गुजरात के सियासी मैदान में अमित शाह ने भले ही कामयाबी के झ्ंडे गाड़ कर अपनी सांगठनिक क्षमता को साबित किया हो, लेकिन उन्हें जब आम चुनावों में मुलायम और मायावती की धरती पर अपना असर दिखाने की चुनौती सौंपी गई तो उनके प्रशंसक भी मानकर चल रहे थे कि यह काम नरेंद्र मोदी के दायें हाथ के वश में नहीं है. मतदान में साल भर भी नहीं बचा था जब इस कुशल रणनीतिकार ने राज्य में पार्टी के अभियान की कमान संभाली और नब्बे के दशक में उत्कर्ष पर पहुंचने के बाद तेजी से अपने जमीनी कार्यकर्ता गंवा चुकी व चुनावी आंकड़ों के मामले में बुरी तरह सिमट चुकी इस पार्टी का कायाकल्प कर डाला. उत्तर प्रदेश की कुल 80 सीटों में से 71 पर बीजेपी की जीत ने न सिर्फ इसे केंद्र की सत्ता में पहुंचा दिया बल्कि गठबंधन के लंबे चले दौर का खात्मा करके निर्णायक राजकाज के लायक इसे बहुमत भी प्रदान किया. बीजेपी के अध्यक्ष पद पर शाह की नियुक्ति उत्तर प्रदेश में हुई बंपर चुनावी फसल का न सिर्फ उन्हें प्रतिदान है बल्कि यह एक संरक्षक और उसके शिष्य के बीच ताकत के बंटवारे का संकेत भी है जो पार्टी और सरकार दोनों में समन्वय कायम करेगा. बीजेपी के अब तक के सबसे युवा अध्यक्ष ने अहमदाबाद के गेस्टहाउस में सीनियर एडिटर उदय माहूरकर से राज्यों के आगामी चुनावों की चुनौतियों, पार्टी संबंधी अपनी दीर्घकालिक योजनाओं और सरकार के साथ मिलकर काम करने की जरूरत जैसे मसलों पर बात की.
बीजेपी के नवनियुक्त अध्यक्ष के तौर पर आपकी सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
मैं इसे काम के तौर पर देखता हूं. हमने लोकसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल कर के सबसे बड़ी चुनौती से पार पा लिया है. अब हमारे सामने पांच काम हैं. मुख्य काम बीजेपी को सरकार और जनता के बीच एक मजबूत कड़ी के तौर पर स्थापित करना है. इसके बाद हमें उन राज्यों में संगठन को मजबूत करते हुए वोट बटोरने वाले एक ठोस तंत्र को विकसित करना होगा जहां हमारे वोट तो बढ़े हैं लेकिन इन्हें हम पर्याप्त सीटों में तब्दील नहीं कर पाए, या फिर वहां जहां सीटें और बढ़ाने की गुंजाइश हो, जैसे पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, ओडिसा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश. फिर हमें महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों के आगामी चुनावों में लोकसभा जैसी ही शानदार जीत दर्ज करनी है. हमें अपनी मौजूदा लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए पार्टी की सदस्यता को बढ़ाना है. और अंत में, हमें सांगठनिक मजबूती लाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत भी करनी है. जब नरेंद्रभाई गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी वे इस पर बहुत बल देते थे क्योंकि वे हमेशा मानते थे कि सरकार के कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाने में पार्टी संगठन की निर्णायक भूमिका होती है.
पार्टी संगठन के लिए कौन से प्रस्तावित बदलाव आपके दिमाग में हैं?
