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"मैं रोल नहीं, इंसानों को निभाता हूं"

अभिनेता के.के. मेनन से उनकी नई फिल्म, एमबीए करके ऐक्टिंग में आने, थिएटर और सिनेमा के फर्क और उनकी अभिनय शैली पर बातचीत

अभिनेता के.के. मेनन
अभिनेता के.के. मेनन
अपडेटेड 11 सितंबर , 2023
  • आपकी नई फिल्म आ रही है लव ऑल. दर्शकों को इसमें क्या नया और खास देखने को मिलेगा?

यह बैडमिंटन पर आधारित एक स्पोर्ट्स ड्रामा है. मिट्टी से जुड़ी हुई पारिवारिक फिल्म है. सबसे अहम बात यह है कि इसमें बैडमिंटन को ऑथेंटिक तरीके से पेश किया गया है. फिल्म में शामिल बच्चे नेशनल और इंटरनेशनल लेवल के खिलाड़ी हैं. कोई स्पेशल इफेक्ट नहीं है. लव ऑल को पूर्व बैडमिंटन प्लेयर और नामी-गिरामी कोच पुलेला गोपीचंद प्रजेंट कर रहे हैं.

  • आपने एमबीए की पढ़ाई की. उसके बाद एडवर्टिजमेंट की दुनिया में चले गए. वहां से ऐक्टिंग में किस तरह से आना हुआ?

मैं बचपन से स्टेज पर नाटक वगैरह किया करता था. उसे करते वक्त बड़ी आजादी महसूस होती थी. हालांकि तब ऐक्टिंग में करियर बनाने के बारे में नहीं सोचा था. फिजिक्स में ग्रेजुएशन के बाद मैंने एमबीए किया. फिर एडवर्टिजमेंट करने लगा. मगर संतुष्टि नहीं मिल रही थी. आनंद नहीं आ रहा था. थोड़े मनन-गुनन के बाद समझ आया कि अभिनय ही मेरा स्वधर्म है.

  • सिनेमा में काम करने के लिए थिएटर की ट्रेनिंग कितनी जरूरी है?

ये दोनों अलग माध्यम हैं. थिएटर में आप (ऐक्टर) दर्शकों तक पहुंचते हैं और सिनेमा में दर्शक ऐक्टर तक पहुंचते हैं. स्टेज पर ऐक्टिंग करते समय आपकी भाषा की स्पष्टता और देहभाषा सबसे ज्यादा मायने रखती है. सिनेमा इससे ठीक उलट है. वहां कैमरा आंखों के जरिए आपके जेहन में घुस जाता है. वहां आप चीटिंग नहीं कर सकते. आप जो बोल रहे हैं वह आपको महसूस करना पड़ेगा. इसलिए जरूरी नहीं है कि आप एक तरह की ऐक्टिंग सीखकर दूसरी विधा के उस्ताद हो जाएं. दोनों का अलग प्रोसेस है. खुद को उसके अनुसार ढालना आना चाहिए.

  • जब कोई ऐक्टर किसी फिल्म या सीरीज का हिस्सा बनता है तो क्या उसका फिल्म की पॉलिटिक्स के साथ खड़ा होना जरूरी है?

बतौर ऐक्टर आपको कोई किरदार या कहानी पसंद आती है तो वह काम आपको करना चाहिए. फिल्म की पॉलिटिक्स की जिम्मेदारी डायरेक्टर की होनी चाहिए. आप ऐक्टर हैं, एक्टिविस्ट नहीं. बतौर ऐक्टर आपका काम होता है कि आप खुद को खाली रखें ताकि भीतर कोई किरदार भरा जा सके. अगर आपने खुद को किसी राजनैतिक विचारधारा या किन्हीं पूर्वाग्रहों से ग्रस्त कर लिया तो आप अपने पेशे के साथ धोखा कर रहे हैं. वह इसलिए क्योंकि इससे आपकी परफॉर्मेंस पर फर्क पड़ता है. इसलिए मैं उस तरह से फिल्में या काम नहीं चुनता.

  • आपका ऐक्टिंग प्रोसेस क्या है? किसी किरदार को आप कैसे अप्रोच करते हैं?

मैं रोल्स नहीं करता. मैं इंसानों को निभाता हूं. और दो इंसान कभी एक जैसे नहीं होते. एक फिल्म में अगर मैं महेश नाम के पुलिसवाले का किरदार कर रहा हूं और दूसरी फिल्म में सुरेश नाम के पुलिसवाले का, तो मैं महेश और सुरेश बन रहा हूं, पुलिसवाला नहीं. ऐक्टिंग करते समय अपने अहंकार को छोड़ना बहुत जरूरी है. मेरे आने वाले प्रोजेक्ट्सस हैं बंबई मेरी जान, द रेलवे मेन और स्पेशल ऑप्स 2 वगैरह.

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