वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी. चिदंबरम और प्रणब मुखर्जी को अक्सर पार्टी के भीतर तगड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता था, लेकिन उनके सियासी रास्ते लगभग एक जैसे ही रहे. कांग्रेस के एकदम भीतरी वृत्त का हिस्सा रहे दोनों नेताओं ने कांग्रेस से परे भी सियासी जिंदगी तराशी और कई बार केंद्रीय वित्त मंत्री रहे. बेशक ये जनाधार वाले नेता नहीं रहे, लेकिन नीतिगत मामलों पर दोनों पार्टी के लिए बेहद अहम रहे. चिदंबरम ने डिप्टी एडिटर कौशिक डेका से 31 अगस्त को बात की थी. यह वही दिन था, जिस दिन मुखर्जी का देहांत हुआ, इसमें उन्होंने भारत के पूर्व राष्ट्रपति के साथ अपने जुड़ाव को याद किया है.
प्रणब मुखर्जी के साथ निजी तौर पर आपकी सबसे स्थायी स्मृति क्या है?
यह राष्ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती से जुड़ा वाकया है, जिसमें वे यूपीए के उम्मीदवार थे. ए.के. एंटनी और मैं, केवल दो ही व्यक्ति उनके आवास पर मौजूद थे. जब किसी विशेष राज्य के वोटों की गिनती की गई (याद नहीं आता कि वह कौन-सा राज्य था) और घोषित किया गया कि उन्होंने 50 फीसद मतों का आंकड़ा पार कर लिया है, तो मैंने यह खबर उन्हें सुनाई. मैंने उन्हें बधाई दी और शॉल भेंट की. मैं उनके चेहरे पर बच्चे जैसी खुशी नहीं भूल सकता. मुझे लगता है, उस वक्त उन्होंने महसूस किया कि हमेशा हाथ से फिसलता गया शीर्ष पद आखिरकार उन्होंने पा लिया है.
आप एक कांग्रेसी, भारतीय सांसद, देशभक्त और हिंदू के रूप में प्रणब मुखर्जी का मूल्यांकन कैसे करेंगे?
कांग्रेसी: दिल से. भारतीय: नितांत स्वाभिमानी. सांसद: अव्वल रणनीतिकार. देशभक्त: किसी के भी बराबर. हिंदू: धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करने वाले प्रतिबद्ध हिंदू.
....और एक वित्त मंत्री के रूप में?
उनका रिकॉर्ड मिलाजुला रहा. उन्होंने ईमानदारी से प्रोत्साहन कार्यक्रमों को लागू किया और अर्थव्यवस्था के इंजन को चालू रखने के लिए उधार लेने और खर्च करने में संकोच नहीं किया. हालांकि, उन्होंने घाटे को नियंत्रण में नहीं रखा, जिसके कारण महंगाई काफी बढ़ी, जो किसी भी सरकार के लिए बुरी बात थी. मुझे यह भी लगा कि वे नौकरशाहों पर बहुत अधिक निर्भर हो गए थे.
आपको उनके तगड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश किया जाता था. उनके साथ अपने व्यक्तिगत रिश्ते का विश्लेषण आप किस तरह करेंगे?
हम प्रतिद्वंद्वी नहीं थे और हमारे बीच कोई कड़वाहट तो बिल्कुल नहीं थी. प्रतिद्वंद्वी मानने के लिहाज से वे मुझसे बहुत वरिष्ठ थे. कुछ मुद्दों पर हमारा नजरिया अलग था. 1991-92 में जब वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे, उन्होंने मुझसे कहा, ''चिदंबरम, मैं एक अलग युग का हूं. मैं जल्दी से बदल नहीं सकता. वित्त मंत्री और आप (तब मैं वाणिज्य मंत्री था) महसूस करते हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार और उदारीकरण आवश्यक है. आगे बढ़िए और वह कीजिए, जो आपको सही लगता है, मैं उसे स्वीकार करूंगा और आप दोनों का समर्थन करूंगा.'' उन्होंने राष्ट्रपति बनने तक वह वादा निभाया. अगर हमारे बीच परस्पर सम्मान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध नहीं होते तो क्या हम 10 साल तक कैबिनेट सहयोगी और कई मंत्री समूहों में एक साथ काम कर सकते थे?
मुखर्जी कई मौकों पर प्रधानमंत्री बनते-बनते चूक गए. आपकी राय में यह किसका नुक्सान था?
यह कहना मुश्किल है कि 1984 में उन्हें यह पद मिला होता तो वे किस तरह के प्रधानमंत्री होते. मुझे लगता है कि वे लोकतांत्रिक समाजवाद के मार्ग का पालन करने वाले पारंपरिक कांग्रेसी रहे होते. 2004 में प्रधानमंत्री के रूप में वे डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाते और उन्हें 1991-96 के दौरान शुरू किए सुधारों को जारी रखने की अनुमति देते. मैं नहीं कह सकता, वे उतने ही उत्साही होते और डॉ. सिंह की तरह एक सुधारक के रूप में होते, या हम 2004 से 2010 के बीच के विकास के सुनहरे साल हासिल कर लेते. मुझे लगता है, उन्होंने अच्छा किया और कांग्रेस ने उन्हें राष्ट्रपति के पद से पुरस्कृत किया. उन्होंने एक बार मुझे कहा था कि उन्हें कोई पछतावा नहीं.
आप एक गैर-पक्षपाती राष्ट्रपति के रूप में उनकी विरासत को कैसे देखते हैं?
मुझे लगता है कि उन्होंने रूलबुक (संविधान) का पालन करने वाले राष्ट्रपति के रूप में काम किया. भाजपा के उनकी प्रशंसा करने से पता चलता है कि वे गैर-पक्षपाती थे. उनके सियासी कद को देखते हुए मुझे कभी-कभी लगता था कि वे कुछ अवसरों पर खुद को थोड़ा और मुखर बना सकते थे. मुझे लगता है कि कुछ ही राष्ट्रपति अपनी विरासत छोड़ जाते हैं.