हम ऐसे क्षेत्रों में पहुंचना चाहते हैं जहां हमारी मौजूदगी नहीं है और इसके लिए हम ई-पंजीकरण जैसे तरीके अपनाएंगे. लोगों को पार्टी के करीब लाने में प्रौद्योगिकी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की हमें जरूरत है. हम एक नया सॉफ्टवेयर ला रहे हैं जो देश में होने वाले छोटे से छोटे आगामी चुनाव के बारे में दिल्ली में बैठे पार्टी अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को पहले ही सूचना दे देगा. हमें जमीनी स्तर पर विचारधारात्मक प्रशिक्षण पर भी ज्यादा बल देना होगा. यह भी आश्वस्त करने की जरूरत है कि देशभर के हमारे प्रकाशनों में एक तारतम्य बना रहे ताकि पार्टी की ओर से एक मजबूत और समान संदेश देश भर में पहुंच सके. मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम से जिन युवाओं का मोहभंग हो चुका है, हम उन्हें भी अपने साथ लाने के लिए नए तरीके खोजने की कामना करते हैं.
अब जबकि केंद्र की कमान बीजेपी के हाथों में है, तो क्या सत्ता हथियाना रोजमर्रा की बात नहीं हो जाएगी?
कोई पार्टी जब सत्ता में आती है तो यह कोई असामान्य चीज नहीं होती, लेकिन बीजेपी और संघ में कार्यकर्ताओं की एक समूची फौज है जो अपने वैचारिक पोषण के चलते सत्ता से अप्रभावित रहती है.
आप नरेंद्र मोदी का दायां हाथ हैं. अब चूंकि आप पार्टी के प्रभारी हैं, तो पार्टी और सरकार के बीच वाजपेयी सरकार के दौर वाली दिक्कतों का दोहराव न हो, उसकी क्या गुंजाइश होगी?
मैं नरेंद्रभाई का दायां हाथ हूं, यह मीडिया की बनाई धारणा है. हमारे बीच कोई विशिष्ट रिश्ता नहीं है. वे हर उस कार्यकर्ता पर भरोसा करते हैं जो मेहनत करता है और जिसके पास नतीजे देने का हुनर और क्षमता होती है. पार्टी का काम सरकार और जनता के बीच पुल की
भूमिका निभाना है. वाजपेयी सरकार के वक्त हमारे पास पूर्ण बहुमत नहीं था. इस बार ऐसा नहीं है.
आप सिर्फ 49 साल के हैं. इतनी बड़ी जिम्मेदारी से कहीं आप घबराते तो नहीं हैं?
मेरी जिम्मेदारी बीजेपी के विजय जुलूस को आगे ले जाना है. यह काम एक आदमी का नहीं है, यह टीमवर्क होता है. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन का भी जो श्रेय मुझे अकेला दिया जा रहा है, वह टीमवर्क था.
वाजपेयी के दौर में वैचारिक विषयों पर संघ का दबाव एक अहम मसला था. आप उससे कैसे निबटेंगे?
मीडिया की यह धारणा कि आरएसएस रोजमर्रा के काम में दखल देता है, गलत है.
लेकिन संघ के नेता राम माधव के बीजेपी में शामिल होने से तो पार्टी पर संघ की पकड़ और कसेगी?
संघ कार्यकर्ता का बीजेपी में शामिल होना पुरानी परंपरा है. मैं भी संघ का ही कार्यकर्ता हूं.
मोदी के साथ इतने लंबे समय तक जुड़े रहने पर आपकी सबसे बड़ी कमाई क्या है?
नरेंद्रभाई ने मुझे सिखाया है कि यदि आप प्रतिकूल स्थितियों में प्रयास करते रहें तो आप अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचेंगे. उन्होंने बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के भरोसे को बहाल किया है और गुजरात में यह साबित किया है कि इसी मौजूदा तंत्र के भीतर सुशासन संभव है. उन्होंने राजकाज के जो सिद्धांत गढ़े हैं, उनके शानदार नतीजे अब राष्ट्रीय स्तर पर भी बिलाशक देखने को मिलेंगे.
मोदी के बगैर अमित शाह क्या हैं?
एक अमित शाह से मोदी को कतई कोई फर्क नहीं पड़़ता.
आपके पीछे की ताकत क्या है? सीबीआइ ने सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ के मामले में आपको जेल भेज दिया था. आप अब भी जमानत पर हैं?
