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''मेरी बात सुनकर सोनिया जी हंस पड़ीं''

सबसे बड़ा मुद्दा तो ओल्ड पेंशन स्कीम का है. हम जब लोगों के पास जाते हैं तो वे बार-बार कहते हैं कि रिटायर होने के बाद हम अपना परिवार कैसे चलाएंगे

नजर नतीजों पर : प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह बेटे विक्रमादित्य के साथ
नजर नतीजों पर : प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह बेटे विक्रमादित्य के साथ
अपडेटेड 14 नवंबर , 2022

हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष और मंडी की सांसद प्रतिभा सिंह विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत की रणनीति बनाकर प्रदेश भर में प्रचार कर रही हैं. मसरूफियत के बावजूद उन्होंने संपादक सौरभ द्विवेदी से विभिन्न विषयों पर बातचीत की. कुछ अंश:

पिछले दिनों आपने एक इंटरव्यू में कहा कि नेहरू जी, इंदिरा जी या राजीव जी लोगों से मिलते खूब थे. उनकी उपलब्धता रहती थी. नई पीढ़ी में राहुल और प्रियंका गांधी को इसके बारे में सोचना चाहिए. इस पर काफी विवाद हुआ. अब क्या कहेंगी?

जिन्होंने वह इंटरव्यू लिया, उनका क्या उद्देश्य था मुझे पता नहीं. लेकिन जब गांधी-नेहरू परिवार की बात चली तो मैंने वे बातें कहीं. जैसे जब वीरभद्र सिंह जी सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ते थे, पंडित नेहरू ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया. लेकिन वे सिनेमा देखने गए थे. काफी खोजने के बाद वे मिले. उनसे कहा गया कि आपको प्रधानमंत्री ने बुलाया है. वे सहमे हुए से पंडित जी से मिलने पहुंचे. पंडित जी ने पूछा कि कॉलेज के बाद क्या करना चाह रहे हैं? उन्होंने कहा कि लॉ करके प्रोफेसर बनूंगा. नेहरू जी ने कहा कि क्या तुम्हारे बाप-दादा में से किसी ने नौकरी की है? वीरभद्र जी ने जवाब नहीं दिया. नेहरू जी ने कहा कि आपके पूर्वजों ने भी रियासत के मुखिया के तौर पर लोगों की सेवा की है. अब वक्त बदल गया है. तुम्हें भी राजनीति में उतरना चाहिए. नेहरू जी ने उनके सामने माहसू (वर्तमान में मंडी) से लोकसभा का चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा. साथ ही हिदायत दी कि यह बात किसी को न बताएं.

इस बात को साल भर बीत गया. वीरभद्र जी अपने घर पर कांग्रेस की एक मीटिंग ले रहे थे. मुख्यमंत्री यशवंत परमार भी थे. शाम को प्रादेशिक समाचार आने थे. रेडियो मंगवाया गया. समाचारों में हिमाचल की चार लोकसभा सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा हुई. इसमें वीरभद्र जी का भी नाम था. परमार साहेब ने चुटकी ली, 'तुम तो बड़े छुपे रुस्तम निकले.' उन्होंने जवाब दिया, 'मुझे ऊपर से आदेश थे. मैंने परिवार को भी नहीं बताया.'

इसी तरह इंदिरा जी अगल-बगल रहने वाले पढ़े-लिखे नौजवानों की सियासी तरबियत पर ध्यान देती थीं. वीरभद्र जी को भी उन्होंने कई मर्तबा विदेश भेजा. राज्य में 1983 में राजनैतिक संकट आ गया था. तब इंदिरा जी ने वीरभद्र जी को बुलाकर हिमाचल की कमान लेने का आदेश दिया. इस तरह से हिमाचल में उनकी राजनैतिक पारी शुरू हुई. राजीव (गांधी) जी ने भी हिमाचल से खूब प्यार किया. वे अक्सर छुट्टियां बिताने यहां आते थे. सोनिया जी से भी मुलाकातें होती रहीं, जब भी दिल्ली जाना हुआ या फिर जब उन्होंने पार्टी के मुताल्लिक बुलाया.

मैं उस इंटरव्यू में यही कहना चाहती थी कि आज की पीढ़ी अपने तरीके से काम करती है. आप मेरे बेटे विक्रमादित्य की ही मिसाल लें. वीरभद्र जी की दिनचर्या अनुशासित थी. सुबह जल्दी उठना. इतने बजे इनसे मिलना, वगैरह. अब के बच्चे सुबह उठते हैं, जिम जाते हैं. खुद को फिट रखते हैं. नहा-धोकर नाश्ता. फिर किसी से मिलना हो तो मिलते हैं. आप बदलाव चाहें तो वे कह देते कि हमें पता है, हमें क्या करना है. एक जेनरेशन गैप आ गया है.

