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'हमारा रिटर्न न्यू पेंशन स्कीम से बेहतर'

हम वैधानिक व्यवस्था में काम कर रहे हैं. हमें सर्विस देने वाली व्यवस्था में काम करने की जरूरत है.

अपडेटेड 21 अक्टूबर , 2013
आम तौर पर चर्चाओं से दूर रहने वाले सरकारी संस्थान कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) से आजकल अकसर खबरें आ रही हैं. अपने को ज्यादा आधुनिक बनाने के साथ ही यह अपने लाखों सदस्यों की अपने तक पहुंच भी आसान बना रहा है. ईपीएफओ के कमिश्नर के.के. जालान ने हाल ही में मनी टुडे के दीपक मंडल से बातचीत में अपनी प्राथमिकताओं के बारे में बताया. पेश हैं प्रमुख अंशः

ईपीएफओ ने नई टेक्नोलॉजी के सहारे कई बदलाव किए हैं. इनमें ऑनलाइन बैलेंस और क्लेम की स्थिति का पता करने की सुविधा शामिल है. इन सब पर कर्मचारियों और एंप्लॉयर्स की क्या प्रतिक्रिया है?
इतने साल में बड़ा बदलाव इलेक्ट्रॉनिक चालान-रिटर्न का है. यह कर्मचारी और एंप्लॉयर्स दोनों के लिए उपयोगी है. इससे पहले एंप्लॉयर्स को पांच अलग रिटर्न भरने पड़ते थे. अब उन्हें सिर्फ एक रिटर्न भरना होता है और वह भी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से. कर्मचारियों की रकम सीधे उनके खाते में जाती है. अब वे अपने खातों में जमा राशि ऑनलाइन देख सकते हैं. इससे हमारा काम भी आसान हो जाता है क्योंकि हम देख सकते हैं कि कितने प्रतिष्ठानों ने चालान भरा है और कितने कर्मचारियों के लिए भरा है. चालान सेट-अप में और भी कई सिस्टम शामिल किए गए हैं, जैसे सालाना खाता अपग्रेड, ऑनलाइन ट्रांसफर.

ईपीएफ खाते चलाना सेविंग्स बैंक एकाउंट चलाने जितना आसान हो सकता है?
इसमें समय लगेगा लेकिन हमारा इरादा यही होना चाहिए. अगर हम ऐसा नहीं करते तो हम सबसे अच्छी सर्विस नहीं दे पाएंगे. हमें आज नहीं तो कल उस लेवल तक पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए.

वहां तक पहुंचने के लिए क्या-क्या करना होगा?
आज ईपीएफओ एंप्लॉयर केंद्रित है. यानी एंप्लॉयर ही कर्मचारियों को प्रॉविडेंट फंड नंबर देता है. यह जिम्मेदारी हमें लेनी होगी. कर्मचारियों को पीएफ  संख्या हमें खुद देनी होगी. हमें कर्मचारियों को यूनिवर्सल नंबर और अलग एकाउंट्स देने होंगे.

अगला साल ईपीएफओ के लिए चुनौती भरा होगा. ईपीएफओ के कर्मचारियों को समझना चाहिए कि पेंशन बिल पास होने के बाद बहुत सारी निजी कंपनियां इस क्षेत्र में आ जाएंगी. वे अपने साथ नई टेक्नोलॉजी लाएंगी. अगर ईपीएफओ ने टेक्नोलॉजी नहीं सुधारी तो मात खा जाएगा. ईपीएफओ को बदलते माहौल में ढलना होगा. इसलिए मैं कहता हूं कि अगला एक साल चुनौतियों भरा होगा और हमें जितनी जल्दी हो सके, चुनौती का सामना कर लेना चाहिए.

क्या इसका मतलब यह कि ईपीएफओ को कर्मचारियों से सीधे संपर्क साधना चाहिए?
मेरे कहने का मतलब यह है कि हमें ऐसी राह निकालनी चाहिए, जिसके जरिए हम कर्मचारियों से सीधे संवाद कर सकें. इसीलिए हम यूनिवर्सल प्रॉविडेंट फंड नंबर की बात कर रहे हैं. व्यक्ति कहीं भी काम करे, उसका यह नंबर वही रहे.