मैं अनावश्यक आलोचनाओं से निराश नहीं होता हूं. मेरे खिलाफ फर्जी मुठभेड़ वाले मुकदमे राजनैतिक दुष्प्रचार का हिस्सा हैं. मैं अपना काम पूरे तन-मन से करता हूं और पार्टी में सबको साथ लेकर चलता हूं.
आपको कट्टर हिंदुत्ववादी के तौर पर देखा जाता है. आपकी नियुक्ति को मुसलमान कैसे देखें?
मैं अपने प्रधानमंत्री के दिए नारे “सबका साथ, सबका विकास” के साथ बंधा हूं. मेरी मुस्लिम विरोधी छवि मीडिया की गढ़ी हुई है. मैं सिर्फ किसी एक तबके के तुष्टीकरण के विरोध में हूं. यह हमारी पार्टी की विचारधारा है.
लेकिन आपने उत्तर प्रदेश में एक भी मुसलमान को बीजेपी की ओर से लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया?
यह पार्टी का फैसला था. हम टिकट बंटवारे में हिंदू या मुसलमान को नहीं देखते. हमारी कसौटी यह होती है कि कौन जीत सकता है.
लेकिन पार्टी के चुनाव अभियान के दौरान उत्तर प्रदेश में आपने मुस्लिम विरोधी बयान तो दिए ही थे?
यह गलत बात है. उन बयानों के माध्यम से मैंने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की साजिशों और कुशासन को सामने लाने की कोशिश की थी. मैंने एक बार भी ‘मुस्लिम’ शब्द का प्रयोग नहीं किया.
मोदी सरकार ने अपने पहले बजट में मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए 100 करोड़ रुपए का आवंटन किया है. क्या यह तुष्टीकरण नहीं है?
मदरसों का आधुनिकीकरण हमारे घोषणापत्र का हिस्सा है. यह हमारा उद्देश्य है कि धार्मिक शिक्षा के अलावा मदरसों में आधुनिक शिक्षा भी दी जा सके. इसे तुष्टीकरण कहना गलत होगा.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का भरोसा आप कैसे जीतेंगे?
उनका भरोसा मुझ पर पहले से ही है. मैं उनके भरोसे और समर्थन से ही अध्यक्ष बना हूं.
आपको इस बात का श्रेय जाता है कि आपने उत्तर प्रदेश में आरएसएस-बीजेपी की पृष्ठभूमि वाले प्रतिबद्ध ओबीसी कार्यकर्ताओं को टिकट देकर ओबीसी नेतृत्व का एक पूरा पूल ही निर्मित कर दिया है. क्या आप बाकी जगहों पर भी ऐसा ही करने वाले हैं?
हमारे महान नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय की परिकल्पना की थी-यानी विकास के फल गरीबों तक पहुंचाने की कल्पना की गई है. असल में हम तो वही कर रहे हैं जो हमें अपनी विचारधारा में सिखाया गया है.
बीजेपी के नवनियुक्त अध्यक्ष के तौर पर आपकी सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
मैं इसे काम के तौर पर देखता हूं. हमने लोकसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल कर के सबसे बड़ी चुनौती से पार पा लिया है. अब हमारे सामने पांच काम हैं. मुख्य काम बीजेपी को सरकार और जनता के बीच एक मजबूत कड़ी के तौर पर स्थापित करना है. इसके बाद हमें उन राज्यों में संगठन को मजबूत करते हुए वोट बटोरने वाले एक ठोस तंत्र को विकसित करना होगा जहां हमारे वोट तो बढ़े हैं लेकिन इन्हें हम पर्याप्त सीटों में तब्दील नहीं कर पाए, या फिर वहां जहां सीटें और बढ़ाने की गुंजाइश हो, जैसे पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु, ओडिसा, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश. फिर हमें महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों के आगामी चुनावों में लोकसभा जैसी ही शानदार जीत दर्ज करनी है. हमें अपनी मौजूदा लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए पार्टी की सदस्यता को बढ़ाना है. और अंत में, हमें सांगठनिक मजबूती लाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत भी करनी है. जब नरेंद्रभाई गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी वे इस पर बहुत बल देते थे क्योंकि वे हमेशा मानते थे कि सरकार के कार्यक्रमों को जनता तक पहुंचाने में पार्टी संगठन की निर्णायक भूमिका होती है.
