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बातचीतः ‘सबको टीकाकरण की जरूरत’

सीएमसी वेल्लूर में माइक्रोबॉयोलॉजी की प्रोफेसर तथा कोविड की दवा और वैक्सीन पर आइसीएमआर की समिति की पूर्व अध्यक्ष डॉ. गगनदीप कंग ने ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर (पब्लिशिंग) राज चेंगप्पा से वैक्सीन कूटनीति और कोविड की दूसरी लहर पर बात की. अंश:

डॉ. गगनदीप कंग
डॉ. गगनदीप कंग
अपडेटेड 15 अप्रैल , 2021

सीएमसी वेल्लूर में माइक्रोबॉयोलॉजी की प्रोफेसर तथा कोविड की दवा और वैक्सीन पर आइसीएमआर की समिति की पूर्व अध्यक्ष डॉ. गगनदीप कंग ने ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर (पब्लिशिंग) राज चेंगप्पा से वैक्सीन कूटनीति और कोविड की दूसरी लहर पर बात की. अंश:

आप मौजूदा दूसरी लहर की क्या खास बात देखती हैं? अब तक डेटा से क्या पता चल रहा है?
एक वाक्य में कहूं तो ‘यह पेचीदा है.’ हर वजह जुड़ती गई है—कोविड के प्रति हमारा रवैया, वायरस के नए स्ट्रेन और टीका लगाने में कोताही. वैक्सीन के मामले में हम अच्छी स्थिति में हैं. हम बस उन पश्चिमी देशों में इसके असर के डेटा का इंतजार कर रहे हैं जहां वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है और जहां वायरस के दूसरे रूप घूम रहे हैं. लगता है, मौजूदा वैक्सीन ब्रिटेन में मिले दूसरे स्ट्रेन पर काबू में कारगर है.

तो, यह अच्छी खबर है...
हम ब्रिटेन वाले स्ट्रेन के मामले में अच्छी स्थिति में हैं और ब्राजील और अफ्रीका वाले स्ट्रेन के मामले में भी अच्छी स्थिति में हो सकते हैं, मगर अफ्रीका वाले स्ट्रेन के बारे में हमें अभी देखना होगा. अच्छा होगा अगर दक्षिण अफ्रीका अपनी आबादी के लिए पर्याप्त वैक्सीन हासिल कर पाए.

दूसरी लहर किन वजहों से आई?
एक, पहले संक्रमण से बचे रहे लोगों में संक्रमण फैला है. सीरो-प्रीवैलेंस डेटा बताता है कि औसतन 20-25 फीसद लोगों को संक्रमण हुआ था (इलाके के हिसाब से आंकड़ा अलग-अलग हो सकता है). इसका मतलब यह है कि दिसंबर तक 50-80 फीसद लोगों को संक्रमण नहीं लगा था. भारत के मामले में यह बहुत बड़ी तादाद है.

दूसरे, पंजाब मे ब्रिटेन का बेहद संक्रामक स्ट्रेन 80 फीसद नमूनों में पाया गया है. हमें बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र में मौजूदा उछाल ब्रिटिश स्ट्रेन की वजह से है, लेकिन यह बहुत खतरनाक नहीं है. सही जानकारी के लिए और ज्यादा सीक्वेंसिंग डेटा की जरूरत है.
तीसरे, हमारा रवैया है. अगर आप देखें तो इस साल हर तरफ खासी ढिलाई आई. यह खतरे से खाली नहीं है, खासकर जब तक काफी संख्या में लोगों को वैक्सीन नहीं लग जाती और हमारी टीके लगाने की रफ्तार भी बहुत धीमी है.

हम इसमें सुधार कैसे ला सकते हैं? 
पहली बार हम वयस्क लोगों को टीके लगा रहे हैं, जो टीके की अहमियत समझते हैं और जो टीके लगाने को तैयार होंगे, लेकिन ऐसे भी हैं जो बीमारी के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं. ग्रामीण इलाकों में बहुत-से लोग सोचते हैं कि यह अमीरों की बीमारी है. लोगों को जागरूक करना और उन्हें टीके लगाना अहम है. सरकार को टीके के लिए अपने चरणबद्ध तरीके पर फिर विचार करना चाहिए, जिससे एक ही जगह पांच बार जाने की जरूरत होती है. पहले स्वास्थ्यकर्मियों के लिए, फिर फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए, उसके बाद 60 साल से ऊपर के लोगों, और फिर 45 साल से ऊपर के लोगों के लिए. सबको एक साथ वैक्सीन लगाने के बारे में क्यों न सोचें?

आपका मानना है कि टीकाकरण अभियान सब के लिए खुला होना चाहिए?
अमेरिका में पहली प्राथमिकता वाली आबादी जैसे स्वास्थ्यकर्मियों से शुरू किया गया, मगर उसकी आबादी हमसे एक-चौथाई है. हमारा देश बड़ा और विविधता भरा है. हम एक दिन में 30,000 जगहों पर टीके लगाने की क्षमता की बात करते हैं, लेकिन कितने सारे लोगों से एक ही जगह वैक्सीन लगवाने की उम्मीद की जाती है. यह वोट की तरह होना चाहिए, जहां थोड़ी दूरी पर वैक्सीन लगवाने की जगहें हों, बुजुर्ग और विकलांग आसानी से पहुंच सकें.

