● ग्यारह ग्यारह आधिकारिक रूप से हिट कोरियाई ड्रामा सिगनल का रूपांतरण है. इसके किस पहलू ने आपको इतना प्रभावित किया?
इसने हमारा भेजा घुमा दिया. एडैप्टेशन के ऑफिशियल राइट्स हासिल करने को हमें खासी मशक्कत करनी पड़ी. हम चाहते थे कि यहां की ऑडियंस अपने स्तर पर इसे देखे और महसूस करे कि हिंदुस्तानी परिवेश से शो का कितना गहरा वास्ता है. क्या होता है जब दो अलग-अलग टाइमलाइन में दो पुलिस वालों के वॉकी-टॉकी गलती से जुड़ जाते हैं और शुरू होता है उसका बटरफ्लाई इफेक्ट.
● आपने और करण जौहर ने सीरीज को प्रोड्यूस किया है. आप दोनों हाल में आई खासी मार-धाड़ वाली फिल्म किल के भी प्रोड्यूसर थे. यह जोड़ी भला किस तरह से बनी?
हमारी बातचीत तो लंचबॉक्स के वक्त से ही चलती आ रही थी (2013 में रिलीज यह फिल्म मोंगा की सिख्या एंटरटेनमेंट ने प्रोड्यूस और करण की धर्मा प्रोडक्शंस ने डिस्ट्रीब्यूट की थी.) मैं ऐसे किसी प्रोजेक्ट के फिराक में थी जिसे लेकर मैं उनके पास जा सकूं. किल का फर्स्ट हाफ सुनते ही उन्होंने हां कर दी. हमारी पार्टनरशिप को एक ही लफ्ज परिभाषित करता है: एंपावरिंग-सशक्तीकरण.
● आपने एक ऐसी स्वतंत्र प्रोड्यूसर के रूप में अपनी पहचान बनाई है जो इंडियन सिनेमा को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में पहुंचा रही है. इस साल सनडांस (गर्ल्स विल बी गर्ल्स) और कान (ऑल वी इमैजिन ऐज लाइट) की जीत को आप किस तरह से देखती हैं?
मकसद कुलजमा इंडियन सिनेमा को सेलिब्रेट करना है. ये सारी फिल्में उस बड़े सपने का रास्ता बन रही हैं. मैं अकेले यह सब नहीं कर सकती. कितना अच्छा हो कि और लोग बड़े अवार्ड जीतें तथा हममें से और लोग रिश्ते गढ़कर नई जमीन, नए संपर्क तैयार करें. इससे होगा यह कि आपस में संवाद का एक सिलसिला निकलेगा.
● द एलिफैंट व्हिस्परर्स के लिए ऑस्कर जीतने के बाद क्या आपको लगता है कि आप पर ऐसा ही कुछ और लेकर आने का दबाव आ गया है?
देखिए, प्रेशर तो मैं लेती नहीं. मैं जो भी करती हूं एक-से प्रेम, जज्बे और जिज्ञासा भाव के साथ. उसे मैं जिंदा रखना चाहती हूं. अब भी ऑफिस में कुछ अच्छा दिख जाने पर मैं बाकायदा कूदने लगती हूं. ऐसा ही हुआ जब मैंने ग्यारह ग्यारह के पहले दो एपिसोड देखे.