पार्टी संगठन के लिए कौन से प्रस्तावित बदलाव आपके दिमाग में हैं?
हम ऐसे क्षेत्रों में पहुंचना चाहते हैं जहां हमारी मौजूदगी नहीं है और इसके लिए हम ई-पंजीकरण जैसे तरीके अपनाएंगे. लोगों को पार्टी के करीब लाने में प्रौद्योगिकी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करने की हमें जरूरत है. हम एक नया सॉफ्टवेयर ला रहे हैं जो देश में होने वाले छोटे से छोटे आगामी चुनाव के बारे में दिल्ली में बैठे पार्टी अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों को पहले ही सूचना दे देगा. हमें जमीनी स्तर पर विचारधारात्मक प्रशिक्षण पर भी ज्यादा बल देना होगा. यह भी आश्वस्त करने की जरूरत है कि देशभर के हमारे प्रकाशनों में एक तारतम्य बना रहे ताकि पार्टी की ओर से एक मजबूत और समान संदेश देश भर में पहुंच सके. मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम से जिन युवाओं का मोहभंग हो चुका है, हम उन्हें भी अपने साथ लाने के लिए नए तरीके खोजने की कामना करते हैं.
अब जबकि केंद्र की कमान बीजेपी के हाथों में है, तो क्या सत्ता हथियाना रोजमर्रा की बात नहीं हो जाएगी?
कोई पार्टी जब सत्ता में आती है तो यह कोई असामान्य चीज नहीं होती, लेकिन बीजेपी और संघ में कार्यकर्ताओं की एक समूची फौज है जो अपने वैचारिक पोषण के चलते सत्ता से अप्रभावित रहती है.
आप नरेंद्र मोदी का दायां हाथ हैं. अब चूंकि आप पार्टी के प्रभारी हैं, तो पार्टी और सरकार के बीच वाजपेयी सरकार के दौर वाली दिक्कतों का दोहराव न हो, उसकी क्या गुंजाइश होगी?
मैं नरेंद्रभाई का दायां हाथ हूं, यह मीडिया की बनाई धारणा है. हमारे बीच कोई विशिष्ट रिश्ता नहीं है. वे हर उस कार्यकर्ता पर भरोसा करते हैं जो मेहनत करता है और जिसके पास नतीजे देने का हुनर और क्षमता होती है. पार्टी का काम सरकार और जनता के बीच पुल की
भूमिका निभाना है. वाजपेयी सरकार के वक्त हमारे पास पूर्ण बहुमत नहीं था. इस बार ऐसा नहीं है.
आप सिर्फ 49 साल के हैं. इतनी बड़ी जिम्मेदारी से कहीं आप घबराते तो नहीं हैं?
मेरी जिम्मेदारी बीजेपी के विजय जुलूस को आगे ले जाना है. यह काम एक आदमी का नहीं है, यह टीमवर्क होता है. यहां तक कि उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन का भी जो श्रेय मुझे अकेला दिया जा रहा है, वह टीमवर्क था.
वाजपेयी के दौर में वैचारिक विषयों पर संघ का दबाव एक अहम मसला था. आप उससे कैसे निबटेंगे?
मीडिया की यह धारणा कि आरएसएस रोजमर्रा के काम में दखल देता है, गलत है.
लेकिन संघ के नेता राम माधव के बीजेपी में शामिल होने से तो पार्टी पर संघ की पकड़ और कसेगी?
संघ कार्यकर्ता का बीजेपी में शामिल होना पुरानी परंपरा है. मैं भी संघ का ही कार्यकर्ता हूं.
