• आपने बहुत संघर्ष किया और उसी अनुपात में सफलता पाई. इस वक्त आप अपने स्टेट ऑफ माइंड को कैसे परिभाषित करते हैं?
सच कहूं तो मैं कोशिश करता हूं कि इन सब चीजों के बारे में अधिक न सोचूं. मैंने उन लोगों के जीवन से बहुत सबक लिया जो नॉस्टैल्जिया में जीते थे. मुझसे कोई गैंग्स... या सैक्रेड गेम्स जैसी फिल्मों के डायलॉग बोलने को कह देता है तो मैं बड़ा असहज हो जाता हूं. मुझे अपनी गति से चलना और छोटी-छोटी फिल्में करना अच्छा लगता है.
• आप एक नएपन के साथ इंडस्ट्री में आए थे. आपके सड़क के अनुभव आपके किरदारों में बराबर दिखते रहे हैं. अलग-अलग किरदार करते हुए दिमाग में क्या रहता है?
मैं बस वही करना चाहता हूं जो देखता-सुनता हूं. जैसे अपनी लेटेस्ट फिल्म राउतू का राज में मैंने पाया कि फिल्मों में पुलिस को बड़े अलग तरीके से बोलते हुए दिखाते हैं जबकि पुलिसवाले भी हमारी-आपकी तरह नॉर्मल बात करते हैं. असल सत्ता उनकी बॉडी लैंग्वेज में होती है. तो मैंने किरदार में वही लाने का प्रयास किया. हमारी प्रेरणा रियल लाइफ से आनी चाहिए, अन्य फिल्मों से नहीं.
• राउतू का राज में आपने फिर से एक पुलिस वाले का रोल किया है. ट्रेलर देखकर लगता है कि यह क्राइम कॉमेडी है...
मैं इसे क्राइम कॉमेडी नहीं कहूंगा. कॉमेडी करने का कोई एफर्ट नहीं है. लेकिन परिस्थितियां कई बार हास्यास्पद बन जाती हैं. फिल्म में दिखाया गया है कि इलाके में 15 साल बाद क्राइम हुआ है और पुलिस वालों में कोई चुस्ती नहीं है. धीरे-धीरे उन्हें मजा आने लगता है और तब उन्हें एहसास होता है कि हर आदमी के पास एक स्किल है.
• फिल्म में पुलिसकर्मी नेगी का आपका किरदार आपके अन्य किरदारों से कैसे जुदा है?
ऐसा कोई क्रांतिकारी किरदार नहीं है कि झंडे गाड़ दे. लेकिन उसके इन्वेस्टिगेशन करने का तरीका अलहदा है. अमूमन मर्डर मिस्ट्री में बहुत फास्ट ऐक्शन दिखाते हैं. लेकिन हमने इसे स्लो पेस रखा है. जैसा असल में होता है.
• पेशेवर ऐक्टिंग के दौर में आपकी सबसे बड़ी सीख क्या रही है?
यही कि हर जगह जबरन अपना सौ फीसद देने की कोशिश न करें. कई बार रोल की डिमांड आपसे सिर्फ 5 फीसद की होती है. महत्वपूर्ण यह है कि डायरेक्टर की हर हाल में मानें. अगर उसने कहा है कि सीन में एक गिलास उठाकर दूसरी जगह रखना है तो चुपचाप ऐसा कर दें. वहां अपना किरदार ठूंसने का प्रयास न करें. अपना किरदार दिखाने के एक फिल्म में कई मौके आते हैं.
- कुलदीप मिश्र