क्या कोविशील्ड से खून के थक्के जमने की यूरोप से आ रही रिपोर्टें चिंताजनक हैं?
भारत में जिन लाखों लोगों ने टीके लगवाए हैं, उनमें अब तक करीब 37 लोगों में खास तरह की परेशानियों की रिपोर्ट दर्ज हुई है. इसकी दर काफी कम है. खून के थक्के जमने के विकारों की कोई रिपोर्ट नहीं है. अगर ऐसा होता भी है, तो एंटी-कोएग्युलैंट से इसका आसानी से इलाज किया जा सकता है.

दूसरी लहर पहली से कैसे अलग है?
पिछले साल हम ऐसी स्थिति में थे जब हर कोई संक्रमित हो सकता था, किसी का पहले इससे वास्ता नहीं पड़ा था. इस साल क्या हालात हैं, यह जानने के लिए हमें वाकई सेरोलॉजी डेटा, प्रति व्यक्ति टेस्टिंग और टेस्टिंग के कारणों को देखने की जरूरत है. क्या आप किसी का टेस्ट ‘‘टेस्ट करने, पता लगाने और आइसोलेट करने’’ की बुनियादी व्यवस्था के तहत कर रहे हैं या उनमें लक्षण दिखाई देने की वजह से कर रहे हैं?

फिर आपको अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर को देखने की जरूरत है. उसके बाद इलाके, उम्र, सामाजिक-आर्थिक स्तर और पेशे के मद में देखने की जरूरत है ताकि समझ पाएं कि किसे संक्रमण लग रहा है और क्यों. अगर आप संक्रमित लोगों की पृष्ठभूमि नहीं जानते तो मृत्यु दर से खास पता नहीं चलता है. मसलन, अब युवा लोगों में कोविड से मृत्य की बातें सामने आ रही हैं. क्यों? मैं समझती हूं कि मोटे या औसत आंकड़े पर ही लंबे वक्त से जोर दे रहे हैं, इसके बदले ज्यादा विविधता भरे स्थानीय डेटा की जरूरत है.

बीते वक्त के मुकाबले मौजूदा मृत्यु दर का आप क्या मतलब निकालती हैं? क्या लक्षण पिछले साल जैसे ही गंभीर हैं?
हम मौत में बढ़ोतरी इसलिए देख रहे हैं क्योंकि संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. मौत व्यक्ति के संक्रमित होने के दो या तीन हफ्ते बाद होती है. आज अगर 450 मौतें देखते हैं तो ये उन लोगों की हैं, जिन्हें संक्रमण तब लगा था, जब कुल मामले 20,000 के आसपास थे. अगर आज मामले 50,000 हैं, तो अब से 2-3 हफ्तों बाद इसी अनुपात में मौत दिख सकती है. संक्रमण की गंभीरता की जानकारी के लिए हमें ज्यादा ब्योरों की जरूरत है कि किसे संक्रमण हो रहा है.

क्या हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि हम दूसरी लहर देख रहे हैं?
राष्ट्रीय स्तर पर यह दूसरी लहर है, लेकिन कई जगहों पर यह तीसरी या चौथी लहर है. आपको वायरस के प्रकोप की रोकथाम के लिए स्थानीय स्तर पर डेटा-आधारित फैसलों की जरूरत है, और टीके लगाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा किया जाए.

यानी दोहरा अभियान...
बिल्कुल. हमारे यहां जनवरी और फरवरी की शुरुआत में भी इतने कम मामले थे. यह तब था जब सीरम इंस्टीट्यूट के पास वैक्सीन की 5-7 करोड़ डोज थी. उसे तेजी से लगाना शुरू करना चाहिए था. अब भी माना जाता है कि सीरम इंस्टीट्यूट रोज वैक्सीन के 25 लाख डोज तैयार कर रहा है और इसे बढ़ाकर 35 लाख कर देगा. इसके बाद दूसरी कंपनियां भी मैदान में आ जाएंगी. हमें अपनी आपूर्ति का तेजी से इस्तेमाल करना चाहिए.

देश में बनी वैक्सीन का इस्तेमाल यहीं होना चाहिए या निर्यात भी करना चाहिए?
हमें दूसरे देशों में आपूर्ति करनी चाहिए, लेकिन यह तय हो कि हम कितना भेजेंगे, मसलन, अपनी क्षमता का पांचवां हिस्सा, खासकर उन देशों में जहां अति जोखिम वाले लोगों को अभी टीका उपलब्ध नहीं हुआ है. जैसे, अगर दक्षिण अफ्रीका या ब्राजील को हम वैक्सीन या अपने उत्पादन का एक हिस्सा देते हैं तो कोई समझदारी बनती है. वरना हम उनके स्ट्रेन को यहां बुलाते रहेंगे.
 
क्या लॉकडाउन अब समाधान नहीं रहा?
लॉकडाउन से क्या होता है? संक्रमण का प्रसार रुकता है. यह थोड़े वक्त का उपाय है. उसके बाद लोग फिर संक्रमण के जोखिम में जीने लगते हैं. आप स्वास्थ्य सेवाओं को बंद किए बगैर लॉकडाउन कैसे लगाएंगे, जो पिछली बार हुआ? वायरस की रोकथाम के लिए दूसरी स्वास्थ्य सेवाओं को तहस-नहस नहीं कर सकते. रोकथाम का कोई आसान विकल्प नहीं है.

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