मोदी के साथ इतने लंबे समय तक जुड़े रहने पर आपकी सबसे बड़ी कमाई क्या है?
नरेंद्रभाई ने मुझे सिखाया है कि यदि आप प्रतिकूल स्थितियों में प्रयास करते रहें तो आप अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचेंगे. उन्होंने बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के भरोसे को बहाल किया है और गुजरात में यह साबित किया है कि इसी मौजूदा तंत्र के भीतर सुशासन संभव है. उन्होंने राजकाज के जो सिद्धांत गढ़े हैं, उनके शानदार नतीजे अब राष्ट्रीय स्तर पर भी बिलाशक देखने को मिलेंगे.
मोदी के बगैर अमित शाह क्या हैं?
एक अमित शाह से मोदी को कतई कोई फर्क नहीं पड़़ता.
आपके पीछे की ताकत क्या है? सीबीआइ ने सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ के मामले में आपको जेल भेज दिया था. आप अब भी जमानत पर हैं?
मैं अनावश्यक आलोचनाओं से निराश नहीं होता हूं. मेरे खिलाफ फर्जी मुठभेड़ वाले मुकदमे राजनैतिक दुष्प्रचार का हिस्सा हैं. मैं अपना काम पूरे तन-मन से करता हूं और पार्टी में सबको साथ लेकर चलता हूं.
आपको कट्टर हिंदुत्ववादी के तौर पर देखा जाता है. आपकी नियुक्ति को मुसलमान कैसे देखें?
मैं अपने प्रधानमंत्री के दिए नारे “सबका साथ, सबका विकास” के साथ बंधा हूं. मेरी मुस्लिम विरोधी छवि मीडिया की गढ़ी हुई है. मैं सिर्फ किसी एक तबके के तुष्टीकरण के विरोध में हूं. यह हमारी पार्टी की विचारधारा है.
लेकिन आपने उत्तर प्रदेश में एक भी मुसलमान को बीजेपी की ओर से लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया?
यह पार्टी का फैसला था. हम टिकट बंटवारे में हिंदू या मुसलमान को नहीं देखते. हमारी कसौटी यह होती है कि कौन जीत सकता है.
लेकिन पार्टी के चुनाव अभियान के दौरान उत्तर प्रदेश में आपने मुस्लिम विरोधी बयान तो दिए ही थे?
यह गलत बात है. उन बयानों के माध्यम से मैंने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की साजिशों और कुशासन को सामने लाने की कोशिश की थी. मैंने एक बार भी ‘मुस्लिम’ शब्द का प्रयोग नहीं किया.
मोदी सरकार ने अपने पहले बजट में मदरसों के आधुनिकीकरण के लिए 100 करोड़ रुपए का आवंटन किया है. क्या यह तुष्टीकरण नहीं है?
मदरसों का आधुनिकीकरण हमारे घोषणापत्र का हिस्सा है. यह हमारा उद्देश्य है कि धार्मिक शिक्षा के अलावा मदरसों में आधुनिक शिक्षा भी दी जा सके. इसे तुष्टीकरण कहना गलत होगा.
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का भरोसा आप कैसे जीतेंगे?
उनका भरोसा मुझ पर पहले से ही है. मैं उनके भरोसे और समर्थन से ही अध्यक्ष बना हूं.
आपको इस बात का श्रेय जाता है कि आपने उत्तर प्रदेश में आरएसएस-बीजेपी की पृष्ठभूमि वाले प्रतिबद्ध ओबीसी कार्यकर्ताओं को टिकट देकर ओबीसी नेतृत्व का एक पूरा पूल ही निर्मित कर दिया है. क्या आप बाकी जगहों पर भी ऐसा ही करने वाले हैं?
हमारे महान नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय की परिकल्पना की थी-यानी विकास के फल गरीबों तक पहुंचाने की कल्पना की गई है. असल में हम तो वही कर रहे हैं जो हमें अपनी विचारधारा में सिखाया गया है.