इस प्रसंग के बाद आपकी सोनिया गांधी या प्रियंका गांधी से मुलाकात हुई?

बिल्कुल हुई. मैं सोनिया जी से मिलने गई. उनको बताया कि मेरे कहने का मलतब क्या था और उसे गलत तरीके से दिखाया गया. सुनकर हंसते हुए उन्होंने कहा कि राजनीति में ऐसा होता रहता है. प्रियंका जी से भी मिलकर सारी बात बताई. उन्होंने भी कहा, 'मुझे पता है सचाई क्या है.' कुछ लोगों ने बड़ी चालाकी से मेरे इंटरव्यू को गलत तरीके से पेश किया.

आप 1998 से राजनीति में हैं. उसी साल सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनीं. उसके बाद एक पूरी पीढ़ी बदल गई है. उस दौर के जो लोग पार्टी छोड़कर जा रहे हैं चाहे आनंद शर्मा हों या गुलाम नबी आजाद, वे यह शिकायत तो कर ही रहे हैं.

मैं इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती. पहले भी मेरे इंटरव्यू को गलत तरीके से दिखाया जा चुका है.

1998 का जिक्र आया. आपने पहला चुनाव लड़ा और आप हारीं. कई विरोधियों और पार्टी के लोगों का कहना है कि वीरभद्र जी नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी राजनीति में आए. क्या प्रसंग था?

घर में भी यह बात अक्सर होती थी. वीरभद्र जी कहा करते थे कि राजनीति ऐसा क्षेत्र है जहां आप पर कई तरीके के आरोप भी लगते हैं. मर्द होने के नाते मैं उन्हें बर्दाश्त कर सकता हूं लेकिन अगर कोई परिवार या पत्नी पर आरोप लगाए तो मुझे सहन नहीं होगा. विक्रमादित्य के बारे में भी यही कहा. 2013 में यूथ कांग्रेस का पर्चा भरते वक्त वह काफी नाराज हुआ. तो उन्होंने कहा भी कि 'यह सब करने को किसने कहा? पढ़ाई पर ध्यान दो.' (जहां तक मेरी बात है तो) 1998 में मुझे चुनाव लड़ाने के लिए लोगों का बड़ा दबाव था. मंडी सीट के लिए ठाकुर कौल सिंह जी और रंगीलाराम जी दोनों ने लड़ने से मना कर दिया तो राजा साहेब को मजबूरी में मुझे उम्मीदवार बनाना पड़ा. 2004 में भी इसी तरह से हुआ. नाम तो उन्हीं का था पर वे लड़ नहीं सकते थे तो मुझे आगे कर दिया जाता था.

अक्सर खबरें छपती हैं कि हिमाचल कांग्रेस में गुट बहुत हैं. सुक्खू भी सीएम बनना चाहते हैं. मुकेश अग्निहोत्री का अपना दावा है. वीरभद्र जी के परिवार का दावा है ही. लोग कहते हैं कि कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला को सबसे ज्यादा पसीने लोगों को एकजुट करने में छूट रहे हैं.

देखिए, मैंने वीरभद्र सिंह को अक्सर कहते सुना था कि न तो किसी गुट में हूं और न ही गुट में विश्वास रखता हूं. मैं सोचती हूं कि जिसके भाग्य में होगा वही बनेगा. चाहने से, ग्रुप बनाने से कुछ न होगा. इससे अच्छा संदेश नहीं जाता. अभी तो आप पार्टी को बहुमत में लाने के बारे में सोचें. फिर आलाकमान और विधायक तय करेंगे किसको मुख्यमंत्री बनाया जाए.

वीरभद्र जी भी सांसद रहते हुए विधानसभा का चुनाव लड़ते थे. आप क्यों नहीं लड़ीं? कई लोग इसे मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के साथ जोड़कर भी देख रहे हैं.

मैं वैसे भी राजनैतिक रूप से महत्वाकांक्षी नहीं हूं. ये तो परिस्थितियों ने मुझे ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया.

पर आप प्रदेश अध्यक्ष हैं. जब अध्यक्ष बनीं तो रिज मैदान में बड़ी रैली हुई थी. लोगों ने कहा, यह आपका शक्ति प्रदर्शन है.

लोगों की भावना है. लोग प्यार करते हैं वीरभद्र सिंह के परिवार को. उन्होंने देश के लिए, प्रदेश के लिए बहुत कुर्बानियां दीं. बहुत कुछ किया है अपने लोगों के लिए. इसलिए लोग चाहते हैं कि वे वीरभद्र सिंह जी के परिवार को जिंदा रखें, उसे आगे आने का मौका दें. जिस तरह से वीरभद्र जी ने लोगों के लिए काम किया, लोग उम्मीद करते हैं कि हम भी उनके लिए उसी तरह से काम करेंगे.

