात कही गई है. और जब आप ओटीटी के लिए कुछ कर रहे हों तो मनोरंजन का हिस्सा बहुत जरूरी है.