अपनी ताजा फिल्म चोला के बारे में कुछ बताइए.
चोला में एक ऐसी किशोरी की कहानी है जो अपने प्रेमी के साथ भागकर एक बड़े शहर जा रही है. यह रोड फिल्म है. एस दुर्गा (2017) और उन्मादियुदे मनरम (2017) सरीखी मेरी दूसरी फिल्मों जैसी राजनीति इसमें नहीं है. यह निजी किस्म की है. बहुत ज्यादा तो नहीं बताऊंगा पर हां, यह तीन दिन के घटनाक्रम पर है.
एस दुर्गा में भी लंबी रोड ट्रिप थी और शुरू से आखिर तक खासा तनाव था उसमें?
जी, बस उतनी ही समानता है दोनों में. विषय और ट्रीटमेंट के नजरिए से देखें तो चोला और एस दुर्गा का एक-दूसरे से दूर-दूर तक मेल नहीं.
एस दुर्गा को लेकर हुए विवाद के बारे में
अब जब आप सोचते हैं तो क्या लगता है? सच कहूं तो एस दुर्गा जिंदगी में और भारतीय राजनीति के लिहाज से भी एक सबक रही है. मुझे समझ आ गया कि अदालती दखल के बावजूद आप तब तक न्याय की उम्मीद नहीं कर सकते जब तक कि कार्यपालिका की उसके आदेश को लागू करवाने की मंशा न हो. सेंसर बोर्ड ने एक भी कट लगाए बिना, बस शीर्षक बदलने के अनुरोध के साथ उसे पारित कर दिया था. फिर भी हम आइएफएफआइ में उसे दिखा न सके क्योंकि सरकार ने अनुमति ही नहीं दी. कोर्ट में मेरे पक्ष में फैसला आ जाने के बावजूद उसने देर से अपील करने का फैसला किया. फिर तो कुछ नहीं हो सकता था. फिल्म बनाने से पहले मैं वकालत ही करता था.
आप पूरी तरह से महिलाओं की ही फिल्म निर्माण टीम होने की खासी वकालत करते रहे हैं.
बिल्कुल, पूरी तरह से महिलाओं के ही फिल्म क्रू की वकालत करने वाले कज्चा फिल्म फोरम का हिस्सा होने के नाते मुझे लगता है कि पूरी तरह से महिलाओं के मिलकर अपनी तरह की फिल्म बनाने का समय आ गया है. उनमें वह समझ है और दर्शक भी अच्छे मजमून का स्वागत करते हैं. मीटू और सबरीमला विवाद के दौर में यह मसला और भी मौजूं हो गया है.
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