आप लोग अपने 'दस निश्चय' की बात करते हैं. भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि रिवाज बदलेगा, राज कायम रहेगा. वे कौन से मुद्दे हैं जो जनादेश को तय करेंगे?

सबसे बड़ा मुद्दा तो ओल्ड पेंशन स्कीम का है. हम जब लोगों के पास जाते हैं तो वे बार-बार कहते हैं कि रिटायर होने के बाद हम अपना परिवार कैसे चलाएंगे. ये लोग कई बार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पास भी गए. लेकिन उन्होंने गौर ही नहीं किया. इसके बाद लोग कांग्रेस के पास आए. हमने फाइनेंशियल एक्सपटर्स से इस बारे में बात की. इसके बाद हमने वादा किया है कि कांग्रेस सत्ता में आई तो ओल्ड पेंशन स्कीम फिर से लागू करेगी.

कांग्रेस की सरकार बनने पर आप मुख्यमंत्री पद की दावेदार होंगी?

मैंने पहले ही कह दिया कि न तो किसी रेस में हूं, न मेरा कोई दावा है. मुझसे सीनियर कई लोग बैठे हैं. मैं उनका नाम नहीं लेना चाहती.

विधायक और आलाकमान कहे तो?

विधायक क्या कहते हैं, आलाकमान क्या कहता है, यह चुनाव के नतीजे आने के बाद की बात है. ठ्ठ

आपकी वीरभद्र सिंह से पहली मुलाकात कब हुई थी?

हमारे यहां पर जितनी भी पुरानी रियासतें हैं, उनमें आना-जाना लगा रहता था. न सिर्फ बड़े बल्कि बच्चे भी किसी भी सुख-दुख में एक-दूसरे के यहां जाते थे. मेरी राजा साहब (वीरभद्र सिंह) से पहली मुलाकात एक रिश्तेदार के यहां हुई. वे भी भूतपूर्व रियासत के मुखिया थे. मैंने तब दसवीं पास ही की थी. राजा साहब ने तब मेरी पढ़ाई को लेकर फिक्र जताई और पूछा कि दसवीं के बाद आगे की पढ़ाई करने की इच्छा है? मैंने कहा, नहीं. तो उन्होंने कहा, 'क्यों? बस दसवीं पास करके शादी करके घर बैठ जाओगी?' मैंने जवाब दिया कि मेरे पिता यही चाहते हैं. पिताजी भी वहीं बैठे हुए थे. वे भी एक रियासत के सदर रह चुके थे. वीरभद्र सिंह जी उनसे मुखातिब हुए और कहा, 'यह आपकी जिम्मेदारी है कि यह लड़की आगे पढ़े.' इसके बाद मैंने फिर से पढ़ाई शुरू की. 12वीं पास की. उनके कहने पर ही मैं गवर्नमेंट कॉलेज फॉर विमेंस गई. उस समय तक वे मेरे लिए पिता जैसे थे. उनकी बेटियां और मैं हमउम्र थे. कॉलेज में थी तब भी वे हाल-चाल जानने वहां आते थे. वे मुझसे उसी तरह से स्नेह करते थे जैसे एक पिता अपनी बेटी से करता है. तब हमने सोचा भी नहीं था कि हम जीवनसाथी बनेंगे.

वीरभद्र सिंह जी की माता जी काफी समय से उनके पीछे पड़ी रहीं कि वे फिर से शादी कर लें. पहली शादी से उन्हें दो बेटियां थीं. पहली पत्नी के इंतकाल के बाद वे शादी की बात टालते रहे. अंत में वे इंदिरा जी के पास गए, सारा सूरतेहाल बताया और शादी करने की इजाजत मांगी. वे उस समय प्रधानमंत्री थीं. इंदिरा जी ने कहा कि 'यह आपका निजी मामला है, राजनीति का इससे कोई लेना-देना नहीं. जो ठीक लगे, कीजिए.' फिर उन्होंने मुझसे साफ-साफ पूछा कि क्या मैं उनसे शादी करना चाहती हूं या किसी दबाव के चलते ऐसा कर रही हूं. मैं रजामंद थी.

हमारी शादी एक बेहद सादे समारोह में हुई. मेरा घर शिमला से एक घंटे की ड्राइव पर है. वे उस समय मुख्यमंत्री थे. पांच बजे तक वे अपने दफ्तर में रहे. उन्होंने इस शादी के बारे में दो-चार करीबियों को ही बताया हुआ था. उन्होंने मेरे पिता से भी कहा था कि कोई शोर-शराबा नहीं चाहिए. बेहद साधारण तरीके से शादी हुई. परिवार के लोग और कुछ करीबी मित्र इसमें शामिल हुए.

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