क्या इस दिशा में कोई प्रगति हुई है?
कुछ तरक्की हुई है, हम कुछ कोशिश कर रहे हैं. इससे पहले भी तीन-चार बार हमने ये नंबर जारी करने की कोशिश की है. ऐसा करने के कई केंद्रीकृत/विकेंद्रीकृत तरीके हैं. टेक्नोलॉजी, प्रशासन और कानून से जुड़ी कई चुनौतियां हैं. हमें बहुत सारी मंजूरियां भी लेनी पड़ेंगी. मतलब हमें योजना में संशोधन की मंजूरी लेनी होगी, जो मंत्रालय देगा. मुझे ऐसा करने के लिए टेक्नोलॉजी चाहिए और साथ ही स्टाफ को भी साथ लेना होगा.  

पिछले साल ईपीएफओ की एक भीतरी अधिसूचना ने वेतनभोगियों में हलचल पैदा कर दी कि ईपीएफ अंशदान सिर्फ बेसिक पे पर नहीं, कुल वेतन पर आधारित होना चाहिए. अभी इस मुद्दे को भले ही ठंडे बस्ते में डाल दिया है लेकिन कुछ तो रास्ता निकालना पड़ेगा. वह रास्ता क्या होगा?
आप 30 नवंबर, 2012 के सर्कुलर की बात कर रहे हैं. वह अब भी मंत्रालय में है. इससे कानून में कोई बदलाव नहीं हुआ है. वह तो कानून की एक व्याख्या है जो मद्रास हाइकोर्ट कर चुका है. फिर भी कुछ लोगों को लगा कि यह कोई बदलाव है, लेकिन ऐसा नहीं है. जो भी हो, मामला मंत्रालय में है और वह उसके बारे में सोचेगा.

जानकारों का कहना है कि इसका असर 6,500 रु. से ज्यादा बेसिक सैलरी पाने वाले कर्मचारियों पर नहीं पड़ेगा?
असर क्यों पडऩा चाहिए? अगर आपका मूल वेतन 6,500 रु. से ज्यादा है तो इसका असर आप पर नहीं होना चाहिए. वैसे भी ईपीएफ में अंशदान बहुत हद तक स्वैच्छिक है. ईपीएफओ के पास आने की जरूरत ही नहीं है.

कुछ जानकार कहते हैं कि एक बार ईपीएफ में शामिल हुए तो फिर हमेशा इसका हिस्सा रहते हैं.
ऐसा नहीं है. मुद्दा यह है कि अगर बेसिक सैलरी 6,500 रु. से कम रहते हुए आप ईपीएफ में हैं तो फिर बेसिक सैलरी 6,500 से ऊपर हो जाने भी इससे जुड़े फायदों से आपको वंचित नहीं किया जाना चाहिए. इसलिए यह कहा जाता है कि आप एक बार ईपीएफ में शामिल हुए तो हमेशा इसमें रहेंगे. इसका मकसद यह है कि एंप्लॉयर्स कर्मचारियों को ईपीएफ के लाभ से वंचित रखकर कानून का गलत इस्तेमाल न कर सकें. अगर आपने एक बार संगठन छोड़ दिया तो आप ईपीएफ के सदस्य नहीं रहते. फिर दो महीने के बाद आपने किसी और की नौकरी कर ली तो ईपीएफओ को कैसे पता चलेगा?

20 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों के लिए ईपीएफओ का सदस्य होना क्या अनिवार्य नहीं है?
हां, जरूरी तो है, लेकिन वे हमेशा कह सकते हैं कि उनके कर्मचारियों का मूल वेतन 6,500 रु. से ज्यादा है और अंशदान से बच सकते हैं. उन्हें सिर्फ प्रशासनिक शुल्क देना होगा. ऐसे कई संगठन हैं जो यह शुल्क दे रहे हैं. यह बेहद कम यानी सिर्फ सात रु. है. हम इसमें संशोधन करने वाले हैं.

नया शुल्क क्या होगा?
पहले हमें कानून में संशोधन के लिए प्रयास करना है. इसका प्रस्ताव श्रम मंत्रालय को जाएगा.

6,500 रु. की सीमा बढ़ाए जाने की भी चर्चा है, क्या ऐसी कोई योजना है और अगर है तो कितनी और कब तक ?
हां, यह सीमा बढ़ाने की योजना है, इसे बढ़ाकर 10,000 रु. करने का कैबिनेट नोट आगे बढ़ाया गया है. हम तो ईएसआइ (कर्मचारी राज्य बीमा) योजना की तरह इसे बढ़ाकर 15,000 रु. करने की मांग कर रहे हैं. इस पर बहुत चर्चा हुई है, लेकिन यह कानूनी मामला है. ईपीएफओ के मुखिया के नाते मेरा मानना है कि सीमा बढऩी चाहिए पर कब होगा, पता नहीं.

सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज ने हाल में ईपीएफ की राशि को इन्वेस्ट करने के नियमों में ढील दी है. अब आप एएए रेटिंग वाले प्राइवेट बांड्स के साथ दीर्घावधि पीएसयू बांड्स में इन्वेस्ट कर सकते हैं. इससे कमाई कितनी बढ़ेगी?
सरकार यही चाहती है. हमारी मंशा दोतरफा लाभ की है—एक तो ज्यादा रिटर्न लेना और साथ ही फंड को सुरक्षित रखना. अब भारत सरकार की प्रतिभूतियों में हमारा इन्वेस्टमेंट कम होगा. राज्य प्रतिभूतियों में भी इन्वेस्टमेंट कम होगा, जबकि सरकारी और निजी क्षेत्र के बांड्स में इन्वेस्टमेंट बढ़ सकता है, क्योंकि सरकारी और निजी क्षेत्र के बांड्स ज्यादा रिटर्न देते हैं. इसलिए कमाई बढऩे की उम्मीद है.

जब से नई पेंशन योजना (एनपीएस) सब के लिए खोली गई है तब से एनपीएस और ईपीएफ/ईपीएस की तुलना होने लगी है. आपके ख्याल में क्या यह सही है? आप दोनों की तुलना कैसे करेंगे?
पिछले चार साल (मई, 2009 से मई, 2013) में वार्षिक आधार पर हमारा रिटर्न एनपीएस से बेहतर रहा. हमने 10.47 प्रतिशत का रिटर्न दिया है, जबकि एनपीएस की केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं ने क्रमशः 9.85 और 9.17 प्रतिशत का रिटर्न दिया है. मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि ईपीएफ अच्छा रिटर्न दे रहा है. इसमें निकासी पर टैक्स से छूट है, जबकि एनपीएस में फिलहाल यह सुविधा नहीं है.

पेंशन बिल से माहौल कैसे बदलेगा?
प्राइवेट पेंशन फंड्स के आने से शायद स्वैच्छिक अंशदान पर असर नहीं पड़ेगा. ईपीएफओ को बेहतर सर्विस देनी होगी. ईपीएफ सर्विस के बारे में कुछ गंभीर मुद्दे थे. हम अपनी सर्विस सुधार रहे हैं और ऐसे ही सुधारते रहे तो ऐसी कोई वजह नहीं कि रिटन्र्स के मामले में भी प्राइवेट पेंशन फंड्स से टक्कर न ले सकें.

एनपीएस की कोशिश कॉर्पोरेट घरानों और उनके स्टाफ को इसमें शामिल करने की है. उसमें एंप्लॉयर्स के जरिए अंशदान देने वाले कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त टैक्स लाभ का प्रस्ताव भी है. एनपीएस से ईपीएफ को चुनौती मिल सकती है?
जहां तक टैक्स लाभ का सवाल है, मैं कुछ नहीं कह सकता, लेकिन एनपीएस के साथ होड़ को मैं सकारात्मक ढंग से लेता हूं. मैं अपने अधिकारियों से यही कहता हूं कि हमें अपनी सेवाएं सुधारनी होंगी. अब तक हम अच्छा करते आ रहे है, लेकिन वह सब वैधानिक तंत्र के तहत. हमें इस सोच से बाहर निकलना होगा और सर्विस के माहौल में काम करना होगा.

क्या ईपीएफ की रकम इक्विटी में लगेगी?
वित्त मंत्रालय को 5-15 प्रतिशत फंड इक्विटी में इन्वेस्ट करने में कोई एतराज नहीं है, लेकिन सेंट्रल बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज ने उन कंपनियों को लेकर कड़ी शर्तें लगा रखी हैं, जिनमें ईपीएफ इन्वेस्ट हो सकता है. इसलिए बहुत कम विकल्प मौजूद हैं. इसके अलावा मौजूदा माहौल में हमारी बाजार में इन्वेस्ट करने की हिम्मत भी नहीं हो रही है. लेकिन मैं यह नहीं कहता कि ईपीएफ कभी इक्विटी में इन्वेस्ट नहीं होगा. जब हमारा फंड साइज और बढ़ेगा तो अच्छे डेट इंस्ट्रूमेंट मिलना मुश्किल हो सकता है, तब हमें इक्विटी में इन्वेस्ट करना ही होगा. इसलिए मैं यह नहीं कहता कि हम इक्विटी में कभी इन्वेस्ट नहीं करेंगे.
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